लेख हिंदी दिवस राष्ट्र की पहचान से विश्व की साझी भाषा तक हिन्दी की शक्ति September 13, 2025 / September 17, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलहर वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाने वाला हिन्दी दिवस उस गौरव की स्मृति के रूप में मनाया जाता है, जब हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा घोषित किया गया था। यह दिवस हिन्दी की समृद्धि, स्वीकार्यता, रचनात्मकता और वैश्विक विस्तार का उत्सव है। निरंतर बढ़ती हिन्दी […] Read more » हिन्दी दिवस
लेख हिंदी दिवस हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता के बावजूद देश में उपेक्षा क्यों? September 12, 2025 / September 12, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment हिंदी दिवस- 14 सितम्बर, 2025 हिंदी दिवस केवल एक औपचारिक आयोजनात्मक अवसर नहीं, बल्कि हमारी भाषाई अस्मिता राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक आत्मगौरव का प्रयोजनात्मक प्रतीक है। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा के रूप में हिंदी विश्व की उन चुनिंदा भाषाओं में से एक है जिसे करोड़ों लोग अपनी मातृभाषा, संपर्क भाषा और सांस्कृतिक […] Read more » Why is Hindi neglected in the country despite its global acceptance? हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता
लेख हिंदी दिवस ‘हेय’ की नहीं ‘हित’ की भाषा है हिन्दी September 11, 2025 / September 11, 2025 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भारत विचारों से सम्पन्न, सांस्कृतिक रूप से सबल और साहित्यिक दृष्टिसम्पन्नता वाला वैभवमय, लोक अक्षुण्ण, भाषाई सशक्त, परम्पराओं वाला राष्ट्र है। इसकी चेतना दिगदिगंत तक प्रवाहित होती है, इसके सांस्कृतिक ताने-बाने और धार्मिक दृढ़ता की चर्चा न केवल विश्वभर में है बल्कि विश्व इस बात पर भारत का लोहा […] Read more »
लेख हिंदी दिवस हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा! September 9, 2025 / September 9, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (14 सितंबर हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष लेख) वेदव्यास इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा और हिंदी भाषी राज्यों में परम्परा के अनुसार सरकारी खर्च पर सरकारी संस्थानों में खूब तालियां और थालियां बजेगी और बधाइयां भी बंटेगी। मुझे इस बात की खुशी भी है कि साल में एक दिन […] Read more »
लेख हिंदी दिवस हिन्दी की गिनतियों को सरल बनाने, सुधार आवश्यक ! April 10, 2025 / April 10, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव वरिष्ठ पत्रकार संसार की प्रचलित भाषाओं का वर्गीकरण करें तो देवभाषा संस्कृत सभी की जननी है जिसके वंशानुगत अन्य सभी भाषाएँ सहित देवनागरी लिपि हिन्दी भी है। मनुष्यों के कुल गौत्र की भांति अगर भाषाओं को विभक्त करे तो हिन्दी, अँग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के कुल, उपकुल, शाखाओं, उपशाखाओं तथा समुदायों में विभक्त कर समस्त […] Read more »
लेख हिंदी दिवस वैश्विक भाषा बन रही हिंदी January 10, 2025 / January 10, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल वर्तमान संदर्भों में कहें तो आज हम ऐसे देश में रह रहे हैं जिसमें हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान पर सबसे ज्यादा जोर है। हिंदू संस्कृति और सनातनी सभ्यता पिछले कुछ समय से रोज ही हवा में तैरती दिखाई दे जाती हैं । हालांकि सच यह भी है कि संवैधानिक रूप से आज भी […] Read more »
लेख हिंदी दिवस लोकमंगल की कामना की भाषा है हिन्दी January 7, 2025 / January 7, 2025 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment 10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाषाएँ परस्पर संवाद और संचार की माध्यम होती हैं, जिनकी व्यापकता इस बात से सिद्ध होती है कि उनमें कितना सृजन लोकमंगल को समर्पित है। वैश्विक रूप से हिन्दी वर्तमान ही नहीं अपितु कालातीत रूप से सुदृढ़, सुस्थापित और सुनियोजित संपदा का बाहुल्य है। वर्षों से हिन्दी को हीनता बोधक दिखाने […] Read more » 10 January World Hindi Day Special world hndi day 10 jan विश्व हिन्दी दिवस
लेख हिंदी दिवस हिन्दी है भारत के मस्तक का तिलक September 12, 2024 / September 12, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment हिंदी दिवस, 14 सितबंर, 2024पर विशेष– ललित गर्ग- सम्पूर्ण भारत में 1953 से 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई और आज इस दिवस की अधिक प्रासंगिकता क्यों उभर रही है? क्योंकि हमारे देश में दिन-प्रतिदिन हिंदी की उपेक्षा होती जा रही है। […] Read more » हिंदी दिवस
लेख हिंदी दिवस मातृभाषा हमें सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से जोड़ती है September 11, 2024 / September 11, 2024 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment — डॉ सत्यवान सौरभ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों में “बड़े पैमाने पर परिवर्तनकारी सुधार” लाने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दी। देश के लिए नई शिक्षा नीति लगभग 34 वर्षों के बाद आई है। यह मौजूदा शिक्षा प्रणाली के लिए कुछ नया लेकर आई है। […] Read more » मातृभाषा
लेख हिंदी दिवस केवल हिन्दी ही होनी चाहिए भारत की राष्ट्रभाषा August 28, 2024 / August 28, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाषाओं की मर्यादाएँ, सीमाएँ न केवल संवाद की मध्यस्थता तक हैं बल्कि राष्ट्र के समृद्ध सांस्कृतिक वैभव का परिचय भी भाषाओं के उन्नयन से ही होता है। जिस तरह समग्र विश्व में आज भारत की पहचान में तिरंगा, राष्ट्रगान वन्दे मातरम और राष्ट्रगीत जन-गण-मन है, उसी तरह भारत का भाषाई परिचय हिन्दी से […] Read more » 14 सितम्बर हिन्दी दिवस
लेख हिंदी दिवस अमृतकाल का सुनहरा पक्ष है मातृभाषा September 20, 2023 / September 20, 2023 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment हमारी भाषा हमारे अपने व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। भाषा वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम है, भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है. भाषा हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान की महत्वपूर्ण साधन है। हम कह सकते हैं कि बिना भाषा के मानव जीवन अपूर्ण है। भाषा का विस्तार एवं विकास मनुष्य का […] Read more »
लेख हिंदी दिवस हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है September 14, 2023 / September 14, 2023 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (14 सितंबर 2023 हिंदी दिवस पर विशेष आलेख) हिन्दी हमेशा से हिन्दुस्तान की पहचान रही है। कहा जाये तो हिन्दुस्तान एक देश है और इसकी सांस है हिन्दी, बिना सांस (हिंदी) के हिन्दुस्तान में निवास करना और यहां की संस्कृति को बनाये रखना मुश्किल है। इसलिये हिन्दुस्तान देश में हिन्दी की अपनी महत्वता है, जिसे हिन्दुस्तान देश से कभी नहीं मिटाया जा सकता। हिंदी हमेशा से ज्ञान और भाव की भाषा रही है, तभी दुनिया में बुध्दिमत्ता के मामले में हिन्दुस्तानियों का डंका पिटता रहा है। हिंदी सदा दुनियां में पे्रम के भाव से बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी शब्द है हमारी आवाज का हमारे बोलने का जो कि हिन्दुस्तान में बोली जाती है। आज देश में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं, उन सबकी जननी हिंदी है। और हिंदी को जन्म देने वाली भाषा का नाम संस्कृत है। जो कि आज देश में सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से हिंदी माध्यम के स्कूलों में एक विषय के रूप में पढाई जाती है। आज देश के लिए इससे बडी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस भाषा को हम अपनी राष्ट्रीय भाषा कहते हैं, आज उसका हाल भी संस्कृत की तरह हो गया है। जिस तरफ देखो उस तरफ अंग्रेजी से हिंदी और समस्त भारतीय भाषाओं को दबाया जा रहा है। चाहे आज देश में इंटरमीडिएट के बाद जितने भी व्यावसायिक पाठयक्रम हैं, सब अंग्रेजी में पढाये जाते हैं। अगर देश की शिक्षा ही देश की राष्ट्रीय भाषा में नहीं है तो हिंदी जिसे हम अपनी राष्ट्रीय भाषा मानते है। जिसे हम एक दूसरे का दुख दर्द बांटने की कडी मानते है। उसका प्रसार कैसे हो पायेगा। कहा जाये तो हिन्दी बिना हिन्दुस्तान अधूरा है। देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखनें में हिन्दी का अहम योगदान है। आज हिन्दी सिनेमा विश्व में एक अहम स्थान रखता है। बाॅलीवुड की पहचान भी हिन्दी से ही है। हिन्दी की वजह से ही बाॅलीवुड में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। हिन्दी भाषा सिर्फ वार्तालाप और संचार का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह देश में रोजगार के सृजन का भी माध्यम है। आज हिन्दी सिनेमा से लेकर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, और सोशल मीडिया पर हिन्दी का बोलबाला है, जो कि देश में लाखों रोजगार पैदा करते हैं। आज इंटरनेट पर भीप करोड़ों लोग हिंदी का अनुसरण करते हैं, इसलिए आज हिन्दुस्तान में सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, गूगल प्लस) भी अपना रूपांतरण हिंदी में कर चुका है और करोड़ों लोग फेसबुक तय ट्विटर में अपने विचार हिंदी में साझा करते हैं। आज विदेशी वेबसाइटें भी अपना हिंदी संस्करण हिन्दुस्तान में प्रारंभ कर रहीं है क्योंकि उनको पता है कि हिन्दुस्तान में अगर उनको टिकना है तो हिंदी को बढ़ावा देना ही होगा। महात्मा गांधी हिन्दी भाषी नहीं थे लेकिन वे जानते थे कि हिन्दी ही देश की संपर्क भाषा बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। उन्हीं की प्रेरणा से राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का गठन किया था। देशभर में हिन्दी पढ़ना गौरव की बात मानी जाती थी। महात्मा गांधी जी ने 1916 में क्रिश्चियन एसोसिएशन आफ मद्रास की एक सभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि धर्मान्तरण राष्ट्रान्तरण है। उन्होंने हरिजन में लिखा था ‘‘यदि मैं तानाशाह होता तो अंग्रेजी की पुस्तकों को समुद्र में फेंक देता और अंग्रेजी के अध्यापकों को बर्खास्त कर देता।’’ सच तो यह है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी के मोहपाश में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में अंग्रेज़ी में निजी पारिवारिक पत्र व्यवहार बढ़ता जा रहा है काफ़ी कुछ सरकारी व लगभग पूरा ग़ैर सरकारी काम अंग्रेज़ी में ही होता है, दुकानों वगैरह के बोर्ड अंग्रेज़ी में होते हैं, होटलों रेस्टारेंटों इत्यादि के मेनू अंग्रेज़ी में ही होते हैं। ज़्यादातर नियम कानून या अन्य काम की बातें, किताबें इत्यादि अंग्रेज़ी में ही होते हैं, उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेज़ी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। अंग्रेज़ी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिंदी (या कोई और भारतीय भाषा) के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवाय कुछ नहीं होता है। माना कि आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, क्योकि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। कई सारे देश अपनी युवा पीढ़ी को अंग्रेज़ी सिखा रहे हैं जिसमे एक भारत देश भी है पर इसका अर्थ ये नहीं है कि उन देशों में वहाँ की भाषाओं को ताक पर रख दिया गया है और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ले आया है। सिवाय सूचना प्रौद्योगिकी के हम किसी और क्षेत्र में आगे नहीं हैं और सूचना प्रौद्योगिकी की इस अंधी दौड़ की वजह से बाकी के प्रौद्योगिक क्षेत्रों का क्या हाल हो रहा है वो किसी से छुपा नहीं है। सारे विद्यार्थी प्रोग्रामर ही बनना चाहते हैं, किसी और क्षेत्र में कोई जाना ही नहीं चाहता है। क्या इसी को चहुँमुखी विकास कहते हैं? दुनिया के लगभग सारे मुख्य विकसित व विकासशील देशों में वहाँ का काम उनकी भाषाओं में ही होता है। यहाँ तक कि कई सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अंग्रेज़ी के अलावा और भाषाओं के ज्ञान को महत्व देती हैं। केवल हमारे यहाँ ही हमारी भाषाओं में काम करने को छोटा समझा जाता है। हिंदी भारत का मान है, कहा जाये तो हिन्दी के बिना हिन्दुस्तान की कल्पना करना निरर्थक है। आज हमारे देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं। बचपन में हम सुना करते थे कि सोवियत रूस में नियुक्त राजदूत विजय लक्ष्मी पंडित जो कि प्रधानमंत्री नेहरू की सगी बहन थीं, ने रूस के राजा स्टालिन को अपना पहचानपत्र अंग्रेजी में भेजा। उन्होंने स्वीकार करने से इंकार कर दिया और पूछा कि क्या भारत की अपनी कोई भाषा है या नहीं। उन्होंने फिर हिन्दी में परिचय पत्र भेजा तब उन्होंने मिलना स्वीकार किया। अंग्रेजी व्यापार की भाषा है जरूर लेकिन वह ज्ञान की भाषा नहीं। सबसे अधिक ज्ञान-विज्ञान तो संस्कृत में है जिसे भाषा का दर्जा दिया जाना महज औपचारिकता भर रह गया है। आज जरूरत है हमारी सरकार को हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए। जैसे कि चीन अपनी भाषा को प्रोत्साहन दे रहा है। वैसे ही भारत देश को अपनी भाषा को प्रोत्साहन देना होगा। और जितने भी देश में सरकारी कामकाज होते है वो सब हिंदी में होने चाहिए। और हिंदी में उच्च स्तरीय शिक्षा के पाठयक्रम को क्रियान्वित करने की जरूरत है। सभी जानते हैं कि अंग्रेजी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। मैं अपने विचार से कहना चाहूँगा की अग्रेजी सभी को सीखना चाहिए लेकिन उसे अपने ऊपर हमें कभी हावी नहीं होने देना है, अगर अंग्रेजी हमारी ऊपर हावी हो गयी तो हम अपनी भाषा और संस्कृति सब को नष्ट कर देंगे। इसलिए आज से ही सभी को हिंदी के लिए कोशिश जारी कर देनी चाहिए। अगर हमने शुरुआत नहीं की तो हमारी राजभाषा एक दिन संस्कृत की तरह प्रतीकात्मक हो जायेगी। जिसके जिम्मेदार और कोई नहीं हम लोग होंगे। अंग्रेजी भाषा की मानसिकता आज हम पर, खासकर हमारी युवा पीढ़ी पर इतनी हावी हो चुकी है कि हमारी अपनी भाषाओं की अस्मिता और भविष्य संकट में है। इसके लिए हमें प्रयास करने होंगे। और इसके लिए जरूरत है कि हमें अंग्रेजी को अपने दिलो-दिमाग पर राज करने से रोकना होगा, तभी हिंदी आगे बढ़ेगी और राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की यह घोषणा साकार होगी – “है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।” Read more » हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है