Category: चिंतन

चिंतन धर्म-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द जीवन के प्रमुख महान कार्य

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ऋषि दयानन्द का पहला प्रमुख कार्य तो उनका गुरु विरजानन्द जी से आर्ष शिक्षा को प्राप्त करना था जिससे वह वेदों के यथार्थ स्वरूप सहित वेद मन्त्रों के यथार्थ अर्थ जान सके। यदि यह न हुआ होता तो फिर ऋषि दयानन्द, दयानन्द व स्वामी दयानन्द ही रहते जैसे कि आज अनेकानेक साधु संन्यासी व विद्वान हैं। कोई उनको जानता भी न। गुरु विरजानन्द जी की शिक्षा ने उन्हें संसार के सभी विद्वानों से अलग किया जिसका कारण उनकी प्रत्येक मान्यता का आधार वेद सहित सत्य व तर्क पर आधारित होने के साथ उनका सृष्टि क्रम के अनुकूल होना भी है।

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सभी मनुष्यों के करणीय पाचं सार्वभौमिक कर्तव्य

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मनुष्य का जन्म माता-पिता व सृष्टिकर्ता ईश्वर के द्वारा होता है। ईश्वर द्वारा ही सृष्टि की रचना सहित माता-पिता व सन्तान का जन्म दिये जाने से ईश्वर प्रथम स्थान पर व माता-पिता उसके बाद आते हैं। आचार्य बालक व मनुष्य को संस्कारित कर विद्या व ज्ञान से आलोकित करते हैं। अतः अपने आचार्यों के प्रति भी मनुष्यों का कर्तव्य है कि वह अपने सभी आचार्यों के प्रति श्रद्धा का भाव रखंे और उनकी अधिक से अधिक सेवा व सहायता करें।

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ऋषि दयानन्द के जीवन के अन्तिम प्रेरक शिक्षाप्रद क्षण

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स्वामी दयानन्द जी का जीवन आदर्श मनुष्य, महापुरुष व महात्मा का जीवन था। उन्होने अपने पुरुषार्थ से ऋषित्व प्राप्त किया और अपने अनुयायियों के ऋषित्व प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। एक ऋषि का जीवन कैसा होता है और ऋषि की मृत्यु किस प्रकार होती है, ऋषि दयानन्द का जीवनचरित उसका प्रमाणिक दस्तावेज हैं जिसका अध्ययन व मनन कर सभी अपने जीवन व मृत्यु का तदनुकूल वरण व अनुकरण कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि पूर्व अध्ययन किये हुए ऋषि भक्तों को इसे पढ़कर मृत्यु वरण के संस्कार प्राप्त होंगे। इसी के साथ यह चर्चा समाप्त करते हैं। ओ३म् शम्।

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