पता नहीं कुछ वर्षों की या जन्मों का है सहारा
ना तेरा ना मेरा कहता, कहता सब है हमारा
उसे प्रेयसी ने जब प्रथम मिलन को पुकारा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा
मन में था डर,
क्या करता पर
यह ना सोचा क्या होगा तब
जान जाये जब सबके सब
दिल में थी बस एक ही आस
एक मिलन की बस थी प्यास
वो बन गई प्राणों की जान
देखा चेहरे पर मुस्कान
तन निर्मल लगता पावन
इस ठंड दिसंबर में सावन
वो सुंदरता की थी मूरत
परियों सी थी उसकी सूरत
देखा जो उसकी आंखों में
कई फूल खिले थे शाखों में
आंखों में देखा ताक झांक
वो भूल गया खुद को ही आप
तन उसका लगता इत्रदान
बातें उसने भी सब ली मान
मैं हूं बस तेरी तू ये जान
तू ही मेरा है मेरी जान
बाहों में भर कर आलिंगन
अभिलाषित हृदय का स्पंदन
आंखों को उसने बंद किये
मस्तक होठों से मंद छुए
होठों पर थी उसके सिहरन
मस्तक का चुंबन था कारन
खो डाली उसने खुद का होश
भर ली कसकर उसको आगोश
कुछ देर वो ऐसे जुड़ी रही
खो होश वो ऐसे पड़ी रही
बस कुछ क्षण का वो प्रथम मिलन
उम्मीद की थी इक नई किरन
पकड़ कपोलों को प्रेयसी ने उसका सिर झकझोरा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा
होठ में सिहरन, पैर में कंपन
मानो आए उसके साजन
हाथों में हाथ वो दे कैसे
सिकुड़ी थी वो छुईमुई जैसे
इक शाल बदन पर थी लिपटी
वो भी थी बस उसमें सिमटी
आंखों से मन में लगी आग
उस शाल का उसने किया त्याग
मानों धरती पर दिखा चांद
वो रुका नहीं फिर उसके बाद
स्पर्श किया प्रेमी ने हाथ
प्रेयसी भी देने लगी साथ
थी भूल चुकी सारे नाते
कर रही थी प्यार की वो बातें
प्रेमी की आंखें देख ध्यान
धड़कन सुन रही लगा के कान
आंखों पर हाथ फिराई
बोली कर रही सफाई
वो नाक पकड़ के हिलाई
होठों को गोल बनाई
ढक कर अपने प्रेमी की आंख
उसके चेहरे को रही ताक
छुआ ज्यों ही प्रेमी के लब को
त्यों ही वो भूल गई सबको
दिल जोर से बोल रहा धक-धक
जैसे ही वो चूमी मस्तक
कर रही प्यार की कुछ बातें
बीते तुम बिन कैसे रातें
अंदर से थी इक घबराहट
लेकिन बस उसकी थी चाहत
गालों को पकड़े खींच रही
और प्रेम से अपने सींच रही
कभी नहीं छोडूंगी हर पल दूंगी साथ तुम्हारा मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा
खोले बैठी घर के कपाट
देखे बस प्रेमी की ही बाट
उस क्षण प्रतिक्षण वो कली खिली
जब अपने भौरे से वो मिली
ना कुछ सोचे समझे पगली
बन फूल वो भौरे को ढक ली
भौरा भी उसमें सिमट गया
और अपने पुष्प से लिपट गया
कैसा था यह अद्भुत संयोग
दोनों को मिलने का था योग
कभी प्यार से थपकी दे कपोल
कर लेती थी होठों को गोल
आंखों में दिखता था वो प्यार
जिसका हुआ न था इजहार
कुछ तृप्त हुई मन की इच्छा
पूर्ण हुई वर्षों की प्रतीक्षा
सब कुछ पाकर सब छोड़ दिया
प्रेयसी दर्द ने मोड़ दिया
श्रृंगार न था चूड़ी कंगन
फिर भी सुंदरता मोहे मन
घंटो तक करते आलिंगन
इक दूजे पर वारे तन मन
प्रेमी ने गोद उठाया था
प्रेयसी को पास बिठाया था
सांसों से सांसें जब मिलती
सूखे मन में कलियां खिलती
इक नई ऊर्जा थी बहती
मानो दिल की बातें कहती
दस्तक दे गया ये नया साल
मिलने के बाद क्या हुआ हाल
नववर्ष का वो अद्भुत उपहार
लुटा दिया सब उस पे प्यार
अब कुछ भी अच्छा नहीं लगे
हर जगह पे बस अब वही दिखे
वो जाति धर्म को तोड़ गई
और प्यार का नाता जोड़ गई
उस गुड़िया का वो था नवाब
सब कुछ लगता था जैसे ख्वाब
चाहे जिस राह पे वो जाता
बस छवी उसी की ही पाता
‘एहसास’ करोगे जब उसको तड़पेगा हृदय तुम्हारा
पता नहीं इस जीवन में फिर होगा मिलन दुबारा
बोली मैं सदियों से तेरी जन्मों से तू है हमारा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा
– अजय एहसास