लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर May 6, 2025 / May 6, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल ‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता और भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है जो विरले ही […] Read more » Timeless creator Rabindranath Tagore कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार रवीन्द्रनाथ टैगोर: रोशनी जिनके साथ चलती थी May 6, 2025 / May 6, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती – 7 मई, 2025 – ललित गर्ग – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांङ्ला’ के रचयिता एवं भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की जन्म जयंती हर साल 7 मई को मनाई जाती है। वे एक महान एवं विश्वविख्यात कवि, लेखक, साहित्यकार, दार्शनिक, […] Read more » रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती - 7 मई
शख्सियत समाज साक्षात्कार समतावादी समाज के पक्षधर थे महात्मा ज्योतिबा फुले April 10, 2025 / April 10, 2025 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती (11 अप्रेल) पर विशेषडा. वीरेन्द्र भाटी मंगल महात्मा ज्योतिबा फुले भारत के महान व्यक्तित्वों में से एक थे। ये एक समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, विचारक, क्रान्तिकारी के साथ साथ विविध प्रतिभाओं के धनी थे। इनको महात्मा फुले एवं जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने महाराष्ट्र मे सितम्बर […] Read more » ज्योतिबा फुले महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती (11 अप्रेल)
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला रखता है साहित्य March 26, 2025 / March 26, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment कहते हैं कि साहित्य ही समाज का असली दर्पण होता है। समाज में जो भी घटित होता है, मतलब कि समाज में जो भी गतिविधियां होतीं हैं, लेखक उनसे कहीं न कहीं प्रभावित होता है और वह अक्सर उन्हीं चीजों, घटनाओं, गतिविधियों को अपने साहित्य में अपनी कलम के माध्यम से काग़ज़ के कैनवास पर […] Read more » प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल विनोद कुमार शुक्ल
महिला-जगत लेख शख्सियत साक्षात्कार सार्थक पहल सुनीता विलियम्स : साहस से छुआ आसमान March 23, 2025 / March 24, 2025 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment सुरेश हिंदुस्थानी “अगर देखना चाहते हो मेरे हौसलों की उड़ान तो आसमान से कह दो कि और ऊँचा हो जाए”। ये पंक्तियाँ निश्चित ही ऐसा आभास कराती हैं कि यह असंभव जैसी बात है। क्योंकि आसमान में उड़ने वाली बात किसी ऐसे सपने जैसी ही लगती है, जो पूरा हो ही नहीं सकता। लेकिन व्यक्ति […] Read more » Sunita Williams
शख्सियत समाज साक्षात्कार भारतीयता की तहजीब को आवाज देने वाले फनकार March 3, 2025 / March 3, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment फिराक गोरखपुरी पुण्यतिथि – 3 मार्च, 2025-ललित गर्ग-रूमानियत, समाज एवं संस्कृति में रची बसी जिनकी शायरी हर उम्र के लोगों के जीवन का हिस्सा है, ऐसे महान् ‘शायर-ए-जमाल’-सौन्दर्य का कवि कहलाने वाले फिराक गोरखपुरी उर्दू शायरी का देश एवं दुनिया का एक फनकार हैं जिसका रचना-संसार जीते-जी ही नहीं, मरकर भी गूंज रहा है। गोरखपुर […] Read more » फिराक गोरखपुरी पुण्यतिथि
शख्सियत समाज साक्षात्कार सहकारिता को समर्पित युगपुरुष लीलाधर पंडित February 26, 2025 / February 26, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment मध्यप्रदेश अपेक्स बैंक के रिटायर्ड केडर आफिसर ओर सहकारिता विशेषज्ञ लीलाधर पंडित जो एल डी पंडित के नाम से पहचाने जाते है से विगत 30 वर्षों से संपर्क में हूँ। सहकारी साख एवं बैंकिंग के क्षेत्र में उन्होंने काम करते 60 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत किया है ओर उनकी पूरी सेवाकाल एक निष्ठावान […] Read more »
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार संघ साधना के तपोनिष्ठ ऋषिवर : श्री गुरुजी February 19, 2025 / February 24, 2025 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल आक्रमणों और वर्षों की परतन्त्रता के कारण कमजोर और दैन्य हो चुके हिन्दू समाज को संगठित करने के ध्येय से डॉ.हेडगेवार ने २७ सितम्बर सन् १९२५ विजयादशमी के दिन शक्ति की पूर्णता को मानकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन किया। जो हिन्दू समाज को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाने तथा राष्ट्रीयता के प्रखर […] Read more »
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारत की आत्मचेतना का मूर्त-रूप: छत्रपति शिवाजी February 19, 2025 / February 17, 2025 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment 19 फरवरी जन्मदिवस पर विशेष वीरेन्द्र सिंह परिहार प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने लिखा -‘‘जहाँगीर ने प्रयाग के वट वृक्ष को जड़ों से काट डाला था। उसकी जड़ों पर उबलता शीशा उड़ेंला था पर एक वर्ष के अंदर ही खाक हुए उन्ही जड़ों से वह वट फिर अंकुरित हुआ। दासता के शीश कवचों को दूर फ़ेंक कर बढ़ते-बढ़ते बनकर खड़ा हो सका। यह बात शिवाजी ने अपने जीवन में साबित कर दिखायी है।‘ प्रसिद्ध विचारक और संघ के पूर्व सरकार्यवाह हो.वि. शेषाद्रि के शब्दों में-‘‘स्वराज की बाती बुझ गई थी, धर्म अंतिम सांसे ले रहा था। हिमालय से रामवेश्वरम् तक सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक दासता का घना साम्राज्य फैल गया था। तभी पश्चिम तटीय सह्याद्रि के पहाड़ों के गर्भ में एक नवजात बालक का उदय हुआ। बाल्यावस्था में ही विदेशी बीजापुर बादशाह को उस लड़के ने मुजरा करना नामंजूर किया। आते-आते उसने बीजापुर के तख्त को जड़ो से हिलाया। भाग्यनगर के कुतुबशाह को झुका दिया। दिल्ली बादशाह के दिल में भी उस सह्याद्रि के बालक ने कंपकंपी पैदा की। ईरान के युवा बादशाह अब्बास द्वितीय ने तो पत्र लिखकर औरंगजेब की हंसी उड़ायी। ‘‘तुम खुद को आलमगीर यानी विश्व-सम्राट कहते हो, लेकिन एक छोटे सरदार के बेटे को जीतना तेरे लिए संभव नहीं हुआ। इस तरह से बीजापुर के एक सरदार संभाजी के बागी बेटे की कीर्ति हिन्दुस्तान के बाहर भी पहुंच चुकी थी। उसका खड़ग दुष्ट दुश्मनों का मारक एवं स्वराज तथा स्वधर्म का तारक बना। यह शिवाजी के संघर्ष का परिणाम था कि आगे उनके वंशजों ने बीजापुर सल्तनत को जड़ो से उखाड़कर फ़ेंक दिया। निजामशाही का अस्तित्व नाममात्र रहा। दिल्ली के विश्व सम्राट बादशाह को उसके साम्राज्य की राजधानी दिल्ली में निवृत्त कराते हुए उसे एक कोने में बिठा दिया। सह्याद्रि से निकले बौने टट्टू सिंधु प्रदेश पारकर आगे दौड़ पडें। उस बालक के वंशज अटक, काबुल, कंधार तक जाकर हिन्दुस्तान का विजयध्वज गाड़ कर आ गये।’’ शाहजी मुस्लिम सल्तनत बीजापुर के एक सरदार मात्र थे जिनके पास न तो कोई अपना राज्य था, न सेना थी और न किला ही था। उस पिता शाहजी एवं माता जीजाबाई के बेटे शिवाजी ने अपने दम-खम शूरता और बुद्धिमानी के बल पर जिस तरह से एक साम्राज्य की स्थापना कर दी, उसे सुनकर लोग आचंभित ही नहीं रह जाते, बल्कि दांतों तले उंगली भी दबा लेते है। 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी में जन्मे और पूना में पले-बढ़ें शिवाजी बचपन में साथियों के साथ माटी के किले बनाकर लड़ाई का खेल खेलना पंसद करते थे, इसी से पूत के पाव पालने में ही दिख गए थे। तभी तो दस वर्ष के शिवाजी जब अपने पिता के साथ बीजापुर दरबार में जाते है, तो बादशाह को सलाम तक नहीं करते। इतना ही नहीं, बीजापुर शहर में ही एक कसाई का हाथ इसलिए काट लेते है कि वह गाय की हत्या करने जा रहा था। ऐसे साहस और शौर्य के बचपन से ही साक्षात अवतरण थे, छत्रपति शिवाजी। यह बालक शिवाजी की संगठन-कौशल और नेतृत्व-क्षमता का ही कमाल था कि उन्होने 12 मावल प्रांतों के दीन-हीन, अशिक्षित, मावलों को संगठित कर एक श्रेष्ठ लड़ाकूओं में बदल दिया। माता जीजाबाई से प्राप्त संसकार और दादाजी कोंडदेव के मार्गदर्शन का ही यह कमाल था कि एक विधवा से बलात्कार के चलते वह बदफैली के पाटिल का हाथ-पाव कटवा लेते है जबकि उस वक्त सामर्थ्यवान लोगों के लिए यह साधारण बात थी। शिवाजी की यह चतुरता और शौर्य की ही विशेतषता है कि 16 वर्ष की उम्र में ही बगैर रक्तपात के बीजापुर के दुलक्षित दुर्ग तोरणगढ़ में तोरण बांध देते है। बीजापुर द्वारा सर कलम किए जाने की धमकी के बाबजूद क्रमशः कोंडाणा ,शिरवल,सुभानमंगल जैसे किलों पर अधिकार कर लेते है। जब बीजापुर दरबार शिवाजी को निबटाने के लिए दुर्दांत अफजल खान को भेजता है, और वह शिवाजी के राज्य में हत्या, आगजनी, विध्वंस, बलात्कार का तांडव करता है। पर शिवाजी सामने लड़ना उचित न समझने के कारण प्रतापगढ़ के किले में ही रहते है, और युक्तिपूर्वक अफजल खान को प्रतापगढ़ के पायते में बुलाकर 16 नवम्बर 1959 को सिर्फ उसका ही नहीं, उसकी अधिकांश सेना को यमलोक भेज देते है। बीजापुर दरबार द्वारा भारी सेना के साथ पुनः सिद्दी जौहर के द्वारा हमला किये जाने पर और पन्हालगढ़ में शिवाजी की 04 माह तक घेराबंदी किए जाने पर कैसे असीम साहस तथा युक्ति बाजीप्रभु देशपाण्डे जैसे साथियों के बलिदान के चलते वह पन्हालगढ़ से विशालगढ़ पहुंच जाते है, और सिद्दी जौहर के आक्रमण को निष्फल कर देते है, जो विश्व-इतिहास की अविस्मरणीय घटना है। पर शिवाजी के ऊपर सिर्फ सिद्दी जौहर का ही हमला नहीं होता। औरंगजेब का सिपहसालार शाइस्ताखान भी इसी बीच शिवाजी के राज में आंतक मचाता पुणे के लाल किलें में डेरा डाल दिया था, जहां शिवाजी का बचपन बीता था। 6 अप्रैल 1663 की आधी रात दो हजार सेना के साथ शिवाजी लालमहल में घुस गए और एक लाख सेना का जहां पहरा था, वहां तूफान बरपा दिया। स्वतः शाइस्ता खान की तीन उंगलिया कट गई, एक बेटा और कई बेगमों के साथ कई सैनिक मारे गये। इसका नतीजा यह हुआ कि शाइस्ता खान तुरंत ही औरंगाबाद निकल गया।इस तरह से दो साल जो-जो स्वराज को क्षति पहुंचाई गई थी, उसकी प्रतिपूर्ति के लिए शिवाजी ने औरंगजेब के सबसे समृद्ध बंदरगाह सूरत को भरपूर लूटा। औरंगजेब द्वारा मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजने पर शिवाजी उनसे समझौता कर लेते है, और औरंगजेब से मिलने दिल्ली चले जाते है। पर औरंगजेब उन्हे बंदी बनाकर जान से मरवाने को सोच रहा होता है, तो शिवाजी अपनी युक्ति और साहस से पुत्र संभाजी समेत मिठाई के टोकरों में बैठकर औरंगजेब की कैद से निकल आते है और अपने राज्य पहुंच जाते है। निःसन्देह उपरोक्त सभी घटनाएं दुर्लभ ही नहीं, असंभव भी प्रतीत होती है। इसके पश्चात् तो शिवाजी ने बीजापुर को तो खुले युद्धों में हराया ही, दिंडौरी और सालेर के खुले युद्धों में शिवाजी ने औरंगजेब की सेनाओं को शिकस्त दी और अपना स्वतंत्र राज्याभिषेक कराया, जिसकी राजधानी रायगढ़ थी। यह बात अलग है कि सतत् युद्धों में जर्जर होने के चलते उनकी मृत्यु 50 वर्ष की उम्र में 1680 में हो गई। छत्रपति का कार्य सही अर्थो में ध्येयनिष्ठा से अभिमंत्रित था। उज्जवल राष्ट्रीय ध्येय में ही उसका मूल छिपा था। अनेक बार शिवाजी को स्वराज से बहुत दूर रहना पड़ा था। पन्हालगढ, आगरा, में उन्हे महीनों तक प्राणसंकटों से भरे दिगबंधनों में रहना पड़ा। तत्पश्चात् दक्षिण दिग्विजय के लिए निकलने पर दो वर्षो के दीर्घकाल तक वे स्वराज से दूर रहे। पर ऐसे किसी भी समय में स्वराज के शासन में गडबड़ी या शौथिल्य निर्माण नहीं हुआ। स्वराज के हरेक प्रजा के हृदय में उन्होने अपनी स्वतः की भक्ति के बदले स्वराज-स्वधर्म के अनुसार ध्येयनिष्ठा की कल्पना की थी। इसलिए ऐसे विषम प्रसंगों में भी राज्य का कारोबार कडाई तथा सुचारू रूप से चला था। उस दौर में प्रलोभन या प्राणभय से एक बार मुसलमान बनने पर उसे हिन्दू धर्म में वापस लेने को कोई धर्माचार्य तैयार नही होते थे। ऐसे में ऐसा व्यक्ति सदा के लिए हिन्दू समाज से विच्छिन्न ही नहीं हो जाता था, बल्कि हिन्दू समाज का ही नाश करने वाले खड़ें दुश्मनों के साथ मिल भी जाता था। विद्यारण्य स्वामी के पश्चात् जिन्होंने हरिहर और बुक्का को पुनः हिन्दू धर्म में लेकर विशाल विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कराई थे, ऐसे संकट को पहचानने और उसका परिहार करने वाले उस दौर में केवल शिवाजी ही थे। उन्होंने धर्मान्तरिंतों का शुद्धिकरण करने का क्रम चलाकर अकल्पित मानसिक क्रांति का सूत्रपात किया। बीजापुर बादशाह द्वारा धर्मान्तरित बालाजी निबांलकर तथा औरंगजेब द्वारा धर्मान्तरित कराए हुए नेताजी पालकर का शुद्धिकरण कराते हुए हिन्दू धर्म में पुनः लिया। दूसरे लोग पीछे हटेंगे, इसलिए उनके साथ अपने ही परिवार वालों के रक्त-संबंध बढाकर शिवाजी महाराज ने समाज को एक नयी धर्म दृष्टि प्रदान की।इतना ही नहीं धर्म के नाम पर हिन्दू समाज की सुरक्षा तथा सामथ्र्य को संकट उत्पन्न करने वाले सब बंधनों का उन्हांने उन्मूलन किया। समुद्र-प्रयाण को लेकर जो धार्मिक विरोध की अंध श्रद्धा थी। उसे उखाड़कर फेंकने के लिए उन्होने स्वयं समुद्र-प्रयाण कर सागर तट से अंदर जाकर जलदुर्गो का निर्माण कराया। समर नौकाओं में बैठकर संचार करते हुए सागर पराक्रम की उज्जवल परंपराओं को स्थापित किया। मुसमलमान बादशाहों द्वारा तब प्रचालित पद्धति जागीर देने की थी। ऐसी स्थिति में जागीरों के सूबेदार ही उनके सैनिकों और प्रजा के निष्ठा के प्रथम केन्द्र थे। शिवाजी महाराज के राज्य में ऐसे अनेक जागीरगदार, देशमुख, देशपाण्डे थे। एक राज्य के अंदर अनेक राज्यों की अवस्था स्वराज के लिए कभी भी विपत्तिजनक बन सकती थी। परन्तु जागीरदारी प्रथा को समाप्त करना कोई आसान काम नहीं था परन्तु महाराज ने अपना कठोर निर्णय ले ही लिया तथा उसे सफल बनाया। जागीरे रद्द कर जमीनें गरीब किसानो को बाँट दी। अपने समधी पिलाजी शिर्के द्वारा मांगे जाने पर भी जागीर नहीं दी। इससे जनसामान्य में स्वराज के प्रति आत्मीयता बढी, उत्पादन बढ़ा और स्वराज की सुरक्षा के लिए अपायकारी ऐसे जागीरदारों का भी अंत हुआ। सर्वसाधारण किसानों का स्वामिभान से जीना संभव हुआ। स्वाभिमान याने व्यक्ति अभिमान ऐसा भ्रम सिर्फ उस समय ही नहीं, आज भी मौजूद है। बातों-बातों में ही हथियार निकलकर झगड़ा करना, और मरने, मारने के लिए तैयार होना, कुछ ऐसा ही स्वाभिमान उस वक्त था। मध्ययुग में इस तरह के स्वाभिमान को लेकर राजपूत एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते थे। स्वाभिमान का अर्थ ऐसी राष्ट्रघातक व्यक्ति प्रतिष्ठा की जगह राष्ट्रपोषक स्वाभिमान ऐसा शिवाजी ने सिखाया। उन्होने ‘‘शठं प्रति साठ्यम’’नीति का पालन कर शत्रुओं को भरपूर मजा चखाया। एकाकी धर्मयुद्ध की जगह दुश्मनों के अनुसार अपनी नीति अपनायी। छत्रपति ने क्षात्रधर्म की संकल्पना को ही बदल दिया। हौताम्य की जगह उन्होने विजयोपासना की सार्थक नीति का प्रचलन किया। साम, दांम, दण्ड और भेद नीति में वह पूरे प्रवीण थे। समयानुसार कब पीछे हटना और कब हमला कर देना, इसके लिए प्रतिमान उन्होने गढे़ थे। हरेक बार समर संचालन का सूत्र वह अपने पास ही रखते थे। शत्रु पर अचानक हमला कर उसके संभलने तक फरार हो जाने का तंत्र था उनका गनिमी काबा, (गुरिलायुद्ध) इसी के चलते उनकी छोटी-छोटी टोलियां बडी फौजों को भी ठिकाने लगा सकी। दुर्गो की रचना में उन्होने जो कौशल दिखाया, उसे देखकर अंग्रेज इतिहासकार भी आश्चर्यचकित रह गए। तस्वीर का दूसरा बड़ा पहलू यह है कि सभी श्रेष्ठ मानवीय आदर्शो को प्रतिष्ठापित करने की परंपरा उन्होने आरंभ की। राज्याभिषेक के पश्चात् प्राचीन भारतीय अष्ट प्रधान पद्धति उन्होने लागू किया। उनका स्वराज हिंदवी और हिन्दू जीवन मूल्यों से ओत-प्रोत होने पर भी स्वराज निष्ठ होने पर मुसलमानों और ईसाइयों को भी पुरूस्कार मिलता था। शत्रु स्त्रियों के बारे में उनका मान-सम्मान, पूज्यभाव लोक विख्यात हैं। इस संबंध में कल्याण के सूबेदार के सौन्दर्यवती बहू की घटना सभी को पता है, जिसे पकड़कर लाए जाने पर उन्होने ससम्मान वापस भेज दिया था। इसके साथ कुरान और मस्जिद को कहीं भी अपवित्र न किया जाए, उनके सम्मान और पवित्रता का पूरा ख्याल रखा जाए, इसकी सराहना मुस्लिम इतिहासकारों ने खुले दिल से की है। सेना का आक्रमण करते समय देहातों में खड़ी फसल को हाथ नहीं लगाना, बाजारों में अन्यों जैसे ही पैसे देकर समान खरीदना। यदि किसी ने अवज्ञा की तो उसे कठोर सजा। ऐसे कल्याणकारी नीतियां छत्रपति की थी। गोवा को दो बार उन्होने बुरी तरह से लूटा, लेकिन पादरियों, मौलवियों, महिलाओं, बच्चें को तनिक भी धक्का नहीं लगा। सामान्य जनता, गरीबों को तिल-मात्र भी कष्ट नहीं पहुंचना चाहिए ऐसा उनका आदेश था। इतना ही नहीं शहर के परोपकारी धनवानों को भी लूट से मुक्त रखा गया। व्यक्तियों के चयन तथा उनके गुण-परीक्षण में तो छत्रपति बडें ही निष्णात थे। उनकी न्याय-निष्ठुरता, गुण-ग्राहकता, अनुशासनिक कठोरता आदि सें जनसामान्य की उनके प्रति निष्ठा हजार गुना बढ़ गई। न्याय-निष्ठुरता का आलम यह कि उन्हांेने अपने पुत्र संभाजी को भी दण्डित करने से नहीं छोड़ा। इसके बावजूद भी वृत्ति से वह महायोगी। स्वयं का ही कमाया हुआ समूचा राज्य समर्थ रामदास की झोली में डालकर फकीर जैसे निकल जाने को तैयार (राज्य शिवाजी का नहीं, राज्य धर्म का है।)ऐसे स्थितिप्रज्ञ राजर्षि थे वह। अति श्रेष्ठ देशभक्त, संयमी, धर्मशील मातृभक्त, पितृभक्त, गुरूभक्त थे। तभी तो कवि परमानन्द ने संस्कृत में शिवाजी जीवनचरित्र शिवभारत लिखा। कवि भूषण तो हिन्दू छत्रपति का गुणगान करने दौड़ते हुए उत्तर से दक्षिण आ गए थे। ‘‘काशी जी कला जाती, मथुरा मस्जिद होती, शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सबकी।’’ स्वयं गुरू समर्थ गुरू रामदास ने ही शिष्य का गौरवगान इस तरह किया – ‘‘आचारशील, विचारशील, न्यायशील, धर्मशील सर्वज्ञ सुशील जाणता राजा (जाणता यानी ज्ञानी) यशवंत, कीतिवंत, वरदवंत, सामथ्र्यवंत, प्राणवंत, नीतिवंत, जाणता राजा।।’’ जब भारत ही नहीं, पूरी दुनिया सामंतवाद के चंगुल में थी, उन्होंने अपने हिन्दवी स्वराज्य में शोषक सामंती तंत्र का अंत कर किसानों, व्यापारियों तथा समाज के अन्य तबकों न्याययुक्त शासन दिया था। उनके सामने सम्पूर्ण भारत का नक्शा था। तभी तो तात्कालीन पुर्तगाली गवर्नर ने शिवाजी को एक मंत्री से बातचीत के आधार पर यह उद्धृत किया है कि कैलाश मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक यह सम्पूर्ण देश हमारा है और इसे हम मुक्त कराकर रहेंगे। यह शिवाजी का ही दूरदृष्टि थी कि नेताजी पालकर और बालाजी निंबालकर जो मुस्लिम बन गए थे, उन्हें सिर्फ शिवाजी हिन्दू धर्म में ही वापस नहीं लाए, बल्कि निंबालकर के बेटे के साथ अपनी बेटी का विवाह कर एक अदभुत उदाहरण प्रस्तुत किया। आंग्ल तथा पुर्तगाली इतिहासकारों ने शिवाजी की तुलना अल-सिकंदर, सीजर, हाॅनिबल जैसे विश्वविख्यांत योद्धाओं से की है। तथापि उन सबको पहले ही सुसज्जित, प्रशिक्षित सेना, राज्य, राजकोष, आदि उपलब्ध थे। लेकिन शिवाजी महाराज ने इन सबका निर्माण बेचारे गरीब मावलों के बलवूते किया। दूसरे सभी अवर्णनीय परपीड़न, संहार, अत्याचार, करने में पीछे नहीं हटे, जबकि छत्रपति धर्मान्धता, विध्वंस, इत्यादि का नाश कर, शांति, धर्म, न्याय की प्रतिष्ठापना की। इग्लैण्ड के एक सार्वजनिक संस्था ने ‘‘विश्व का सर्वश्रेष्ठ वीर पुरूष कौन?’’ ऐसा प्रश्न विविध देशों को भेज दिया। अंत में शिवाजी ही उस लोकोत्तर पदवी के लिए सर्वदृष्टि से योग्य पुरूष है, ऐसा उसने निर्णय दिया। तभी तो महर्षि अरविंद की काव्य प्रतिभा और विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोंर की भावपूर्ण रसधारा के लिए भी छत्रपति का स्मरण प्रेरणा स्त्रोत बना।’’ नेता जी सुभाषचन्द्र बोस ने कहा था कि भारत के स्वातंत्र्य समर के लिए एकमात्र आदर्श के रूप में आज हमें शिवाजी का स्मरण करना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम के लिए वीर सावरकर, शिवाजी के भावचित्रों के सामने खडे अपने क्रांतिकारी संगठन के सदस्यो को शपथ दिलाते थे। लोकमान्य तिलक ने सामान्य जनता के हृदय में स्वातंत्रय की ज्योति प्रज्वलित करने हेतु शिवाजी उत्सव प्रचलित किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक केशवराय बलिराम हेडेगवार ने शिवाजी के राज्यारोहण के उत्सव का सही संदेश समाज के मन में पहुंचाने के लिए हिन्दू साम्राज्य दिवोत्सव का रूप देकर प्रचलित किया। आज भी राष्ट्र की जो परिस्थितियां है, उनके समुचित समाधान के लिए समर्थ गुरू रामदास के अनुसार – ‘‘सुमिरन करिए शिवराज के रूप का, सुमिरन करिए शिवराज के प्रताप का।।’’ छत्रपति शिवाजी स्मारक का मुम्बई के पास अरब सागर में हजार बाधाओं के बाद भी प्रधानमंत्री द्वारा नए वर्ष में आधारशिला रख दी गई, जलपूजन हो गया। इसकी लागत 3600 करोड़ रूपये होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार शिवाजी महाराज साहस, बहादुरी और सुशासन की मिसाल हैं। इसलिए यह उनके लिए एक उचित श्रद्धांजलि है। करीब 15 एकड़ के द्वीप पर प्रस्तावित स्मारक समुद्र तट से डेढ किलोमीटर अंदर होगा। दुनिया में कहीं भी इतनी उॅची मूर्ति नहीं है। घोड़े पर बैठे हुए छत्रपति शिवाजी के पुतले की उॅचाई 114.4 मीटर है। ये स्मारक करीब 13 हेक्टेयर की चट्टान पर बनाया जाएगा। यहाँ एक समय में दस हजार लोग एक साथ आ सकते हैं। इस स्मारक पर एक एम्पीथिएटर, मंदिर, फूड कोर्ट, लाइब्रेरी, आडियो गाइडेट टूर, थ्री-डी फिल्म, एक्वेरियम जैसी सुविधाएं होंगी। इसके विरोधियों को यह नहीं पता कि यह पर्यटकों के लिए भी कितना बड़ा स्मारक-स्थल हो जाएगा। आर्थिक दृष्टि से इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा एवं करोड़ों की आय होगी। इस तरह से राष्ट्र ने अपने एक महानतम् सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त की। शिवाजी से ही प्रेरणा लेकर वियतनाम ने ऐसी रणनीति बनाई कि अमेरिका जैसी महाशक्ति को वहां से भागना पड़ा। यह बात आज से कई वर्षों पूर्व वियतनाम के प्रधानमंत्री बता चुके हैं कि यदि हमने शिवाजी महाराज के जीवन का अध्ययन नहीं किया होता तो अमेरिका जैसा अजगर हमें निगल गया होता। हमें इस बात की प्रेरणा मिली कि यदि शिवाजी औरंगजेब के साम्राज्य को चारोंखाने चित्त कर सकते थे तो हम अमेरिका को क्यों नहीं कर सकते। तभी तो योद्धा, सन्यासी कहे जाने वाले विवेकानन्द ने कहा था-‘‘ गहन कालिमा के क्षणों में अवतार धारण कर अधर्म का विनाश कर, धर्म राज्य की स्थापना करने वाला युगपुरूष था-वह प्रत्यक्ष शिवाजी का अवतार। भारत की आत्मचेतना का मूर्त रूप था वह, भारत के भव्य भवितव्य का आशादीप था वह।’’ वीरेन्द्र सिंह परिहार Read more » Embodiment of India's self-consciousness Embodiment of India's self-consciousness: Chhatrapati Shivaji छत्रपति शिवाजी
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार शिवाजी महाराज और इतिहासकारों की मक्कारी February 18, 2025 / February 18, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अंग्रेज व मुस्लिम इतिहासकारों ने शिवाजी को औरंगजेब की नजरों से देखते हुए ‘पहाड़ी चूहा’ या एक लुटेरा सिद्घ करने का प्रयास किया है। अत्यंत दु:ख की बात ये रही है कि इन्हीं इतिहासकारों की नकल करते हुए कम्युनिस्ट और कांग्रेसी इतिहासकारों ने भी शिवाजी के साथ न्याय नही किया। छल, छदम के द्वारा कलम […] Read more » Shivaji Maharaj and the deceit of historians शिवाजी महाराज
शख्सियत समाज साक्षात्कार हिंदू राष्ट्रनीति व हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज भाग (क) February 17, 2025 / February 17, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment ( राज्यारोहण दिवस 6 जून पर विशेष) सन 1674 तक शिवाजी अधिकांश प्रांतों या क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित कर चुके थे जो उन्हें पुरंदर की संधि के अंतर्गत मुगलों को देने पड़े थे । अतः अब वह अपने आपको राजा घोषित कराने की तैयारी करने लगे थे । उधर मुगलों ने जब शिवाजी महाराज […] Read more »
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार रैदास युगपुरुष और युगस्रष्टा सिद्ध संत थे February 11, 2025 / February 13, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment संत रविदास जयन्ती- 12 फरवरी, 2025ललित गर्गमहामना संत रविदास कहो या रैदास-भारतीय संत परम्परा, भक्ति आन्दोलन और संत-साहित्य के जहां महान् हस्ताक्षर है, वहीं वे अलौकिक-सिद्ध संत, समाज सुधारक, साधक और कवि हैं। दुनियाभर के संत-महात्माओं में उनका विशिष्ट स्थान है। सद्गुरु रामानंद के पारस स्पर्श ने चर्मकार रैदास को भारत वर्ष का महान चमत्कारी […] Read more » Raidas was a proven saint of the era and the creator of the era. संत रविदास जयन्ती- 12 फरवरी