नर लाता है तिनके और मादा करीने से सजा कर बनाती है घांैसला
परिंदों का संसार: सफेद बुज्जा( इंडियन व्हाइट आइबिस या ओरयंटल आइबिस या ब्लैक हैडेड आइबिस)
फेमिलीः थ्रस्कोरिनिथिडी
जातिः थ्रस्कियोमिस
प्रजातिः मैलानोसिफेलस
पक्षियों की दुनिया में रुचि रखने बाले लोगों और प्रकृति प्रेमियों के लिये खुशखबरी यह है कि आईयूसीएन (इण्टरनेशनल यूनियन फार कन्र्जवेशन नेचर) की रेड लिस्ट में दर्ज विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके दुर्लभ सफेद बुज्जा पक्षियों ने गौरी सरोवर पर घरौंदें बना लिये है।
सफेद बुज्जा को अंग्रेजी में इंडियन व्हाईट आइबिस या ओरियंटल व्हाइट आइबिस या ब्लैक हैडेड आइबिस के नाम से भी जाना जाता है। साफ पानी के तालाबों में पाया जाने बाला यह जलीय पक्षी आमतौर पर झीलों, नदियों केी बाढ के पानी से घिरे हुये घास के मैदानों में, दलदली क्षेत्रों में, धान के खेतों में देखा जाता है । पूर्णतः प्रवासी इस पक्षी की आयु लगभग 10 वर्ष होती है। इस पक्षी के शरीर का रंग सफेद तथा सिर, गर्दन, पांव व पंजे काले रंग के होते है। इसकी गर्दन व सिर पर पंखों का आवरण नही होता हे। इसकी चोंच लंबी व घुमावदार होती है। ये पक्षी स्पूनविल की तरह चोंच को पानी में डाल कर चलते रहते हे और जब इनका शिकार इनकी चांेच के पास आता है तो उसे पकड कर निगल जाते है। इनका मुख्य भोजन छोटी मछली, मंेढक, पानी में रहने वाले अन्य छोटे जीव होते हैं। पानी के जीवों के साथ इन पक्षियों को चारागाहों में पशुओ के आसपास भी देखा जा सकता है। जब पशु घास पर चलते है तो उनके पांवों से घास में छुपे हुये कीट बाहर आ जाते है तो यह पक्षी उन कीटों को खा जाते है। आकृति में नर व मादा एक जैसे दिखाई देते है।
प्रजनन के दौरान इन पक्षियांे के पंखों के कुछ हिस्सों का रंग परिवर्तित हो जाता है। इनका प्रजनन काल उत्तर भारत में जून से अगस्त और दक्षिण भारत में नबंबर से फरवरी तक होता है। अत्याधिक शांत प्रवृति के यह एक सामाजिक पक्षी है जो आमतौर पर समूह में रहकर ही भोजन करते है। प्रजनन अबधि में नर व मादा दौनो की आवाजे सुनाई देती है। गौरी सरोवर पर इस दिनों इनकी आवाजें सुनाई दे रही है।
यह पक्षी अपने घौसंले झीलों के किनारे या झीलों के अंदर टीलों पर खडें पेडों पर बनाते है गौरी सरोवर पर इनदिनों इन पक्षियों ने घौसले बना लिये है। घोसला नर और मादा मिलकर बनाते है । तिनको को ढूंढ कर लाने की जबाबदारी नर की होती है और मादा करीने से सुरक्षित घौसला बनाती है। एक ही पेड पर एक से ज्यादा प्रजातियों के घोसंले होते है इसका कारण शिकारी पक्षियों से अण्डों और बच्चों की रक्षा करना होता है। मादा दो से चार अंडे देती है व नर तथा मादा दौनों मिलकर चूजों को पालते हैं।
बर्तमान में इनकी आबादी बहुत तेजी से घट रही है। आईयूसीएन (इण्टरनेशनल यूनियन फार कन्र्जवेशन नेचर) की रेड लिस्ट में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके दुर्लभ सफेद बुज्जा पक्षियों को सबसे ज्यादा खतरा इनके आवास समाप्त होने से है। इनके प्राकृतिक आवासों में मानव जनित ड्रेनेज एव कृषि भूमि में परिवर्तित होने से तथा रसायनों के प्रयोग से इनका अस्तित्व समाप्ति की ओर है। वर्तमान मे समूचे दक्षिण एशिया मे इनकी संख्या लगभग 10,000 है और भारत में 2015 आंकी गयी है। अभी भिण्ड के गौरी सरोवर मे डाॅ मनोज जैन ने इनकी संख्या 60 गिनी है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इनके शिकार को प्रतिबधिंत किया गया है। इनके आवासों को सभी प्रकार के शोरगुल और कोलाहल से बचाने की अपेक्षा की गयी है।