भारत के राष्ट्रपुरुष शिवाजी महाराज

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ललित कौशिक


जब देश परतंत्र में जाता है तब शासनकर्ता की जमात का अनुकरण और अनुसरण लोग करने लगते हैं और समाज का नेतृत्व करने वाले विद्वतजन, सेनानी, राजधुरंधर परानुकरण में धन्यता मानने लगते हैं. जिससे  समाज भी इन्हीं लोगों का अनुकरण करना शुरू कर देता है जिसके कारण धर्म की ग्लानि होती है, परधर्म में जानेवालों की संख्या बढ़ती रहती है. लोग अपने जीवनादर्श से लोग दूर होते जाते हैं. भाषा का विकास अवरुध्द हो जाता है, परकीय भाषा का बोलबाला होता रहता है. मुगल काल में अरबी, पारसी, तुर्की भाषा का प्रयोग भारत में होने लगा. तब जाकर प्रकृति के नियम के अनुसार दिन के बाद रात धूप के बाद छाँव और दुःख के बाद सुख की किरणें दिखाई देती है, हुआ भी कुछ ऐसा ही.

उस अंधकारमय युग में राष्ट्र पुरुष के रूप में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी सन 1674 ई को शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह रायगढ़ किले पर संपन्न होता है, उस समय शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक युगपरिवर्तनकारी घटना थी. महाराजा पृथ्वीराज चौहान के बाद भारत से हिंदूशासन लगभग समाप्त हो चुका था. जिन्होंने मुस्लिम अत्या तैयों के शासन से खुद को अलग रखा और अपने स्वतंत्र राज्य का निर्माण किया.

शिवाजी महाराज ने मुसलमानी शासनकाल में लुप्त हो रही हिंदू राजनीति को फिर से पुनरुज्जीवित किया. हिन्दू राजनीति की पहली विशेषता यह थी कि वह धर्म के आधार पर चलती है और यहां धर्म का मतलब राजधर्म है. राजा का धर्म प्रजा का पालन, प्रजा का रक्षण और संवर्धन है. उसकाल खंड में राजा, हिंदू राजनीति के सिद्धांतों के अनुसार उपभोग शून्य स्वामी है व प्रजा उसके लिये अपनी संतान के समान है. राज्य में कोई भूखा न रहे, किसी पर अन्याय न हो, इसकी चिंता भी उसे करनी पड़ती थी. जिस कारण प्रजा अपनी- अपनी रुचि के अनुसार उपासना पद्धति का अवलंब करती थी. उन्होंने प्रजा के जो धार्मिक कर्मकांड हैं, उनको राज्य की ओर से यथाशक्ति मदद भी करनी चाहिये.

वहीं  न्याय सबके लिये समान होना चाहिये, जो उच्च पदस्थ हैं, उनके लिये एक न्याय और जो सामान्य हैं, उनके लिये दूसरा न्याय, यह अधर्म है इस बात तक की चिंता वे खूद करते थे. छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू राजनीति के सिद्धांतों का अपने राजव्यवहार में कड़ाई से अनुप्रयोग किया.

कानून व्यवस्था का कड़ाई से पालन

एक बार उनके स्वयं के मामा ने भ्रष्टाचार किया, जिसका शिवाजी महाराज को पता चल गया उसके बाद महाराज ने उनको पद से मुक्त किया और अपने देश के बाहर निकाल दिया. इसी तरह जब उनके बेटे संभाजी ने कुछ अपराध किया, उसे पन्हाल गढ़ के कारागार में डालने की सजा उन्होंने सुनाई. एक बार रांझा के पाटिल ने एक युवती के साथ बलात्कार किया, जिससे युवती का मामला शिवाजी महाराज के राज दरबार में गया, राजा ने उस आरोपी के आरोप सिद्ध होने पर उसके हाथ-पैर काटने की सजा सुनाई.

जब विजय दुर्ग का निर्माण कार्य चला हुआ था तो काम में एक ब्राह्मण शासकीय अधिकारी ने सामग्री पहुंचाने में अक्षम्य विलंब कर दिया, जिसके बाद महाराज ने उसको खत लिखकर कहा कि अगर आप ये सोच रहे है कि आप ब्राह्मण हैं, इसलिये आपको सजा नहीं होगी, इसलिए आपको इस भ्रम में नहीं रहना चाहिये, आपने शासकीय काम योग्य प्रकार से  नहीं किया, इसलिये आपको सजा मिलेगी. छत्रपति शिवाजी महाराज अपने को गो-ब्राह्मण प्रतिपालक कहा करते थे. इसका मतलब यह नहीं कि वे ब्राह्मण जाति के प्रतिपालक थे. यहां ब्राह्मण शब्द का अर्थ होता है, धर्म का अवलंब करनेवाला, विधि को जाननेवाला. आज की परिभाषा में कहना है तो, महाराज यह कहते हैं कि यह राज्य कानून के अनुसार चलेगा.

हम सब शिवाजी महाराज द्वारा लड़े युद्धों के बारे में जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि लगभग 36 साल तक उन्होंने राजकाज किया और उसमें सेकेवल 6 साल भिन्न-भिन्न लड़ाइओं में उन्होंने अलग-अलग स्थानों  पर समय बिताया और बाकि के तीस साल तक वे एक आदर्श शासन की नींव रखने में कार्यरत रहे.

आज के पारिभाषिक शब्दों में सुशासन, विकास और विकास में सबका सहयोग, राष्ट्रीय संपत्ति का समान वितरण, दुर्बलों का सबलीकरण इत्यादि. इन कार्यों को किस प्रकार से करे छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका मानो एक ब्ल्यू प्रिंट हमारे सामने रखा है.

अगर देश और प्रदेश की राजनीति इस आदर्श राजकारण का अनुशरण करना शुरू कर दे तो मानों धरती पर फिर से रामराज का आगमन समझा जायेगा, क्योंकि शिवाजी महाराज ने भी मर्यादा पुरुषोतम भगवान् श्रीराम के शासनकाल को अपने आगे आदर्श रूप में रखकर इस व्यवस्था का निर्माण किया था.

लेकिन वर्तमान समय में विभिन्न राजकारणी पार्टियों की दशा और दिशा अपने से शुरू होकर अपने पर ही खत्म हो रही है, जो एक गलत दिशा की ओर इशारा कर रही है.

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