—–विनय कुमार विनायक
भाषाई गुलामी का मुक्तियोद्ध
निपट अकेला समर भूमि में
सिर में सिरस्त्रान नहीं, कर में कृपाण नहीं
कवच-कुण्ड़ल विहीन कर्ण सा!
निपट अकेला मृतवजूदधारी लड़ रहा
घोषित अज्ञात कुल शील का!
भूत-भविष्य-वर्तमान से निर्लिप्त
भाषाई गुलामी का मुक्तियोद्धा
पक्ष और विपक्ष के सम्मिलित
गला काट साजिश के बीच
भाग्य चक्र को फंसाए खड़ा!
भौंचक्क रश्मिरथी अनुसंधान करे
शस्त्र या निज प्राण बचाए जबकि
सारथी है शल्य मामा, मामा जो
मामा है सत्य और असत्य का!
(अर्जुन और सुयोधन का भी)
मामा जो खण्डित है तन व मन से
दिल में छुपाए कुछ,मन भरमाए कहीं
सत्ता के कोड़े से,काठ के घोड़े को
काठ मार गया, संविधान के रोड़े से!
धुरी तक कीच में धंस चुका रथचक्र
कंधे पर अकेले उठाए टुक-टुक देखता
भाषाई गुलामी का मुक्तियोद्धा
अपने ही सारथी को टट्टू सा
जिसे थोपा गया उसके सर पर
सरपरस्त के द्वारा उसके खिलाफ!
ऐसे में बली का बकरा भर है
भाषाई गुलामी का मुक्तियोद्धा
जिसकी शौर्य और शहादत की
नियति है सिर्फ गुमनाम रहना!
गुमनाम ही लड़ेगा,गुमनाम मरेगा,
भाषाई गुलामी का मुक्तियोद्धा!