धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द के मुम्बई में वर्ष १८८२ में दिए गए कुछ ऐतिहासिक व्याख्यान January 17, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने मुम्बई में जनवरी से जून, 1882 के अपने प्रवास में वहां की जनता को उपदेश दिये थे जो आर्यसमाज, काकड़वाड़ी, मुम्बई के मन्त्री द्वारा नोट कर उन्हें आर्यसमाज के कार्यवाही रजिस्टर में गुजराती भाषा में लिख कर सुरक्षित किया गया था। आज के लेख में महर्षि दयानन्द के उन 24 उपलब्ध […] Read more » महर्षि दयानन्द महर्षि दयानन्द के मुम्बई में वर्ष १८८२ में दिए गए कुछ ऐतिहासिक व्याख्यान
धर्म-अध्यात्म जीवात्मा का पूर्वजन्म, मुत्यु, पुनर्जन्म व परजन्म January 17, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment आज का विज्ञान ईश्वर व जीवात्मा के अस्तित्व व स्वरुप से पूर्णतया व अधिकांशतः अपरिचित है। विज्ञान केवल भौतिक पदार्थों का अध्ययन ही करता है व उनके विषय में यथार्थ जानकारी उपलब्ध कराता है। विज्ञान का भौतिक पदार्थों का अध्ययन व उसके आधार पर उपलब्ध कराया गया ज्ञान व सुविधायें सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। इसका […] Read more » death of a soul reincarnation of a soul जीवात्मा का पूर्वजन्म परजन्म पुनर्जन्म मुत्यु
धर्म-अध्यात्म वैदिक समाज व्यवस्था का सार है मनुस्मृति January 17, 2016 by अशोक “प्रवृद्ध” | 1 Comment on वैदिक समाज व्यवस्था का सार है मनुस्मृति अशोक “प्रवृद्ध” पुरातन ग्रंथों के अनुसार स्वयंभू मनु संसार के पहले मनुष्य हैं और सम्पूर्ण पृथ्वी पर बसने वाले मनुष्य उसी एक पिता की सन्तान हैं। उस पिता को मनु कहा जाता है। मनुष्य शब्द में मनु का नाम समाहित है। अर्थात मनु के नाम से ही मनुष्य शब्द बना है । संस्कृत में मनुस्मृति […] Read more » manusmriti is the soul ofvaidik societal arrangements वैदिक समाज व्यवस्था का सार है मनुस्मृति
धर्म-अध्यात्म ब्रह्मचर्य का स्वरुप व उसके पालन से लाभ January 13, 2016 by मनमोहन आर्य | 3 Comments on ब्रह्मचर्य का स्वरुप व उसके पालन से लाभ सभी मनुष्य सुख की ही कामना करते हैं, दुःख की कामना कोई मनुष्य नहीं करता। सुख प्राप्त हों और जीवन में दुःख न आयें, इसके लिए प्रयत्न करना होता है। सुख व दुःख का आधार शरीर है। यदि हमारा शरीर दुर्बल व रोगी है तो यह दुःख का धाम बन जाता है और यदि यह […] Read more » ब्रह्मचर्य का स्वरुप
धर्म-अध्यात्म श्री राम की तरह भरत जी का जीवन भी पूजनीय एवं अनुकरणीय January 13, 2016 / January 17, 2016 by मनमोहन आर्य | 4 Comments on श्री राम की तरह भरत जी का जीवन भी पूजनीय एवं अनुकरणीय संसार के इतिहास में सबसे प्राचीन इतिहासिक ग्रन्थ महर्षि वाल्मीकि रामयण है। इस ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम सहित भरत जी के पावन जीवन का भी चरित्र चित्रण है। राम के अनुज भरत जी ने भी भ्रातृत्व वा भ्रातृ-प्रेम की ऐसी मर्यादायें स्थापित की हैं कि उसके बाद संसार के इतिहास में अन्य कोई […] Read more » भरत जी श्री राम श्री राम की तरह भरत जी का जीवन भी पूजनीय एवं अनुकरणीय
धर्म-अध्यात्म संन्यास आश्रम की महत्ता पर संन्यासी स्वामी दयानन्द का उपदेश January 11, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment महर्षि दयानन्द के प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ संस्कारविधि है। इस ग्रन्थ में उन्होंने वेदों पर आधारित 16 संस्कारों का व्याख्यान किया है। इस व्याख्यान में सभी संस्कारों के स्वरूप का वर्णन करने के साथ उनकी विधि वा पद्धति भी दी गई है। संस्कारविधि से ही हम उनके संन्यास आश्रम पर उपदेश को पाठकों […] Read more » संन्यास आश्रम संन्यास आश्रम की महत्ता संन्यास आश्रम की महत्ता पर संन्यासी संन्यासी स्वामी दयानन्द का उपदेश स्वामी दयानन्द का उपदेश
धर्म-अध्यात्म एक ईश्वर, एक संसार और एक ही मनुष्य जाति विषय पर कुछ विचार January 11, 2016 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on एक ईश्वर, एक संसार और एक ही मनुष्य जाति विषय पर कुछ विचार यह संसार पृथिवी, अग्नि, जल, वायु और आकाश का जीवों के सुख-दुःख के उपयोग की दृष्टि से समुपयुक्त मिश्रित रूप है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार संसार को बने हुए 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 115 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस अवधि में हमने संसार को बांट-बांट कर इस पर दो सौ […] Read more » एक ईश्वर एक संसार एक ही मनुष्य जाति
धर्म-अध्यात्म ईश्वराधीन कर्म-फल व तद् आश्रित सुख-दुःख व्यवस्था पर विचार January 8, 2016 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on ईश्वराधीन कर्म-फल व तद् आश्रित सुख-दुःख व्यवस्था पर विचार संसार में मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जड़-चेतन जगत क्रियाशील हैं। सृष्टि पंचभौतिक पदार्थों से बनी है जिसकी ईकाई सूक्ष्म परमाणु है। यह परमाणु सत्व, रज व तम गुणों का संघात है। इन्हीं परमाणुओं से अणु और अणुओं से मिलकर त्रिगुणात्मक प्रकृति व सृष्टि का अस्तित्व विद्यमान है। परमाणु में इलेक्ट्रान कण भी […] Read more » ईश्वराधीन कर्म-फल सुख-दुःख व्यवस्था पर विचार
धर्म-अध्यात्म नित्य, अजर अर्थात अमर है जीवात्मा January 5, 2016 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment अशोक “प्रवृद्ध” वेद, उपनिषद, दर्शनादि ग्रन्थों के अनुसार शरीरी अर्थात जीवात्मा शरीर से पृथक है । सुन्दर वृद्ध होने वाले शरीर में इसका भोग करने वाला बैठा है । जीवात्मा देह बदलता रहता है । सुख- दुःख शरीर को प्राप्त होते हैं, परन्तु जो सदा से है, शरीर के साथ नष्ट नहीं होता, वह […] Read more » Featured अजर अमर है जीवात्मा नित्य
धर्म-अध्यात्म वेदों और आर्यसमाज का प्रचार और प्रभाव January 2, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment स्वाध्याय करते समय आज मन में विचार आया कि महर्षि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द जी की आज्ञा से अज्ञान व अन्धविश्वासों का खण्डन-मण्डन और वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों का प्रचार किया था। क्या कारण है कि इसका वह प्रभाव नहीं हुआ जो वह चाहते थे व होना चाहिये था? क्या महर्षि दयानन्द की वेदों पर […] Read more » Featured वेदों और आर्यसमाज का प्रचार और प्रभाव
धर्म-अध्यात्म सुख और दुःख जीवन में साथ चलते हैं December 29, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment दुनिया का हर इंसान सुख चाहता है। दुःख कोई नहीं चाहता। वह दुःख से डरता हैं इसलिए दुःख से छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के प्रयत्न करता है। मतलब दुःख को खत्म करने और सुख को सृजित करने के लिए हर इंसान अपनी क्षमता के मुताबिक हमेशा कुछ-न-कुछ करता है। सुख और दुःख धूप- छाया […] Read more » सुख और दुःख जीवन में साथ चलते हैं
धर्म-अध्यात्म सत्य के ग्रहण व असत्य के त्याग की भावना December 28, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment सत्य के ग्रहण व असत्य के त्याग की भावना से सर्व मत-पन्थों का समन्वय ही मनुष्यों के सुखी जीवन एवं विश्व-शान्ति का आधार मनुष्य के व्यवहार पर ध्यान दिया जाये तो यह सत्य व असत्य का मिश्रण हुआ करता है। जो मनुष्य सत्य व असत्य को जानता भी नहीं, वह भी सत्य व असत्य […] Read more » सत्य के ग्रहण व असत्य के त्याग की भावना