शाक्यवीर शाक्यमुनि गौतम की पुकार

—विनय कुमार विनायक
हे मार! मुझे मत मार!
मैं महामाया-शुद्धोधन का उनतीस वर्षीय बेटा शाक्यवीर
सिद्धार्थ,एक क्षत्रिय राजकुमार, याचना नहीं समर करने वाला,
सहस्त्रार्जुन, राम, कृष्ण का वंशज, सदियों चला असि की धार!
बहुत दिया गीता का युद्ध प्रवचन, बहुत किया धनुष टंकार,
सदियों का अनुभव हमारा, युद्ध करना है बेकार!

हे मार! मुझे मत मार!
इक्कीस-इक्कीस बार हुआ युद्धप्रिय जातियों का संहार,
सगे भाइयों ने सगे भाइयों पर किया वार,चला दिया तलवार!
पर मिटी नहीं शत्रुता,मिटा नहीं ऊंच-नीच का भेद-भाव!
कि युद्ध बदल सकता नहीं मानव का व्यवहार,
मानव को दानव बनाता, युद्ध है बेकार!

हे मार! मुझे मत मार!
मैं निकला हूं, मानव का दुःख-दर्द मिटाने को,
मैं निकला हूं, मानव-मानव में भेद मिटाने को,
मैं निकला हूं, मनुजमात्र में करुणा जगाने को,
मैं निकला हूं, जीवन-मृत्यु का रहस्य बताने को,
हे मनुज! मनुज को मत संहार!

हे मार! मुझे मत मार!
मैंने अपनी माता को रुलाया,सबकी माता को हंसाने को,
मैंने अपने पिता को दुखाया,जग के पिता को हर्षाने को,
मैंने अपने पुत्र को त्यागा,सबके पुत्रों में सुधी जगाने को,
मैंने स्वनारी को दुखियारी किया, सर्वनारी दर्द मिटाने को!
हे मनुज! पराए पिता,पति,पुत्र,भ्राता को मत मार!
मत कर नारी पर अत्याचार!

हे मार! मुझे मत मार
कि दुनिया ने देखा बहुत ही युद्ध, मैं बुद्ध दिखाने आया,
कि मानव ने मन को किया अशुद्ध, मैं शुद्ध बनाने आया,
कि मानव-मानव को मार रहा, जन-जीवन को उजाड़ रहा है,
मैं जीवन में शांति,सत्य,अहिंसा का सन्मार्ग दिखाने आया!
सर्वत्र हो सुख शांति,सुखी रहे संसार!

हे मार! मुझे मत मार!
मैं जहां-जहां तक फैला हूं, जमीं-आसमां में हूं
वहां से मेरी जन्म भूमि पर ना उठे कोई हथियार!
ना दे धमकी कोई किसी टैंक-मिसाइल की
मैं शाक्य मुनि शुद्ध-बुद्ध अमिताभ हूं,
पर बुद्ध भूमि को युद्ध भूमि में मत बदलो!
अन्यथा फिर लूंगा युद्धावतार!
हे मार! नहीं सकोगे मुझको मार!
—विनय कुमार विनायक

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