बिपिन रावतः सेना को 21वीं सदी में ले जाने वाला नायक

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प्रमोद भार्गव
प्रशंसा और चापलूसी से दूर रहने वाले अप्रतिम योद्धा एवं तीनों सेनाओं के समन्यवयक (चीफ आॅफ डिफेंस) बिपिन रावत ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि ‘खामोशी से बनाते रहो पहचान अपनी, हवाएं खुद तुम्हारा तराना गाएंगी।’ तमिलनाडू के पर्वतीय क्षेत्र में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में शहादत के बाद बिपिन रावत की उपलब्धियों के तराने पूरा देश गा रहा हैं। जनरल रावत भारतीय सेना के तीनों अंगों को नवीनतम तकनीक और शक्तिशाली हथियारों के साथ 21वीं सदी में ले जाने के सपने देखते रहे। इसीलिए उन्होंने सेना की प्रतिरक्षात्मक सरंचना में अनेक बदलाव किए और सेना को सांगठनिक रूप से मजबूती दी। उनकी सैन्यबल संबंधी परिकल्पनाओं को परिणाम तक पहुंचाने के लिए ही थल, वायु और नभ सेनाओं में समन्वय बनाए रखने की दृष्टि से सीडीएस का पद भारत सरकार ने सृजित किया और इसकी दो साल पहले जुम्मेबारी रावत को सौंपी। इस चुनौती को न केवल उन्होंने स्वीकारा, बल्कि गरिमा भी प्रधान की। दरअसल सीमांत इलाकों में पड़ोसी देशों की भारत में आतंक और अराजकता फैलाने की जो मंशा आजादी के समय से ही रही है, उसके लिए ऐसे पद की सरंचना जरूरी थी। हालांकि इस पद की जरूरत कारगिल युद्ध के समय से ही की जाने लगी थी। अभी तक तीनों सेनाएं स्वतंत्र फैसले लेने की अधिकारी थीं। इस कारण युद्ध के समय त्वरित और परस्पर सहमति से फैसले नहीं हो पाने के कारण विसंगति का सामना मैदान में काम करने वाले सैनिकों को भुगतना होता था। इस नाते दो लक्षित हमले (सर्जिकल स्ट्राइक) म्यांमार और पीओके में सफलतापूर्वक किए। अनर्गल प्रलाप करने वाले नेताओं को भी रावत लताड़ते रहे हैं।
थल सेना अध्यक्ष रहने के दौरान विपिन रावत ने राजनेताओं को सीख देकर खलबली मचा दी थी। रावत ने दिल्ली में आयोजित एक स्वास्थ्य सम्मेलन में कहा था, ‘नेता वे नहीं, जो लोगों को गलत दिशा में ले जा रहे हैं, ये अनेक शहरों में भीड़ को आगजनी और हिंसा के लिए उकसा रहे हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘नेता वही है, जो आपको सही दिशा में ले जाएं। आपको सही सलाह दें एवं आपकी देखभाल सुनिष्चित करें।’ रावत ने ऐसा एनआरसी, सीएए एवं एनपीआर के विरोध में देश की संपत्ति को नुकसान पहंुचा रहे तथा पुलिस व सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी का नेतृत्व कर रहे विपक्षी दलों के नेताओं के परिप्रेक्ष्य में कहा था सेना प्रमुख की इन दो टूक बातों से युवाओं को गुमराह कर रहे नेताओं को सबक सिखाने का काम किया था। वे रावत ही थे, जिन्होंने कश्मीर के उन पत्थरबाज युवाओं को भी ललकारा था, जो सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाने से बाज नहीं आ रहे थे। उन्होंने कड़ा संदेश देते हुए कहा था, ‘जो लोग पाकिस्तान और आईएस के झंडे लहराने के साथ सेना की कार्यवाही में बाधा पैदा करते हैं, उन युवकों से कड़ाई से निपटा जाएगा’। इस बयान को सुनकर कथित अलगाव एवं मानवाधिकारवादियों ने बिपिन रावत की खूब आलोचना की थी। कांग्रेस और पीडीपी भी इस निंदा में शामिल थे। उन्हें हिदायत दी गई कि सेना को सब्र खोने की जरूरत नहीं है। किंतु इस बयान के परिप्रेक्ष्य में ध्यान देने की जरूरत थी कि सेनाध्यक्ष को इन कठोर शब्दों को कहने के लिए कश्मीर में आतंकियों ने एक तरह से बाध्य किया था। घाटी में पाकिस्तान द्वारा भेजे गए आतंकियों के हाथों शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या 2016 में सबसे ज्यादा थी। नतीजतन लगातार सैनिक हताहत हो रहे थे। इन्हीं हालात से पीड़ित होकर जनरल रावत को दो टूक बयान देना पड़ा था। रावत के इस बयान के बाद जब अलगाववादियों और पत्थरबाजों पर शिकंजा कसा तब देखने में आया कि कश्मीर में आतंक की घटनाएं घटती चली गई। इस परिप्रेक्ष्य में रावत ऐसे विरले सेनानायक रहे हैं, जो घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी घटनाओं पर मुखर प्रतिरोध जताते रहे है। चीन की पूर्वोत्तर क्षेत्र डोकलाम में घुसपैठ को नियंत्रित करने में भी उन्होंने अहम् भूमिका निभाई थी। इसी तरह पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35-ए को हटाने की संसद में कार्यवाही की गई थी तब भी घाटी में शांति कायम रखने में उनकी अहम् भूमिका रही थी। इन्हीं कामयाबियों के चलते उन्हें जनवरी-2020 में सरकार ने सीडीएस की कमान सौंपी थी। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद बनी समिति के सुझाव पर करीब 21 साल बाद यह फैसला नरेंद्र मोदी सरकार ने लिया था। यह पद सेनाओं के बीच तालमेल के साथ रणनीति तय करने के लिए गठित किया गया हैं।
युद्ध और सुरक्षा की बदलती परिस्थितियों में सीडीएस पद का सृजन अत्यंत जरूरी था। इससे सेना के तीनों अंगों को समान रूप से रणनीतिक गति देने में आसानी हुई है। दरअसल देश लंबे समय से सीमा पर घुसपैठी सुरक्षा संबंधी चुनौतियों और देश के भीतर अलगाववादी चुनौतियों से लंबे समय से जूझ रहा है। ऐसे में सेनाओं के बीच परस्पर सहयोग और एकता को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय नेतृत्व जरूरी था। रावत ने इस केंद्रीय दायित्व का गुरुतर बाहर बड़ी चतुराई से निभाया। इसीलिए इन दो सालों के भीतर भारतीय सेना ने हर कठिन चुनौती का सामना एक सेना, एक ईकाई के रूप में किया है। यही वजह रही कि धारा-370 के विलोपन के बाद कश्मीर-जम्मू और लद्दाख में न केवल शांति बनी हुई है, बल्कि इस इलाके की अवाम इस धारा के खात्मे को उन्नति व विकास के नए रास्ते खुलने के रूप में देख रहे है। इसी के बाद से घाटी से हिंदूओं का विस्थापन बंद हुआ है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि बीते 74 सालों के आजाद भारत में गिने-चुने सैन्य अधिकारी ही ऐसे प्रककर्मी रहे हैं, जो पाक प्रायोजित आतंकवाद, चीन की आक्रामकता और अफगानिस्तान के हालत से उपजी चुनौतियों का बेखौफ सामना करने में लगे रहे। इसीलिए वे दो सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम तक पहुंचा पाए। जनरल रावत के नेतृत्व में पहला लक्षित हमला म्यांमार में घुसकर किया गया और दूसरा पाकिस्तान के विरुद्ध पीओके में एवं बालाकोट में किया गया। इस समय रावत थल सेना के प्रमुख थे। इन हमलों के बाद आतंकवादियों को पाक अधिकृत कश्मीर में युवाओं को आतंकवादी बनाने के प्रशिक्षण शिविर लगभग खत्म हो गए। इन हमलों के जरिए उन्होंने वही साहसिक और देश का सैन्य गौरव बढ़ाने का काम किया, जो इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए, फील्ड मार्शल सैम मानेकशा ने किया था। उन्होंने 1971 में 90,000 से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था। यह समर्पण पाकिस्तान और बांग्लादेष के बीच हुए युद्ध का परिणाम था। इस युद्ध में भारतीय सेना ने बांग्लादेश द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई में सहयोग दिया था। 1971 में जब यह लड़ाई लड़ी जा रही थी, तब थलसेना के अध्यक्ष मानेकशा थे। इस समर्पण में जगजीत सिंह अरोड़ा और सगत सिंह की भी अहम् भूमिका रही थी, ये दोनों सेनानायक इस दौरान सेना की पूर्वी कमान का नेतृत्व कर रहे थे। उस समय सेना का एक ही उद्देश्य था कि सेना दुश्मन के छक्के छुड़ाने में कामयाब रहे। इसी युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी ने जब हेनरी किसिंगर को चाय पर बुलाया था, तब जनरल मानेकशा को भी परंपरा के विरुद्ध सैन्य-वर्दी पहनकर आने को कहा था। हेनरी, इंदिरा जी के साथ मानेकशा को वर्दी में देखकर दरअसल देवी दुर्गा की प्रतीक मानी जानी वाली इंदिरा गांधी ने हेनरी को संकेत दिया था, कि अब मोर्चा सेना संभालेगी। हालांकि इस पूरी बातचीत में मानेकशा बोले कुछ भी नहीं थे। लेकिन मानेकशा की उपस्थिति एक राजनेत्री का कूटनीतिक संदेश था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रावत को सीडीएस की जिम्मेदारी सौंपकर एक तरह से चीन और पाकिस्तान को संदेश दिया हुआ था कि युद्ध क्षेत्र में सेना की कमान आॅपरेशन के लिए एक ही बहुआयामी व्यक्त्वि का नेतृत्व बहुत है। इस लिहाज से उनका हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त होना एक बड़ी चिंता की वजह हैं। देश की जनता शोकाकुल होने के साथ इस बात के लिए बैचेन है कि वायुसेना का सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाने वाला हेलिकॉप्टर उड़ान भरने के थोड़ी देर बाद ही कैसे दुर्घटनाग्रस्त हो गया ? इस त्रासदी में जनरल रावत का पत्नी मधुलिका समेत 11 सैन्यकर्मियों का दुखद अंत तो हुआ ही, रावत की शहादत के साथ एक ऐसा बहुआयामी प्रतिभा का धनी सैनिक देश से चला गया, जो सेना को 21वीं सदी में होने वाली लड़ाई के लिए सेना को सक्षम बनाने में लगा था। हाल ही में उन्होंने कोरोना ओमिक्रॉन के बारे में कहा था कि यह वायरस जैविक युद्ध के लिए तैयार किया गया विषाणु भी हो सकता है, इसलिए इससे सामना करने के लिए सेनाएं तैयार रहें। इस कथन के पीछे उनका संदेश था कि भारतीय अनुवांशिक वैज्ञानिक जैविक हथियार निर्माण की संभावनाएं भारत में तलाशें ? इस सूरवीर को विनम्र नमन एवं श्रादंजलि।
प्रमोद भार्गव

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