जातिवादियों में न्यायिक चरित्र नहीं होता

—विनय कुमार विनायक
जातिवादियों में न्यायिक चरित्र नहीं होता,
जातिवादी जन शुभसंस्कार से रिक्त होता!

जातिवादी भाई भतीजावाद में लिप्त होता,
जातिवादी जन दूसरों को हकवंचित करता!

जातिवादी आत्ममुग्धता में स्वहित साधता,
अयोग्य रिश्तेदारों के लिए पद खरीद लेता!

जातिवादी एक जातिगत उपाधि ग्रहण कर,
जाति एकता के नाम पराए से दूरी बनाता!

कृष्ण-शिशुपाल-कंश की एक हो गई जाति,
वृष्णि-चेदि-उग्रसेनी की एक हो गई उपाधि!

जातियों के बीच पहचान खो गई कृष्ण की,
अब भीमसेन व दुर्योधन में हो गई दोस्ती!

राम-बलराम-परशुराम तीनों वर्ण के भगवान,
चौथे वर्ण के लिए तनिक बचा नहीं स्थान!

पहले इंसान गुण-कर्म-स्वभाव से जाने जाते,
अब आदमी जाति उपाधि से पहचाने जाते!

राम नहीं लिखते थे सिंह, परशुराम नहीं झा,
झा-सिंह-साह-दास में बंटके हिन्दू हुए तबाह!

अब किसी का नाम जानने की चाह न होती,
उपाधि खोजी जाती,उपाधि प्रेम घृणा पालती!

जातिवाद एक नशा है जिसमें हिन्दू फंसा है,
जाति उच्चता के वहम से कोई नहीं बचा है!

जो परजीवी भिक्षाजीवी, वो आदरणीय जाति,
जो स्वावलंबी अन्न धन प्रपोषक, वे कुजाति!

यह कैसी बुराई घुस गई है, हिन्दू समाज में,
याचक ऊंची जाति के, दानी नीच समाज में!

जो भोज्य पदार्थ सुस्वादु उच्च कोटि के होते,
उसके निर्माता घृणित जाति के कैसे हो जाते?

गो दुग्ध यदि अमृत पेय, तो गोप कैसे हेय?
मोदकप्रिय गणेश को, मोदी से क्यों ना नेह?

स्वर्ण आभूषण से मानव की प्रतिष्ठा बढ़ती,
तो क्यों स्वर्णकार जाति कुंठाग्रस्त हो जाती?

जूते बनाने वालों से घृणा, जूतों से प्रेम यहां,
ऐसी ओछी मानसिकता हिन्दू छोड़ और कहां?

हिन्दुओं बीच जातिवाद अभिशाप लगने लगा,
सच पूछिए तो ये जातिवाद पाप लगने लगा!

जातिवाद के दौर में प्रतिभा नहीं देखी जाती,
प्रतिभाहीन को प्रतिभावान पर थोप दी जाती!

हिन्दूधर्म तभी विश्व धर्म का विकल्प बनेगा,
जब जातिवाद छोड़ मानवता को नहीं छलेगा!
—-विनय कुमार विनायक

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