कांटे की जंग में फंसे बंगाल चुनाव

रमेश सर्राफ धमोरा

पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ कांटे के संघर्ष में फंसी नजर आ रही हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपना राजनीतिक वजूद बचाने में पूरा जोर लगा रही है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी किसी भी तरह पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास कर रही है। इस बार विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को चुनाव जीतने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ रही है। वैसी स्थिति इससे पूर्व उन्होंने शायद ही कभी झेली हो। ममता दीदी चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की हर नीति अपना रही है।

नंदीग्राम की एक चुनावी सभा में उनके पैर में लगी चोट को भी उन्होंने बंगाली अस्मिता से जोड़ने का प्रयास किया था। उस घटना को उन्होंने खुद पर हमला होना बताया था। मगर चुनाव आयोग द्वारा करवाई गई जांच में उनके स्वतः ही चोट लगनी पाई गई थी। इस कारण उन को बैकफुट पर आना पड़ा था। उसके बाद से वह लगातार पैर पर प्लास्टर बांधकर व्हीलचेयर पर ही अपना चुनाव प्रचार कर रही है। ममता दीदी ने इस बार अपनी परंपरागत भवानीपुर विधानसभा सीट छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ा है। जहां उन्हें अपने ही पुराने साथी शुभेंदु अधिकारी के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा है। नंदीग्राम में चुनाव जीतने के लिए ममता दीदी ने लगातार तीन दिन तक घर-घर जाकर वोट मांगे थे। वोटिंग के दौरान भी वह एक बूथ पर जाकर 2 घंटे तक बैठी रही। इन सब घटनाओं से राजनीतिक प्रेक्षक अनुमान लगा रहे हैं कि ममता दीदी के लिए हालात अनुकूल नहीं लग रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में ममता दीदी के तृणमूल कांग्रेस को टक्कर दे रही भारतीय जनता पार्टी पूरे जोश से लबरेज नजर आ रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में मात्र 3 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के नेतृत्व में पिछले 5 सालों में ग्राउंड लेवल पर बहुत अधिक मेहनत की। ममता दीदी के करीबी व प्रभावशाली नेताओं को एक-एक कर तृणमूल कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में शामिल करवाया और उनको टिकट देकर मैदान में उतारा है। जो ममता दीदी के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी तेजी से बंगाली जनमानस में अपनी पैठ बनाते हुए लोकसभा की 18 सीटें जीतकर सभी राजनीतिक प्रेक्षको को चैंका दिया था। उस समय किसी को सपने में भी गुमान नहीं भी नहीं था कि भारतीय जनता पार्टी 18 सीटें भी जीत सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने मतदाताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी कर 40 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का समर्थन हासिल किया था। जो ममता दीदी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से मात्र 4 प्रतिशत ही कम थे।

पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखकर भी समय रहते ममता दीदी सचेत नहीं हुई। उन्होंने अपना वही पुराना तानाशाही रवैया बरकरार रखा। जिसका भाजपा ने बखूबी फायदा उठाते हुए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर पार्टी को लगातार झटका देती रही। आज ममता दीदी पूरी तरह भाजपा के चुनावी चक्रव्यूह में फंसी नजर आ रही है। ममता दीदी द्वारा अपने चिर विरोधी वामपंथी दलों सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं को पत्र लिखकर भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान करना ममता दीदी की कमजोरी को ही दर्शाता है।

ममता दीदी के पत्र लिखने से उनके प्रति समर्थन बढ़ने की बजाय विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा ही उनके खिलाफ बयानबाजी की जाने लगी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद अधीर रंजन चौधरी ने तो ममता दीदी के विपक्ष के नेताओं को पत्र लिखने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्हें सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनावी हार के डर से ममता बनर्जी को विपक्ष को एकजुट करने की सूझ रही है। जबकि सत्ता में रहते वक्त उन्होंने सबसे अधिक कांग्रेस व वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं पर ही अत्याचार किए हैं। कांग्रेस और वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने के कारण ही पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी उभर पाई है। जिसका पूरा दोष ममता बनर्जी पर है। ममता बनर्जी के शासन में जमकर प्रदेश की जनता के साथ अत्याचार हुए हैं। उसका हिसाब तो उनको देना ही पड़ेगा व नतीजा भी भुगतना पड़ेगा।

पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के प्रचार की पूरी कमान जहां ममता दीदी के हाथ में है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संभाल रखा है। पिछले तीन सालों से भारतीय जनता पार्टी ने ग्राउंड लेवल पर संगठन को मजबूत करने की दिशा में बड़ा काम किया है। आज भारतीय जनता पार्टी के हर गांव में कार्यकर्ता है। जिसकी बदौलत ही भाजपा बंगाल चुनाव के मुख्य मुकाबले में आ पाई है। बंगाल में कांग्रेस वामपंथी दल मिलकर चुनाव मैदान में उतरे हैं। लेकिन उनका कहीं कोई प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। ममता दीदी को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस व वामपंथी दलों के मतदाता भाजपा के पक्ष में जुट गए हैं। अब उनका वापस लौटना मुश्किल लग रहा है। ऐसे में कांग्रेस व वामपंथी दलों को अपनी पिछली स्थिति बरकरार रखना भी बहुत मुश्किल लग रहा है।

पश्चिम बंगाल में 2 चरणों में 60 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। यहां कुल 8 चरणों में मतदान होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में जगह-जगह जनसभाओं को संबोधित कर ममता सरकार पर करारा हमला कर रहे हैं। राजनीतिक दृष्टि से ममता बनर्जी पूरी तरह भाजपा के चक्रव्यूह में फंसी नजर आ रही है। ऐसे में फैसला बंगाल के मतदाताओं को करना है कि वह ममता बनर्जी को फिर से एक बार मुख्यमंत्री बनाएंगे या फिर 10 साल से शासन कर रही ममता बनर्जी के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाएंगे। फैसला तो आगामी 2 मई को वोटों की गिनती के बाद ही हो पाएगा।

रमेश सर्राफ

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