उभरती विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सशक्त समूह ब्रिक्स का छठा शिखर सम्मेलन ब्राजील के समुद्र तटीय शहर फोर्टलेजा में संपन्न हो गया। अच्छी बात है कि सदस्य देशों ने ब्रिक्स विकास बैंक और आकस्मिक निधि की स्थापना के एलान के साथ वैश्विक आतंकवाद से निपटने की रणनीति पर भी सकारात्मक प्रतिबद्धता जतायी है। पर शिखर सम्मेलन की जो महत्वपूर्ण उपलब्धि है वह-ब्रिक्स के पांच देशों ब्राजील, रुस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका द्वारा 100 अरब डॉलर की अधिकृत पूंजी से ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना का निर्णय है। इस कदम से न सिर्फ समूह देशों के ढांचागत परियोजनाओं मसलन सड़क, रेल और बंदरगाह जैसे क्षेत्रों में सुधार के लिए आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध होगा बल्कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी वित्तीय संस्थाओं पर से भी ब्रिक्स देशों की निर्भरता घटेगी। यह रुख स्पष्ट करता है कि ब्रिक्स देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी महती भूमिका निभाने को तैयार हैं। ब्रिक्स देशों के मुताबिक यह बैंक दो साल के अंदर मूर्त रुप ले लेगा। इसका मुख्यालय चीन की संघाई में होगा और इसकी अध्यक्षता छः साल तक भारत करेगा। ब्रिक्स बैंक की स्थापना से भारत को सुस्त पड़ी ढांचागत परियोजनाओं को गति देने और रुस में पेट्रोलियम परिसंपत्तियां खरीदने के लिए अब आसान दर पर कर्ज उपलब्ध हो सकेगा। किंतु असल सवाल बिक्स बैंक के मूर्त रूप लेने की है जिसे पश्चिमी देश अब भी आशंका की नजर से देख रहे हैं। पर यह उनका पूर्वाग्रही आचरण है। जब ब्रिक्स देशों का पहला शिखर सम्मेलन 2009 में रुस के शहर येकाटेंरिनवर्ग में शुरू हुआ तब भी उन्होंने ढे़र सारी आशंकाए जतायी। भविष्यवाणी की कि मौजूदा जटिल वित्तीय एवं आर्थिक परिस्थितियों के बीच ब्रिक्स का उभरना आसान नहीं होगा। यह भी तर्क दिया कि रुस और चीन तथा भारत एवं चीन के बीच गहरे मतभेद हैं, लिहाजा ब्रिक्स शिखर सम्मेलनों का कोई परिणामी निष्कर्ष नहीं निकलने वाला। लेकिन ब्रिक्स की येकाटेंरिनवर्ग से शुरू हुई फोर्टलेजा तक की यात्रा ने सभी आशंकाओं को निराधार साबित कर दिया है। आइने की तरह साफ हो गया है कि ब्रिक्स के सदस्य देश आने वाले समय की उभरती हुई शानदार अर्थव्यवस्थाएं हैं और चार दषक बाद वे अमेरिका और यूरोपिय संघ की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ देंगे। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि डरबन शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने आपातकालीन स्थिति में ऋण संकट से उबरने के लिए 100 बिलियन डॉलर का एक आपातकालीन कोश बनाने का जो सपना देखा था, उसे फोर्टलेजा सम्मेलन में आकार दे दिया। ब्रिक्स देशों ने 2012 में दिल्ली में ब्रिक्स सम्मेलन के आयोजन से पहले ब्रिक्स अकादमिक फोरम में विकास बैंक बनाने पर विचार किया था। दो साल बाद फोर्टलेजा में उसे भी मूर्त रूप दे दिया।
यह संशय भी निराधार साबित हुआ कि चीन अपनी आर्थिक ताकत के बूते विकास बैंक में बड़ी हिस्सेदारी के लिए सदस्य देशों पर दबाव बनाएगा। हालांकि उसने इसकी चेष्टा की लेकिन भारत ने पहले ही स्पश्ट कर दिया कि सभी देशों की बराबर हिस्सेदारी रहेगी और ऐसा ही हुआ। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स देशों के पास विश्व का 25.9 फीसद भू-भाग एवं 40 फीसदी आबादी है। विष्व में सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 15 फीसदी है। ब्रिक्स देशों की आर्थिक ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। गत वर्श पहले ब्राजील, रुस और चीन ने घोषणा की कि वे 70 बिलियन डॉलर अर्थात 50 बिलियन यूरो को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा निधि द्वारा निर्गत बहुमुद्रा बांडों में निवेश करेंगे। कहना गलत नहीं होगा कि ब्रिक्स देशों के पास प्रचुर मात्रा में संसाधन है और वे एकदूसरे का सहयोग कर आर्थिक विकास को नई दिशा दे सकते हैं। चीन विनिर्माण के क्षेत्र में दुनिया में अव्वल है। दुनिया उसकी टेक्नालाजी की कायल है। रुस के पास उर्जा का असीमित भण्डार है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वह सिरमौर है। ब्राजील कृषि क्षेत्र का महाषक्ति कहा जाता है। भारत कृषि और आईटी दोनों में तेजी से विकास कर रहा है। दक्षिण अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों से लैस है। यह स्थिति ब्रिक्स देशों को मजबूत बनाता है। अगर ब्रिक्स देश आपसी सहयोग दिखाते हैं तो इन देशों में पसरी गरीबी, भूखमरी और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने में आसानी होगी और वैश्विक राजनीति में उनकी भागीदारी सषक्त होगी। विष्व में निरपेक्ष सकल घरेलू उत्पाद में ब्रिक्स देशों चीन, रुस, ब्राजील तथा भारत की स्थिति तीसरा, दसवां एवं बारहवां है। इसमें चीन का सकल घरेलू उत्पाद 4.4 मिलियन, रुस का 1.67 मिलियन, ब्राजील का 1.57 और भारत का 1.2 मिलीयन डॉलर है। 2050 तक ब्रिक्स देशों की स्थिति और भी मजबूत हो जाएगी। चीन 70.71 मिलीयन डॉलर के साथ पहला, भारत 37.66 मिलियन डॉलर के साथ तीसरा, ब्राजील 11.36 मिलियन डॉलर के साथ चौथा और रुस का 8.58 मिलियन डॉलर के साथ छठा पायदान पर होगा। गौर करें तो ब्रिक्स ने कम समय में ही महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की हैं। लेकिन फिलहाल उसके समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं है। निश्चित रूप से ब्रिक्स का फोर्टलेजा शिखर सम्मेलन बुने गए सपनों को आकार देने में सफल रहा लेकिन उसे अभी भी कई अग्निपरीक्षाओं से गुजरना बाकी है।