व्‍यंग/गाली

-राम कृष्‍ण खुराना

मुझे कुत्ता पालने का कोई शौक नहीं था। मैं कुत्ते, बिल्ली आदि जानवर पालने को अमीरों के चोंचले मानता था। सुबह शाम लोगों को कुत्ते की जंजीर हाथ में पकड कर टहलते हुए देखता तो मैं उनको फुकरा समझा करता था जो अपनी झूठी शान दिखाने के लिए आडम्बर करते हैं। पिक्चरों में या कई बडे घरों में लोगों को कुत्ते, बिल्लियों से अपना मुंह चटवाते देखता तो बडी नफरत होती थी। आज के भाग-दौड के समय में अपना तथा अपने बच्चों का ख्याल रखना ही बहुत बडी बात थी फिर इन जानवरों को पाल कर अपनी फजीहत करवाना मुझे कतई पसन्द न था। लेकिन पुरु, मेरे चार साल के बेटे को पता नहीं कहां से धुन सवार हो गई। पता नहीं उसने टी वी में देखा या किसी दोस्त के कहने पर कुत्ता पालने की जिद करने लगा। उसे बहुत समझाया। कुत्ता पालने के दोष गिनवाये। घर गन्दा होने का वास्ता दिया। कुत्ते के बदले में कोई और अच्छी और मंहगी चीज़ लेकर देने का लालच दिया। लेकिन उसकी तो एक ही जिद थी कि कुत्ता पालेंगें। स्त्री-हठ और बाल-हठ के बारे में तो सब जानते ही हैं।

हमने उसका नाम जिमी रखा था। वो सिर्फ सात दिन का था जब मैं उसे घर लेकर आया था। सफेद रंग का जिमी बहुत ही प्यारा बच्चा था। उसके शरीर पर छोटे-छोटे बाल रेशम की तरह मुलायम थे। छोटे-छोटे पैरों से सारे घर में चहल कदमी करता हुआ बहुत ही प्यारा लगता था मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था। मेरी पत्नी उसका बहुत ख्याल रखती थी। हम सब उसको बहुत प्यार करते थे। पुरु तो इसके बिना एक मिनट भी नहीं रहता था। हर समय गोद में लेकर घूमता रहता। पुरु और जिमी, जिमी और पुरु दोनो जैसे एक ही बन गए थे। एक दूसरे के दोस्त। एक दूसरे के दुख-सुख में साथ देने वाले। एक दूसरे की जान।

जिमी अब बडा हो गया था। अवांछनीय को देख कर भौंकने लग गया था। उसके होते हमें घर की ज्यादा चिंता नहीं रहती थी। पूरी देखभाल करता। पूरी रखवाली करता। बहुत समझदार। पोटी की तो बात दूर उसने कभी बिस्तर पर सू-सू भी नहीं किया था। पत्नी भी उसकी साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखती थी। रोज़ उसे नहलाना, शरीर पर चिपटे कीडों को चिमटी से निकालना आदि हर प्रकार से उसका ख्याल रखती थी।

पुरु का तो वो एक तरह से चेला ही था। दोनों एक दूसरे से ऐसे प्यार करते थे जैसे सगे भाई जो चीज़ पुरु खाता वो जिमी के लिए भी आती। साथ खेलते। एक दूसरे को पकडते। एक दूसरे के उपर चढ जाते। एक दूसरे के आगे-पीछे भागते। खूब मस्ती करते। एक बार मोहल्ले के दो लडकों से पुरु की लडाई हो गई। बस फिर क्या था। जिमी ने पहले तो भौंक कर उन्हे डराने की कोशिश की जब वे नहीं माने तो दौड कर एक की टांग पकड ली। खींचा-तानी में उसकी पेंट फट गई। दोनों दुम दबा कर भाग गए। और जब जिमी बीमार हुआ था तो पुरु ने खाना-पीना तक छोड दिया था। स्कूल से आने के पश्चात स्वयं डाक्टर के पास लेकर जाता। जब तक वो भला-चंगा नहीं हो गया पुरु को चैन नहीं आया।

जिमी अब चार साल का हो गया था और पुरु आठ का। दोनो एक दूसरे को भाई की तरह ही प्यार करते थे। जिमी का व्यवहार एक छोटे भाई की तरह ही झलकता था। दिन में एक आध-घंटा वो पुरु के साथ अवश्य खेलता। खेल-खेल में पुरु कई बार जिमी को जोर से मार देता। कई बार उसे उठा कर नीचे पटक देता। कई बार उसके बाल नोंच देता। पर जिमी कांउ-कांउ करता रहता और मज़े ले ले कर पुरु के साथ खेलता रहता। कभी उसने पुरु को कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी नहीं की। दोनो इसी प्रकार से खेलते रहते। यह बचपन की परम्परा आज भी बदस्तूर जारी थी। जिमी ने कई काम सीख लिए थे। गेट से अखबार उठा लाता था। यदि पुरु बाज़ार से कोई सामान लेता तो लिफाफा जिमी को थमा देता। जिमी लिफाफे के हैंडल को अपने मुंह में दबाए घर ले आता। घर का कोई भी सदस्य बाहर से आता तो वो अभी दूर ही होता था कि जिमी को अपनी सूंघने के शक्ति से पता चल जाता और वो गेट से लेकर कमरे तक उतावलेपन से चहल कदमी करने लग जाता।

परंतु आज जो हुआ वो अप्रत्याशित था। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता था। कोई भी इसे मानने के लिए तैयार नहीं था।

आज जिमी ने पुरु को काट लिया था।

जिमी ने…… पुरु…… को… काट लिया ??? यह अनहोनी कैसे हो गई। ऐसा नहीं हो सकता। सभी जिमी की इस हरकत से हैरान थे। मुझे गुस्सा आ गया।

मैंने जिमी को अपने पास बुलाया। उसके अगले दोनों पंजो को अपने हाथ में पकड कर उसका मुंह अपने सामने लाकर उससे पूछा – “जिमी, तुमने पुरु को क्यों काटा ?”

जिमी ने एक बार मेरी ओर देखा फिर नज़रें झुका लीं।

मैंने फिर उसके पंजो को झकझोर कर उसकी आंखों में झांक कर उससे वही प्रश्न किया।

इस बार भी जिमी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।

मुझे क्रोध आ गया। मैंने गुस्से से उसको डांटते हुए उससे फिर पूछा तो उसने सिर झुका लिया और धीरे से बोला – “पुरु भईया ने मुझे बहुत गन्दी गाली दी थी। मुझे गुस्सा आ गया और मैंने भईया को काट लिया।”

“गाली दी थी ?” मैंने फिर गुस्से से पूछा – “तुम तो पुरु को इतना प्यार करते हो और वो भी तुम्हारा कितना ख्याल रखता है। फिर क्यों काटा ? क्या कहा था पुरु ने ?” ”हां मैं भईया से बहुत प्यार करता हूं। उनके लिए जान भी दे सकता हूं। वो मुझे मार लेते, मुझे कोई दूसरी गाली दे देते, मां की गाली दे देते, बहन की गाली दे देते। पर उन्होंने तो मुझे बहुत ही गन्दी गाली दी थी। मुझे गुस्सा आ गया और गुस्से में मैंने भईया को काट लिया। ” जिमी कहता जा रहा था।

“मैं जब भईया के साथ खेल रहा था तो पुरु भईया ने मुझे बहुत गन्दी गाली दी थी।” जिमी किसी मुजरिम की तरह सिर झुकाए ही बोला – “उस गाली को मैं बर्दास्त नहीं कर पाया और गुस्से में मैंने भईया को काट लिया।”

”क्या गाली दी थी पुरु ने तुम्हें जो तुमने उसे काट लिया ?” मैंने आंखे तरेर कर पूछा।

”पुरु भाईया ने मुझे कलमाडी कहा था।”

जिमी का उत्तर सुन कर मैं निरुत्तर हो गया।

Previous articleबंटा हुआ भारतीय समाज
Next articleव्‍यंग/बेटा अकादमी के चूहे का
राम कृष्ण खुराना
11 फरवरी 1948 के दिन रामकृष्‍णजी ने अपनी ममतामयी मां की गोद में पहली किलकारी भरी थी। इस संसार को छोडने के पश्चात भी नाम चलता रहे, उनकी यह इच्छा बचपन से ही रही है। इस तृप्ति की पूर्ति भी वे लेखक-जीवन में अनुभव करता हैं ! पहली रचना (एक सत्य कथा) 1970 में दैनिक हिन्दुस्तान, दिल्ली में प्रकाशित हुई ! इसके पश्चात लगभग 70 रचनाएं सारिका, रविवार, मिलिन्द, चुलबुला, कहानीकार, एकांत, नवभारत टाईम्स, हिन्दुस्तान, दैनिक ट्रिब्यून, विनीत, अरा सृष्टि, स्वर्णिम प्रकाश, युगेन्द्र, वीर अर्जुन, पंजाब केसरी, वीर प्रताप, शिवालिक सन्देश तथा पब्लिक सिंडीकेट द्वारा कई लब्ध प्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशित हो चुकी हैं। कई रचनांए कहानी व लघुकथा संस्करणों में प्रकाशित। तीन रचनांए आकाशवाणी (आल ईंडिया रेडियो) से प्रसारित हो चुकी हैं। कई रचनांए पुरस्कृत। दैनिक जागरण के मंच – जागरण जंक्शन द्वारा प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त। जागरण जंक्शन द्वारा ही सर्वोत्तम लेखन के लिए “हाल आफ फेम” में चयनित।

6 COMMENTS

  1. प्रिय अभिषेक जी,
    आपका कहना उचित है ! कलमाड़ी के जगह सुरेश कलमाड़ी ही प्रयोग होना चाहिए ! लेकिन आजकल जैसी हवा चली है उसमे यदि आप कलमाड़ी का नाम लेंगे तो लोग सुरेश कलमाड़ी 8000 करोड़ के घोटाले वाला ही समझते है ! आजकल तो किसी और कलमाड़ी के लिए आपको पूरा नाम देना होगा ! वरना लोग सुरेश का ही धोखा खा जायेंगे !
    आपके स्नेह के लिए आपका धन्यवाद
    राम कृष्ण खुराना

  2. आप का लिखने का मर्म समझ मे आ गया पर कॄपया “कलमाडि” शब्द का प्र्योग करने के स्थान पर सुरेश कलमाडी करे हो सकता है कलमाडी उसकी “कास्ट” नेम हो ओर “कर्पशन कास्ट ने नही व्यक्ति सुरेश कलमाडी ने किया है……………..

  3. प्रिय राजीव जी,
    आपने ठीक ही कहा है ! परन्तु जिमी ने हॉल ही में कलमाड़ी का नाम सुना था और पुरु ने उसे कलमाड़ी कह दिया ! बस जिमी ने पुरु को काट लिया !
    मेरी रचना “गाली” के लिए आपका स्नेह मिला ! धन्यवादी हूँ !
    राम कृष्ण खुराना

  4. प्रिय गाँधी जी,
    दिल्ली के कुत्ते यहाँ (लुधियाना) के कुत्तों से ज्यादा समझदार हैं ! फिर उनको कलमाड़ी और इन जैसे औरो के बारे में ज्यादा पता है ! तो उनकी शियत जायज है !
    मेरी रचना “गाली” पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ !
    राम कृष्ण खुराना

  5. दिल्ली के कुत्तों की भी यही शिकायत है वे भी कलमाड़ी से बहुत बिफरे हुए हैं जी. एक भुरु मौज मौज में किसी खिलाडी के बिस्तर पर क्या कूद गया सभी दुत्तों को कलमाड़ी ने खेल गाँव से निकाल बाहेर किया – नस बंदी कर दी वो अलग – मेनका जी के पूर्व वरदहस्त की बदौलत अपना पुराना निवास तो मिल गया मगर जीवन में कोई रस नहीं रह गया शेष… हम दो हमारे छै की अभिलाषा अब काफूर हो गई ?

Leave a Reply to R K KHURANA Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here