महत्वपूर्ण लेख विविधा

भाषा रूढ कैसे की जाए?

डॉ. मधुसूदन

प्रवेश:
प्रश्न उठाया जाता है, कि, हिन्दी की श्रेष्ठता और उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी भारत की जनता और संचार माध्यम  हिन्दी  क्यों अपनाते नहीं ? कुछ मित्रों को लगता है; कानून बनानेसे हिन्दी प्रस्थापित हो जाएगी.
आज, ऐसे  कुछ पहलुओं के उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं. विषय प्रश्नोत्तर मालिका द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. प्रश्नोत्तरी की विधा में प्रस्तुति के चलते कुछ पुनरावृत्ति होगी;  पर, फिर भी अनुक्रम तर्कसंगत रखने का प्रयास किया है.

प्रश्न:(१) शब्द (या भाषा प्रयोग) रूढ कैसे होता है?
उत्तर:(१)
जैसे बालक घर में बोली जाने वाली भाषा का प्रयोग  -*बडों का अनुकरण*- कर  सीखता है. उसी प्रकार, जनता भी   -*समाज के बडों का अनुकरण*- कर  भाषा प्रयोग करती है. वास्तव में ऐसे *बडे  अनुकरणीय जन*, प्रतिष्ठाप्राप्त प्रभावी व्यक्तित्व होते हैं. उनकी प्रतिष्ठा के कारण ही समाज अनुकरण के लिए, प्रेरित होता है.

प्रश्न:(२) तो ऐसी रूढि प्रस्थापित करना *समाज के बडों* का दायित्व है; आज की स्थिति  में  *समाज के बडे* कौन माने जाएंगे?
उत्तर:(२)
आज प्रतिष्ठाप्राप्त  और अनुकरणीय वर्ग है:
==>  शिक्षक, प्राध्यापक, आदरप्राप्त प्रतिष्ठित व्यक्ति, विभिन्न पक्षों के नेता, प्रतिष्ठा प्राप्त समाचार पत्र, मासिक, साप्ताहिक संचार माध्यम  और चित्रपट उद्योग के अभिनेता इत्यादि.

ये लोग, यदि शुद्ध शब्द प्रयोजेंगे तो पाठक भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करने प्रेरित होंगे. यह दीर्घ प्रक्रिया है. प्रक्रिया के अंत में बोल चाल की भाषा में शब्द रूढ होने तक कुछ बरस  निकल  जाएंगे. पर ऐसी प्रक्रिया को उचित  शासकीय प्रबंधन से शीघ्रता प्रदान की जा सकती है.

विशेष:  जब सामान्य जन श्रेष्ठ जनों का ही अनुकरण करते हैं. ऐसा स्पष्ट संदेश भगवान कृष्ण के शब्दों से  भी व्यक्त होता है.

प्रश्न(३) भगवान कृष्ण के शब्दों का उद्धरण देने की कृपा करेंगे?

उत्तर:(३)
भगवान कृष्ण गीता के ३रे अध्याय के २१ वे  श्लोक में कहते हैं:
—————————— —————–
*यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्‌  प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ २१॥*
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कि,’श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करता है, सामान्य  जन भी वैसा आचरण (अपनाते) करते हैं.  आगे कहते हैं, श्रेष्ठ जन अपने आचरण से  जो प्रमाणित कर देता है उसीके अनुसार समाज भी बरतने लगता है.
अर्थात, ऐसा  आचरण कर, प्रमाणित करना श्रेष्ठ जनों का ही काम है.

(४) ऐसे शब्द प्रयोग के, कुछ उदाहरण दे सकते हैं?

उत्तर(४):
बॉम्बे के बदले *मुम्बई*,  सिलोन के बदले *श्री लंका*, टेलिविजन के बदले *दूर दर्शन*  न्यूज के बदले  *समाचार*  और उसी प्रकार लोक सभा, संसद, विधान सभा, राज्यसभा, प्रधान मन्त्री, राष्ट्रपति, वित्त मन्त्री, ऐसे  कई प्रयोग, जिनकी कुल संख्या १०० से ऊपर है; दिखाए जा सकते हैं. एक पूरा अलग आलेख बन सकता है.

एक विशेष उदाहरण लीजिए.

प्रतिष्ठा प्राप्त अभिनेता  श्री.  अमिताभ बच्चन अपने करोडपति कार्यक्रम में  शुद्ध हिन्दी का प्रयोग  बडी सहजता से करते हैं.
ऐसे कार्यक्रमों का भी शुद्ध हिन्दी को प्रोत्साहित करने में कम योगदान नहीं है. उसी प्रकार विभिन्न  प्रतिष्ठित हिन्दी संस्थाएँ अपने सम्मेलनों में  विशेष बल देकर  शुद्ध भाषा के प्रयोगसे भाषा शुद्धि  में अपना योगदान दे सकती है.

प्रश्न;(५)भाषा की गुणवत्ता बढाएँ  ऐसी भाषा लक्ष्यी पुस्तकें भी होनी चाहिए.

उत्तर:(५)
अवश्य; प्रत्येक क्षेत्र विशेष की छोटी छोटी पुस्तिकाएँ छापकर वितरित की जानी चाहिए.
उदाहरणार्थ (१) शासन के शब्द (२) न्यायालय के शब्द (३) नागरिक-सभ्यता के शब्द, (४) परिवहन के शब्द, (५) अर्थ शास्त्र के शब्द, ऐसे कम से कम ७५ विषय होंगे जिन के शब्दों की पुस्तिकाएँ छापकर विनामूल्य वितरित की जाएँ.

प्रश्न:(६) और क्या किया जा सकता है?

उत्तर(६):
हिन्दी का शब्दकोश भी हर देशवासी को लागत मूल्य पर वितरित किया जाए.
प्रत्येक  शिक्षित भारतीय परिवार में ऐसा कोष होना (ही) चाहिए.

अंग्रेज़ी का शब्दार्थ कोष जिन्हें खरीदना हो वे  स्वयं मूल्य देकर खरीद सकते हैं.  पर हिन्दी के प्रादेशिक अर्थोवाले, शब्दकोष शासन द्वारा लागत मूल्य पर वितरित किए जाने चाहिए.  लिपि का ही अंतर होगा. बहुत सारे शब्द संस्कृतजन्य होनेके कारण बहुतेरी भाषाओं में शब्द समान ही होते हैं.

प्रश्न:(७) और मासिक, साप्ताहिक, त्रैमासिक इत्यादि  सामयिक किस प्रकार शुद्ध भाषा को प्रोत्साहित करें?

उत्तर(७)
सामयिकों में  शुद्ध शब्दावलियों  के लिए, एक-दो पृष्ठ समर्पित  करें. प्रत्येक अंक में  २५-३० अंग्रेज़ी शब्दों के हिन्दी प्रतिशब्द देकर,  अर्थ समझाया जाए. संस्कृत  शब्द अर्थवाचक तो होता ही है, और उसे समझना बडा आसान होता है.

प्रश्न: (८) कानून बनाकर  क्या किया जा सकता है?

उत्तर:(८)
कानून बनाकर हमारे शब्दों को प्रोत्साहित किया जा सकता है; पर शब्द रूढ नहीं किया जा सकता. उसे रूढ करने के लिए समाज के अग्रणी सुशिक्षित और विद्वत जन  नेता अध्यापक शिक्षक  सामज के श्रेष्ठ जन जितना योगदान दे पाएंगे, उतना योगदान कानून से नहीं दिया जा सकता. कानून केवल प्रोत्साहित कर सकता है.

 

प्रश्न:(९)
क्या संस्कृत ऐसे शब्द देने में समर्थ हैं, कुछ विस्तार से समझाइए.

उत्तर:(९)
संस्कृत में  अतुलनीय शब्द रचना सामर्थ्य है. साथ  संस्कृत  शब्द अर्थ सहित अवतरित होता है; संस्कृत आपको जिस अर्थ का शब्द चाहिए उस अर्थका  शब्द देने की सामर्थ्य रखती है. पर अर्थ आप को देना होगा.
बिना अर्थ का संस्कृत शब्द  नहीं दिया जा सकता. इस पहलुपर पहले भी कुछ आलेख डाल चुका हूँ.

बंधुओं,  सारे संसार में ऐसी  कोई अन्य भाषा नहीं है. आज मैं कुछ अध्ययन के बल पर यह बात कह रहा रहा हूँ.

आप प्रश्न पूछिए, मैं उत्तर देने का प्रयास करूँगा