आर्थिकी राजनीति वर्ष 2023 में आर्थिक क्षेत्र में भारत की कुछ विशेष उपलब्धियां रही हैं January 2, 2024 / January 2, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 7 प्रतिशत के आसपास रहने की प्रबल सम्भावनाएं बन रही हैं। इस वर्ष की प्रथम तिमाही, अप्रेल-जून 2023, में आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत की रही है, वहीं द्वितीय तिमाही, जुलाई- सितम्बर 2023 में 7.6 प्रतिशत की रही है। इसी प्रकार, दीपावली त्यौहार पर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए के व्यापार के चलते एवं अक्टोबर 2023 माह में विनिर्माण के क्षेत्र में विकास दर के 12 प्रतिशत से ऊपर रहने से इस वर्ष की तृतीय तिमाही, अक्टोबर-दिसम्बर 2023, में भी आर्थिक विकास 7 प्रतिशत रह सकती है। इससे पूरे वित्तीय वर्ष 2023-24 में भी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत रहने की प्रबल सम्भावनाए बन रही हैं। जबकि, विश्व के कई अन्य विकसित देशों में मंदी की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार भारत वर्ष 2023 में भी लगातार विश्व की सबसे तेज गति से विकास करती अर्थव्यवस्था बना रहा। भारत के आर्थिक विकास में लगातार गति आने से भारत में विदेशी निवेश की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। इससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। 8 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 60,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर था, जो 15 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में बढ़कर 61,600 करोड़ अमेरकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया एवं 22 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। इस प्रकार, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी का सिलसिला लगातार जारी है। हालांकि, अक्टोबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 64,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया था, अब शीघ्र ही इस उच्चत्तम स्तर को पार कर जाने की भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान, भारतीय रुपए पर अत्यधिक दबाव आ गया था, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए को अवमूल्यन से बचाने एवं भारत रुपए के मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को भरपूर मात्रा में बाजार में बेचा था इससे भारत में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश को जरूरत पड़ने पर आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक को देश के आर्थिक विकास में गिरावट के चलते पैदा हुए किसी भी बाहरी एवं अंदरूनी वित्तीय अथवा आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिलती हैं। यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराता है। विश्व बैंक द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 2023 में अनिवासी भारतीयों ने रिकार्ड 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का प्रेषण भारत में किया है। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में भेजी गई यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश को भेजी गई राशि में सर्वाधिक है। यह आर्थिक क्षेत्र में भारत की आंतरिक मजबूती को दर्शाता है। विदेशी निवेशकों के साथ ही अनिवासी भारतीयों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर एवं खाड़ी के देशों में अनिवासी भारतीयों की भारी संख्या निवास करती है और केवल इन 4 देशों से ही 54 प्रतिशत प्रेषण भारत को प्राप्त हुआ है। वर्ष 2022 में अनिवासी भारतीयों द्वारा 11,110 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में प्रेषित की गई थी। भारत आज विश्वभर के निवेशकों के लिए एक आकर्षक केंद्र के रूप विकसित हो गया है। विशेष रूप से केंद्र सरकार एवं कुछ राज्यों द्वारा की जा रही पहल विदेशी पूंजी को भारत में आकर्षित करती नजर आ रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत आज इमर्जिंग अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्वीट स्पॉट के रूप में दिखाई दे रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और फार्मा जैसे 14 प्रमुख क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी उत्पादन प्रोत्साहन योजना ने विदेशी निवेशकों की भारत में रुचि बढ़ा दी है। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में श्रम, कराधान, और व्यापार परमिट जैसे क्षेत्रों में नियामक सुधारों से व्यापार करने में आसानी बढ़ी है। अच्छी तरह से विकसित बुनियादी ढांचा और कुशल श्रम की उपलब्धता देश को निवेश के अन्य देशों के विकल्प के मामले में एक तरह की बढ़त देते हैं, जो विदेशी निवेशकों के निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक अनुपालन प्रतिवेदन में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितंबर 2023, में भारत का चालू खाता घाटा 830 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि से कम होकर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत रह गया है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2022, में 3000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहते हुए सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत था। भारत के विदेशी व्यापार के मामले में यह एक अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। चालू खाता घाटा किसी भी देश के वस्तुओं और सेवाओं के आयात एवं निर्यात के मूल्य के साथ साथ वित्तीय हस्तांतरण के बीच के अंतर को मापता है। चालू खाता घाटे का कम होना किसी भी देश के लिए अच्छी स्थिति कही जाती है क्योंकि इससे मजबूत हो रहे निर्यात एवं कम हो रहे आयात की स्थिति का पता चलता है। वर्ष 2023 में भारतीय बैंकों विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का स्तर लगभग न्यूनतम स्तर पर आ गया है और पूंजी पर्याप्तता अनुपात लगभग उच्चत्तम स्तर पर आ गया है। कई बैंकों में तो यह स्तर अमेरिकी बैकों के पूजीं पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। कुछ वर्ष पूर्व तक सरकारी क्षेत्र के बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों पर बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को इन बैंकों में पूंजी डालनी होती थी परंतु आज सरकारी क्षेत्र के बैंक केंद्र सरकार को भारी भरकम लाभांश की राशि का भुगतान कर रहे हैं। बैंकिंग के क्षेत्र में तो जैसे टर्न अराउंड ही दिखाई देता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों की बजटीय स्थिति एवं इनके राजकोषीय स्वास्थ्य में लगातार मजबूती दिखाई दे रही है। विभिन्न राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 में किए गए सुधारों को जारी रखा है, जिसके चलते राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहते हुए कम हुआ है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्यों के राजकोषीय घाटे पर, कोविड महामारी के बाद अत्यधिक दबाव पैदा हो गया था परंतु इसके बाद से लगातार स्थिति में सुधार हुआ है। मुख्य रूप से कर संग्रहण के अनुपालन में सुधार करते हुए कर संग्रहण में पर्याप्त वृद्धि हुई है एवं कुछ राज्यों द्वारा खर्चों पर नियंत्रण भी किया जा सका है, हालांकि पूंजीगत व्ययों को प्रभावित नहीं होने दिया गया है, जिसके कारण राजकोषीय घाटे की स्थिति में सुधार दिखाई देने लगा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने उक्त प्रतिवेदन में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए विभिन्न राज्यों के बजट, राजकोषीय संकेतक एवं व्यय के पैटर्न का विश्लेषण किया है। मुख्य बिंदु जिन पर सुधार बताया गया है उनमें शामिल हैं, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार हो रहा सुधार, राजस्व घाटे में आ रही कमी, पूंजीगत व्यय में लगातार हो रही वृद्धि और बकाया ऋण स्तर में कमी होना, बताया गया है। राज्य स्तर पर आगे आने वाले समय में मजबूत आर्थिक विकास और राजकोषीय सुधारों द्वारा राज्यों की समग्र बजटीय स्थिति सकारात्मक होने का अनुमान इस प्रतिवेदन में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाया गया है। इस स्थिति को भारत के लिए राहत देने वाली माना जा सकता है। राज्यों का राजस्व घाटा कम होने के कारण राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा लगातार दूसरे वर्ष लक्ष्य के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत पर सीमित रहा है। पूंजी निवेश समर्थन के लिए केंद्रीय योजना के नेतृत्व में वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय में 52.6 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर्ज हुई है। राजस्व व्यय वृद्धि में कमी आई है और व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बकाया देनदारियां वित्तीय वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2024 में 27.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। Read more » वर्ष 2023 में आर्थिक क्षेत्र में भारत
आर्थिकी राजनीति अब भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं December 26, 2023 / December 26, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment हाल ही के समय में कई भारतीय कम्पनियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वरूप ग्रहण करती नजर आ रही हैं। कुछ भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों में न केवल अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही हैं बल्कि कुछ कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण भी कर रही हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि भारत कई ऐसे देशों, जो आपस में शायद मित्र देश की भूमिका में नहीं हैं इसके बावजूद भारत दोनों देशों, के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाता नजर आ रहा है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर एवं सऊदी अरब आदि देश मिडल ईस्ट में भारत के महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार हैं एवं ये देश भारत में भारी राशि का निवेश कर रहे हैं। सऊदी अरब तो भारत में 10,000 करोड़ अमेरिक डॉलर का निवेश करने जा रहा है। परंतु, हाल ही के कुछ वर्षों में मिडल ईस्ट के कुछ देशों के साथ ही, इजराईल के साथ भी भारत के मिलिटरी, राजनैतिक एवं व्यापारिक सम्बंध प्रगाढ़ हुए हैं। न केवल इजराईल की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं बल्कि कई भारतीय कम्पनियां भी इजराईली कम्पनियों में निवेश कर रही हैं एवं कुछ कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। इस प्रकार भारत के अरब देशों के साथ साथ इजराईल के साथ भी प्रगाढ़ व्यापारिक रिश्ते कायम हो गए हैं। कई भारतीय कम्पनियां इजराईल के स्टार्ट अप में भारी मात्रा में निवेश करती दिखाई दे रही हैं। चूंकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद अब लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छूने जा रहा है, अतः भारतीय कम्पनियां अब इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तरह अन्य देशों में विभिन्न क्षेत्रों में कम्पनियों का अधिग्रहण कर सकें अथवा इन विदेशी कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा सकें। इस दृष्टि से भारत की कुछ बड़ी कम्पनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (मुकेश अम्बानी समूह), इनफोसिस, विप्रो, टाटा समूह, अडानी समूह आदि इजराईल की कम्पनियों का अधिग्रहण करने में सफलता हासिल कर रही हैं। हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इजराईल में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण करने वाली एक कम्पनी टावर सेमीकंडक्टर नामक कम्पनी का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रही है। सेमीकंडक्टर चिप के उपयोग हेतु भारत में बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है, इससे इस उत्पाद के लिए अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम होगी। इजराईल की उक्त कम्पनी पूर्व में ही भारी मात्रा में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण कर रही है। पूर्व में अमेरिकी कम्पनी इंटेल ने उक्त कम्पनी को 540 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदने का प्रयास किया था परंतु इंटेल को इस कार्य में सफलता नहीं मिल सकी थी। परंतु, अब भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज इस कम्पनी को खरीदने का प्रयास कर रही है। टावर सेमीकंडक्टर वर्ष 2009 में केवल 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार करती थी परंतु यह वर्ष 2022 में इस कम्पनी का व्यापार बढ़कर 168 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। अतः यह कम्पनी अत्यधिक तेज गति से प्रगति कर रही है। भारत में दवाईयों का निर्माण करने वाली एक कम्पनी सन फार्मा ने भी इजराईल की टेरो फार्मा नामक एक कम्पनी को अपनी सहायक कम्पनी बना लिया है। इससे भारतीय सन फार्मा कम्पनी का विस्तार इजराईल में भी हुआ है। सन फार्मा को नई तकनीकी को विकसित करने में भी सहायता मिली है। इसी प्रकार, भारतीय कम्पनी अदानी पोर्ट्स एंड लाजिस्टिक्स ने इजराईल के सबसे बड़े हाईफा पोर्ट का विस्तार करने का कार्य हाथ में लिया है। इस विस्तार के कार्य पर 115 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च होगी। वर्ष 2021 में इजराईल के कुल विदेशी व्यापार का लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा इसी पोर्ट के माध्यम से हो रहा था। टाटा समूह की टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) नामक सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कम्पनी भी इजराईल में अपने व्यापार का लगातार विस्तार कर रही है। भारत की इनफोसिस कम्पनी ने इजराईल की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की पनाया नामक कम्पनी का 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर में अधिग्रहण कर लिया है। भारत का टाटा समूह इजराईल के एयर स्पेस में कार्य कर रही कम्पनियों एवं सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही कम्पनियों में अपना निवेश बढ़ा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में इजराईल की कम्पनियों के साथ मिलकर कार्य किया जा सके। इजराईल के पास सुरक्षा उपकरण बनाने की नवीनतम तकनीक उपलब्ध है। भारत एवं इजराईल अब टैंक्स एवं राडार के निर्माण का कार्य साथ मिलकर करने जा रहे हैं। वैसे भी भारत एवं इजराईल के बीच मिलिटरी सैन्य समझौता पूर्व में ही किया जा चुका है। इसी प्रकार के समझौते, उद्योग के क्षेत्र में रिसर्च, आर्थिक विकास के लिए एक दूसरे के साथ भागीदारी, विशेष रूप से स्वास्थ्य, एयरो स्पेस एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से भी किए जा रहे हैं। आरटीफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे निवेश के मामले में अमेरिका, चीन एवं यूनाइटेड किंगडम के बाद इजराईल, पूरे विश्व में, चौथे स्थान पर है। अतः भारत की इजराईल के साथ व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी का लाभ भारत को भी मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इजराईल में भारतीय इंजीनीयरों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। आज इजराईल में सॉफ्टवेयर विकसित करने हेतु 18,000 से अधिक इंजीनियर कार्य कर रहे हैं और यह संख्या अमेरिका में कार्य कर रहे इंजीनियरों की तुलना में बहुत कम जरूर है परंतु अब तेजी से भारतीय इजनीयरों की मांग इजराईल में बढ़ रही है। सुरक्षा के क्षेत्र में भी इजराईल भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। भारत इजराईल से हाई क्वालिटी ड्रोन, मिसाईल, एवं अन्य उपकरण आदि खरीदता है। इजराईल-हम्मास युद्ध के बाद से इजराईल में कार्य कर रहे फिलिस्तिनियों को इजराईल से बाहर निकाल दिया गया है। अतः अब इजराईल ने एक लाख भारतीय कामगारों की मांग भारत सरकार से की है। उधर, ताईवान ने भी एक लाख भारतीय कामगारों की मांग की है। अब विभिन्न देशों में भारतीय कामगारों की मांग भी बढ़ती जा रही है। भारतीय कम्पनियां इसी प्रकार ब्रिटेन की कम्पनियों में भी अपना निवेश बढ़ा रही हैं। टाटा समूह ने ब्रिटेन की कोरस नामक कम्पनी में 217 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। रिलायंस समूह ने बैटरी का निर्माण करने वाली एक फरडीयन नामक कम्पनी में 10 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा समूह ने टेटली नामक कम्पनी में 4 करोड़ से अधिक यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर्स नामक कम्पनी का अधिग्रहण कर लिया है एवं टाटा मोटर्स 400 करोड़ यूरो का अतिरिक्त पूंजी निवेश इस कम्पनी में करने जा रही है। इसी प्रकार के पूंजी निवेश करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की विभिन्न भारतीय कम्पनियां जैसे विप्रो एवं इनफोसिस आदि, भी ब्रिटेन की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। टाटा केमिकल्स लिमिटेड भी कुछ अन्य कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही है। यूनाइटेड किंगडम के लिए, भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्त्रोत बन गया है। आज भारत की 954 कम्पनियां यूनाइटेड किंगडम में कार्य कर रही हैं एवं वहां 106,000 नागरिकों को रोजगार प्रदान कर रही हैं। भारतीय कम्पनियों द्वारा इजराईल एवं ब्रिटेन की कम्पनियों के अधिग्रहण एवं इन कम्पनियों में किए जाने वाले पूंजी निवेश से भारतीय कम्पनियों की साख पूरे विश्व में बढ़ रही है एवं अब कुछ भारतीय कम्पनियां भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की श्रेणी में गिनी जाने लगी हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Now Indian companies are acquiring companies from other countries
आर्थिकी राजनीति अब भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण भी पहुंचा विश्व में पांचवे स्थान पर December 18, 2023 / December 18, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत आज विश्व के कई देशों को विभिन्न क्षेत्रों में राह दिखाता नजर आ रहा है। अभी हाल ही में भारतीय शेयर (पूंजी) बाजार, नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज, ने 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के पूंजीकरण के स्तर को पार कर लिया है। विदेशी निवेशक एवं विदेशी संस्थान जो माह सितम्बर 2023 तक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे थे, अब अचानक भारी मात्रा में भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं। आज कई बार तो एक दिन में 5000 करोड़ रुपए से भी अधिक की राशि का निवेश इन विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में किया जा रहा है। नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर लिस्टेड समस्त कम्पनियों (निफ्टी) का कुल बाजार पूंजीकरण 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर अथवा 335 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान इन कम्पनियों का पूंजीकरण 17.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की संयोजित (कंपाऊडेड) दर से बढ़ा है। भारतीय शेयर बाजार के विकास की यह रफ्तार अभी भी जारी है और कलेंडर वर्ष 2023 के अभी तक के कार्यकाल के दौरान निफ्टी पर रजिस्टर्ड कम्पनियों के पूंजीकरण, 55 लाख करोड़ रुपए (11 प्रतिशत) से बढ़ चुका है। पिछले केवल 3 माह के दौरान भारतीय कम्पनियों का निफ्टी पर पूंजीकरण 8.82 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जो कि विश्व के 10 सबसे बड़े शेयर बाजार में सबसे अधिक तेज गति से बढ़ा है। आज भारत विश्व के शेयर बाजार के पूंजीकरण में 3.61 प्रतिशत का योगदान कर रहा है जो जनवरी 2023 में 3.37 प्रतिशत था। नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर लिस्टेड समस्त कम्पनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का स्तर 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर जुलाई 2017 में पहुंचा था और लगभग 4 वर्ष पश्चात अर्थात मई 2021 में 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया था तथा केवल लगभग 2.5 वर्ष पश्चात अर्थात दिसम्बर 2023 में यह 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर गया है। भारत शेयर बाजार पूंजीकरण के मामले में आज पूरे विश्व में पांचवे स्थान पर आ गया है। प्रथम स्थान पर अमेरिकी शेयर बाजार है, जिसका पूंजीकरण 47.78 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में अमेरिकी शेयर बाजार का योगदान, शेयर के पूंजीकरण के मामले में, 44.74 प्रतिशत है और अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद का अमेरिकी शेयर बाजार का पूंजीकरण 188 प्रतिशत है। द्वितीय स्थान पर चीन का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 9.73 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। इस वर्ष 2023 में चीन के शेयर बाजार ने अपने निवेशकों को रिणात्मक प्रतिफल दिए हैं। पूरे विश्व में चीन के शेयर बाजार का योगदान 9.12 प्रतिशत है और चीन के सकल घरेलू उत्पाद का चीनी शेयर बाजार का पूंजीकरण केवल 54 प्रतिशत है। तीसरे स्थान पर जापान का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 6.02 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में जापान के शेयर बाजार का योगदान 5.64 प्रतिशत है और जापान के सकल घरेलू उत्पाद का जापान के शेयर बाजार का पूंजीकरण 142 प्रतिशत है। चौथे स्थान पर हांगकांग का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 4.78 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में हांगकांग के शेयर बाजार का योगदान 4.48 प्रतिशत है और हांगकांग के सकल घरेलू उत्पाद का हांगकांग शेयर बाजार का पूंजीकरण 1329 प्रतिशत है। जबकि भारत, फ्रान्स एवं ब्रिटेन के शेयर बाजार को पछाड़कर पांचवे स्थान पर आ गया है। आज भारत के शेयर बाजार का पूंजीकरण 4.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में भारत के शेयर बाजार का योगदान 3.61 प्रतिशत है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद का भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण 114 प्रतिशत है। जिस तेज गति से भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण आगे बढ़ रहा है, अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि शीघ्र ही भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण हांगकांग शेयर बाजार के पूंजीकरण को पीछे छोड़ते हुए पूरे विश्व में चौथे स्थान पर आ जाएगा। केंद्र सरकार पर विपक्षी दलों द्वारा कई बार यह आरोप लगाया जाता है कि भारत में सरकारी उपक्रमों को समाप्त किया जा रहा है। जबकि पिछले 27 माह के खंडकाल के दौरान सरकारी उपक्रमों का पूंजीकरण शेयर बाजार में दुगना होकर 46.40 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। सरकारी उपक्रमों ने अपने बाजार पूंजीकरण में इस अवधि में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की है। बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज का सेन्सेक्स पिछले 27 माह में 60,000 के स्तर से 70,000 के स्तर को पार कर गया है। इन सरकारी उपक्रमों के कोरपोरेट गवर्नन्स में भारी सुधार हुआ है, जिसके चलते न केवल विदेशी निवेशकों का बल्कि भारत के संस्थागत निवेशकों एवं खुदरा निवेशकों का भी विश्वास इन सरकारी उपक्रमों पर बढ़ा है। केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लगातार लागू किए जा रहे विभिन्न सुधार कार्यक्रमों के चलते विदेशी संस्थागत निवेशक, विदेशी खुदरा निवेशक एवं विदेशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिक भी भारतीय कम्पनियों में भारी मात्रा में शेयर बाजार के माध्यम से निवेश कर रहे हैं। हालांकि हाल ही के समय में भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है जिससे इन कम्पनियों के विभिन वित्तीय रेशीओ बहुत आकर्षक बन गए हैं। जबकि चीन, हांगकांग, जर्मनी, जापान जैसे शेयर बाजार अपने निवेशकों को रिणात्मक अथवा बहुत कम रिटर्न दे पा रहे हैं। कई विदेशी संस्थान निवेशक तो चीन, हांगकांग आदि देशों से अपना पूंजी निवेश निकालकर भारतीय शेयर बाजार में कर रहे हैं। इससे आगे आने वाले समय में भी भारतीय शेयर बाजार में वृद्धि दर आकर्षक बनी रहेगी, इसकी भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि शेयर बाजार में निवेशक अपनी जमापूंजी का निवेश बहुत सोच विचार कर करता है एवं जब निवेशकों को यह आभास होने लगता है कि अमुक कम्पनी का भविष्य बहुत उज्जवल है एवं निवेशक द्वारा किए गए निवेश पर प्रतिफल अधिकतम रहने की सम्भावना है, तभी निवेशक अपनी जमापूंजी को शेयर बाजार में उस अमुक कम्पनी में निवेश करते है। इस प्रकार, जब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई देता है तो विशेष रूप से विदेशी निवेशक एवं विदेशी निवेशक संस्थान उस देश में विभिन्न कम्पनियों के शेयर में अपनी निवेश बढ़ाते हैं। चूंकि विदेशी संस्थानों को आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर एवं भारतीय कम्पनियों की विकास यात्रा पर भरपूर भरोसा है अतः भारतीय शेयर बाजार में निवेश भी रफ्तार पकड़ रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी राजनीति अयोध्या में प्रभु श्रीराममंदिर निर्माण से स्थानीय अर्थव्यवस्था को लगेंगे पंख December 15, 2023 / December 15, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment अंततः वह घड़ी भी बहुत करीब आ पहुंची है, जिसका इंतजार हिंदू धर्मावलंबी पिछले लगभग 500 वर्षों से कर रहे हैं। 5 अगस्त 2020 को भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने पूजनीय संत मंडल एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत के सानिध्य में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी थी। अब दिनांक 22 जनवरी 2024 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ही पूज्य संत मंडल एवं परम पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत की उपस्थिति में अयोध्या में नव निर्मित प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। भारत ही क्या बल्कि पूरे विश्व में ही हिंदू धर्मावलंबी अति उत्साहित हैं एवं पूरे भारत में वातावरण राममय होने जा रहा है। अयोध्या में निर्माणरत श्रीराम मंदिर पूरे विश्व में निवासरत हिंदू धर्मावलम्बियों के लिए न केवल विशाल आस्था के एक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है बल्कि यह देश में धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देगा और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को जबरदस्त लाभ होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। हाल ही में सम्पन्न दीपावली त्यौहार के शुभ अवसर पर अयोध्या में 22.23 लाख दिए जलाए गए थे, यह अपने आप में एक गिनीज विश्व रिकार्ड के रूप में माना जा रहा है। वर्तमान में 2.5 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष अयोध्या में पहुंचते हैं। प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो जाने के पश्चात पर्यटकों की यह संख्या 10 गुना तक बढ़ सकती है अर्थात 25 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष अयोध्या में आ सकते हैं। एक पर्यटक यदि अयोध्या में रहते हुए 2000 रुपए का खर्च भी करता है तो 50,000 करोड़ रुपए का व्यापार अकेले अयोध्या में प्रतिवर्ष होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। धार्मिक पर्यटन के साथ ही पूरे वर्ष भर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं कई प्रकार के भव्य समारोह भी अयोध्या में आयोजित होने लगेंगे, इससे कुल मिलाकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रुपए का व्यापार केवल अयोध्या में ही होने लगेगा। अयोध्या में होटल और रिजोर्ट का निर्माण करने हेतु 20 प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार को प्राप्त हो चुके हैं, इनमे कई फाइव स्टार होटल भी शामिल हैं। अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय स्तर का आधारभूत ढांचा एवं अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी विकसित किया जा रहा है। अयोध्या रेल्वे स्टेशन को विकसित कर लिया गया है। उक्त वर्णित व्यवस्थाओं के विकसित होने के पश्चात अयोध्या में बढ़ने वाले धार्मिक पर्यटन से लाखों की संख्या में नए रोजगार के अवसर निर्मित होने जा रहे हैं। प्रतिवर्ष लगभग 25 करोड़ पर्यटकों के अयोध्या पहुंचने से स्थानीय स्तर पर छोटे छोटे व्यवसायियों को भी अपार आर्थिक लाभ होगा। धर्मशाला, होटल, यातायात व्यवस्था, खाद्य सामग्री, फल, फूल आदि अन्य कई प्रकार के पदार्थों की मांग बढ़ेगी, जिसकी आपूर्ति बनाए रखने के लिए कई प्रकार के छोटे छोटे उद्योग धंधे भी अयोध्या के आस पास के गावों में विकसित होंगे। फल, सब्जी, फूल आदि पदार्थों की पैदावार भी ग्रामीण इलाकों में होने लगेगी जिससे इस क्षेत्र के किसानों को भी भरपूर लाभ होने लगेगा। अपने आप में अयोध्या आस्था के केंद्र के साथ साथ एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रभु श्रीराम तो अपने मंदिर में बिराजेंगे ही, साथ ही इस क्षेत्र में निवास कर रहे नागरिकों को भी आर्थिक रूप से अत्यधिक लाभ होने जा रहा है। अयोध्या में पूरे विश्व से पर्यटकों के आने से उत्तरप्रदेश की अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख ही लग जाएंगे। भारत में अयोध्या की तर्ज पर ही अन्य धार्मिक स्थल भी विकसित किए गए हैं। वाराणसी में काशी विश्वनाथ कोरिडोर विकसित किया जा चुका है। गुजरात में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है। पावागढ़ गुजरात में ही मां कालका मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है। उत्तराखंड में केदारनाथ धाम प्रोजेक्ट पर भी कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। उज्जैन में महाकाल कोरिडोर का निर्माण हुआ है। असम में माता कामाख्या कोरिडोर बन रहा है। पूरे भारत में ही धार्मिक स्थलों को विकसित कर देश में धार्मिक एवं क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत के पर्यटन मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021-22 में भारत में पर्यटन गतिविधियों से 1.34 लाख करोड़ रुपए की आय हुई है, जबकि वर्ष 2020-21 में धार्मिक पर्यटन से 65,000 करोड़ रुपए की आय हुई थी। इस प्रकार भारत में विकसित किए विभिन्न धार्मिक स्थलों के कारण पर्यटन की गतिविधियों से आय मात्र एक वर्ष के अंतराल में ही दोगुनी से भी अधिक हो गई है। सेंटर फोर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलान्थ्रोपी के अनुसार, वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में विभिन्न मंदिरों को मिलने वाला घरेलू दान 14 प्रतिशत बढ़कर 27,000 करोड़ रुपए का हो गया है। जबकि, वर्ष 2020-21 में 23,700 करोड़ रुपए का दान विभिन्न मंदिरों को प्राप्त हुआ था। विशेष रूप से वाराणसी में काशी विश्वनाथ कोरिडोर के विकसित किए जाने के बाद से काशी विश्वनाथ मंदिर को मिलने वाला दान 500 प्रतिशत बढ़ गया है। वर्ष 2021-22 में काशी विश्वनाथ मंदिर को 100 करोड़ रुपए का दान प्राप्त हुआ था। साथ ही, इस दौरान वाराणसी में धार्मिक पर्यटन भी 1000 प्रतिशत बढ़ गया है। इसी प्रकार, उज्जैन में महाकाल कोरिडोर के विकसित होने के पश्चात बाबा महाकाल मंदिर में धार्मिक पर्यटन 1800 प्रतिशत बढ़ा है। इन धार्मिक स्थलों पर पर्यटन बढ़ने से चूंकि व्यापार बढ़ रहा है अतः इन क्षेत्रों में रोजगार के हजारों नए अवसर भी निर्मित हो रहे हैं। अब तो वृंदावन में भी बांके बिहारी कोरिडोर विकसित किया जा रहा है ताकि श्रद्धालुओं का बांके बिहारी मंदिर में पहुंचना आसान हो सके। विशेष रूप से प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या में केवल एक भव्य मंदिर बनाने की परिकल्पना नहीं की गई है बल्कि भव्य मंदिर के साथ साथ विशाल पुस्तकालय, संग्रहालय, अनुसंधान केंद्र, वेदपाठशाला, यज्ञशाला, सत्संग भवन, धर्मशाला, प्रदर्शनी, आदि को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि आज की युवा पीढ़ी को प्रभु श्रीराम के काल पर अनुसंधान करने में आसानी हो। प्रभु श्रीराम के मंदिर को राष्ट्र मंदिर भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां आने वाले हर व्यक्ति को यह मंदिर भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान कराएगा। पूरे विश्व में यह मंदिर हिन्दू सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनने जा रहा है अतः यहां पूरे विश्व से सैलानियों का लगातार आना बना रहेगा। यह मंदिर पूरे विश्व में हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र बनने के साथ साथ पर्यटन के एक विशेष केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है, इसलिए प्रभु श्रीराम की कृपा से करोड़ों व्यक्तियों की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ साथ लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी राजनीति भारतीय रिजर्व बैंक को अब ब्याज दरों में कटौती के बारे में सोचना चाहिए December 11, 2023 / December 11, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक 8 दिसम्बर 2023 को समाप्त हुई और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने नीतिगत रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन न करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत पर यथावत बनाए रखा है, क्योंकि मुख्य रूप से भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में बनी हुई है। हालांकि अभी यह देश के मध्यावधि लक्ष्य 4 प्रतिशत के अंदर नहीं आई है। परंतु, भारतीय अर्थव्यवस्था जिस गति से आगे बढ़ रही है, इसे देखते हुए एवं आर्थिक विकास की दर को और अधिक गति देने के उद्देश्य से अब भारत में ब्याज दरों को कम किये जाने का समय आ गया लगता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर का 4 प्रतिशत से अधिक बने रहने के पीछे मुख्य कारण तेल एवं खाद्य पदार्थों (फल, सब्जी, आदि) में अचानक वृद्धि होते रहना है। अन्यथा, थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर तो लम्बे समय से रिणात्मक बनी हुए है एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर भी पूर्ण रूप से नियंत्रण में है। हां, वैश्विक स्तर पर आर्थिक परिस्थितियां जरूर भारत में ब्याज दरों को कम करने के पक्ष में नजर नहीं आ रही हैं। चीन सहित, विश्व के कई देशों में आर्थिक विकास दर कम हो रही है एवं इन देशों में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से ब्याज दरों को अभी भी ऊंची दरों पर बनाए रखा गया है। इसी माह अमेरिका में सम्पन्न हुई फेडरल रिजर्व की बैठक में फेड रेट में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है। चूंकि अन्य देशों में ब्याज की उच्च दर अभी भी बनी हुई है अतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए पर दबाव बना हुआ है। इन परिस्थितियों के बीच यदि भारतीय रिजर्व बैंक भारत में ब्याज दरों को कम करता है तो भारतीय रुपए पर दबाव और अधिक बढ़ेगा। अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में मुद्रा स्फीति की दर में सुधार जरूर दृष्टिगोचर है। अमेरिका में तो अभी हाल ही में सोवरेन बांड प्रतिफल में गिरावट भी दर्ज हुई है एवं अमेरिकी डॉलर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ कम हुई है। इससे कई देशों के पूंजी (शेयर) बाजार मजबूत हुए हैं। अतः अब आगे आने वाले समय में इन परिस्थितियों के बीच विश्व के विभिन्न देशों द्वारा ब्याज दरों में कमी किए जाने की सम्भावना बढ़ती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था को तो इससे अत्यधिक लाभ होगा। ब्याज दरें कम होने से भारतीय उद्योग द्वारा निर्मित किए जाने वाले उत्पादों की उत्पादन लागत कम होगी और भारत में निर्मित होने वाले उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे, इससे इन उत्पादों का भारत से निर्यात बढ़ेगा। भारत में आंतरिक आर्थिक परिस्थितियां लगातार अनुकूल बनी हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के बाद द्वितीय तिमाही में भी 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। यह वृद्धि दर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्तर के वित्तीय संस्थानों एवं भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व अनुमानों से कहीं अधिक है। भारत में लगातार बढ़ रहे निवेश एवं केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे पूंजीगत एवं अन्य खर्च में अपार वृद्धि के चलते सम्भव हो पा रहा है। विनिर्माण एवं निर्माण गतिविधियों में अतुलनीय वृद्धि के चलते दूसरी तिमाही में विकास दर अत्यंत आकर्षक रही है। आगे आने समय में भी विनिर्माण गतिविधियों में मजबूती, निर्माण में भारी वृद्धि एवं ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही उत्पादों की मांग के चलते घरेलू स्तर पर उत्पादों की मांग में और अधिक सुधार होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमानों में सुधार करते हुए इसे 7 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में करना चाहता है। जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की इस दर में विभिन्न खाद्य पदार्थों की कीमतें भी शामिल रहती हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतें पूर्णत: मांग एवं आपूर्ति के सिद्धांत पर तय होती हैं। जब किसी वर्ष किसी खाद्य पदार्थ की फसल संतोषजनक होती है तो उस खाद्य पदार्थ की कीमतें नियंत्रण में रहती है और यदि किसी मौसम में किसी सब्जी अथवा फल की फसल ठीक नहीं रहती है तो उसकी कीमतें बाजार में आसमान छूने लगती हैं। जैसा कि अक्सर भारत में प्याज, टमाटर एवं अन्य सब्जियों एवं फलों की स्थिति में देखा गया है। इस प्रकार की मुद्रा स्फीति को ब्याज दरों में वृद्धि कर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इन पदार्थों की कीमतों को तो केवल इनकी आपूर्ति को बढ़ाकर ही नियंत्रण में लाया जा सकता है। फिर, इन पदार्थों की बढ़ती कीमतों के चलते यदि ब्याज दरों में वृद्धि हो रही है तो यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों, विशेष रूप से उद्योग एवं सेवा क्षेत्र, के लिए हानिकारक परिणाम देता दिखाई दे रहा है। इन कारणों के चलते अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर को ही नियंत्रित करना चाहिए एवं उसके आधार पर ही ब्याज दरों में वृद्धि अथवा कमी की जानी चाहिए। जब फल एवं सब्जियों की कीमतों में अचानक हो रही वृद्धि को ब्याज दरें बढ़ाकर नियंत्रित ही नहीं किया जा सकता है तो फिर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इन मदों को शामिल ही क्यों रखा जाना चाहिए। अतः कुल मिलाकर अब भारत में थोक मूल्य सूचकांक आधारित एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में है इसलिए आगामी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में ब्याज दरों को कम करने के सम्बंध में विचार किया जाना चाहिए। Read more » Reserve Bank of India should now think about cutting interest rates भारतीय रिजर्व बैंक
आर्थिकी लेख भारत में विवाह समारोहों की अर्थव्यवस्था December 7, 2023 / December 7, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार पवित्र शादियों के धार्मिक संस्कारों के माध्यम से दो आत्माओं का मिलन कराया जाता है। कहा तो यहां तक भी जाता है कि दूल्हा और दुल्हन शादी के धार्मिक संस्कारों के माध्यम से सात जन्मों तक के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं। इसलिए, शादी के समय विभिन्न अध्यात्मिक, धार्मिक एवं सांसारिक संस्कारों को सम्पन्न कराने के लिए समाज के गणमान्य नागरिकों, नाते रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों को साथ लेकर विभिन्न प्रकार के भव्य आयोजन सम्पन्न किए जाते हैं। इन आयोजनों में विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं एवं आजकल तो ऐसे शुभ अवसरों पर भारी मात्रा में व्यय भी किया जा रहा है। शादी के विभिन्न आयोजनों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत में नवम्बर 2023 माह से लेकर आगामी लगभग 4 माह के दौरान 38 लाख से अधिक शादियों के आयोजन सम्पन्न होने जा रहे हैं। केवल 4 माह की इस अवधि में लगभग 4.75 लाख करोड़ की राशि का व्यय होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 35 लाख शादियों पर 3.75 लाख करोड़ रुपए की राशि का व्यय हुआ था। कन्फेडरेशन ओफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुसार, भारत में इस वर्ष शादियों के मौसम में सबसे अधिक खर्च करने का विश्व रिकार्ड बनाया जा सकता है। पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष एक लाख करोड़ रुपए अधिक राशि शादियों पर खर्च होने जा रही है। शादी के विभिन्न कार्यक्रमों में विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च के सम्बंध में भी अनुमान लगाए गए हैं। इन अनुमानों के अनुसार, इस वर्ष नए कपड़े और नई ज्वेलरी को खरीदने की मद पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने वाली है, मेहमानों की खातिरदारी पर 60,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है, शादी समारोह से जुड़े कार्यक्रमों पर 60,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है। विश्व का कोई भी देश शादियों के मौसम में इतनी भारी भरकम राशि का खर्च नहीं करता दिखाई दे रहा है क्योंकि अन्य देशों में शादी के समारोहों पर इतना खर्च किया ही नहीं जाता है। यह तो भारतीय सनातन संस्कृति ही है जिसके अंतर्गत शादी के समय विभिन प्रकार के संस्कार सम्पन्न कराने के उद्देश्य से कई प्रकार के आयोजन सम्पन्न किए जाते हैं। आज विकसित देशों में तो विवाह नामक संस्था उपलब्ध ही नहीं है और “लव मैरिज” नामक रिवाज का पालन किया जा रहा है। साथ ही अब तो बगैर विवाह के “लिव इन रिलेशन” नामक रिवाज ही चल पड़ा है। विकसित देशों के युवा इस प्रकार के रिवाजों के चलते बच्चे भी पैदा नहीं कर रहे हैं और कुछ समय पश्चात ही आपस में रिश्तों को “तलाक” का रूप दे देते हैं। यदि इस बीच किसी जोड़े को बच्चा हो भी जाता है तो उसे “सिंगल पेरेंट” के रिवाज के तहत केवल मां के पास ही रहना होता है। इस प्रकार वह बच्चा अपने पिता के प्यार से वंचित रहता है और उस बच्चे का मानसिक विकास नहीं हो पाता है। इन्हीं कारणों के चलते आज विश्व के कई देशों में बुजुर्गों की संख्या तो बढ़ती जा रही है परंतु युवाओं की संख्या कम होती जा रही है, जिसका सीधा सीधा प्रभाव इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। अतः कुल मिलाकर यह सनातन संस्कृति के संस्कार ही हैं जो भारत में आज भी कुटुंब व्यवस्था को जीवित रखे हुए हैं। संयुक्त परिवार सामान्यतः केवल भारत में ही दिखाई देते हैं, जहां बुजुर्गों की देखभाल इन संयुक्त परिवारों में बहुत ही सहज तरीके से होती है। अन्यथा, विकसित देशों में चूंकि संयुक्त परिवार का चलन नहीं के बराबर है अतः बुजुर्गों की देखभाल इन देशों की सरकार को “सोशल बेनीफिट्स” योजना के अंतर्गत करनी होती है। आज कुछ देशों में तो “सोशल बेनीफिट्स” की मद पर इतना अधिक खर्च होने लगा है कि इन देशों की बजट व्यवस्था ही भारी दबाव में आ गई है। इसके ठीक विपरीत, भारत में विभिन्न त्यौहार भी बड़े ही उत्साह से मनाए जाते है जिसके कारण भारत में सामाजिक तानाबाना ठीक बना हुआ है। इसी सामाजिक तानेबाने के ठीक अवस्था में रहने के चलते ही इस वर्ष, दीपावली एवं धनतेरस के त्यौहारी मौसम में भारत में 3.75 लाख करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। साथ ही, केवल करवा चौथ के दिन 15,000 करोड़ रुपए का व्यापार सम्पन्न हुआ था। भारत में त्यौहारी मौसम में अक्टोबर 2023 माह में 23 लाख वाहनों की बिक्री हुई है। 4 लाख चारपहिया वाहन एवं 19 लाख दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई है। आने वाले शादियों के मौसम में भी इस वर्ष वाहनों की जबरदस्त बिक्री होने की सम्भावना है। उक्त वर्णित कारणों के चलते ही भारत में तेजी से गरीबी एवं बेरोजगारी भी कम हो रही है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022-23 में दक्षिण अफ्रीका में बेरोजगारी की दर 32.8 प्रतिशत रही है और ईरान में 9.4 प्रतिशत, ब्राजील में 8.3 प्रतिशत, पाकिस्तान में 8.5 प्रतिशत, फ्रान्स में 7.4 प्रतिशत, इटली में 7.9 प्रतिशत, चीन में 5.3 प्रतिशत, ब्रिटेन में 4.2 प्रतिशत और अमेरिका में 4 प्रतिशत बेरोजगारी की दर पाई गई है। उक्त आंकड़ों के विपरीत भारत में इस अवधि के दौरान बेरोजगारी की दर में बहुत कमी दृष्टिगोचर हुई है। आज भारत में उच्च निवल सम्पत्ति वाले नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अतः समस्त मेहमानों सहित अब विदेश में जाकर शादी की रस्में सम्पन्न करने का प्रचलन भारत में बहुत बढ़ गया है। अभी हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी को देश के नागरिकों से यह अपील करनी पड़ी है कि विदेश में जाकर शादी की रस्में पूर्ण नहीं करे क्योंकि इससे शादी की रस्मों पर होने वाले व्यय का लाभ उस देश को मिल रहा है जबकि भारत में ही पर्याप्त मात्रा में पर्यटन स्थल उपलब्ध हैं, जहां आसानी से शादियां विधि विधान से सम्पन्न कर विवाह समारोह भी आयोजित किए जा सकते हैं। इससे शादी पर होने वाले खर्च का लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेगा और देश का पैसा भी देश में ही बना रहेगा। आज भारतीय नागरिकों द्वारा सनातन संस्कृति के संस्कारों के पालन का लाभ भी भारतीय अर्थव्यवस्था को निश्चित रूप से स्पष्टत: मिलता दिखाई दे रहा है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दर को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मोनेटरी फंड ने केलेंडर वर्ष 2024 के लिए भारत में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया है, जबकि अमेरिकी में यह वृद्धि दर 1.5 प्रतिशत, जर्मनी में 0.9 प्रतिशत, फ्रान्स में 1.3 प्रतिशत, जापान में रिणात्मक 1 प्रतिशत, चीन में 4.2 प्रतिशत और रूस में 1.1 प्रतिशत विकास दर रहने का अनुमान लगाया गया है। Read more » Economy of marriage ceremonies in India
आर्थिकी बड़े बाजार के रूप में स्थापित होने के बाद, विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होता भारत December 6, 2023 / December 6, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वैश्विक स्तर पर भारत एक बड़े बाजार के रूप में स्थापित होने के बाद अब एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित हो रहा है। आज चीन के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर कम हो रही है, इसके ठीक विपरीत भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर लगातार बढ़ रही है। चीन में हाल ही के समय में कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का विदेशी निवेश चीन से बाहर निकाल लिया है। ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन में अपनी विनिर्माण इकाईयों को बंद कर अन्य देशों की ओर रूख कर रही हैं। इनमें से अधिकतर बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत की ओर भी आ रही हैं एवं अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना यहां कर रही हैं। अब तो भारत का “मेक इन इंडिया” ब्राण्ड चीन के “मेड इन चाइना” ब्राण्ड पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। विभिन्न प्रकार के आईफोन, लैपटॉप, टेबलेट आदि उच्चत्तम स्तर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद का निर्माण करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक “ऐपल” भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही है एवं आईफोन का निर्माण तो भारत में प्रारम्भ भी कर दिया है। वर्ष 2024 में ऐपल कम्पनी भारत में एक लाख करोड़ रुपए के आई फोन का उत्पादन करेगी, ऐसी योजना इस कम्पनी ने बनाई है। इन आईफोन का न केवल भारत में निर्माण किया जा रहा है बल्कि भारत में निर्मित इन आईफोन को विश्व के कई देशों, विकसित देशों सहित, को निर्यात भी किया जा रहा है। वर्ष 2014 में भारत में केवल 6 करोड़ मोबाइल फोन का निर्माण प्रतिवर्ष हो रहा था जो आज बढ़कर 30 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन प्रतिवर्ष हो गया है। इसी प्रकार चीन, जापान एवं दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक “सैमसंग” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी भी भारत में ही मोबाइल फोन का निर्माण कर रही है और अपने ही देश यथा जापान एवं दक्षिण कोरिया को मोबाइल फोन का भारत से निर्यात भी कर रही है। अर्थात, इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भारत में उत्पादों का निर्माण कर अपने ही देश को भारत से निर्यात किया जा रहा है। 4 वर्ष पूर्व तक भारत अपनी मोबाइल फोन की कुल आवश्यकता का 81 प्रतिशत भाग अन्य देशों से आयात करता था परंतु अब अपने देश में 100 प्रतिशत आपूर्ति करने के बाद अपने कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत भाग निर्यात करता है। अमेरिका की “डेल” एवं “एचपी” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी भारत में आईटी हार्डवेयर का निर्माण करने हेतु विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही हैं। अमेरिका की इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में विनिर्माण इकाई स्थापित करने हेतु अनुमति भी मिल चुकी है। चीन की एक “लेनोवो” नामक कम्पनी भी भारत में आईटी हार्डवेयर निर्माण हेतु एक इकाई की स्थापना करने जा रही है। जबकि उक्त समस्त बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चीन में विनिर्माण इकाईयां पूर्व से ही स्थापित हैं, परंतु अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के उद्देश्य से चीन+1 पॉलिसी के तहत यह समस्त कम्पनियां भारत में भी अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही हैं। इसी प्रकार, ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में भी भारत विनिर्माण केंद्र के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है। अब भारत में निर्मित कारें पूरी दुनिया में बिक रही हैं। जापान की बहुत बड़ी कार निर्माता कम्पनी “सुजुकी” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी भारत में कारों का निर्माण कर विश्व के 100 से अधिक देशों को निर्यात कर रही है। जापान की हुण्डाई, होण्डा एवं सुज़ुकी नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत को अपना ऑटोमोबाइल केंद्र बना रही हैं। हुण्डाई तो भारत में अपने कुल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत भाग निर्यात कर रही है। ये समस्त कम्पनियां जापान की हैं और भारत में करों का निर्माण कर जापान को ही निर्यात कर रही हैं। कपड़ों के निर्माण करने वाले बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय ब्राण्ड भी कपड़ों का उत्पादन करने हेतु अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में कर रही हैं। आज भारत से भारी मात्रा में कपड़ों का निर्यात पूरे विश्व को किया जा रहा है। दवाईयों एवं टीकों के निर्माण के क्षेत्र में भारत पहिले से ही वैश्विक स्तर पर एक शक्ति के रूप में अपने आप को स्थापित कर चुका है। हाल ही के समय में, भारत सुरक्षा के क्षेत्र में भी अपनी पैठ बना रहा है एवं भारत ने 85 देशों को 16,000 करोड़ रुपए के उपकरण एवं हथियार निर्यात किए हैं। सेमी-कंडकटर चिप का निर्माण करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी अब भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने जा रही हैं। “मेक इन इंडिया” अब बहुत बड़ी ताकत बनता जा रहा है। उक्त वर्णित कारकों के चलते वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2023) के दौरान भारत में उद्योग के क्षेत्र में 13.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि विनिर्माण के क्षेत्र में 13.9 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज हुई है और इससे उद्योग के क्षेत्र में भी अब रोजगार के भरपूर अवसर निर्मित हो रहे हैं। चीन से विनिर्माण इकाईयों के अन्य देशों में स्थानांतरित होने के पीछे दरअसल चीन की नीतियां ही अधिक जिम्मेदार हैं। एक तो चीन में श्रम की लागत बहुत तेजी से बढ़ी है और अब कई कम्पनियों की इसके चलते उत्पादन लागत बढ़ रही है और उनकी लाभप्रदता पर विपरीत असर पड़ रहा है। दूसरे, चीन में सस्ते युवा श्रम की संख्या लगातार कम हो रही है क्योंकि चीन में जन्म दर बहुत निम्न स्तर पर पहुंच गई है और बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चीन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर पैनी नज़र रखता है और कब किस कम्पनी पर किस कारण से किस प्रकार का जुर्माना लगाया जाएगा, कुछ पता नहीं रहता है। इस कारण से कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चीन पर विश्वसनीयता भी कम हो रही है। चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ सम्बंध अच्छे नहीं है तथा चीन कई छोटे छोटे देशों पर अपनी चौधराहट स्थापित करना चाहता है इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन ने विभिन्न देशों के बीच अपनी साख खोई है। इस समस्त कारणों से आज कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन से अपना व्यवसाय समेट कर अन्य देशों की ओर रूख कर रही हैं। इस सबका फायदा अन्य देशों के साथ साथ भारत को भी हो रहा है और कई नामी ग्रामी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपने विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं। दरअसल भारत में केंद्र सरकार की उद्योग मित्र नीतियां भी इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत की ओर आकर्षित कर रही हैं। साथ ही, भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान आधारभूत सुविधाएं बहुत तेजी से विकसित हुई हैं तथा भारत में सस्ता श्रम भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। कभी अमेरिका भी वैश्विक स्तर पर विनिर्माण इकाईयों का केंद्र हुआ करता था। बाद में यूरोप भी विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बन गया था। आज चीन विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बना हुआ है। अब आगे आने वाले समय में भारत विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। अमेरिका एवं यूरोप के विकसित देश आज सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च स्तरीय तकनीक के उपयोग में बहुत आगे हैं, परंतु, इन देशों को इस स्थिति में पहुंचने के पूर्व अपने विनिर्माण इकाईयों के केंद्र के रुतबे को खोना पड़ा था। वही स्थिति अब चीन की भी होती दिख रही है। परंतु, भारत के साथ एक लाभ यह भी है कि भारत पहिले से ही सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी धाक वैश्विक स्तर पर स्थापित कर चुका है अतः भारत यदि विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है तो यह भारत के लिए एक अतिरिक्त उपलब्धि मानी जानी चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होता भारत
आर्थिकी राजनीति भारत के सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग क्षेत्र का बढ़ता योगदान December 1, 2023 / December 1, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2023, के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के आंकड़े भारत सरकार द्वारा जारी कर दिए गए हैं। इस वर्ष द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा लगाए गए अनुमानों से बहुत ऊपर रही है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिए गए 6.8 प्रतिशत के अनुमान से बहुत अधिक अर्थात यह वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत की रही है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही में 6.2 प्रतिशत की रही थी। भारत में इस वर्ष द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में दर्ज की गई वृद्धि की तुलना में अन्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में तिमाही के दौरान वृद्धि दर बहुत कम रही है। फिलिपींस में 5.9 प्रतिशत, रूस में 5.5 प्रतिशत, वियतनाम में 5.33 प्रतिशत, अमेरिका में 5.2 प्रतिशत, चीन में 4.9 प्रतिशत, मलेशिया में 3.3 प्रतिशत, थाईलैंड में 1.5 प्रतिशत, ब्रिटेन में 0.6 प्रतिशत, यूरो क्षेत्र में 0.1 प्रतिशत, जर्मनी में रिणात्मक 0.4 प्रतिशत एवं जापान में रिणात्मक 2.1 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज की गई है। इस प्रकार भारत पूरे विश्व में लगातार सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। हर्ष का विषय तो यह है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में जुलाई-सितम्बर 2023 तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर में मुख्य योगदान उद्योग क्षेत्र का रहा है। भारत के उद्योग क्षेत्र ने इस दौरान 13.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है, जो कि हाल ही के समय में अपने आप में एक रिकार्ड है। वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2022 के दौरान उद्योग क्षेत्र ने रिणात्मक 0.5 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की थी। उद्योग क्षेत्र के अंतर्गत, विनिर्माण क्षेत्र ने 13.9 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान रिणात्मक 3.8 प्रतिशत थी। ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र ने 10.1 प्रतिशत की वृद्धि दर, माइनिंग क्षेत्र ने 10 प्रतिशत, कन्स्ट्रक्शन क्षेत्र ने 13.3 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर हासिल की है। इन समस्त क्षेत्रों में रिकार्ड वृद्धि दर से भारत में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हुए हैं, जिसके चलते बेरोजगारी की दर में भी कमी दृष्टिगोचर हुई है। भारत में प्रत्येक वर्ष अक्टोबर-नवम्बर माह में दीपावली एवं अन्य कई महत्वपूर्ण त्यौहारों का मौसम रहता है। इन त्यौहारों के दौरान भारत के नागरिकों द्वारा विभिन्न उत्पादों की भारी मात्रा में खरीददारी की जाती है। ऐसा आभास है कि अकटोबर-नवम्बर में पड़ने वाले विभिन्न त्यौहारों को ध्यान में रखते हुए जुलाई-सितम्बर 2023 तिमाही में ऑटोमोबाइल, फ्रिज, टीवी, मोबाइल फोन, आदि जैसे विभिन्न उत्पादों का भारी मात्रा में उत्पादन विनिर्माण इकाईयों द्वारा किया गया है। जिसके चलते इस तिमाही में विनिर्माण इकाईयों ने भारी भरकम 13.9 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। भारत में कन्स्ट्रक्शन क्षेत्र ने भी रफ्तार पकड़ ली है, जिसके चलते इस क्षेत्र में आकर्षक 13.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर ली गई है। अकटोबर 2023 माह में भी कोर क्षेत्र के उद्योगों ने 12.1 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। इस वर्ष अल नीनो के प्रभाव के चलते देश के कई क्षेत्रों में मानसून की बारिश ठीक तरह से नहीं हो पाई है। इसका विपरीत प्रभाव कृषि क्षेत्र पर स्पष्टत: पड़ता हुआ दिखाई दिया है। कृषि क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में केवल 1.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है, जो कि पिछले वर्ष इसी अवधि में 2.5 प्रतिशत की रही थी। भारत में कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिये जाने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरे विश्व में ही खाद्य उत्पादों की भारी कमी महसूस की जा रही है। भारत, इस स्थिति का लाभ उठा सकता है एवं पूरे विश्व को ही खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कर सकता है। रबी मौसम की बुआई का कार्य प्रगति पर है। यदि खाद्य पदार्थों की बुआई के क्षेत्रफल में भारी विस्तार किया जा सके तो खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भारी वृद्धि की जा सकती है। आज पूरा विश्व ही खाद्य पदार्थों के लिए भारत की ओर टकटकी लगाए है एवं आशाभरी नजरों से भारत की ओर देख रहा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में सेवा क्षेत्र में रिकार्ड की गई वृद्धि दर ने जरूर निराश किया है। इस दौरान सेवा क्षेत्र ने 4.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में दर्ज की गई वृद्धि दर 9.4 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है। इस वर्ष द्वितीय तिमाही में हासिल की गई वृद्धि दर से आश्चर्य भी हुआ है क्योंकि विभिन्न बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों में वृद्धि दर लगातार दहाई के आंकड़े पर बनी हुई है, होटल लगातार अपनी स्थापित क्षमता का भरपूर उपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं, रेल्वे एवं हवाई जहाज का उपयोग भी लगातार उच्चत्तम स्तर पर बना हुआ है। फिर भी, वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र ने 6 प्रतिशत एवं व्यापार एवं होटल क्षेत्र ने 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। इसी प्रकार निजी क्षेत्र में अंतिम उपभोग में भी केवल 3.1 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है। भारत को यदि शीघ्र ही विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था के रूप में देखना है तो भारत के निजी क्षेत्र के लिए अपने उपभोग में वृद्धि करना अब आवश्यक हो गया है। यह तो सरकारी क्षेत्र के अंतिम उपभोग में भारी भरकम 12.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई है, एवं केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में भारी भरकम वृद्धि रही है जिसके चलते देश में पूंजी निर्माण में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जो अंततः इस तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के पीछे मुख्य कारक बन गया है। आगे आने वाले समय में लोक सभा चुनावों को देखते हुए सम्भवत: केंद्र सरकार के अंतिम उपभोग में और अधिक वृद्धि होने की सम्भावना है एवं इस दौरान केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय भी अभी और तेजी से बढ़ेगा जिसके कारण वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय एवं चतुर्थ तिमाही में भी सकल घरेलू उत्पाद में आकर्षक वृद्धि दर रहने की भरपूर सम्भावना है। साथ ही, इस वर्ष नवम्बर 2023 माह में दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के चलते लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का व्यापार दर्ज हुआ है तथा देश में विभिन्न तीर्थ स्थलों पर भारी मात्रा में भारतीय नागरिक धार्मिक पर्यटन करते हुए दिखाई दे रहे हैं और आगे आने वाले माह में देश में शादियों के मौसम के चलते भी नागरिकों के खर्च में भारी भरकम वृद्धि होगी, इसका प्रभाव, तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर पर भी देखने को मिलेगा। कुल मिलाकर भारतीय सनातन संस्कृति के पालन (धार्मिक स्थलों पर दर्शन के लिए जाते भारतीय, विभिन्न भारतीय त्यौहारों को बड़े उत्साह से मनाते भारतीय) से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि के बाद अब द्वितीय तिमाही में भी 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है। अब तो पूरा विश्व ही आश्चर्य कर रहा है भारत विभिन उत्पादों के लिए अपनी आंतरिक मांग के आधार पर अपने सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर हासिल कर रहा है एवं इस दृष्टि से भारत की विदेशी व्यापार पर निर्भरता बहुत ही कम है। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी राजनीति भारतीय अर्थजगत में स्वत्व बोध के परिणाम दिखाई देने लगे हैं November 20, 2023 / November 20, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज न केवल विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है बल्कि विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गई है। वर्ष 1980 में चीन द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों के चलते चीन की अर्थव्यवस्था भी सबसे तेज गति से दौड़ी थी और चीन के आर्थिक विकास में बाहरी कारकों (विदेशी व्यापार) का अधिक योगदान था परंतु आज भारत की आर्थिक प्रगति में घरेलू कारकों का प्रमुख योगदान है। भारत का घरेलू बाजार ही इतना विशाल है कि भारत को विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं करनी पड़ रही है। वैसे भी, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों, विकसित देशों सहित, की आर्थिक स्थिति आज ठीक नहीं है एवं इन देशों के विदेशी व्यापार सहित इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम हो रही है। भारत के आर्थिक विकास की वृद्धि दर तेज करने के सम्बंध में घरेलू कारकों में भारत के नागरिकों द्वारा स्वदेशी के विचार को अपनाया जाना भी शामिल है। आज भारतीय नागरिकों में स्वत्व का बोध स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन बन रहा है बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र के रूप में भी उभर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक स्तर पर सुपर पावर बनने के पीछे भारत के विशाल आंतरिक बाजार को मुख्य कारण बताया जा रहा है। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने भारत में गरीब वर्ग के नागरिकों को बैकों से जोड़ने के लिए जनधन योजना प्रारम्भ की थी। भारतीय नागरिकों में यह स्व का भाव ही था, जिसके चलते बहुत कम समय में इस योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 50 करोड़ बचत खाते विभिन्न बैकों में खोले जा चुके हैं एवं छोटी छोटी बचतों को जोड़कर आज लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इन खातों में जमा की जा चुकी है। भारत ने इस संदर्भ में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है। यह बचत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों को कल का मध्यम वर्ग बनाएगी, इससे देश में विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा तथा देश की आर्थिक उन्नति की गति भी तेज होगी। यह भारतीय सनातन संस्कारों के चलते ही सम्भव हो पाया है। भारत में परिवार अपने खर्चों को संतुलित करते हुए भविष्य के लिए बचत आवश्यक समझते हैं, यह भी स्वत्व का भाव ही दर्शाता है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति का दोहन करना चाहिए, शोषण नहीं। प्रकृति से जितना आवश्यकता है केवल उतना ही लें। साथ ही, आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करना भी हमें सिखाया जाता है। स्वदेशी अपनाने से विभिन्न उत्पादों के आयात में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए, भारतीय नागरिकों की सोच में गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगा है एवं अब वे निम्न गुणवत्ता वाले सस्ते विदेशी उत्पादों का कम उपयोग करने लगे हैं। भारत में ही निर्मित उत्पादों का उपयोग, चाहे वह थोड़े महंगे ही क्यों न हो, बढ़ रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में चीन से कई सस्ते उत्पादों का आयात कम हुआ है। उत्पाद की जितनी आवश्यकता है उतना ही खरीदा जा रहा है एवं भारत में वैश्विक बाजारीकरण की मान्यताओं को बढ़ावा नहीं दिए जाने के भरपूर प्रयास हो रहे हैं। यह समस्त परिवर्तन नागरिकों में स्वत्व की भावना के चलते ही सम्भव हो पा रहा है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति महान रही है और आगे भी रहेगी। हमारी संस्कृति के अनुसार धर्म, कर्म एवं अर्थ, सम्बंधी कार्य मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। अतः अर्थ के क्षेत्र में भी धर्म का पालन करने के प्रयास हो रहे हैं। भारत में 60, 70 एवं 80 के दशकों में हम लगभग समस्त नागरिक हमारे बचपन काल से ही सुनते आए हैं कि भारत एक गरीब देश है एवं भारतीय नागरिक अति गरीब हैं। हालांकि भारत का प्राचीनकाल बहुत उज्जवल रहा है, परंतु आक्रांताओं एवं ब्रिटेन ने अपने शासन काल में भारत को लूटकर एक गरीब देश बना दिया था। अब समय का चक्र पूर्णतः घूमते हुए आज के खंडकाल पर आकर खड़ा हो गया है एवं भारत पूरे विश्व को कई मामलों में अपना नेतृत्व प्रदान करता दिखाई दे रहा है। साथ ही, भारत में विशेष रूप से कोरोना महामारी के बीच एवं इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सनातन संस्कारों का पालन करते हुए गरीब वर्ग के लाभार्थ चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। विशेष रूप से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत देश के 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा प्रदान की गई है एवं इसे कोरोना महामारी के बाद भी जारी रखा गया है, इसके परिणामस्वरूप देश में गरीब वर्ग को बहुत लाभ हुआ है। वर्ष 2022 में विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में 22.5 प्रतिशत नागरिक गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थे परंतु वर्ष 2019 में यह प्रतिशत घटकर 10.2 रह गया है। पिछले दो दशकों के दौरान भारत में 40 करोड़ से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। दरअसल पिछले लगभग 9 वर्षों के दौरान भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। जिसके चलते भारत में गरीबी तेजी से कम हुई है और भारत को गरीबी उन्मूलन के मामले में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। भारत में अतिगरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले करोड़ों नागरिकों का इतने कम समय में गरीबी रेखा के ऊपर आना विश्व के अन्य देशों के लिए एक सबक है। इतने कम समय में किसी भी देश में इतनी तादाद में लोग अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाए हैं ऐसा कहीं नहीं हुआ है। भारत में गरीबी का जो बदलाव आया है वह धरातल पर दिखाई देता है। इससे पूरे विश्व में भारत की छवि बदल गई है। एक और क्षेत्र जिसमें भारतीय आर्थिक दर्शन ने पूरे विश्व को राह दिखाई है, वह है मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण स्थापित करना। दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उत्पादों की मांग कम होने से, कम्पनियों का उत्पादन कम होता है, देश में मंदी फैलने की सम्भावना बढ़ने लगती है, इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा पैदा होने लगता है, सामान्य नागरिकों की ईएमआई में वृद्धि होने लगती है, आदि। अमेरिका में कई कम्पनियों ने इस माहौल में अपनी लाभप्रदता बनाए रखने के लिए 2 लाख से अधिक कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की थी। किसी नागरिक को बेरोजगार कर देना एक अमानवीय कृत्य ही कहा जाएगा। और फिर, अमेरिका में ही इसी माहौल के बीच तीन बड़े बैंक फैल हो गए हैं। यदि इस प्रकार की परिस्थितियां अन्य देशों में भी फैलती हैं तो पूरे विश्व में ही मंदी की स्थिति छा सकती है। पश्चिम की उक्त व्यवस्था के ठीक विपरीत, भारतीय आर्थिक चिंतन में विपुलता की अर्थव्यवस्था के बारे में सोचा गया है, अर्थात अधिक से अधिक उत्पादन करो – “शतहस्त समाहर, सहस्त्रहस्त संकिर” (सौ हाथों से संग्रह करके हजार हाथों से बांट दो) – यह हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है। विपुलता की अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक नागरिकों को उपभोग्य वस्तुएं आसानी से उचित मूल्य पर प्राप्त होती रहती हैं, इससे उत्पादों के बाजार भाव बढ़ने के स्थान पर घटते रहते हैं। भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था में उत्पादों के बाजार भाव लगातार कम होने की व्यवस्था है एवं मुद्रा स्फीति के बारे में तो भारतीय शास्त्रों में शायद कहीं कोई उल्लेख भी नहीं मिलता है। भारतीय आर्थिक चिंतन व्यक्तिगत लाभ केंद्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर मानवमात्र के लाभ को केंद्र में रखकर चलने वाली अर्थव्यवस्था को तरजीह देता है। नागरिकों में स्व का भाव जगा कर, उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करना भी आवश्यक है। इससे आर्थिक गतिविधियों को देशहित में करने की इच्छा शक्ति नागरिकों में जागृत होती है और देश के विकास में प्रबल तेजी दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार का कार्य जापान, ब्रिटेन, इजराईल एवं जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध (1945) के पश्चात सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वर्ष 1925 में, अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय नागरिकों में स्व का भाव जगाने का लगातार प्रयास कर रहा है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक माननीय डॉक्टर मोहन भागवत जी ने अपने एक उदबोधन में बताया है कि दुनिया विभिन्न क्षेत्रों में आ रही समस्याओं के हल हेतु कई कारणों से आज भारत की ओर बहुत उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। यह सब भारतीय नागरिकों में स्व के भाव के जगने के कारण सम्भव हो रहा है और अब समय आ गया है कि भारत के नागरिकों में स्व के भाव का बड़े स्तर पर अवलंबन किया जाय क्योंकि हमारा अस्तित्व ही भारतीयतता के स्व के कारण है। Read more » The results of the sense of self are beginning to be seen in the Indian economy.
आर्थिकी राजनीति दुनिया स्तंभित हो रही है भारत की आर्थिक तरक्की से November 20, 2023 / November 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय वार्ता को संबोधित करते हुए सतत विकास के प्रति देश की प्रतिबद्धता पर बल दिया। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को रेखांकित करते हुए उन्होंने भविष्यवाणी की कि 2027 […] Read more » The world is shocked by India's economic progress
आर्थिकी राजनीति तेज गति से बढ़ रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार November 17, 2023 / November 17, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से विकास की राह पर आगे बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था के आकार में विस्तार से उस देश के नागरिकों की आय में वृद्धि दर्ज होती है इससे गरीब वर्ग के हाथों में भी पैसा पहुंचता है इससे, विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ती है एवं रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं और अंततः गरीब वर्ग की संख्या में कमी होकर देश में मध्यम वर्ग की संख्या बढ़ती है। नीति आयोग के एक प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत के शहरी क्षेत्रों में गरीब वर्ग की संख्या 24.85 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 14.90 प्रतिशत रह गई है। इसमें 9.95 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीब वर्ग की संख्या 32.59 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19.28 प्रतिशत रह गई है। अतः भारत में गरीब वर्ग की संख्या कम हुई है। इसी कारण से वैश्विक रेटिंग संस्थान भारत की रेटिंग को बढ़ाते जा रहे हैं। स्टैंडर्ड एंड पुअर रेटिंग संस्थान ने भारत की विकास दर को वर्ष 2023-24 के लिए 6 प्रतिशत रखा है तो वर्ष 2024-25 के लिए 6.9 प्रतिशत की बात की है। साथ ही इसी संस्थान का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2030 तक 7 लाख 30 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने वाला है। वर्ष 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था 26 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के साथ प्रथम स्थान पर है। दूसरे नम्बर पर चीन आता है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। तीसरे स्थान पर जापान है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 4 लाख 20 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर है। चौथे स्थान पर जर्मनी है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। इस प्रकार भारत अपनी बढ़ी हुई लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर के साथ शीघ्र ही जापान एवं जर्मनी को पछाड़ कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। फिच नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर के अपने पूर्व के अनुमान में सुधार करते हुए इसे वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 6.2 प्रतिशत कर दिया है, पहिले इस वृद्धि दर के 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मूडीज नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारत की विकास दर को वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की है। भारत तेजी से विकास कर रहा है यह त्यौहारों के दौरान बाजारों में उत्पादों की खरीद के लिए उमड़ रही भीड़ से भी साफ दिखाई दे रहा है। भारत24 चैनल पर प्रस्तुत एक कार्यक्रम में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (अर्थात कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में कुल उत्पादन) वर्ष 2022-23 में 282.83 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आ गया है। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद पूरे विश्व में पहिले नम्बर पर है जो 2121.19 लाख करोड़ रुपए का है। इसीलिए अमेरिका पूरी दुनिया का सबसे अमीर एवं ताकतवर देश कहा जाता है। दूसरे नम्बर पर चीन का सकल घरेलू उत्पाद 1497.31 लाख करोड़ रुपए का है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 407.60 लाख करोड़ रुपए का है। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 341.05 लाख करोड़ रुपए का है। इस दृष्टि से भारत दुनिया का 5वां सबसे बड़ा अमीर देश है। वर्ष 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 113.55 लाख करोड़ रुपए का था और वर्ष 2013-14 में भारतीय अर्थव्यवस्था का पूरे विश्व में 10वां नम्बर था। वर्ष 2013-14 में अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 1459.88 लाख करोड़ रुपए का था। चीन का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2013-14 में 871.77 करोड़ का था। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 2013-14 में 349.37 लाख करोड़ रुपए का था। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 323.59 लाख करोड़ रुपए का था। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद इस दौरान 50 प्रतिशत, चीन का 80 प्रतिशत, जापान का 30 प्रतिशत, जर्मनी का 5 प्रतिशत बढ़ा है जबकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 150 प्रतिशत बढ़ा है। इसी गति से भारत आर्थिक प्रगति करता रहा तो निश्चित ही वर्ष 2030 के पूर्व ही भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मेक इन इंडिया योजना के अंतर्गत भी बहुत काम होता दिखाई दे रहा है और भारत में निर्मित वस्तुओं का निर्यात लगतार बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 36 लाख करोड़ रुपए का निर्यात किया है। जबकि वर्ष 2014 में 19.05 लाख करोड़ रुपए का निर्यात हुआ था। यह लगभग दोगुना हो गया है। वर्ष 2023-24 में भारत सरकार ने पूंजीगत व्यय को 10 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया है। इससे रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्ष 2014-15 में भारत में 97,000 किलो मीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग थे, जो 9 वर्ष बाद वर्ष 2023-24 में बढ़कर 145,155 किलोमीटर हो गए हैं। इस दौरान लगभग 50,000 किलोमीटर के नए राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हुए हैं। अब तो गुणवत्ता के मामले में भारत के राजमार्ग अमेरिका के राजमार्गों से टक्कर लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। बेहतरीन राजमार्ग विकसित देश के लिए जरूरी हैं। अच्छे राजमार्गों से बाजार और रोजगार दोनों बढ़ते हैं। आज भारत अपने घर में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग को भी लगातार बढ़ा रहा है। “वोकल फोर लोकल” का नारा अब बुलंद हो रहा है एवं भारतीय नागरिक अब चीन में निर्मित उत्पादों का उपयोग कम करते हुए भारत में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी भी भारतीय नागरिकों को लगातार अपील कर रहे हैं कि भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करें। इसका असर होता दिख भी रहा है। चीन से विभिन्न उत्पादों के आयात में इस त्यौहारी मौसम में कमी आई है और एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष लगभग एक लाख करोड़ रुपए के उत्पादों का आयात चीन से कम हुआ है। चीनी दिवाली लाइट्स के आयात में 32 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। वहीं दूसरी ओर भारत में बनी लाइट्स की बिक्री में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इसका सबसे अधिक फायदा गरीब वर्ग को हो रहा है। हम समस्त भारतीय नागरिकों को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि सड़क के एक किनारे बैठकर कुछ वस्तुएं बेचने वाले गरीब व्यक्ति से अधिक मोलभाव ना करते हुए उनसे वस्तुएं खरीदें ताकि यह वर्ग भी अपनी आय को बढ़ा सके। वैसे भी, जब हम लोग माल से वस्तुएं खरीदते हैं तो कोई माल भाव थोड़ी करते हैं। सकल घरेलू उत्पाद जब बढ़ता है तो लोगों की आय भी बढ़ती है। जब लोगों की आय बढ़ती है तो लोग बाजार में सामान खरीदते हैं। इससे बाजार में उत्पादों की मांग बढ़ती है। उत्पादों की मांग एवं आपूर्ति से उत्पादों की बाजार कीमतें तय होती है। जब किसी भी उत्पाद की मांग तुलनात्मक रूप से अधिक तेजी से बढ़ती है और उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में समय पर नहीं हो पाती है तो उस उत्पाद की बाजार में कीमतें बढ़ने लगती है। जब खर्च करने की क्षमता बढ़ती है तो आप सामान के दाम अधिक देने को भी तैयार रहते हैं। भारत में न केवल आर्थिक विकास में गति आ रही है बल्कि मुद्रा स्थिति भी नियंत्रण में है। यह केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे उपायों के चलते सम्भव हो पा रहा है। भारत की वित्तीय नीतियां महंगाई को रोकने के साथ साथ विकास को भी बढ़ावा दे रही हैं। खाने पीने की वस्तुओं की बाजार कीमतों में कमी होने से अक्टोबर 2023 माह में खुदरा महंगाई की दर में गिरावट आई है और यह चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति की दर सितंबर 2023 माह में पिछले तीन माह के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत पर थी। भारत में आम आदमी का सबसे अधिक खर्च खाने पीने और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बजट में स्वास्थ्य सेवाओं पर 89 000 करोड़ रुपए के व्यय का प्रावधान किया गया है। डॉक्टरों की संख्या में 4 लाख से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में आज 13 लाख से अधिक एलोपेथिक डॉक्टर हैं। इसके अतिरिक्त, 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार भारत में प्रत्येक 834 नागरिकों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। गरीब नागरिकों को मुफ्त इलाज प्रदान करने के लिए आयुषमान स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए गए हैं। इसी प्रकार किसानों के लिए मोदी सरकार ने प्रति क्विंटल गेहूं पर 775 रुपए से, चावल पर 730 रुपए से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। वर्ष 2012-13 में भारत के किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रुपए पाई गई थी जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 10,248 रुपए हो गई है। यूएनडीपी के एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में मिडल क्लास अर्थात मध्यम वर्ग की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर मिडल क्लास की बढ़ रही संख्या में भारत का योगदान 24 प्रतिशत का है। विश्व के कई वित्तीय संस्थानों का मत है कि वर्ष 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसका मतलब यह भी है कि देश में प्रति व्यक्ति आय में और अधिक तेज गति से वृद्धि की सम्भावना है। साथ ही, भारत आज प्रत्येक क्षेत्र में आत्म निर्भर भी बन रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख दीपावली त्यौहार ने दी है भारत को आर्थिक ताकत November 14, 2023 / November 14, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment इस वर्ष दीपावली त्यौहार के धनतेरस के दिन भारतीयों ने विभिन्न उत्पादों की जमकर खरीद की है। भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं एवं भारतीय अर्थव्यवस्था अब बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। इसी कारण से वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर वित्तीय वर्ष 2023-24 के वृद्धिगत सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 15 प्रतिशत के आसपास रह सकती है। भारत ने अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं। भारत में आज आम आदमी की आमदमी बढ़ रही है, आम आदमी की तरक्की जारी हैं एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने के प्रयास लगातार हो रहे हैं। इसी के चलते भारतीय बाजारों में दीपावली के पावन पर्व पर भारी भीड़ एवं रौनक दिखाई दे रही है। भगवान धन्वन्तरि भारतीय नागरिकों पर जैसे धन की वर्षा करते नजर आ रहे हैं। भारत में धनतेरस के दिन किसी भी प्रकार के उत्पाद की खरीददारी को शुभ माना जाता है। विशेष रूप से बर्तन, गहने, वाहन एवं मकान आदि भारी मात्रा में खरीदे जाते हैं। इस वर्ष भारतीय बाजारों में एक और शुभ संकेत दिखाई दे रहा है कि भारतीय नागरिक “वोकल फोर लोकल” एवं “आत्म निर्भर भारत” जैसे विचार से सहमत होते हुए केवल भारत में निर्मित वस्तुओं की जमकर खरीद कर रहे हैं। रीयल एस्टेट सेक्टर, कार डीलर्स, जौहरियों एवं किराना व्यवसायीयों की तो जैसे लॉटरी ही लग गई है। इस वर्ष दीपावली त्यौहार में बाजारों में उमड़ रही भीड़ अपने आप में भारत की आर्थिक शक्ति बनने की कहानी कह रही है। भारतीय ग्राहकों में उत्साह दिख रहा है। ग्राहकों का उत्साह देखकर कारोबारी एवं व्यापारी भी खुश नजर आ रहे हैं। कन्फेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज एसोसीएशन के अनुसार, इस वर्ष दीपावली के त्यौहारी मौसम में देश में 3.75 लाख करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। इस खरीद की विशेष बात यह रही है कि उपभोक्ताओं में चीन में निर्मित माल के स्थान पर भारत में ही निर्मित स्वदेशी सामान की जबरदस्त मांग देखने को मिली है। जबकि षठ पूजा एवं भैया दूज समेत अभी कई त्यौहार आना शेष है, इस प्रकार आगे आने वाले अन्य त्यौहारों के शुभ अवसर पर 50,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यापार होने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। उक्त संस्थान ने “भारतीय उत्पाद – सबका उस्ताद” नामक एक कैम्पेन भी भारत में, हाल ही में प्रारम्भ हुए त्यौहारी मौसम के दौरान, चलाया था, जिसका भारतीय नागरिकों पर जबरदस्त प्रभाव दिखाई दिया है। साथ ही इस वर्ष के त्यौहारी मौसम में चीन को लगभग एक लाख करोड़ रुपए के व्यापार का नुक्सान हुआ है। क्योंकि, इसके पहिले चीन में बनी वस्तुओं की भारतीय बाजारों में 70 प्रतिशत तक बिक्री होती थी परंतु इस वर्ष भारतीय बाजारों में स्वदेशी वस्तुओं की मांग इतनी अधिक थी कि चीन में निर्मित वस्तुओं की बिक्री बहुत ही कम हो गई है। इस वर्ष भारत में दीपावली से सम्बंधित सामान का चीन से आयात नहीं के बराबर हुआ है। एक अनुमान के अनुसार, इस 3.50 लाख करोड़ रुपए के व्यापार में 13 प्रतिशत खाद्य सामग्री एवं किराना की, 9 प्रतिशत ज्वेलरी की, 12 प्रतिशत टेक्स्टायल एवं गारमेंट की, 4 प्रतिशत ड्राई फ़्रूट, मिठाई एवं नमकीन की, 3 प्रतिशत होम डेकोर की, 6 प्रतिशत कास्मेटिक्स की, 8 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मोबाइल की, 3 प्रतिशत भोजन सामग्री एवं पूजा वस्तुओं की, 3 प्रतिशत रसोई एवं बर्तन उपकरण की, 8 प्रतिशत गिफ्ट सामान की, 4 प्रतिशत फर्निशिंग एवं फर्निचर सामान की एवं 25 प्रतिशत ऑटोमोबील, हार्डवेयर सामान, खिलौने सहित अन्य अनेकों वस्तुओं एवं सेवाओं की भागीदारी रही है। भारत में मकानों की बिक्री सम्बंधी आंकड़ों से भी आभास होता है कि भारत में मिडल एवं अपर मिडल क्लास वर्ग की संख्या बढ़ी है। रीयल एस्टेट से जुड़े कारोबारियों का मानना है कि इस वर्ष 1.5 लाख से अधिक लक्जरी और एफोर्डेबल घरों की बिक्री का रिकार्ड बन गया है। वर्ष 2023 की दीपावली के ठीक पूर्व के समय में 1.50 लाख घरों की बिक्री प्रदर्शित करती है कि भारत के नागरिकों की आय में तेज गति से वृद्धि हो रही है। वर्ष 2022 की दीपावली के पूर्व 1.47 लाख घरों की बिक्री हुई थी और वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 1.14 लाख रहा था। जनवरी 2023 से सितम्बर 2023 तक की अवधि में भी भारत में 2.30 लाख लक्जरी और एफोर्डेबल घरों की बिक्री हुई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 5 प्रतिशत अधिक है। रीयल एस्टेट में बूम का मतलब है कि भारत तेज गति से तरक्की कर रहा है। भारत में आम लोगों की जेब तक पैसा पहुंच रहा है। त्यौहारी सीजन में उछाल सिर्फ रीयल एस्टेट सेक्टर में ही नहीं है, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी लगभग इसी प्रकार का त्यौहारी वातावरण दिखाई दिया है। माह अकटोबर 2023 में भारत में 3.90 लाख चार पहिया वाहनों की बिक्री हुई है। जबकि 19 लाख के करीब दोपहिया वाहन भी बिके हैं। नवम्बर 2023 के त्यौहारी मौसम में 4.25 लाख चार पहिया वाहन एवं 20 लाख दो पहिया वाहन बिकने का अनुमान लगाया गया है। इसी प्रकार, एक अन्य अनुमान के अनुसार धनतेरस 2023 के दिन भारत में 50,000 करोड़ रुपए के सोने के आभूषणों की बिक्री हुई है। पिछले वर्ष धनतेरस के दिन 45,000 करोड़ रुपए के सोने के आभूषणों की बिक्री हुई थी। इस प्रकार इस वर्ष सोने के आभूषणों की बिक्री में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में प्रत्येक क्षेत्र में विकास स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। नागरिकों की जेब में पैसा पहुंचा है तभी तो भारत में उक्त वर्णित समस्त क्षेत्रों में भारी तादाद में बिक्री सम्भव हो पा रही है। शादी के मौसम की शुरुआत एवं नवरात्रि त्यौहार के शुरू होने के साथ ही भारत में त्यौहारी मौसम की शुरुआत हो जाती है। दिनांक 8 अकटोबर से ऑनलाइन खुदरा बिक्री के साइट, फ्लिपकार्ट एवं अमेजोन, पर उत्पादों की बिक्री का विशेष त्यौहारी अभियान प्रारम्भ किया गया था और केवल चार दिन में ही केवल उक्त दो कम्पनियों की साइट पर 40,000 करोड़ रुपए का व्यापार कर लिया गया है। भारत के विकास की कहानी की यह तो शुरुआत भर है, आगे आने वाले समय में विकास की इस कहानी को और अधिक गति मिलने की सम्भावना है क्योंकि अभी तक तो केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे पूंजीगत खर्चों का प्रभाव ही इस विकास की कहानी पर दिखाई दे रहा है (केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय किया था और वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 10 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय करने का लक्ष्य निर्धारित किया है) जबकि निजी क्षेत्र भी अब अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने जा रहा है क्योंकि विभिन्न कम्पनियां अपनी उत्पादन क्षमता का 75 प्रतिशत से अधिक उपयोग कर रही है, अतः उन्हें विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना निकट भविष्य में करना ही होगी। साथ ही, विदेशी कम्पनियों के भी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना किये जाने के सम्बंध में सहमति पत्र लगातार प्राप्त हो रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित होने जा रहे हैं जिससे मिडल क्लास की संख्या में और अधिक तेज गति से विस्तार होगा और भारत में ही निर्मित उत्पादों की मांग और अधिक तेज होने जा रही है। प्रहलाद सबनानी Read more » Diwali festival has given economic strength to India