आलोचना राजनीति शख्सियत गांधी का विकल्प किसी के पास नहीं है ! September 29, 2025 / September 29, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment सभी राजनीतिक दल जाति, धर्म, क्षेत्रीयता और भाषाई दलदल में फंसे हैं और गांधी की सेवा की राजनीति को त्यागकर सत्ता बल, धन बल और भुज बल की राजनीति को अपनाकर इस लोकतंत्र को साम, दाम, दंड, भेद से लहूलुहान कर रहे हैं। Read more » No one has an alternative to Gandhi महात्मा गांधी
आलोचना क्या देश की व्यवस्था जनता के लिए है ? July 30, 2025 / July 30, 2025 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी किसी भी देश को चलाने के लिए एक व्यवस्था की जरूरत होती है ताकि वो देश सुचारू रूप से चलता रहे । यह व्यवस्था उस देश की जनता की सेवा के लिए होती है लेकिन हमारे देश की व्यवस्था कुछ अलग है । हमारे देश की व्यवस्था जनता के लिए नहीं है […] Read more » Is the system of the country for the people? देश की व्यवस्था जनता के लिए
आलोचना साहित्य कहीं महंगा न पड़ जाये आस्था से मजाक July 7, 2025 / July 7, 2025 by सचिन त्रिपाठी | Leave a Comment सचिन त्रिपाठी भारत की सांस्कृतिक परंपरा पर्वों की उस रंग-बिरंगी माला के समान है जिसका प्रत्येक मनका किसी ऋतु, किसी फसल, किसी प्राकृतिक तत्व या किसी लौकिक सत्य से बंधा हुआ है। यहां उत्सव केवल उल्लास नहीं, ऋतुओं का स्वागत है, आकाश-पवन-नदी का वंदन है, और भूमि माता के चरणों में अर्पित श्रद्धा है। मकर संक्रांति के साथ जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह मात्र खगोल घटना नहीं होती, वह अन्नदाता के हृदय में नई आशा की किरण भी जगाता है। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देते समय केवल एक देवता नहीं, बल्कि सम्पूर्ण प्रकाश व्यवस्था के प्रति आभार प्रकट किया जाता है किंतु दुःख की बात यह है कि आज इन्हीं पर्वों को उपहास का विषय बना दिया गया है, कभी सोशल मीडिया की मीम संस्कृति के माध्यम से तो कभी तथाकथित बुद्धिजीविता के नाम पर। आश्चर्य होता है जब छठ पूजा जैसे विराट और श्रमसाध्य पर्व को ‘रिवर्स योगा’ कहा जाता है या होली जैसे रंगों के उत्सव को जल अपव्यय की उपमा देकर बदनाम किया जाता है। हास्य की यह धारा जब आस्था का उपहास बनने लगे, तब वह केवल मनोरंजन नहीं, सांस्कृतिक विघटन का औजार बन जाती है। कुछ वर्ष पूर्व एक वेब सीरीज में छठ व्रत करने वाली स्त्रियों को ‘गंवार और अंधविश्वासी’ कहकर चित्रित किया गया। यह कोई अलग घटना नहीं बल्कि एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति का उदाहरण था जहां पर्वों को ‘साइंटिफिक टेंपर’ की कसौटी पर कसा जाने लगा किंतु बिना यह समझे कि ये पर्व ही तो भारतीय मानस का विज्ञान हैं, हमारे शरीर, पर्यावरण और समाज के सामूहिक संतुलन का जीवंत उदाहरण हैं। दीपावली के आते ही शोर उठता है ‘पटाखे मत जलाओ, प्रदूषण होता है!’ मानो पूरे वर्ष का पर्यावरणीय संतुलन केवल एक रात के दीपोत्सव से डगमगाने लगे। क्या किसी ने होली के पूर्व गांवों में की जाने वाली तालाब सफाई देखी है? क्या किसी एनजीओ ने छठ पूजा से पूर्व गंगा घाटों की सामूहिक सफाई की सराहना की है? नहीं, क्योंकि अब आलोचना का उद्देश्य सुधार नहीं, अपमान है। भारतीयता को ‘पर्यावरण विरोधी’ दिखाकर, पश्चिमी मानकों की श्रेष्ठता स्थापित करना है। क्या आपने कभी देखा है कि ‘थैंक्स गिविंग’ पर टर्की की बलि का मज़ाक उड़ाया गया हो? क्या ‘ईस्टर’ पर अंडों और चॉकलेट्स की बर्बादी के खिलाफ कोई अभियान चला? लेकिन भारत में तो हर त्योहार के साथ एक झूठा अपराधबोध जोड़ दिया जाता है। गणेश चतुर्थी को ‘नदी प्रदूषण का पर्व’, होली को ‘जल बर्बादी का उत्सव’, और दीपावली को ‘ध्वनि और वायु प्रदूषण का महापर्व’ कहकर प्रस्तुत किया जाता है। पर्व केवल पूजा नहीं होते. वे समाज की चेतना होते हैं। होली, जहां रंगों में जाति-वर्ग-भेद मिट जाता है; छठ, जहां स्त्री प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करती है; गणेश चतुर्थी, जहां बुद्धि और बाधाओं के बीच संवाद होता है, इन सभी को ‘जोक्स’ के जरिए तुच्छ बना देना किसी सभ्यता की जड़ों को काटने जैसा है। वर्तमान में सोशल मीडिया ने ‘मीम’ को संवाद का माध्यम बना दिया है लेकिन यह मीम, जहां किसी विदेशी प्रधानमंत्री की टोपी का मजाक हल्के हास्य में लिया जाता है, वहीं जब किसी भारतीय स्त्री की ‘करवा चौथ’ की तस्वीर आती है तो उसके साथ ‘पितृसत्ता की गुलामी’ जैसे कटाक्ष जोड़े जाते हैं। यह केवल मज़ाक नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक मानस को चुपचाप नष्ट करने की चेष्टा है। पर्वों के पीछे की वैज्ञानिकता को समझे बिना उन्हें ‘अंधविश्वास’ कहना उस दृष्टिहीन व्यक्ति जैसा है जो सूर्य की गर्मी से डरकर उसे नकारता है। छठ पूजा में जब स्त्रियां व्रत के माध्यम से सूर्य की सीधी किरणों को स्वयं पर लेती हैं तो वह केवल भक्ति नहीं, शरीर और प्रकाश विज्ञान का अनुप्रयोग भी है। दीपावली में जब घरों की सफाई होती है तो वह कीट नियंत्रण का पारंपरिक उपाय है। होलिका दहन कृषि अवशेषों के निपटान का स्थानीय तंत्र है जिसे अब ‘पर्यावरण खतरा’ कहा जाता है। यह आवश्यक है कि हम अपनी नई पीढ़ी को इन पर्वों के मूल तत्व से परिचित कराएं। उन्हें यह सिखाया जाए कि गणेश केवल मूर्ति नहीं, विघ्न-विनाशक ऊर्जा के प्रतीक हैं; कि दीपक केवल तेल और बाती नहीं, चेतना की लौ हैं; और कि छठ केवल सूर्य पूजन नहीं, जल-प्रकाश-व्रत और स्त्री चेतना का महायोग है। यदि हमने इन पर्वों को केवल ‘हास्य’ और ‘फॉरवर्ड्स’ की वस्तु बनने दिया, तो आने वाले समय में हमारी संतति इन्हें ‘संस्कृति’ नहीं, ‘कॉमेडी’ मानेगी। तब हम अपनी पहचान नहीं, अपनी जड़ों से दूर हो चुके होंगे। इसलिए, समय है कि हम अपने पर्वों का पुनर्पाठ करें, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, सांस्कृतिक श्रद्धा से, और सामाजिक चेतना से। उपहास का उत्तर उपदेश नहीं, ज्ञान है और यह ज्ञान हमें बताता है कि ये पर्व मात्र परंपरा नहीं, प्रकृति से एक सतत संवाद हैं। हंसी उचित है जब वह आदर के साथ हो लेकिन जब वह आस्था पर वज्र की तरह गिरे तो वह केवल व्यंग्य नहीं, आत्म-अपमान बन जाती है। स्मरण रखिए, पर्वों का उपहास प्रकृति के प्रति हमारी निष्ठा को भी खंडित करता है और जो समाज अपनी ऋतुओं, नदियों, और सूर्य की उपेक्षा करता है, वह धीरे-धीरे अपनी ही चेतना से कट जाता है। Read more » Let the joke with faith not prove costly आस्था से मजाक
आलोचना क्या पुरस्कार अब प्रकाशन-राजनीति का मोहरा बन गए हैं? June 23, 2025 / June 23, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment डॉ. सत्यवान सौरभ “साहित्य समाज का दर्पण होता है।” यह वाक्य हमने न जाने कितनी बार पढ़ा और सुना है। परंतु आज साहित्य के दर्पण पर परतें चढ़ चुकी हैं—राजनीतिक, प्रकाशकीय और प्रतिष्ठान-प्रेरित परतें। प्रश्न यह नहीं है कि कौन किससे छप रहा है। प्रश्न यह है कि क्या हिंदी साहित्य का पुरस्कार अब केवल […] Read more » Have awards now become pawns of publishing politics? पुरस्कार अब प्रकाशन-राजनीति का मोहरा
आलोचना वाद को वाद ही रहने दें, विवाद न बनने दें… March 31, 2025 / March 31, 2025 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ गन कल्चर के नाम पर हरियाणा में कुछ गायकों के यू ट्यूब से डिलीट किए गए गानों पर इशारों-इशारों में रार जारी है। यह गायकों के साथ-साथ हरियाणवीं म्यूजिक इंडस्ट्रीज के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है। मौका पड़ते ही एक दूसरे पर छींटाकशी या टोंटबाजी से बात सुधरने के चांस कम, बिगड़ने के ज्यादा है। दस दिन के अंतराल में जो नुकसान इंडस्ट्रीज को हुआ है, उसके नुकसान की भरपाई होने में बहुत समय लगेगा। समय रहते वाद को विवाद होने से बचाने की पहल जरूरी है। अब ये पहल सरकार करे या गायकों के चुनिंदा नुमाइंदे। इसके बिना कोई समाधान नहीं निकलने वाला। देशभर में अपना विशेष स्थान रखने वाला हरियाणा पिछले दस दिन से अलग ही मूड में है। जिधर देखो, उधर गन कल्चर के नाम पर डिलीट किए गए गानों की चर्चा है। रोजाना सैकड़ों रील सोशल मीडिया पर अपलोड हो रही है। ध्यान रहे कि हरियाणा पुलिस ने इन दिनों गन कल्चर को बढ़ावा देने वाले गानों को निशाने पर लिया हुआ है। मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद से लगातार इस तरह के गानों की सूची बनाई जा रही हैं। जानकारी अनुसार अभी तक इस प्रकार के 10 गानों को यू ट्यूब से हटाया जा चुका है। माना जा रहा है कि इस तरह के 100 गाने और पुलिस के भेंट चढ़ने वाले हैं। जिन दस गानों के डिलीट होने की बात है, उनमें से सात एक ही गायक के बताए जा रहे हैं। ऐसे में उक्त गायक को दर्द होना तो लाजमी है। ये दर्द किसी दवा से कम होने वाला नहीं है। यह बात वो गायक भी जानते हैं और उनके चाहने वाले। नुकसान कितना होगा, यह अभी कोई नहीं जानता। हां जितना समय गुजरता जायेगा, नुकसान की मात्रा बढ़ती जायेगी। बौखलाहट, हड़बड़ाहट या बिना कुछ सोचे विचारे उठाए गए कदम लाभ की जगह नुकसान ही ज्यादा पहुंचाते हैं। फिलहाल हो भी यही रहा है। सरकार में पदासीन एक गायक की सोशल मीडिया पर विरोध रूपी हौसला अफजाई फॉलोवर्स लगातार कर रहे हैं। उद्वेगजनक कटु सर्पित वाक् शिलिमुख घाव को हरा ही कर रहे हैं। रही सही कसर ये माइक वाले भाई पूरी कर रहे हैं। जैसे ही किसी एक का कोई बयान आता है तो अपनी फैन फॉलोइंग बढ़ाने के चक्कर में दूसरे के पास पहुंच जाते हैं। जब तक उसके श्रीमुख से दूसरे के लिए कोई कड़वी बात न निकले, माइक को हटाते ही नहीं। जैसे ही कुछ बोला, उसे दूसरे को हैशटैग कर उसकी प्रतिक्रिया की बाट जोहना शुरू कर देते हैं। इन महानुभावों की दरियादिली तो देखिए ये दूसरे पक्ष के बुलावे का इंतजार भी नहीं करते, खुद ही अपना झोला झंडी उठाकर पहुंच जाते हैं एक नई फिल्म बनाने को। पिछले दस-बारह दिनों से यही तो हो रहा है। इनकी एक खास बात और भी है कि अगला कुछ न भी कहना चाहे तो उसे बातों में ले कोई दुखती रग छेड़कर उससे कुछ उल्टा पुल्टा कहलवा ही देते हैं। अब बात आती है कि ये स्थिति पैदा ही क्यों हुई? एक कहावत है कि दूसरों को अपने घर में झांकने का मौका दोगे तो कमियां तो बाहर जाएंगी ही। यही फिलहाल हरियाणा म्यूजिक इंडस्ट्रीज में हो रहा है। एक गायक का गाना थोड़ा पॉपुलर क्या हुआ, दूसरे को मिर्ची लग जाती है। कुछ नया कंटेंट की जगह उसी को नीचा दिखाने में न सिर और न पैर वाली अपनी अमूल्य रचना निर्मित कर अपने आप को सुप्रीम साबित करने का अलौकिक और अदभुत प्रयास करते हैं। एक दुनाली की बात करता है तो दूसरा पिस्टल की। एक पीलिए में मामा पिस्तौल की बात करता है तो दूसरा मुंह दिखाई में बंदूक की। एक पिस्टल से महंगा लहंगा बोलता है तो दूसरा कोर्ट में ही गोली चलवा देता है। एक लफंडर बनता है तो दूसरा चम्बल का डाकू। बदमाशी के ट्यूशन, जेल में खटोले आदि तो अभी बैन होकर ज्यादा चर्चा में है ही। हरियाणा की प्रसिद्ध कहावत है कि गोह के जाए, सारे खुरदरे। अर्थात् सभी एक जैसे। वाद गीतों के बोल में रहे तब तक तो ठीक है पर जब एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास हो तो यही वाद विवाद बन जाता है। और हो भी यही रहा है। सरकार की सख्ती से इंडस्ट्रीज को ब्रेक से लग गए हैं। खुद कलाकार भी इस बात को स्वीकार रहे हैं कि नया कुछ लिखने, बनाने या रिलीज करने से पहले सब हिचक रहे हैं। सब को डर है कि फायदे की जगह नुकसान न हो जाए। जो हो गया वो हो गया। भविष्य में ऐसी स्थिति सामने न आए इस पर विचार आज पहले जरूरी है। इंडस्ट्रीज में विवादों से दूर मां बोली के लिए जीने वाले राममेहर महला, रामकेश जीवनपुरिया जैसे बहुत कलाकार हैं। उन्हें आगे करें। आपसी विरोधाभास को छोड़कर एकजुट हो बैठकर सरकार से बातचीत करे। लक्ष्य एक हो कि इंडस्ट्रीज की गरिमा बनी रहे। चर्चा होगी तो समाधान भी पक्का निकलेगा। सोशल मीडिया से तो समाधान होने वाला नहीं। बात बढ़ेगी तो सख्ती ज्यादा ही होगी, कम होने से रही। चाणक्य नीति में कहा गया है कि – प्रभूतं कार्यमपि वा तत्परः प्रकर्तुमिच्छति। सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते। छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना चाहें, उसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर करें? यह गुण हमें शेर से सीखना चाहिए। इसलिए चिंतन-मनन करें। मिलने-मिलाने के बहाने क्या पता कुछ उम्मीद से ज्यादा ही मिल जाए। सुशील कुमार Read more » वाद को वाद ही रहने दें
आलोचना राजनीति महिला सुरक्षा भी होगा चुनावों में बड़ा मुद्दा September 11, 2024 / September 11, 2024 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी ओलम्पियन विनेश फोगाट के कांग्रेस में शामिल होने तथा जुलाना विधानसभा क्षेत्र से अपनी चुनावी पारी की शुरुआत करने के बाद एक बात यह भी स्पष्ट हो गयी है कि कांग्रेस विनेश का इस्तेमाल केवल स्पोर्ट्स स्टार और जाट चेहरे मात्र के रूप में ही नहीं करेगी बल्कि वह इस सुप्रसिद्ध व लोकप्रिय ओलम्पियन […] Read more » महिला सुरक्षा महिला सुरक्षा भी होगा चुनावों में बड़ा मुद्दा
आलोचना आओ बाबा बाबा खेलें… .. July 17, 2024 / July 17, 2024 by अनिल अनूप | Leave a Comment अनिल अनूप पिछले हफ्ते भोले बाबा के धार्मिक समागम में भगदड़ मच गई जिसमें सौ से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इस आयोजन के लिए 80,000 लोगों के आने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन लगभग 2.5 लाख भक्त वहां पहुंच गए। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि भोले बाबा […] Read more »
आलोचना ‘विवाह अनंत’ : बड़ा हुआ तो क्या हुआ ? July 17, 2024 / July 17, 2024 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने पिछले दिनों एक ‘अनंत विवाह ‘ के आयोजन का ‘लुत्फ़’ उठाया। उद्योगपति मुकेश अंबानी के नूर-ए-नज़र अनंत अंबानी का अलग अलग आयोजनों के नाम से लंबे समय तक चला यह विवाह समारोह भारतीय इतिहास का अब तक का सबसे ख़र्चीला विवाह बताया जा रहा है। हमारे देश में […] Read more » अनंत विवाह
आलोचना अंध भक्तों की बेरहम मौत, मैं अपनी गोद में उन नासमझों की लाश लिए, काका हाथरसी का शहर “मैं हाथरस हूँ” July 9, 2024 / July 9, 2024 by अनिल अनूप | Leave a Comment –अनिल अनूप हींग की खुशबू और काका हाथरसी की कविताओं से महकता यह शहर अब चिताओं के धुएं में घिरा हुआ है। मेरा नाम हाथरस है। हां, सही सुना आपने, मैं वही हाथरस हूं जो हाल ही में 121 मौतों का चश्मदीद बना। तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन यहां की हवा में अब भी […] Read more » अंध भक्तों की बेरहम मौत
आलोचना कांग्रेस की नैया के खिवैया बने राहुल गांधी के स्क्रिप्ट राईटर्स और सलाहकारों पर वाकई आने लगा है तरस . . . March 11, 2024 / March 11, 2024 by लिमटी खरे | Leave a Comment लिमटी खरे कांग्रेस की नैया के खिवैया बने राहुल गांधी जब भी बोलते हैं तो क्या वे उस बारे में विचार नहीं करते! क्या कारण है कि राहुल गांधी अक्सर विवादों में ही घिरे रहते हैं। देश की सबसे पुरानी और आधी सदी तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक राहुल […] Read more » I am really feeling pity for the script writers and advisors of Rahul Gandhi who became the captain of Congress's boat.
आलोचना राजनीति है आपकी अदाओं से गिरगिट भी शर्मसार … February 1, 2024 / February 1, 2024 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी नितीश कुमार बिहार की राजनीति के लिये कितना ही प्रासंगिक क्यों न रहे हों परन्तु उनके राजनैतिक जीवन का हासिल यही है कि उन्हें मीडिया ने ‘पलटी मार’ या ‘पल्टूराम’ का ख़िताब दे डाला है। नौ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नितीश कुमार अलग अलग अवसरों पर कभी […] Read more » नितीश कुमार
आलोचना कला-संस्कृति पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार दिवाली का बदला स्वरूप November 14, 2023 / November 14, 2023 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment दिवाली के शुभ अवसर पर हमारे देश में रोशनी, मिठाईयां, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की बात करने की परंपरा है लेकिन विडंबना ये है कि आज के दौर में दिवाली के मायने पूरी तरह बदल गये हैं। दिवाली का बदला स्वरूप अब खुशियों के बजाय प्रदूषण और जाम की चिंता लेकर आता है। दिवाली की सांस्कृतिक परंपराएँ लुप्त […] Read more » Revenge form of Diwali