कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख मंत्र है, साक्षात शिवशक्ति September 8, 2023 / September 8, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment हमारा देश अनादिकाल से ज्ञान-विज्ञान की गवेषणा, अनुशीलन एवं अनुसंधान का प्रमुख केन्द्र रहा है जिसमें विद्या की विभिन्न शाखाओं में हमारे ऋषिमुनियों-ज्ञानियों ने धर्म दर्शन, व्याकरण, साहित्य, न्याय, गणित ज्योतिष सहित अनेक साधनाओं का प्रस्फुटन किया है जिनमें मंत्र, तंत्र और यंत्र का भी विशिष्ट स्थान है। शास्त्रोक्तानुसार समस्त जगत की सृष्टि ’’अक्षर’’ अर्थात […] Read more » मंत्र है साक्षात शिवशक्ति
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख 108 दानों की जप माला का महत्व September 5, 2023 / September 5, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment माला जप का विधान एवं महत्वः- माला मंत्र जप करने के शास्त्रोक्त नियम बताये गये है जिसमें अनामिका के मध्य भाग से नीचे की ओर गिनने, फिर कनिष्ठा के मूल से अग्रभाग तक गिनने का विधान है। इसके पश्चात अनामिका और मध्यमा के अग्रभाग होकर तर्जनी के मूल तक गिनती की जाती है जो अनामिका […] Read more » Importance of chanting rosary of 108 beads
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार श्रीकृष्ण सच्चे अर्थों में सृष्टि के कुशल महाप्रबन्धक हैं September 4, 2023 / September 4, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव-जन्माष्टमी- 6 सितम्बर 2023 पर विशेष-ललित गर्ग – भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण राष्ट्रनायक हैं। श्रीकृष्ण का चरित्र एक प्रभावी एवं सफल मैंनेजमेंट गुरु वाले लोकनायक का चरित्र है। वह द्वारिका के शासक भी है किंतु कभी उन्हंे राजा श्रीकृष्ण के रूप में संबोधित नहीं किया जाता। वह तो […] Read more » krishna janmashtami श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव-जन्माष्टमी- 6 सितम्बर
धर्म-अध्यात्म प्रसाद वितरण का महत्व और भावतत्व का विवेचन August 21, 2023 / August 21, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीवममतामयी माॅ वसुन्धरा जगत के सभी मनुष्यों, जल-थल के जीव-जन्तुओं, प्राणियों-वनस्पतियों सहित सभी के जीवन निर्वहन हेतु सबकी प्रकृति का भोज्य पदार्थ प्रदान कर जगत का पोषण करती आ रही है। माॅ वसुन्धरा की परम असीम अनुकम्पा के प्रति हमारा आग्रह निवेदित हो जाये और हम उस भोज्य पदार्थ को अनुग्रहभाव से ग्रहण […] Read more » Importance of Prasad distribution and interpretation of Bhavatattva
धर्म-अध्यात्म लेख शख्सियत समाज संत लोंगोवाल ने शांति की अलख जगायी August 19, 2023 / August 19, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment संत लोंगोवाल स्मृति दिवस – 20 अगस्त 2023 पर विशेष-ललित गर्ग-पंजाब की माटी को प्रणम्य बनाने में अकाली आन्दोलन के प्रमुख एवं चर्चित सिख संत महापुरुष हरचंद सिंह लोंगोवाल का योगदान अविस्मरणीय है, उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, हिंसा एवं आतंकवाद से लथपथ पंजाब की धरती में शांति स्थापना एवं […] Read more » संत लोंगोवाल
धर्म-अध्यात्म लेख शख्सियत समाज अरविन्द क्रांतिकारी से योगी एवं दार्शनिक बने August 14, 2023 / August 14, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment महर्षि अरविन्द जन्म जयन्ती- 15 अगस्त 2023 पर विशेष– ललित गर्ग –भारत वह देश है, जहां वेद का आदिघोष हुआ, युद्ध के मैदान में भी गीता गाई गयी, वहीं कपिल, कणाद, गौतम आदि ऋषि-मुनियों ने अवतरित होकर मानव जाति को अंधकार से प्रकाश पथ पर अग्रसर किया। यह देश योग दर्शन के महान आचार्य पतंजलि का […] Read more »
धर्म-अध्यात्म यज्ञ करने वाला व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होताः आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री July 17, 2023 / July 17, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य आज रविवार दिनांक 16-7-2023 को आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के सत्संग में यज्ञ, भजन, सामूहिक प्रार्थना एवं वैदिक विद्वान आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री, सहारनपुर का व्याख्यान हुआ। सत्संग प्रातः 8.00 बजे से आरम्भ होकर दो घंटे बाद 10.00 बजे समाप्त हुआ। अपने व्याख्यान में आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि संसार में चारों […] Read more » The person who performs Yagya never becomes poor: Acharya Virendra Shastri
धर्म-अध्यात्म आर्यसमाज के भजनोपदेशक देश भर में जाकर ऋषि दयानन्दका सन्देश पहुंचाते हैं: स्वामी आर्यवेश July 10, 2023 / July 10, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्यश्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा-देहरादून में आज शुक्रवार, दिनाक 7-7-2023 को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का 76वां जन्म दिवस श्रद्धा के वातारण में स्वामी जी उपस्थिति, गुरुकुल के समस्त ब्रह्मचारियों, भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद, दिल्ली के पदाधिकारियों एवं सदस्यों सहित स्थानीय अतिथियों की उपस्थिति में आयुष्काम-यज्ञ, भजन, व्याख्यान एवं प्रीति-भोज आदि के […] Read more »
चिंतन धर्म-अध्यात्म ब्रह्मचर्यादि चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम ही ज्येष्ठ है July 4, 2023 / July 4, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य वैदिक धर्म वह धर्म है जिसका आविर्भाव ईश्वर प्रदत्त ज्ञान ‘वेद’ के पालन व आचरण से हुआ है। वैदिक धर्म के अनुसार मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त शिक्षाओं को ही मानना व आचरण करना होता है। ऐसे ग्रन्थ वेद हैं जिसमें परमात्मा के सृष्टि की आदि में दिए गये सभी वचन व […] Read more »
चिंतन धर्म-अध्यात्म दीपक की तरह ऋषि दयानन्द ने वेदज्ञान का प्रकाश विश्व में फैलायाः स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती July 3, 2023 / July 3, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में आज दिनांक 2-7-2023 को प्रातः 8.00 बजे से समाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री के पौरोहित्य में यज्ञशाला में यज्ञ हुआ। यज्ञ के बाद शास्त्री जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘विषयों में फंस कर बन्दे हुआ तू बेखबर है, मानव का चोला पाया न […] Read more » Rishi Dayanand spread the light of knowledge of Vedas in the world: Swami Yogeshwaranand Saraswati
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म सनातन भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का है विशेष महत्व July 3, 2023 / July 3, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment 3 जुलाई 2023 – गुरु पूर्णिमा पर विशेष आलेख भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाले व्यक्तियों के लिए उनके जीवन में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। परम पूज्य गुरुदेव जीवन में आने वाले विभिन्न संकटों से न केवल उबारते हैं बल्कि इस जीवन को जीने की कला भी सिखाते हैं ताकि इस जीवन को सहज रूप से जिया जा सके। गुरु ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की क्षमता रखते हैं। भारत के मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों में इसलिए प्रत्येक वर्ष व्यास पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन का विशेष पर्व मनाया जाता है एवं इस शुभ दिन पर गुरुओं की पूजा अर्चना की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद सदैव उनके भक्तों पर बना रहे। कई मंदिरों में गुरु पूजन एवं ध्वजा वंदन के समय कई गीत भी गाए जाते है, जैसे “हम गीत सनातन गाएंगे, हम भगवा ध्वज लहराएंगे।” यदि भारत के गौरवशाली इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं तो ध्यान में आता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अंतर्गत कई महानुभावों को गुरु के आशीर्वाद एवं सानिध्य से ही देवत्व की प्राप्ति हुई है। दूसरे शब्दों में, देवत्व प्राप्त करने के लिए इन महानुभावों को गुरु के श्रीचरणों में जाना पड़ा है। इस प्रकार के कई उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जैसे, भीष्म को “भीष्म” बनाने में ऋषि परशुराम की अहम भूमिका रही थी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को गढ़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। समर्थ स्वामी रामदास ने शिवाजी महाराज को राष्ट्रवादी राजा बनाया था। स्वामी विवेकानंद ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी एवं उनके सानिध्य में ही अपना जीवन प्रारम्भ किया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शताब्दियों पूर्व, आषाड़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का इस धरा पर अवतरण हुआ था।महर्षि वेद व्यास ने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर इनका चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद) के रूप में वर्गीकरण किया था। साथ ही, 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, बृह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनबद्ध करने का श्रेय भी महर्षि वेद व्यास को ही दिया जाता है। महान भारतीय परम्परा के अनुसार शिष्य, अपने गुरु का पूजन करते हैं। अतः गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने भी सोचा कि महर्षि वेद व्यास का पूजन किस शुभ दिन पर किया जाय। बहुत गहरे विचार विमर्श के पश्चात समस्त शिष्य सहमत हुए कि क्यों न गुरु वेद व्यास के इस धरा पर अवतरण दिवस पर ही पूज्य गुरुदेव का पूजन किया जाय। इस प्रकार, गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने इसी पुण्यमयी दिवस को अपने गुरु के पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को योग की दीक्षा देना भी इसी दिन से प्रारम्भ किया था। प्राचीन काल में भारत के गुरुकुलों में गुरु पूर्णिमा को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता था। गुरु पूर्णिमा के दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि महोत्सव होता था। गुरूकुल से सम्बंधित दो सबसे मुख्य कार्य गुरु पूर्णिमा के दिन ही सम्पन्न किए जाते थे। एक तो गुरु पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर ही नए छात्रों को गुरूकुल में प्रवेश प्रदान किया जाता था। यानी गुरु पूर्णिमा दिवस गुरूकुल में छात्र प्रवेश दिवस के रूप में मनाया जाता था। सभी जिज्ञासु छात्र इस दिन हाथों में समिधा लेकर पूज्य गुरुदेव के समक्ष आते थे। प्रार्थना करते थे कि हे गुरुवर, हमारे भीतर ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करें। हम उसके लिए स्वयं को समिधा रूप में अर्पित करते हैं। दूसरे, गुरु पूर्णिमा की मंगल बेला में ही छात्रों को स्नातक उपाधियां प्रदान की जाती थीं। यानी गुरु पूर्णिमा के दिन ही गुरुकुलों में दीक्षांत समारोह के आयोजन किए जाते थे। जो छात्र गुरु की सभी शिक्षाओं को आत्मसात कर लेते थे और जिनकी कुशलता व क्षमता पर गुरु को संदेह नहीं रहता था उन्हें इस दिन उपाधियां प्रदान की जाती थीं। वे गुरु चरणों में बैठकर प्रण लेते थे कि हे गुरुवर, आपके सान्निध्य में रहकर, आपकी कृपा से हमने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे लोक हित और कल्याण के लिए ही उपयोग करेंगे। अपने परम पूज्य गुरुदेव को दक्षिणा देकर छात्र अपने कार्य क्षेत्र में उतरते थे। इस प्रकार प्राचीन काल में गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुकुलों में गुरु का कुल बढ़ता भी था और विश्व में फैलता भी था। गुरु पूर्णिमा न केवल हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा एक पवित्र एवं अतिमहत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है बल्कि जैन एवं बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व का माना जाता है। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। भगवान महावीर 24वें व परम तीर्थंकर के रूप में अभिवादित हैं। जैन धर्म के इतिहास में यह वर्णन भी मिलता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन भगवान महावीर ने इंद्रभूति गौतम को अपने प्रथम शिष्य के रूप में स्वीकार किया था अर्थात भगवान महावीर ने गौतम को दीक्षित कर उसे अपना प्रथम शिष्य बनाने का गौरव प्रदान किया था। अतः इस दिन एक नया इतिहास लिखा गया। तभी से जैन सम्प्रदाय के अनुयायी गुरु पूर्णिम को इसी अहोभाव से मनाते हैं कि इस दिन उन्हें भगवान महावीर गुरु रूप में मिले थे। इसी प्रकार बौद्ध पंथ के इतिहास में भी यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि महाबुद्ध ने जब बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया तो उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि सबसे पहले धम्मोपदेश किस अनुयायी को दिया जाना चाहिए। तब उहें अपने उन पांच साथियों का ध्यान आया, जो निरंजना नदी के तट पर उनके साथ तपस्या और काय क्लेश के पथ पर अग्रसर हुए थे। परंतु जब महाबुद्ध ने यह मार्ग छोड़ दिया था, तब उन पांचों साथियों ने महाबुद्ध को छोड़ दिया था। परंतु चूंकि अब महाबुद्ध ने यह निर्णय कर लिया था कि धम्मोपदेश सबसे पहिले उन पांच साथियों को ही दिया जाय। अतः महाबुद्ध ने उन पांच साथियों को खोजना प्रारम्भ किया। जब यह पता चला कि वे पांच साथी सारनाथ के इसिपतन के मिगदाय में रहते हैं, तो माहबुद्ध सारनाथ की ओर चल पड़े। जिस दिन महाबुद्ध सारनाथ पहुंचे और उन पांच परिव्राजकों को धम्मोपदेश दिया, वह दिन आषाढ़ पूर्णिमा का था। बौद्ध सम्प्रदाय की मौलिक शिक्षाएं इसी दिन अस्तित्व में आई। इसीलिए बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिवस विशेष महत्व का दिन माना जाता है। अब तो ऐसा कहा जा रहा है कि वैज्ञानिक भी आषाड़ पूर्णिमा की महत्ता को अब समझ चुके हैं। “विस्डम आफ ईस्ट” पुस्तक के लेखक श्री आर्थर चार्ल्स सटोक अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जैसे भारत द्वारा खोज किए गए शून्य, छंद, व्याकरण आदि की महिमा अब पूरा विश्व गाता है, उसी प्रकार भारत द्वारा उजागर की गई सत्गुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व जानेगा। विश्व यह भी जानेगा कि अपने महान गुरु की पूजा के लिए उन्होंने आषाड़ पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना। श्री सटोक द्वारा आषाड़ पूर्णिमा को लेकर कई अधय्यन एवं शोध किए गए हैं। इन अध्ययनों एवं शोधों के आधार पर श्री सटोक कहते हैं कि “वर्ष भर में अनेकों पूर्णिमाएं आती हैं, जैसे शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिका, वैशाख पूर्णिमा, आदि। पर आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्व रखती है। इस दिन आकाश में अल्ट्रावायलेट रेडीएशन (पराबैंगनी विकिरण) फैल जाती है। इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है। उसकी भूख, नींद व मन का बिखराव कम हो जाता है।” अतः यह स्थिति साधक के लिए बेहद लाभदायक है। वह इसका लाभ उठाकर अधिक से अधिक ध्यान साधना कर सकता है। कहने का भाव यह है कि आत्म उत्थान व कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अति उत्तम माना गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति या ग्रंथ की जगह केवल भगवा ध्वज को अपना मार्गदर्शक और गुरु मानते हैं। जब परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रवर्तन किया, तब अनेक स्वयंसेवक चाहते थे कि संस्थापक के नाते वे ही इस संगठन के गुरु बने; क्योंकि उन सबके लिए डॉक्टर हेडगेवार का व्यक्तित्व अत्यंत आदरणीय और प्रेरणादायी था। इस आग्रहपूर्ण दबाव के बावजूद डॉक्टर हेडगेवार ने हिंदू संस्कृति, ज्ञान, त्याग और सन्यास के प्रतीक भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का निर्णय किया। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष व्यास पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन संघ स्थान पर एकत्र होकर सभी स्वयं सेवक भगवा ध्वज का विधिवत पूजन करते हैं। अपनी स्थापना के तीन साल बाद संघ ने वर्ष 1928 में पहली बार गुरु पूजा का आयोजन किया था। तब से यह परम्परा अबाध रूप से जारी है और भगवा ध्वज का स्थान संघ में सर्वोच्च बना हुआ है। भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने के पीछे संघ का दर्शन यह है कि किसी व्यक्ति को गुरु बनाने पर उसमें पहिले से कुछ कमजोरियां हो सकती हैं या कालांतर में उसके सदगुणों का क्षय भी हो सकता है, लेकिन ध्वज स्थायी रूप से श्रेष्ठ गुणों की प्रेरणा देता रह सकता है। Read more » गुरु पूर्णिमा
धर्म-अध्यात्म लेख महिमा अमरनाथ तीर्थ की July 1, 2023 / July 1, 2023 by डॉ० शिबन कृष्ण रैणा | Leave a Comment भारतवर्ष तीर्थों की पवित्र भूमि है। इस धरा पर शायद ही ऐसा कोई प्रांत होगा जहाँ कोई तीर्थस्थल न हों। ये तीर्थस्थल दीर्घकाल से भारतीय जनमानस की आस्था एवं विश्वास के प्रमुख केंद्र रहे हैं। कश्मीर प्रांत में स्थित ‘अमरनाथ’ नामक तीर्थस्थल का विशेष महत्व है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इस तीर्थ को ‘अमरेश्वर’ बताया […] Read more » अमरनाथ तीर्थ यात्रा