ब्रांड में बदल गये बच्चन परिवार में बेबी बच्चन की आमद

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वीरेन्द्र जैन

पिछले दिनों फिल्मी अभिनेता अभिषेक- एश्वर्या दम्पत्ति के यहाँ एक पुत्री ने जन्म लिया है। यह परिवार चकाचौंध वाली फिल्मी दुनिया में हिन्दी भाषी क्षेत्र का सबसे बड़ा स्टार परिवार है, जिसकी लोकप्रियता का प्रारम्भ हिन्दी के सुपरिचित कवि डा. हरिवंश राय बच्चन से होता है। किसी समय इलाहाबाद न केवल संयुक्त प्रांत की राजधानी ही थी अपितु लम्बे समय तक वह हिन्दी साहित्य की राजधानी भी मानी जाती रही। वहाँ स्वतंत्रता संग्राम के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से जवाहरलाल नेहरू और मोती लाल नेहरू ही नहीं रहे अपितु अन्य सैकड़ों लोकप्रिय राष्ट्रीय नेताओं का कार्यक्षेत्र भी इलाहाबाद रहा है। गंगा यमुना का संगम होने के कारण यह एक तीर्थ क्षेत्र है तो अपने विश्वविद्यालय और हाई कोर्ट के कारण भी लाखों लोगों का जुड़ाव उस नगर से रहा है। फिराक, निराला, पंत, महादेवी, उपेन्द्र नाथ अश्क से लेकर बाद की साहित्यिक दुनिया को संचालित करने वाले, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, कन्हैयालाल नन्दन, रवीन्द्र कालिया जैसे सम्पादकों का क्रीड़ांगन भी इलाहाबाद ही रहा है। इसी क्षेत्र से निकले हरिवंशराय बच्चन ने उमर खैय्याम की रुबाइयों की तरह मधुशाला रच कर न केवल नया इतिहास रच डाला अपितु हिन्दी कवि सम्मेलनों की नींव भी डाली। इससे पूर्व हिन्दी में केवल गोष्ठियां ही हुआ करती थीं जबकि उर्दू वाले मुशायरे करते थे जो व्यापक श्रोता समुदाय को आकर्षित करते थे। बच्चन की मधुशाला ने अपनी विषय वस्तु से ही एक नया इतिहास रच डाला और खुले आम एक वर्जित वस्तु को विषय बनाकर अपनी बात कही जिसे हिन्दीभाषी समाज में एक सामाजिक विद्रोह भी कह सकते हैं। उर्दू ने यह काम बहुत पहले ही कर दिया था और वे इससे कठमुल्लों को खिजाते रहते थे। उसी तर्ज पर बच्चन की मधुशाला लोकप्रिय हुयी और उसके सहारे कवि सम्मेलनों को भी लोकप्रियता मिलने लगी। उस दौरान लन्दन में पढे अंग्रेजी के प्रोफेसर डा. बच्चन, तेजी जी से प्रेम विवाह करके भी चर्चित हो चुके थे। यह वह दौर था जब प्रेम विवाह को समाज में एक बड़ी घटना की तरह लिया जाता था। तेजी बच्चन इन्दिरा गान्धी की मित्र थीं और इसी तरह बच्चन जी के पुत्र अमिताभ को भी इन्दिरा गान्धी के पुत्र राजीव गान्धी से मित्रता का अवसर मिला। इन्हीं सम्पर्कों के अतिरिक्त बल के कारण डा. बच्चन राज्य सभा के लिए बिना किसी निजी प्रयास के नामित हुये थे और इस तरह वे देश के सबसे महत्वपूर्ण परिवार के सबसे निकट थे। जब राजीव गान्धी की शादी हुयी थी तब लड़की वालों अर्थात सोनिया के परिवार का निवास बच्चन जी का घर बना था व तेजी बच्चन ने दुल्हिन सोनिया गान्धी के हाथों पर मेंहदी लगाने की रस्म निभायी थी। कुछ समय कलकत्ते में नौकरी करने के बाद अमिताभ लोकप्रियता से दौलत कमाने के लिए मह्शूर फिल्मी दुनिया में आ गये तथा प्रारम्भिक फिल्में व्यावसायिक रूप से सफल न होने के बाद भी जमे रहे, क्योंकि उनके पास लोकप्रियता की पृष्ठभूमि थी। इसी के भरोसे वे न केवल अभिनय कला में निरंतर निखार लाने के प्रयोग कर सके जिसमें वे सफल भी हुए। इन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान उनके मार्ग की बाधाएं स्वयं ही हट जाती थीं भले ही उन्होंने कभी कोई आग्रह न किया हो। पुराने कलाकारों के परिदृष्य से बाहर होने और समकालीनों के पिछड़ने के कारण वे उद्योग के बेताज बादशाह बन गये। रंगीन टीवी और नई आर्थिक नीति से बाजारवाद आने के बाद उनकी लोकप्रियता के लिए अनेक अवसर खुल गये और वे अपनी लोकप्रियता के सहारे तेल से लेकर ट्रैक्टर तक सब कुछ बिकवाने लगे। यहाँ तक कि एक समय राजीव गान्धी ने भी अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने में उनकी लोकप्रियता को भुनाया था। जब राजीव गान्धी परिवार से उनका मनमुटाव हुआ तो उन्हें अमर सिंह मिल गये जिन्होंने एक दूसरे राजनीतिक पक्ष से उनका सौदा करा दिया। इससे कभी कांग्रेस के सांसद रहे परिवार में न केवल उनकी अभिनेत्री पत्नी जया भादुड़ी को समाजवादी सांसद बनने का मौका मिला अपितु उन पर इनकम टैक्स का नोटिस निकालने पर इनकम टैक्स दफ्तर में तोड़फोड़ करने वाली टोली भी मिल गयी। बाद में उन्होंने 2002 में मुसलमानों के नरसंहार के लिए कुख्यात नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार का ब्रांड एम्बेसडर बनना भी स्वीकार कर लिया।

इसी लोकप्रियता के बीच उनके पुत्र को अपेक्षाकृत कम योग्यता के बाद भी फिल्मों में स्थान मिला जिसके लिए बच्चन परिवार ने अपने समय की एक प्रतिभाशालिनी सुन्दर नायिका और विज्ञापनों की मँहगी माडल का चुनाव किया जो न केवल उनके पुत्र से अधिक लोकप्रय थी अपितु उम्र में भी दो साल बड़ी थी। इस प्रकार यह परिवार देश में सबसे अधिक विज्ञापन फिल्में करके धन अर्जित करने वाला परिवार भी बन गया। हमारे देश में फिल्में खूब देखी जाती हैं और यह एक बड़ा उद्योग है। फिल्मी पत्रकारिता के स्वतंत्र अस्तित्व के साथ साथ सभी अखबारों में फिल्मों के लिए स्थान निश्चित रहता है और इस जगह को खबरों की भी जरूरत रहती है। जब खबरें नहीं मिलतीं तो खबरें पैदा की जाती हैं। मीडिया के बाहुल्य ने उनके अन्दर प्रतियोगिता पैदा की है और इस प्रतियोगिता ने खबरों को और और चटखारेदार बना कर पेश करने की अनैतिकता को जन्म दिया है। कई बार तो कम चर्चित फिल्मी अभिनेता भी चर्चा में बने रहने के लिए ऐसी खबरों को हवा देते हैं। अभिषेक की शादी से लेकर उसके घर में शिशु जन्म तक इन मीडियावालों ने कई बार अपनी कल्पनाशीलता से खबरें गढी भी हैं। व्यावसायिक हित में खबरों का गढा जाना एक बड़ी सामाजिक बीमारी का ही हिस्सा है जिसमें नई आर्थिक नीति से लेकर लोकप्रियतावाद तक जिम्मेवार है। इस बार शिशु जन्म के समय न केवल अमिताभ को ही मीडिया से अपने ऊपर लगाम लगाने को कहना पड़ा अपितु मीडिया की संस्थाओं ने भी आलोचनाओं से घबरा कर आत्म नियंत्रण की अपील की।

लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए देश में उनके अनुपात को बनाये रखने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन के सहयोग से अनेक कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं जिनके द्वारा बेटी बचाओ की इतनी सारी अपीलें की जा रही हैं कि बेटी के जन्म को प्रीतिकर दर्शाना पड़ता है। बच्चन परिवार ने भी यही किया किंतु दूसरे संकेत कुछ अलग ही कहानी कहते हैं। उल्लेखनीय है कि अमिताभ-जया ने अपनी बेटी को फिल्मों से दूर रखा है और उसे फिल्मी जगत से अलग एक उच्च औद्योगिक घराने में पारम्परिक ढंग से व्याहा है। पिछले दिनों हमारे समाज में वंशवृक्ष की जगह वंश को अधिक महत्व दिया जाने लगा जबकि वंशवृक्ष तो लड़कियों और उनकी संतानों से भी बढता है। अमिताभ की लड़की के जब बच्चे हुए तब न तो उनके द्वारा अपने पूज्य पिता को याद किये जाने की खबरें आयी थीं और न ही माँ को याद करने की। पर जब उनके पुत्र के घर शिशु जन्म हुआ तो वे खुशी खुशी सबको याद करने लगे। अभिषेक की नानी ने भी कहा कि हमने तो पहले ही कहा था कि लक्ष्मी आयेगी। उन्हें भी आम आदमी की तरह पुत्री के जन्म के हीनता बोध को लक्ष्मी के आने से पूरी करने का विचार आया, सरस्वती आने का विचार नहीं आया जबकि कलाकारों के परिवारों को तो सरस्वती की कल्पना करना चाहिए थी। एक लोकप्रिय फिल्मी परिवार में किसी को बहुत दिनों तक छुपा कर नहीं रखा जा सकता किंतु जिज्ञासाएं बढा कर महत्व बढाया जा सकता है। ब्रांड बन गये परिवार में इसका भी महत्व होता है।

3 COMMENTS

  1. चलो अच्छी बात है की वीरेन्द्रजी को इसा बार संघ-भाजपा-हिन्दूजन के इतर दूसरा विषय मिला.
    अब आप की बातो पर बिन्दुवार चर्चा करते हैं.

    आपने कहा-”जब राजीव गान्धी की शादी हुयी थी तब लड़की वालों अर्थात सोनिया के परिवार का निवास बच्चन जी का घर बना था व तेजी बच्चन ने दुल्हिन सोनिया गान्धी के हाथों पर मेंहदी लगाने की रस्म निभायी थी। ”
    और जो बच्चन परिवार सोनिया को बहू बनाकर लाने में मददगार रहा उसी को सोनियामाता ने गर्त में धकेल दिया. तेजी बच्चन की बीमारी और मौत पर इसा परिवार से मिलना तो दूर.. एक स्संदेश भी सोनिया ने नहीं भेजा…!! ये है उसकी एहसानफ़रामोशी का नमूना.

    आपने कहा–”बाद में उन्होंने 2002 में मुसलमानों के नरसंहार के लिए कुख्यात नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार का ब्रांड एम्बेसडर बनना भी स्वीकार कर लिया।”

    यहाँ बच्चन के प्रति आपकी खुन्नस की कलई खुल जाती है. गुजराती में कहावत है की.. टाल जाए पण टेव न जाए. यानी गंजे आदमी का गंजापन चला जाएगा लेकिन उसकी लत नहीं जायेगी. खैर आप अपने स्वभाव से नहीं जायेंगे. फिर भी आप भी तो हजारो सिक्खों के नरसंहार की जिम्मेदार कोंग्रेस और गेंदी (गांधी नहीं, क्योंकि असली महात्मा गांधी से उनका कोइ ताल्लुक नहीं है) परिवार के आप ब्रैंड एम्बेसेडर बने हुए हैं. ..!! अमिताभ गलत और आप सही. वाह रे महाराज.

    आपने कहा–“इसी लोकप्रियता के बीच उनके पुत्र को अपेक्षाकृत कम योग्यता के बाद भी फिल्मों में स्थान मिला ”

    आपके गेंदी परिवार में भी अपेक्षाकृत कम योग्यता के बावजूद देश पे निकम्मे प्रधानमंत्री लादने की बेताबी है. वहां आपकी बोलती क्यों बंद हो जाती है…??

    आपने कहा-“इस प्रकार यह परिवार देश में सबसे अधिक विज्ञापन फिल्में करके धन अर्जित करने वाला परिवार भी बन गया। ”

    आपका गांधी परिवार भी तो देश पे सर्वाधिक समय तक राज करने, उसे लूटने वाला परिवार बन गया है. आजादी की लड़ाई के बाकी सरफरोशो/शहीदों के परिवार तो दो जून की रोटी के लिए तरसते हैं. इस पर कभी आपका खून नहीं खुला??

    आपने कहा-“उन्हें भी आम आदमी की तरह पुत्री के जन्म के हीनता बोध को लक्ष्मी के आने से पूरी करने का विचार आया, सरस्वती आने का विचार नहीं आया.”

    आपके गेंदी परिवार ने भी तो सुन्दर सुशील प्रियंका को पीछे धकेल कर नालायक युवराज को आगे कर दिया…!!

    दर असल आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ. अगर अमिताभ मोदी सरकार के ब्रांड एम्बेसेडर नहीं होते तो आज आप उनकी तारीफ़ में गीत गाते. आपकी नजर में संघ/भाजपा/मोदी के साथ खडा हर इंसान बुरा है. और रुग्ण- सेकुलर उसके पीछे कुत्ते की तरह भौंकने लगते हैं.
    अब बस करो चाचा, इंटरनेट और वेब पत्रिका के इस युग में आपके झूठ के पुलिंदे नहीं चलने वाले. जनता समझदार हो गयी है. ..सब जानती है. खामख्वाह अपनी बची-खुची इज्जत और विश्वसनीयता काहे को धुल में मिला रहे हो.

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