आर्थिकी राजनीति वर्तमान वैश्विक पटल पर भारत के लिए आपदा में अवसर हैं April 11, 2025 / April 11, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment अमेरिका ने अन्य देशों से अमेरिका में होने वाली आयातित उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर विश्व के लगभग समस्त देशों के विरुद्द एक तरह से व्यापार युद्ध छेड़ दिया है। इससे यह आभास हो रहा है आगे आने वाले समय में विभिन्न देशों के बीच सापेक्ष युद्ध न होकर व्यापार युद्ध होने लगेगा। चीन से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर तो अमेरिका ने 145 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है। एक तरह से अमेरिका की ओर से चीन को यह खुली चुनौती है कि अब अपने उत्पादों को अमेरिका में निर्यात कर के बताए। 145 प्रतिशत के आयात कर पर कौन सा देश अमेरिका को अपने उत्पादों का निर्यात कर पाएगा, यह लगभग असम्भव है। इससे चीन की अर्थव्यस्था छिन्न भिन्न हो सकती है, यदि चीन, अमेरिका के स्थान पर विश्व के अन्य देशों को अपने उत्पादों का निर्यात नहीं बढ़ा पाया। बगैर प्रत्यक्ष युद्ध किए, अमेरिका ने चीन पर एक तरह से विजय ही प्राप्त कर ली है और चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान करने के रास्ते खोल दिए हैं, हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। परंतु, ट्रम्प प्रशासन ने विश्व के 75 देशों पर लागू किए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर अन्यथा होने वाले विपरीत प्रभाव को बहुत बड़ी हद्द तक कम कर लिए गया है। अमेरिका संभवत चाहता है कि आर्थिक मोर्चे पर चीन पर इतना दबाव बढ़ाया जाए कि चीन की जनता चीन के वर्तमान सत्ताधरियों के विरुद्ध उठ खड़ी हो और चीन एक तरह से टूट जाए। अमेरिका ने लगभग इसी प्रकार का दबाव बनाकर सोवियत रूस को भी तोड़ दिया था। कुल मिलाकर पूरे विश्व में विभिन्न देशों के बीच अब नए समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के समस्त सदस्य देश आपस में मिलकर अब अपनी सुरक्षा स्वयं करना चाहते हैं। अभी तक ये देश अमेरिका के सखा देश होने के चलते अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहते थे। परंतु, वैश्विक स्तर पर बदली हुई परिस्थितियों के बीच इन देशों का अमेरिका पर विश्वास कम हुआ है एवं यह देश आपस में मिलकर अपनी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करना चाहते हैं। आगे आने वाले समय में यूरोपीयन यूनियन के समस्त देश अपने सुरक्षा बजट में भारी भरकम वृद्धि कर सकते हैं। यहां, भारत के लिए अवसर निर्मित हो सकते हैं क्योंकि भारत में हाल ही के समय में सुरक्षा के क्षेत्र में उत्पादों की नई एवं भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता निर्मित हुई है। भारत आज सुरक्षा के क्षेत्र में तेजी से न केवल आत्म निर्भर हो रहा है बल्कि भारी मात्रा में उत्पादों का निर्यात भी करने लगा है। आज सिंगापुर जैसे विकसित देश भी भारत से सुरक्षा उत्पाद खरीदने हेतु करार करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। यदि यूरोपीयन देशों के साथ भारत की पटरी ठीक बैठ जाती है तो सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद है। भारत, यूरोपीयन देशों के साथ सामूहिक तौर पर द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के प्रयास भी कर रहा है। इसी प्रकार, आगे आने वाले समय में यदि चीन के निर्यात अमेरिका को कम होते हैं तो चीन से विनिर्माण इकाईयों का पलायन तेजी से प्रारम्भ होगा। संभवत इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, टेक्स्टायल क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, प्रेशस मेटल के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है, क्योंकि, उक्त समस्त क्षेत्रों से चीन, अमेरिका को भारी मात्रा में निर्यात करता है। अब 145 प्रतिशत के टैरिफ की दर पर चीन में निर्मित उत्पाद अमेरिका में नहीं बिक पाएंगे। अतः भारत के लिए इन समस्त क्षेत्रों में अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही हैं। टेक्स्टायल के क्षेत्र में तो वर्तमान में भारत के पास बहुत भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता भी उपलब्ध है। टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत के पड़ौसी देश ही अधिक प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं, जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान, चीन, वियतनाम आदि। इस समस्त देशों पर अमेरिका द्वारा लगाई गई टैरिफ की दर, भारत की तुलना में कहीं अधिक है। अतः टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत में निर्मित विभिन्न उत्पाद तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। इसका सीधा सीधा लाभ भारतीय टेक्स्टायल उद्योग द्वारा उठाया जा सकता है। इसी प्रकार, मोबाइल फोन का उत्पादन करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से सैमसंग एवं ऐपल नामक कम्पनियां भारत में अपनी उत्पादन क्षमता में भारी भरकम वृद्धि करने के बारे में विचार कर रही हैं। वर्ष 2024 में भारत से 2040 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात विभिन्न देशों को हुआ हैं, यह वर्ष 2023 में हुए निर्यात की राशि से 44 प्रतिशत अधिक है। और, मोबाइल फोन के निर्यात में हुई इस भारी भरकम वृद्धि में ऐपल एवं सैमसंग कम्पनियों का योगदान सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन प्रोत्साहन योजना का लाभ भी भारत में मोबाइल निर्माता कम्पनियों ने भारी मात्रा में उठाया है। भारत आज स्मार्ट मोबाइल के उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। यदि वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां इसी प्रकार बनी रहती हैं तो शीघ्र ही भारत मोबाइल उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। अन्य क्षेत्रों में उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय बड़ी बड़ी कम्पनियां भी अपनी विनिर्माण इकाईयों को चीन से स्थानांतरित कर भारत में स्थापित कर सकती हैं। कोविड महामारी के खंडकाल के समय भी यह उम्मीद की जा रही थी और चीन+1 नीति का अनुपालन करने के सम्बंध में कई कम्पनियों ने घोषणा की थी परंतु उस समय पर कई कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को ताईवान, वियतनाम, एवं थाईलैंड, आदि जैसे छोटे छोटे देशों में ले गईं थी और इसका लाभ भारत को बहुत कम मिला था। परंतु, आज परिस्थितियां बहुत बदली हुई हैं। छोटे छोटे देशों में बहुत भारी मात्रा में उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने की बहुत सीमाएं हैं। इन देशों में श्रमबल की उपलब्धता सीमित मात्रा में है। जबकि भारत में इस दौरान आधारिक संरचना एवं मूलभूत सुविधाओं में अतुलनीय सुधार हुआ है और भारत में श्रमबल भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। आज जापान, इजराईल, ताईवान, रूस, जर्मनी, फ्रान्स, आस्ट्रेलिया आदि विकसित देश श्रमबल की कमी से जूझ रहे हैं। कई विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर लगभग शून्य के स्तर पर आ गई है। बल्कि, कुछ देशों में तो जनसंख्या में कमी होती हुई दिखाई दे रही है। दूसरे, इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है और इन प्रौढ़ नागरिकों की देखभाल के लिए भी युवा नागरिकों की आवश्यकता है। अब कुछ देशों जैसे जापान, इजराईल, ताईवान आदि ने भारत सरकार से भारतीय नागरिकों के इन देशों में बसाने के बारे में विचार करने को कहा है। इजराईल सरकार ने लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग भारत सरकार से की है, जापान सरकार ने भी लगभग 2 लाख भारतीयों की मांग की है एवं ताईवान सरकार ने भी लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग की है। भारत आज विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे युवा देश है। अतः भारत आज इस स्थिति में है कि अपने नागरिकों को इन देशों में बसाने के लिए भेज सके। वैसे भी विश्व के कई देशों में आज लगभग 4 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं इन देशों की अर्थव्यवथा में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। भारतीय नागरिक वैसे भी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हैं एवं इन देशों में शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करते हैं। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर अपनी ओर से आक्रमण नहीं किया है। भारतीय नागरिक “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना में विश्वास रखते हैं अतः किसी भी देश में वहां के स्थानीय नागरिकों के साथ तुरंत घुलमिल जाते हैं। अतः भारत के लिए विभिन्न देशों को श्रमबल उपलब्ध कराने के क्षेत्र में भी अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है। कुल मिलाकर भारत सरकार ने भी विभिन्न देशों के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को शीघ्रता के साथ अंतिम रूप देना प्रारम्भ कर दिया है क्योंकि आगे आने वाले समय में विश्व व्यापार संगठन की उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाएगी और आगे आने वाले समय में विदेशी व्यापार के क्षेत्र में दो देशों के बीच आपस में किए गए द्विपक्षीय व्यापार समझौते ही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे। अतः भारत सरकार को इन देशों से होने वाले द्विपक्षीय समझौतों में भारत के हितों की रक्षा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। बहुत सम्भव है कि भारत का अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौता आगामी 6 माह के अंदर सम्पन्न हो जाए और फिर भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात के लिए एक नया रास्ता खुल जाए। प्रहलाद सबनानी Read more » भारत के लिए आपदा में अवसर हैं
आर्थिकी लेख शेयर मार्केट में निवेशक: धोखे से कैसे बचें April 10, 2025 / April 10, 2025 by पंकज जायसवाल | Leave a Comment पंकज गांधी जायसवाल डिजिटलीकरण ने मोबाइल सबके हाथ में पकड़ा दिया है और इस यंत्र के सहारे शेयर मार्किट अब देश के आम आदमी की मुट्ठी में आ गया है. एक दशक पूर्व शेयर मार्किट में निवेश करना एक क्लिक बटन दबाने जैसा नहीं था. डिजिटल इंफ़्रा के विकास ने इसे शहरों से लगायत गांव […] Read more » How to avoid fraud in share market Investors in the stock market
आर्थिकी राजनीति भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति में स्टैन्स को स्थिर से उदार किया April 9, 2025 / April 9, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment दिनांक 9 अप्रेल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक बैठक में एकमत से निर्णय लेते हुए रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है एवं इस मौद्रिक नीति में स्टैन्स को स्थिर (स्टेबल) से उदार (अकोमोडेटिव) कर दिया है। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि नहीं करते हुए इसे या तो स्थिर रखेगा अथवा इसमें कमी की घोषणा करेगा। भारत में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने में मिली सफलता के चलते भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह निर्णय लिया जा सका है। हाल ही के समय में अमेरिका द्वारा अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जिससे पूरे विश्व भर के लगभग समस्त देशों के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है एवं शेयर बाजार लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं। ऐसे माहौल में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने की घोषणा एक उचित कदम ही कहा जाना चाहिए। वैसे भारत में मुद्रा स्फीति अब नियंत्रण में भी आ चुकी है एवं आगे आने वाले मानसून के दौरान भारत में सामान्य (103 प्रतिशत) बारिश होने का अनुमान लगाया गया है। इस वर्ष रबी के मौसम में गेहूं की बम्पर पैदावार होने का अनुमान लगाया गया है, सब्जियों एवं फलों की कीमत भारतीय बाजारों में कम हुई है, अतः कुल मिलाकर खुदरा महंगाई की दर 4 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी वर्ष 2025-26 में भारत में मुद्रा स्फीति की दर के 4 प्रतिशत के नीचे रहने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर लगातार बदल रहे घटनाक्रम के चलते कच्चे तेल के दाम भी तेजी से घटे हैं और यह 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से घटकर 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। भारत के लिए यह बहुत अच्छी खबर है, क्योंकि, इससे विनिर्माण इकाईयों की लाभप्रदता में वृद्धि होगी तथा देश में ईंधन की कीमतें कम होंगी और अंततः मुद्रा स्फीति की दर में और अधिक कमी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के लिए इससे आगामी मौद्रिक नीति के माध्यम से रेपो दर में और अधिक कटौती करना सम्भव एवं आसान होगा। वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है और भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रह सकती है और पूर्व में इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, अर्थात, अमेरिका द्वारा अपने देश में होने वाले आयात पर लगाए गए टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर केवल 0.2 प्रतिशत का असर होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था दरअसल निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर भी नहीं है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16-17 प्रतिशत भाग ही अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। इसमें से भी अमेरिका को तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 2 प्रतिशत भाग ही निर्यात होता है। अतः ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों पर अलग अलग दर से लगाए गए टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नगण्य सा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित समस्याओं के बीच भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2028 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर बनी रहेगी। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इस वर्ष के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का स्तर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा, जो भारतीय रुपए में लगभग 360 लाख करोड़ रुपए बनता है। वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2024 तक के पिछले 10 वर्षों के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना हो गया है। वर्ष 2015 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (रुपए 180 लाख करोड़) का था और भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 10वें क्रम पर था। वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना होकर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं जिससे विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। साथ ही, भारत में आधारभूत संरचना खड़ी करने के लिए केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में भारी भरकम वृद्धि दर्ज हुई है। देश में विदेशी निवेश का लगातार विस्तार हो रहा है और रोजगार के अवसरों में भी अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पी एल आई) लागू की गई है। मुद्रा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार की गारंटी पर भारतीय बैकों (निजी एवं सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित) ने 33 लाख करोड़ रुपए के ऋणों का वितरण किया है। भारत में अनियमित जलवायु परिस्थितियों के बीच भी पिछले 10 वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में विस्तार हुआ है जिससे किसानों की आय को स्थिर रखने में सफलता मिली है। साथ ही, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की केंद्र सरकार ने विशेष सरकारी योजनाओं एवं सब्सिडी के माध्यम से बहुत अच्छे स्तर पर सहायता की है। इससे इस श्रेणी के कई परिवार अब मध्यम श्रेणी में आ गए हैं एवं भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग की वृद्धि में सहायक बन रहे हैं। देश में लागू किए गए डिजीटलाईजेशन से भी भारत में किए जाने वाले लेनदेन के व्यवहारों में पारदर्शिता आई है और इससे भारत में वस्तु एवं सेवा कर एक उपलब्धि सिद्ध हुआ है। आज भारत में वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर संग्रहित हो रहा है तथा इससे देश में बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भरपूर सहायता मिली है। भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के पश्चात विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने लम्बी छलांग लगाते हुए, विश्व में 10वें से आज 5वें स्थान पर आ गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकलन के अनुसार पिछले 10 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 100 प्रतिशत बढ़ा है तो अमेरिका का 65.8 प्रतिशत, चीन का 75.8 प्रतिशत, जर्मनी का 43.7 प्रतिशत और जापान का केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बनी रहेगी, इस प्रकार भारत वर्ष 2026 में जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2028 में जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जर्मनी, जापान एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बहुत ही थोड़ा अंतर है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 4.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, वहीं भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है। यदि भारत में आगे आने वाले वर्षों में मुद्रा स्फीति पर अंकुश कायम रहता है एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आगे आने वाले समय में ब्याज दरों में लगातार कमी की जाती है तो भारत अपनी आर्थिक विकास दर को 6.5 प्रतिशत से भी आगे ले जा सकने में सफल हो सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा नीति में स्टैन्स को स्थिर से उदार करने के निहितार्थ हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » RBI changed monetary policy stance from stable to accommodative भारतीय रिजर्व बैंक
आर्थिकी राजनीति टैरिफ युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं होगा अधिक प्रभाव April 7, 2025 / April 7, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment दिनांक 2 अप्रेल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा, विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयातित उत्पादों पर की गई टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही अंततः अमेरिका द्वारा पूरे विश्व में टैरिफ के माध्यम से व्यापार युद्ध छेड़ दिया गया है। अभी, अमेरिका ने विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर विभिन्न दरों पर टैरिफ लगाया है। अब इनमें से कई देश अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर रहे हैं, जैसे चीन ने अमेरिका से चीन में आयात होने वाले उत्पादों पर दिनांक 10 अप्रैल 2025 से 34 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है। टैरिफ के माध्यम से छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारत पर कोई बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना कम ही है। दरअसल, अमेरिका ने विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर अलग अलग दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है और साथ ही कुछ उत्पादों के आयात पर फिलहाल टैरिफ की नई दरें लागू नहीं की गई हैं। टैरिफ की यह दरें 9 अप्रैल 2025 से लागू होंगी। विभिन्न देशों से अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत की दर से न्यूनतम टैरिफ लगाया गया है। साथ ही, कुछ अन्य देशों यथा चीन से आयातित उत्पादों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। इसी प्रकार, वियतनाम से आयातित उत्पादों पर 46 प्रतिशत, ताईवान पर 32 प्रतिशत, थाईलैंड पर 36 प्रतिशत, भारत पर 26 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत, इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 31 प्रतिशत, मलेशिया पर 24 प्रतिशत, कम्बोडिया पर 49 प्रतिशत, दक्षिणी अफ्रीका पर 30 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत, श्रीलंका पर 44 प्रतिशत और इसी प्रकार अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भी अलग अलग दरों से टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। कुछ उत्पादों जैसे, स्टील, एल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, एनर्जी, बुलीयन एवं अन्य महत्वपूर्ण मिनरल्स को अमेरिका में आयात पर टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है। अमेरिका का मानना है कि वैश्विक स्तर पर अन्य देश अमेरिका में उत्पादित वस्तुओं के आयात पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका में इन देशों से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर अमेरिका द्वारा बहुत कम दर पर टैरिफ लगाया जाता है अथवा बिलकुल नहीं लगाया जाता है। जिससे, अमेरिका से इन देशों को निर्यात कम हो रहे हैं एवं इन देशों से अमेरिका में आयात लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस प्रकार, अमेरिका का व्यापार घाटा असहनीय स्तर पर पहुंच गया है। इसके साथ साथ, अमेरिका में विनिर्माण इकाईयां बंद होकर अन्य देशों में स्थापित हो गई हैं और इससे अमेरिका में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। अब ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका को पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने के उद्देश्य से अमेरिका को पुनः महान बनाने का आह्वान किया है और इसी संदर्भ में विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाने का निर्णय लिया गया है ताकि अमेरिका में आयातित उत्पाद महंगे हों और अमेरिकी नागरिक अमेरिका में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने की ओर प्रेरित हों। वर्तमान में बढ़े हुए टैरिफ का बोझ अमेरिकी नागरिकों को उठाना पड़ेगा और उन्हें अमेरिका में महंगे उत्पाद खरीदने होंगे, क्योंकि नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना में तो वक्त लग सकता है, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन तुरंत तो बढ़ाया नहीं जा सकता अतः जब तक नई विनिर्माण इकाईयों की अमेरिका में स्थापना हो एवं इन विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन शुरू हो तब तक अमेरिकी नागरिकों को महंगे उत्पाद खरीदने हेतु बाध्य होना पड़ेगा। इससे अमेरिका में एक बार पुनः मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं ब्याज दरों के कम होने के चक्र में भी देरी होगी, बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति को कम करने की दृष्टि से एक बार पुनः कहीं ब्याज दरों के बढ़ने का चक्र प्रारम्भ न हो जाए। लम्बे समय में जब अमेरिका में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो जाएगी एवं इन इकाईयों में उत्पादन प्रारम्भ हो जाएगा तब जाकर कहीं मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाया जा सकेगा। विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही, डॉलर पर दबाव पड़ना शुरू भी हो चुका है एवं अमेरिकी डॉलर इंडेक्स घटकर 102 के स्तर पर नीचे आ गया है जो कुछ समय पूर्व तक लगभग 106 के स्तर पर आ गया था। इसी प्रकार अमेरिका में सरकारी प्रतिभूतियों की 10 वर्ष की बांड यील्ड पर भी दबाव दिखाई दे रही है और यह घटकर 4.08 के स्तर पर नीचे आ गई है, यह कुछ समय पूर्व तक 4.70 के स्तर से भी ऊपर निकल गई थी। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़नी प्रारम्भ हो गई है एवं यह पिछले चार माह के उच्चतम स्तर, लगभग 85 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर, पर आ गई है। ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी लिए गए निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर लम्बी अवधि में तो हो सकता है परंतु छोटी अवधि में तो निश्चित ही यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करते हुए दिखाई दे रहा है। अमेरिकी पूंजी बाजार (शेयर बाजार) केवल दो दिनों में ही लगभग 10 प्रतिशत तक नीचे गिर गया है और अमेरिकी निवेशकों को लगभग 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। इतनी भारी गिरावट तो वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान ही देखने को मिली थी। यदि यही स्थिति बनी रही तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था कहीं मंदी की चपेट में न आ जाय। यदि ऐसा होता है तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। अतः ट्रम्प प्रशासन का टैरिफ सम्बंधी उक्त निर्णय अति जोखिम भरा ही कहा जाएगा। जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कुछ तो विपरीत असर होगा ही। इस संदर्भ में किए गए विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि बहुत सम्भव है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए 26 प्रतिशत के टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव नहीं हो। क्योंकि, एक तो भारत से अमेरिका को निर्यात बहुत अधिक नहीं है। यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र लगभग 3-4 प्रतिशत ही है। वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर नहीं है एवं यह विभिन्न उत्पादों की आंतिरक मांग पर अधिक निर्भर है। भारत से सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16 प्रतिशत (वस्तुएं एवं सेवा क्षेत्र मिलाकर) ही निर्यात किया जाता है। दूसरे, भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने कुछ उत्पादों को उक्त टैरिफ व्यवस्था से फिलहाल मुक्त रखा गया है, जैसे फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, स्टील, अल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, बुलीयन, एनर्जी आदि। संभवत: इन उत्पादों के भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुछ भी असर नहीं होने जा रहा है। तीसरे, भारतीय कम्पनियों (26 प्रतिशत टैरिफ) को रेडीमेड गर्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात में पड़ौसी देशों, यथा, बांग्लादेश (37 प्रतिशत टैरिफ), पाकिस्तान (29 प्रतिशत टैरिफ), श्रीलंका (44 प्रतिशत टैरिफ), वियतनाम (46 प्रतिशत टैरिफ), चीन (34 प्रतिशत टैरिफ), इंडोनेशिया (32 प्रतिशत टैरिफ), आदि के साथ अत्यधिक स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। परंतु, उक्त समस्त देशों से अमेरिका को होने वाले रेडीमेड गार्मेंट्स के निर्यात पर भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगाए जाने की घोषणा की गई है। अत: इन देशों से रेडीमेड गार्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात भारत की तुलना में महंगे हो जाएंगे, इससे रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में भारत के लिए लाभ की स्थिति निर्मित होती हुई दिखाई दे रही है। इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कृषि उत्पादों के निर्यात भी भारत से अमेरिका को बढ़ सकते हैं। यदि किन्ही क्षेत्रों में भारत को नुक्सान होता हुआ दिखाई भी देता है तो भारत के विश्व के अन्य देशों के साथ बहुत अच्छे राजनैतिक संबंधो के चलते भारत को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाशने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। वैसे भी, अमेरिका सहित भारत के यूरोपीयन देशों, ब्रिटेन एवं खाड़ी के देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सम्पन्न करने हेतु वार्ताएं लगभग अंतिम दौर में पहुंच गईं हैं, इसका लाभ भी भारत को होने जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शीघ्र ही मोनेटरी पॉलिसी के माध्यम से रेपो दरों में परिवर्तन की घोषणा की जाने वाली है। भारत में चूंकि मुद्रा स्फीति की दर लगातार गिरती हुई दिखाई दे रही है अतः भारत में रेपो दर में 75 से 100 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा की जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत में कुछ कमी सम्भव होगी, जिसके चलते भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। हालांकि, केवल ब्याज दरों के कमी करके पूंजी की लागत को कम करने से काम चलने वाला नहीं है, भारत को भूमि एवं श्रम की लागतों को भी कम करने की आवश्यकता है तथा उत्पादकता में सुधार करने की भी आवश्यकता है ताकि भारत में निर्मित होने वाले उत्पादों की कुल लागत में कमी हो एवं यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अन्य देशों के मुक़ाबले में टिक सकें। वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक, सामरिक, रणनीतिक, राजनैतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों में आमूल चूल परिवर्तन होता हुआ दिखाई दे रहा है, परिवर्तन के इस दौर में भारतीय कम्पनियां कितना लाभ उठा सकती हैं यह भारतीय कम्पनियों के कौशल पर निर्भर करेगा। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा शीघ्रता से अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देकर भी वैश्विक स्तर पर निर्मित हुई उक्त परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सकता है। Read more » Tariff war will not have much impact on Indian economy टैरिफ युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था
आर्थिकी राजनीति अमेरिकी टैरिफ: भारत को नुकसान या फायदा ? April 5, 2025 / April 7, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ की घोषणा की है। गौरतलब है कि ट्रंप के 60 देशों पर पारस्पिरक टैरिफ लगाया है। इनमें भारत भी शामिल है। अमेरिका ने भारत पर 27 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया है। यहां यदि हम टैरिफ की बात करें तो यह वस्तुओं के आयात पर […] Read more » अमेरिकी टैरिफ
आर्थिकी खान-पान खेत-खलिहान कृषि क्षेत्र में करवट बदलता भारत April 1, 2025 / April 1, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। जबकि, कृषि क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत के आस पास बना हुआ है। इस प्रकार, भारत में यदि गरीबी को जड़ मूल से नष्ट करना है तो कृषि के क्षेत्र में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करना ही होगा। भारत ने हालांकि आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त सफलताएं अर्जित की हैं और भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तथा शीघ्र ही अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। साथ ही, भारत आज विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था भी बन गया है। परंतु, इसके आगे की राह अब कठिन है, क्योंकि केवल सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र के बल पर और अधिक तेज गति से आगे नहीं बढ़ा जा सकता है और कृषि क्षेत्र में आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना होगा। भारत में हालांकि कृषि क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं और भारत आज कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया है। परंतु, अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। किसानों के पास पूंजी का अभाव रहता था और वे बहुत ऊंची ब्याज दरों पर महाजनों से ऋण लेते थे और उनके जाल में जीवन भर के लिए फंस जाते थे, परंतु, आज इस समस्या को बहुत बड़ी हद्द तक हल किया जा सका है और किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसान को आसान नियमों के अंतर्गत बैकों से पर्याप्त ऋण की सुविधा उपलब्ध है और इस सुविधा का लाभ आज देश के करोड़ों किसान उठा रहे हैं। दूसरे, इसी संदर्भ में किसान सम्मान निधि योजना भी किसानों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही है और इस योजना का लाभ भी करोड़ों किसानों को मिल रहा है। इससे किसानों की कृषि सम्बंधी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के सफलता मिली है। भारतीय कृषि आज भी मानसून पर निर्भर है। देश के ग्रामीण इलाकों में सिंचाई सुविधाओं का अभाव है। इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से भारत सरकार प्रति बूंद अधिक फसल की रणनीति पर काम कर रही है एवं सूक्ष्म सिंचाई पर बल दिया जा रहा है ताकि कृषि के क्षेत्र में पानी के उपयोग को कम किया जा सके तथा जल संरक्षण के साथ सिंचाई की लागत भी कम हो सके। देश में कृषि जोत हेतु पर्याप्त भूमि का अभाव है और देश में सीमांत एवं छोटे किसानों की संख्या करोड़ों की संख्या में हो गई है। जिससे यह किसान किसी तरह अपना और परिवार का भरण पोषण कर पा रहे हैं इनके लिए कृषि लाभ का माध्यम नहीं रह गया है। इन तरह की समस्याओं के हल हेतु अब केंद्र सरकार विभिन्न उत्पादों के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य में, मुद्रा स्फीति को ध्यान में रखकर, वृद्धि करती रहती है, इससे किसानों को अत्यधिक लाभ हो रहा है। भंडारण सुविधाओं (गोदामों एवं कोल्ड स्टोरेज का निर्माण) में पर्याप्त वृद्धि दर्ज हुई है एवं साथ ही परिवहन सुविधाओं में सुधार के चलते किसान कृषि उत्पादों को लाभ की दर पर बेचने में सफल हो रहे है अन्यथा इन सुविधाओं में कमी के चलते किसान अपने कृषि उत्पादों को बाजार में बहुत सस्ते दामों पर बेचने पर मजबूर हुआ करता था। खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना भारी मात्रा में की जा रही है इससे कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन को बढ़ावा मिल रहा है एवं कृषि उत्पादों की बर्बादी को रोकने में सफलता मिल रही है। आज भारत में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उपयोग पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता कम हो एवं कृषि उत्पादकता बढ़े। इस संदर्भ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी किसानों की मदद कर रही है इससे किसान कृषि भूमि पर मिट्टी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कृषि उत्पाद कर रहे हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार को स्थापित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसान सीधे ही उपभोक्ता को उचित दामों पर अपनी फसल को बेच सके। साथ ही, कृषि फसल बीमा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश में सूखे, अधिक वर्षा, चक्रवात, अतिवृष्टि, अग्नि आदि जैसी प्रकृतिक आपदाओं के चलते प्रभावित हुई फसल के नुक्सान से किसानों को बचाया जा सके। आज करोड़ों की संख्या में किसान फसल बीमा योजना का लाभ उठा रहे हैं। देश में खेती किसानी का काम पूरे वर्ष भर तो रहता नहीं है अतः किसानों के लिए अतिरिक्त आय के साधन निर्मित करने के उद्देश्य से डेयरी, पशुपालन, मधु मक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन आदि कृषि सहायक क्षेत्रों पर भी ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को अतिरिक्त आय की सुविधा मिल सके। विश्व के विभिन्न देशों ने अपनी आर्थिक प्रगति के प्रारम्भिक चरण में कृषि क्षेत्र का ही सहारा लिया है। औद्योगिक क्रांति तो बहुत बाद में आती है इसके पूर्व कृषि क्षेत्र को विकसित अवस्था में पहुंचाना होता है। भारत में भी आज कृषि क्षेत्र, देश की अर्थव्यवस्था का आधार है, जो न केवल खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि करोड़ों नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी निर्मित करता है। साथ ही, औद्योगिक इकाईयों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराता है। वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र की महत्ता आगे आने वाले समय में भी इसी प्रकार बनी रहेगी क्योंकि इस क्षेत्र से पूरी दुनिया के नागरिकों के लिए भोजन, उद्योग के लिए कच्चा माल एवं रोजगार के अवसर कृषि क्षेत्र से ही निकलते रहेंगे। हां, कृषि क्षेत्र में आज हो रही प्रौद्योगिकी में प्रगति के चलते किसानों को कम भूमि पर, मशीनों का उपयोग करते हुए, कम पानी की आवश्यकता के साथ भी अधिक उत्पादन करना सम्भव हो रहा है। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ कृषि उत्पाद की लागत कम हो रही है और किसानों के लिए खेती एक उद्योग के रूप में पनपता हुआ दिखाई दे रहा है और अब यह लाभ का व्यवसाय बनता हुआ दिखाई देने लगा है। केला, आम, अमरूद, पपीता, नींबू जैसे कई ताजे फलों एवं चना, भिंडी जैसी सब्जियों, मिर्च, अदरक जैसे प्रमुख मसालों, जूट जैसी रेशेदार फसलों, बाजरा एवं अरंडी के बीज जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों एवं दूध के उत्पादन में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। दुनिया के प्रमुख खाद्य पदार्थों यथा गेहूं एवं चावल का भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत वर्तमान में कई सूखे मेवे, कृषि आधारित कपड़े, कच्चे माल, जड़ और कांड फसलों, दालों, मछली पालन, अंडे, नारियल, गन्ना एवं कई सब्जियों का पूरे विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत 80 प्रतिशत से अधिक कृषि उपज फसलों (काफी एवं कपास जैसी नकदी फसलों सहित) के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था। साथ ही, भारत सबसे तेज विकास दर के साथ पशुधन एवं मुर्गी मांस के क्षेत्र में दुनिया के पांच सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल हो गया है। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में किसी भी दृष्टि से कृषि क्षेत्र के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है क्योंकि उद्योग एवं सेवा क्षेत्र का विकास भी कृषि क्षेत्र के विकास पर ही निर्भर करता है। अधिकतम उपभोक्ता तो आज भी ग्रामीण इलाकों में ही निवास कर रहे हैं एवं उद्योग क्षेत्र में निर्मित उत्पादों की मांग भी ग्रामीण इलाकों से ही निकल रही है। अतः देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना ही होगा। प्रहलाद सबनानी Read more » India changing its stance in agriculture sector कृषि क्षेत्र में करवट बदलता भारत
आर्थिकी टेलिविज़न बच्चों का पन्ना मनोरंजन Byju’s: भारत की सबसे बड़ी एजुकेशन कंपनी का पतन March 25, 2025 / March 25, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा एक समय था जब बायजूस को भारत की सबसे बड़ी और सफल एजुकेशन टेक्नोलॉजी (एडटेक) कंपनी के रूप में देखा जाता था। यह कंपनी बच्चों और युवाओं के लिए ऑनलाइन लर्निंग का सबसे प्रभावशाली माध्यम बन चुकी थी। बायजूस के संस्थापक बायजू रविंद्रन ने अपने टीचिंग के अनोखे अंदाज और बिजनेस मॉडल […] Read more » Byju's: The fall of India's largest education company
आर्थिकी राजनीति मोदी युग में उभरते भारत का दशक: भारत की ऐतिहासिक आर्थिक वृद्धि के 12 प्रमुख कारण March 25, 2025 / March 25, 2025 by पंकज जायसवाल | Leave a Comment पंकज जायसवाल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुद्रास्फीति संशोधित आंकड़ों के अनुसार भारत ने पिछले दशक में 77 फीसदी की असाधारण GDP वृद्धि दर्ज की है। नॉमिनल जीडीपी की बात करें तो यह वृद्धि और भी प्रभावशाली है, 2.1 ट्रिलियन डॉलर से 4.3 ट्रिलियन डॉलर तक की यानी कुल 105 फीसदी की वृद्धि जो विश्व की […] Read more » 12 Key Reasons for India's Historic Economic Growth मोदी युग में उभरते भारत का दशक
आर्थिकी लेख पेंशन की लड़ाई: कर्मचारियों का हक़ या सरकारी बोझ?” March 25, 2025 / March 25, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment भारत में 2004 से पहले सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना (OPS) के तहत पेंशन दी जाती थी। इसके तहत— सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन निश्चित पेंशन मिलती थी। अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था। महंगाई भत्ता (DA) जुड़ा होता था, जिससे समय-समय पर पेंशन बढ़ती रहती थी। सरकार द्वारा पूरी […] Read more » पुरानी पेंशन योजना (OPS) पेंशन
आर्थिकी राजनीति “मोदी-मंत्रों” के साथ विकास की ऊँची उड़ान का संकल्प : मध्यप्रदेश सरकार का बजट March 19, 2025 / March 19, 2025 by रमेश शर्मा | Leave a Comment –रमेश शर्मा डाॅ मोहन यादव के नेतृत्व में काम कर रही मध्यप्रदेश सरकार का यह बजट बहुआयामी है। इसमें विकसित मध्यप्रदेश की रूपरेखा के साथ प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के तीनों मंत्र की झलक है। मोदीजी के ये तीन मंत्र “विकास के साथ विरासत” “gyan का सम्मान” और “लोकल फाॅर वोकल” हैं । इस बजट आत्मनिर्भर […] Read more » The resolve to fly high on the path of development with "Modi-Mantras": Budget of Madhya Pradesh Government मध्यप्रदेश सरकार का बजट
आर्थिकी राजनीति ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों से कैसे निपटे भारत March 17, 2025 / March 17, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को लगातार बढ़ाते जाने की घोषणा कर रहा है क्योंकि ट्रम्प प्रशासन के अनुसार इन देशों द्वारा अमेरिका से किए जा रहे विभिन्न उत्पादों के आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है। भारत ने वर्ष 2024 में अमेरिका को लगभग 74,000 करोड़ रुपए की दवाईयों का निर्यात किया है। 62,000 करोड़ रुपए के टेलिकॉम उपकरणों का निर्यात क्या है, 48,000 करोड़ रुपए के पर्ल एवं प्रेशस स्टोन का निर्यात किया है, 37,000 करोड़ रुपए के पेट्रोलीयम उत्पादों का निर्यात किया है, 30,000 करोड़ रुपए के स्वर्ण एवं प्रेशस मेटल का निर्यात किया है, 26,000 करोड़ रुपए की कपास का निर्यात किया है, 25,000 करोड़ रुपए के इस्पात एवं अल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात किया है, 23,000 करोड़ रुपए सूती कपड़े का निर्यात का किया है, 23,000 करोड़ रुपए की इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात किया है एवं 22,000 करोड़ रुपए के समुद्रीय उत्पादों का निर्यात किया है। इस प्रकार, विदेशी व्यापार के मामले में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा साझीदार है। अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते रहे तो अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़कर 40 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकती है, जो हाल ही में जे पी मोर्गन द्वारा 31 प्रतिशत एवं गोल्डमैन सैचस 24 प्रतिशत बताई गई थी। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है। हालांकि, ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ को बढ़ाए जाने सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत के लिए स्वर्णिम अवसर भी बन सकता है। क्योंकि, भारतीय जब भी दबाव में आते हैं तब तब वे अपने लिए बेहतर उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं। इतिहास इसका गवाह है, कोविड महामारी के खंडकाल में भी भारत ने दबाव में कई उपलब्धयां हासिल की थीं। भारत ने कोविड के खंडकाल में 100 से अधिक देशों को कोविड बीमारी से सम्बंधित दवाईयां एवं टीके निर्यात करने में सफलता हासिल की थी। विदेशी व्यापार के मामले में चीन, कनाडा एवं मेक्सिको अमेरिका के बहुत महत्वपूर्ण भागीदार हैं। वर्ष 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, उक्त तीनों देश लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार प्रतिवर्ष अमेरिका के साथ करते हैं। इसके बावजूद अमेरिका ने उक्त तीनों के साथ व्यापार युद्ध प्रारम्भ कर दिया है। भारत के साथ अमेरिका का केवल 11,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही व्यापार था। अब ट्रम्प प्रशासन की अन्य देशों से यह अपेक्षा है कि वे अमेरिकी उत्पादों के आयात पर टैरिफ कम करे अथवा अमेरिका भी इन देशों से हो रहे विभिन्न उत्पादों पर उसी दर से टैरिफ वसूल करेगा, जिस दर पर ये देश अमेरिका से आयातित उत्पादों पर वसूलते हैं। यह सही है कि भारत अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर अधिक टैरिफ लगाता है क्योंकि भारत अपने किसानों और व्यापारियों को बचाना चाहता है। भारत में कृषि क्षेत्र के उत्पादों पर 25 से 100 प्रतिशत तक आयात कर लगाया जाता है जबकि कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर कर की मात्रा बहुत कम हैं। भारत ने विनिर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ा ली है परंतु कृषि क्षेत्र में अभी भी अपनी उत्पादकता बढ़ाना है। हाल ही के समय में भारत ने कई उत्पादों के आयात पर टैरिफ की दर घटाई भी है। भारत के साथ दूसरी समस्या यह भी है कि यदि भारत आयातित उत्पादों पर टैरिफ कम करता है तो भारत में इन उत्पादों के आयात बढ़ेंगे और भारत को अधिक अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता पड़ेगी इससे भारतीय रुपये का और अधिक अवमूल्यन होगा तथा भारत में मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। विदेशी निवेश भी कम होने लगेगा और अंततः भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी। भारत में सप्लाई चैन पर दबाव भी बढ़ेगा। इन समस्त समस्याओं का हल है कि भारत अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करे। परंतु, अन्य देश चाहते हैं कि द्विपक्षीय समझौतों में कृषि क्षेत्र को भी शामिल किया जाय, इसका रास्ता आपसी चर्चा में निकाला जा सकता है। अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते सम्पन्न करने की चर्चा तेज गति से चल रही है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान यह घोषणा की गई थी कि भारत और अमेरिका के बीच विदेशी व्यापार को 50,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के स्तर पर लाए जाने के प्रयास किए जाएंगे। इस सम्बंध में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर तेजी से काम चल रहा है। दूसरे, अब भारत को उद्योग एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ानी होगी। हर क्षेत्र में लागत कम करनी होगी ताकि भारत में उत्पादित वस्तुएं विश्व के अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में खाड़ी हो सकें। भारत में रिश्वतखोरी की लागत को भी समाप्त करना होगा। भारत में निचले स्तर पर घूसखोरी की लागत बहुत अधिक है। भूमि, पूंजी, श्रम, संगठन एवं तकनीकि की लागत कम करनी होगी। कुल मिलाकर व्यवहार की लागत को भी कम करना होगा। भारतीय उद्योगों को अन्य देशों के उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना ही इस समस्या का हल है ताकि भारतीय उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद अन्य देशों के साथ विशेष रूप से गुणवत्ता एवं लागत के मामले में प्रतिस्पर्धा कर सकें। निजी क्षेत्र को लगातार प्रोत्साहन देना होगा ताकि निजी क्षेत्र का निवेश उद्योग के क्षेत्र में बढ़ सके। आज भारत में पूंजीगत खर्चे केवल केंद्र सरकार द्वारा ही बहुत अधिक मात्रा में किए जा रहे हैं। आज देश में हजारों टाटा, बिरला, अडानी एवं अम्बानी चाहिए। केवल कुछ भारतीय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से अब काम चलने वाला नहीं हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने का समय अब आ गया है। तीसरे, मेक इन इंडिया ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का सही जवाब है। आज भारत को सही अर्थों में “आत्मनिर्भर भारत” बनाए जाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत के लिए केवल अमेरिका ही विदेशी व्यापार के मामले में सब कुछ नहीं होना चाहिए, भारत को अपने लिए नित नए बाजारों की तलाश भी करनी होगी। एक ही देश पर अत्यधिक निर्भरता उचित नहीं है। स्वदेशी उद्योगों को भी बढ़ावा देना ही होगा। प्रहलाद सबनानी Read more » How should India deal with the Trump administration's tariff decisions? ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णय
आर्थिकी राजनीति आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे February 17, 2025 / February 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में गुरुवार को 64 साल पुराने आयकर कानून-1961 के सरलीकरण और इसमें चले आ रहे बेवजह के प्रविधानों को समाप्त करने के उद्देश्य से नया इनकम टैक्स बिल-2025 पेश कर दिया। 622 पन्नों के इस विधेयक में 536 धाराएं शामिल हैं। जबकि आयकर कानून-1961 में 1647 पन्ने और […] Read more » Simplification of income tax law will reduce disputes. आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे