बम-बम बाबा!

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निकाय चुनाव रूपी प्रथम परीक्षा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सफलता के झंडे गाड़कर सिद्ध कर दिया कि उनकी आठ माह पुरानी सरकार पर लोगो को भरोसा बढ़ता जा रहा है। यह भी सिद्ध हो गया कि विपक्षीदलों द्वारा दुष्प्रचारित नोट बंदी व जीएसटी का कोई भी प्रभाव इस चुनाव पर नहीं पड़ा।
इस चुनाव में सर्वाधिक क्षति कांग्रेस को उठानी पड़ी है। हालांकि नगर निगमों में सपा का भी सूपड़ा साफ  हो गया। अमेठी व रायबरेली में कांग्रेस प्रत्याशियों के मुंह की खाने के बाद राहुल के नेतृत्व पर पुन: सवाल उठने लगे है।
पहली बार निकाय चुनाव में अपने चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरी बसपा के दो माहपौर चुने जाने से जहां उसमें नई ऊर्जा का संचार हुआ है वहीं दलित मुस्लिम गठजोड़ के मजबूत होने के स्पष्ट संकेत मिले है।
हालांकि इन परिणामों के आधार पर १९ के लोकसभा चुनाव के लिये कोई भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी। अलवत्ता भाजपा की राह रोक पाना विपक्षीदलों के लिये तब तक कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बना रहेगा जब तक सब एक जुट नहीं हो जाते।

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भगवा परचम फहराने से जहां सूबे की आठ माह पुरानी श्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की कार्यप्रणाली पर सूबे की जनता ने अपनी मुहर लगा दी है वहीं यह भी साफ  कर दिया है कि न तो किसी पर नोटबंदी की मार का कोई असर रहा है और न ही व्यापारी वर्ग पर जीएसटी का कोई दुष्प्रभाव।
निकाय चुनाव में जहां शहरी क्षेत्र में व्यापारी वर्ग के बीच नोटबंदी, जीएसटी व बाजार में सिक्कों की भरमार के मुद्दों को गरमाने में विपक्षीदलों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी वहीं कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में नोटबंदी मुद्दे को खूब उछाला गया पर परिणाम बताते है कि विपक्षीदलों के सारे आरोप-प्रत्यारोप धरे के धरे रह गये।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिये सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की महापौर की १६ सीटों पर जीत हासिल करने की थी। जिनमें से १४ पर भगवा परचम फ हराने से श्री आदित्यनाथ को श्रेय दिया जाना उचित ही है। श्री आदित्यनाथ  के लिये यह चुनौती इसलिये भी कही अधिक थी कि २०१२ में भाजपा ने तब महापौर की १२ में से १० सीटों पर कब्जा जमा लिया था जब सूबे में समाजवादी सरकार सत्ता में थी।
यहां गौर करने लायक बात यह है कि २०१२ के निकाय चुनाव में भले ही भाजपा ने १२ में से १० महापौर पद जीत लिये थे पर उसे किसी भी निगम के सदन में बहुमत प्राप्त नहीं हो सका था। जबकि इस बार १६ में से १४ महापौर पद हथियाने वाली भाजपा को ७ नगर निगमों में पूर्ण बहुमत हासिल हो चुका है। इनमें लखनऊ, आगरा, मथुरा, गाजियाबाद, मुरादाबाद व नवगठित अयोध्या-फ ैजाबाद नगर निगम शामिल है।
विपक्षीदलों खासकर सपा का यह कुप्रचार भी कोई काम नहीं आ सका कि आठ माह में योगी सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है। विकास कार्य ठप्प हो गये है और कानून व्यवस्था और बदत्तर भी है।
निश्चित ही मुख्यमंत्री श्री योगी ने निकाय चुनाव को उतना ही महत्व दिया जितना उन्होने पूर्व में लोक सभा व विधानसभा चुनाव को दिया था। उन्होने निकाय चुनाव में पूरे सूबे को मथ डाला और कोई ४० के करीब चुनावी सभाये करके जन-जन के बीच अपनी सरकार की उपलब्धियां व योजनायें बतायी।
भले ही निकाय चुनाव में सपा दूसरे स्थान रही है पर निगमों के चुनाव में उसका खाता न खुलना उसके लिये खतरे की घंटी ही माना जा रहा है २०१२ के चुनाव में सपा के समर्थन से जीती बरेली सीट भी उसके हाथ न आ सकी। पांच महानगरों झांसी, मथुरा, गाजियाबाद, अलीगढ़ और सहरानपुर में चौथे स्थान पर रही तो छ नगरों मेरठ, फि रोजाबाद, मुराबादबाद, कानपुर, आगरा, वाराणसी में वो तीसरे स्थान पर खिसक गई। पार्षदों के मामले में उसके प्रत्याशियों ने भले ही संख्या के आधार पर दूसरा स्थान हासिल किया लेकिन इसमें भी वह भाजपा के आगे नहीं टिक सकी। सपा की उम्मीदे नगर पालिका और पंचायतों से थी है पर इसमें भी वह सम्मान बचाने लायक सीटे नहीं पा सकी।
सूत्रों के अनुसार सपा के लिये सर्वाधिक चिता की बात उसके पारंपरिक वोटो का साथ छोडऩा रहा है। आजमगढ़, इटावा, कन्नौज और फि रोजाबाद सपा समर्थक यादवों के गढ़ माने जाते है परन्तु यहां भी सपा को करारा झटका लगा है। इसी तरह मुस्लिम मतदाताओं का रूझान भी सपा से घटकर बसपा की ओर बढ़ा है। यदि बसपा मेरठ व अलीगढ़ में महापौर पदों पर अपना परचम फ हराने में सफ ल रही है तो यह मुस्लिम मतों की बदौलत ही संभव हो सका है। बसपा के साथ हैदराबाद के असउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने निकाय चुनाव में मुस्लिम मतों में सेंध लगाई है उससे भी अंतत: सपा को ही नुकसान उठाना पड़ेगा। वैसे भी श्री ओवैसी सपा पर ही कुछ ज्यादा  हमलावर दीखते है।
दो माहपौर पद जीतने से बसपा में जान आना स्वाभाविक ही है।
इससे इस बात का भी संकेत मिला है कि २०१९ के चुनाव में मुस्लिम मतदाता बसपा के पाले में जा सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो दलित मुस्लिम मतों के गठजोड़ से बसपा अच्छा फ ायदा उठा सकेगी और सर्वाधिक खामियाजा सपा को ही उठाना पड़ेगा।
इस निकाय चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। २०१२ में जहां वह दूसरे स्थान पर रही थी वहीं इस चुनाव में वह चौथे स्थान पर जा पहुंची है। उससे साफ  है कि कांग्रेस का ग्राफ  उत्तर प्रदेश में सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। निश्चित ही निकाय चुनाव के इन परिणामों का असर गुजरात के चुनाव पर पडऩा तय है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि फि लहाल निकाय चुनाव के परिणामों के आधार पर २०१९ के लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है पर एक बात साफ  है कि यदि २०१९ के लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षीदलों ने चुनाव मिलकर न लड़ा तो भाजपा को अजेय रहने से कोई रोक नहीं पायेगा। जैसा कि मोदी सरकार निरन्तर आर्थिक सुधारों की ओर बढ़ रही है और भ्रष्टाचार के मोर्चे पर भी लगातार अंकुश लगाने में सफल हो रही है उससे उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को और मजबूती मिलनी तय है। अलावा इसके श्री योगी आदित्यनाथ जिस प्रतिबद्धता के साथ सूबे के विकास में लगे है व कानून व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार के मोर्चो पर कड़ा रूख अख्तियार किये हुये है इसके सुपरिणाम आने ही आने है।

्रमुख्यमंत्री का मुंहतोड़ जवाब
पूर्व के लोकसभा व विधानसभा चुनाव की ही भांति निकाय चुनाव में भी विपक्षीदल ईवीएम पर सवालियां निशान लगाने में पीछे नहीं दिखे तो इस बार मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हे ऐसा मुंह तोड़ जवाब दिया कि सभी की बोलती ही बंद हो गई।
बीते शनिवार को बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने कहा कि जिस तरह २०१४ के चुनाव में ईवीएम में गडबड़ी के चलते ही भाजपा को सत्ता मिली थी उसी तरह २०१७ के चुनाव में उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलना था पर ईवीएम में छेडख़ानी कर दी गई। यहां तक आरोप लगा डाला कि भाजपा बसपा को खत्म करना चाहती है। उन्होने २०१९ के आम चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की।
इसी तरह सपा प्रमुख श्री अखिलेश यादव ने एक ट्वीट के जरिये कहा कि जहां मतपत्रों से चुनाव हुआ वहां भाजपा को सिर्फ  १५ फ ीसदी वोट ही मिले जबकि जहां ईवीएम से मतदान हुआ वहां उसे ४६ प्रतिशत मत मिले।
इस पर मुख्यमंत्री श्री योगी ने जवाब दिया फि लहाल मायावती उन दोनो सीटों से जहां उसके मेयर जीते है उनसे इस्तीफ े दिलवा दे वह उन दो सीटों पर मतपत्रों से चुनाव करवा देगें। सपा के अखिलेश यादव को याद दिलाया कि ईवीएम के जरिये ही वह २०१२ में जीतकर सत्ता में आये थे।

 

संकेत शुभ नहीं है !
नि:संदेह गुजरात चुनाव के पूर्व उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में कांग्रेस का औधे मुंह गिरना उतना विषमयकारी नहीं है जितना की राहुल गांधी की अध्यक्ष पद की ताजपोशी के एन मौके पर कांग्रेस का अमेठी में चारो खाने चित्त हो जाना। अमेठी जनपद में दो नगर पालिका व दो नगर पंचायते हैं। दुर्भाग्य से इनमें से किसी पर भी कांग्रेस जीतना तो दूर प्रभावी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा पाई।
उनकी माताश्री श्रीमती सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ  हो गया। भले ही उसे रायबरेली की एक अदद नगर पालिका सीट पर जीत मिल जाने से कुछ  तो आंसू पुछ गये।
इस खबर को अन्तिम सच तो नहीं कहा जा सकता पर जैसे की चर्चा है अमेठी जनपद में लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस के चलते व भाजपा की श्रीमति स्मृति जुबिन ईरानी की लगातार बढ़ती चुनौतियों से कांग्रेस के भावी तारणहार माने जाने वाले राहुल गांधी २०१९ के आम चुनाव में अमेठी सीट छोड़कर कर्नाटक की किसी सीट से चुनाव लडऩे को प्रमुखता दे तो आश्चर्य की बात न होगी।
कांग्रेसी हलकों में जारी गंभीर चर्चाओं से पता चलता है कि जहां हिमाचल में कांग्रेस का दुबारा सत्ता में आना टेड़ी खीर है वहीं गुजरात में कांग्रेस का जीत हासिल करना सिवाय दिवा स्वप्न के और कुछ नहीं कहा जा सकता।
जो स्वार्थ,निष्ठा अथवा दरबारी होने के नाते राहुल को जल्द से जल्द पार्टी अध्यक्ष पद पर देखना चाहते है वे इस सच को जानते हुये कि श्री गांधी में पार्टी की नैया पार लगाने की कुब्बत नहीं है, मुंह खोलने को इसलिये भी तैयार नहीं है कि माता जी यानी मादाम के रहते ‘रिक्सÓ लेना वाजिब न होगा। कांग्रेस की खास दिक्कत यह है कि यदि उसके शीर्ष नेताओं को ‘फ्र ी हैंडÓ दे दिया जाये तो वे आपस में ही लड़ मरेंगे। कोई नहीं चाहेगा कि उनके रहते कोई दूसरा उनसे आगे निकले।
अहम सवाल यह उठ रहा है कि आखिर  क्या मादाम के बाद राहुल गांधी भी ऐसा दबदबा कायम रख पायेगे कि कोई उन्हे चुनौती देने की हिम्मत न कर सके।
इसका उत्तर दबी जुबान से वे कांग्रेसी देने भी लगे है जिन्हे सिर्फ  और सिर्फ  कांग्रेस की चिंता है। वे कहते हंै कि जब मादाम के रहते हुये ही शहजाद पूना वाला जैसे युवा जो कि राहुल के जीजा श्री राबर्ट वडेरा के खास रिश्तेदार है राहुल के अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया पर अंगुली उठाने लगे है। जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी व संदीप दीक्षित राहुल की ताजपोशी को लेकर अप्रत्यक्षत: विपरीत टिप्पणी करने लगे हंै तो आने वाले कल के परिदृश्य की परिकल्पना आसानी से की जा सकती है।
कोई इससे इंकार नहीं कर सकता कि कांग्रेस का लगातार जारी पतन देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये शुभ नहीं है। पर दुर्भाग्य से न तो कांग्रेस आलाकमान और न ही कांग्रेस के रणनीतिकार कुछ ऐसा करते दीखते है जिससे पार्टी मजबूती से आगे बढ़ सके। सच यह है कि आज भी सभी कांग्रेसीजनों में यही भरोसा रहता है कि ‘गांधी परिवार ही कांग्रेस की नैया पार लगा सकता है और लगायेगा।Ó कोई न ही कांग्रेस परिवार के कारनामों को सुनने समझने को तैयार है और न उन कांग्रेसियों के काले चिट्ठो को पढऩे व स्वीकारने को तैयार है जिन्होने सिर्फ  चापलूसी के दम पर संप्रग सरकार में ऊंचे ओहदे हथियाकर निर्ममता से देश के लोगो की गाढ़ी कमाई को लूटकर अपना घर भर लिया।
पूरा देश जान/समझ चुका है कि अब कांग्रेस कर्णधारों में न तो नेतृत्व की क्षमता बची है और न ही उनमें वो हिम्मत कि वो अपने बीच के उन दागियों को  अपने से अलग कर देश के सामने नजीर रख सके जिन्होने खासकर १० वर्षो की सत्ता में देश को लूटा है।
मोदी सरकार की टंच ईमानदारी व बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देश को ईमानदारी से आगे बढ़ाने की लगातार सफ ल कोशिशें देश के लोगों के भरोसे को ज्यों-ज्यों पुख्ता करती जा रही हंै त्यों-त्यों कांग्रेस की जमीन धंसती और धंसती ही जा रही है।
यदि कांग्रेस को अपनी तकदीर बदलनी है, राहुल को अच्छा नेता बनाना है तो मादाम श्रीमति गांधी को सबसे पहले राहुल की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी खारिज कर उन्हे प्रतिक्षा सूची में ही डाले रखना होगा और ताज उसे पहनाये जिसमें राजनीतिक अनुभव व नेतृत्व क्षमता हो।
श्रीमति गांधी उन सभी चिन्हित दागी नेताओ के खिलाफ  कड़ी कार्यवाही करें जिन पर देश के लोगो की गाढ़ी कमाई लूटने के गंभीर आरोप चस्पा है।

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