—विनय कुमार विनायक
विद्यावती व किशन सिंह के बेटे भगत ये कह गए,
तेरा वैभव अमर रहे मां,हम दिन चार रहें या न रहें!
भगत, राजगुरु, सुखदेव ने मां, तेरी शान में प्राण देके,
गुलाम वतन में जन्म ले करके, वो गुमनाम ना रहे!
सत्ताईस सितंबर उन्नीस सौ सात में भगतसिंह आए,
अमर कथा इस वीर की, तेईस वर्ष में शहीद हो गए!
बंगा, लायलपुर, पाकिस्तानी पंजाब की पुण्यभूमि में,
एक क्रांतिकारी सिख घर में भगतसिंह अवतार लिए!
सरदार अर्जुनसिंह सौंधूँ के पुत्र क्रांतिकारी अजीतसिंह,
स्वर्णसिंह, किशनसिंह पुत्र जन्म से कैद से रिहा हुए!
दादी ने खुश होके नाम दिया पौत्र को ‘भागां वाला’,
सच में भगतसिंह थे भारत का भाग्य जगाने वाला!
भगतसिंह का परिवार सिख आर्यसमाजी संस्कारी थे,
वैदिकयज्ञ से नामकरण हुआ भगत उपनयनधारी थे!
डायर के जलियांवालाबाग के भयानक नर संहार से,
उन्नीस सौ उन्नीस में बारह वर्षीय भगत क्षुब्ध हुए!
पढ़ाई छोड़ गांधीजी की असहयोग अहिंसा राह अपनाई,
पर बाईस के चौरीचौरा कांड से गांधी ने बदली नीति!
गांधीजी किए थे एकतरफा असहयोग आंदोलन वापसी,
भगतसिंह थे सर्वहारा के पक्षधर, कृषकों के हिमायती!
खाई कसम भगतसिंह ने गेहूं खेत में बंदूक उगाने की,
जान हतके अंग्रेज भगाने, शहीदे आजम बन जाने की!
बिस्मिल,सान्याल औ’ योगेश के उनतीस सौ चौबीस में
गठित हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ में भगत जा मिले!
असलाह खरीदने और क्रांतिकारी गतिविधि अंजाम हेतु,
नौ अगस्त पच्चीस में काकोरी में रेलवे की लूटी संपत्ति!
भगतसिंह को छोड़ बांकी काकोरी के आरोपी पकड़े गए,
लाहिड़ी, बिस्मिल,असफाक, रोशन को सजा हुई फांसी!
भगतसिंह मामूली नहीं,थे संत,शायर, साहित्यकार, कवि,
काकोरी काण्ड के सभी वीरों की ‘कीरत’ में लिखे कृति!
सत्तरह दिसंबर को लाहिड़ी गोंडा में, उन्नीस दिसंबर को
बिस्मिल गोरखपुर,असफाक फैजाबाद,रोशनसिंह प्रयाग में,
हंसते-हंसते फांसी में झूल गए, बिस्मिल ने वंदेमातरम
कहके शेर पढ़ा;’मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे!
बांकी न मैं रहूं,न मेरी आरजू रहे,जबतक की तन में
जान रगों में लहू रहे,तेरीहीं जिक्रेयार,तेरी जुस्तजू रहे!’
फिर फांसी के तख्ते पे शेरेहिन्द ने आखिरी शेर पढ़ा;
‘अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की है भीड़!
एक मिट जाने की हसरत अब दिले बिस्मिल में है!’
अब सपूतएहिंद असफाक का अंतिम अल्फाज़ सुनिए
‘तंग आकर हम उनके जुल्म से,बेदाद से चल दिए
सूए अदम जिन्दाने फैजाबाद से—फैजाबाद से——’
अक्तूबर उन्नीस सौ अठाईस में साइमन कमीशन के
विरोध में लाला लाजपत राय शहीद हुए लाठीचार्ज से!
भगतसिंह राजगुरु सुखदेव आजाद ने दोषी सैंडर्स की,
सत्तरह दिसंबर अठाईस ई. में गोली मार हत्याकर दी!
फिर आजाद के नेतृत्व में उन्नीस सौ उनतीस ई. में,
भगतसिंह औ’ बटुकेश्वर दत्त ने बम फोड़ा एसेंब्ली में!
किन्तु भाग जाना बुजदिली समझके खुद ही खुद को
दोनों भारत के लाड़ले ने बलिदान में जां हाजिर किए!
किन्तु गोरों की सरकार बुजदिल और कायर निकली,
तय समय से पहले तेईस मार्च इकतीस में फांसी दी!
एकसाथ शहीद हुए तीनों राजगुरु, भगतसिंह,सुखदेवजी,
शहीदों की लाश को बोटी-बोटी कर अंग्रेजों ने जला दी!
मुट्ठी भर अंग्रेज किन्तु हर शाख पे देशी उल्लू बैठे थे,
जेल,जेलर, जल्लाद, जमींदार, सबके सब अपने देश के!
भगतसिंह का संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद,देशी शोषक
कम नहीं विदेशियों से,इंकलाब जिंदाबाद पैगाम उनके!