भीष्म:प्रतिभा अमर होती मिटती नहीं भौतिक प्रहार से

विनय कुमार विनायक
भीष्म;प्रतिभा अमर होती
नाश हो सकती नहीं
किसी घातक वार से

जैसे कि ऊर्जा मिटती नहीं
किसी भौतिक प्रहार से

बदल जाती परिस्थितिनुसार

असंभव था भीष्म को मारना
नाकाफी थी अठारह अक्षौहिणी सेना

किन्तु काफी था एक शिखण्डी
भीष्म की जिजीविषा को
चिता भष्मी में बदलने के लिए

शिखण्डी नाम नहीं
किसी वीर्यवान पौरुष का
या नारी की शक्ति का!

शिखण्डी नाम है
एक साजिशी प्रहार का
जो जन्म लेता
न्यूटन के तीसरे सिद्धांत के अनुसार

जिसका इस्तेमाल हो सकता
दुधारी तलवार की तरह
सत्-असत् प्रयोजनों के लिए

जिसका व्यवहार किया गया
किंकर्तव्यविमूढ़ उस प्रतिभा के खिलाफ
जो भ्रष्ट व्यवस्था के हाथों बिका
अमर अजातशत्रु था

जिसका मर जाना सिद्ध करता
आइंस्टीन थ्योरी आफ रिलेटीभिटी

रुढ़-बंधक बनी प्रतिभा को
स्वीकारनी पड़ती इच्छामृत्यु
सद् पर असद् की जय को रोकने हेतु

अहसास कर खुद का भटकन
आत्मबोध के बाद अनाशवान प्रतिभा भी
स्वीकार लेती इच्छामृत्यु
सत्य के बचाव में!

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