—विनय कुमार विनायक
हर किसी का धर्म है आत्मरक्षा करना
हिंसक प्राणियों से दूरी बनाए रखना
और जो हिंसक नहीं उसकी रक्षा करना!
मानव तुम ऐसा अहिंसक ना हो जाना
कि अपने हंता से रहम की उम्मीद लगाना
तुम हिंसक पशुओं से खुद को बचाए रखना!
जीवाणु विषाणु से अपनी हिफाजत करना
तुम सोचो नहीं सांप बिच्छू को मित्र बनाना
बाघ भेड़िया से मैत्री का गठबंधन नहीं करना!
तुम अगर अहिंसक हो तो हिंसक से दूर रहना
जो मनुर्भव: नहीं हो पाया पशुता नहीं मिटाया
ऐसे आदमी पशु होते ऐसों से दूरी बनाए रखना!
उस आदमी से सांठ गांठ कभी नहीं करना
डरना उतना ही जितना हिंस्र जीव से होता डरना
ऐसे आदमी जाति धर्म के नाम चाहते हिंसा फैलाना!
भूल से भी हिंसक की मांद में नहीं जाना
हनुमान की तरह सुरसा का भोजन होने से बचना
हिंसक मित्र से अच्छा अहिंसक शत्रु का होना!
—विनय कुमार विनायक