आलोचना समाज ऑनर किलिंग॔ से कुदरत को बडा खतरा March 26, 2011 / December 14, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | Leave a Comment आज देश में ऑनर किलिंग का फैशन चल निकला है। बेगुनाह और बेकसूर लडके लडकियो को कही इज्जत के नाम पर कही बडी बडी मूॅछो के नाम पर कही खानदान के रिति रिवाजो के नाम पर मारा जा रहा है। झूठे मान सम्मान के नाम पर फूल से मासूम बच्चो की हत्याओ का दौर अनवरत […] Read more » Killing ऑनर किलिंग॔
आलोचना लेख समाज पुरूष भी होते है पत्नियो द्वारा प्रताड़ित March 24, 2011 / December 14, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | 7 Comments on पुरूष भी होते है पत्नियो द्वारा प्रताड़ित पति और सास ने बेचारी पूनम का रोज रोज के लडाई झगडे मारपीट से जीना दुश्वार कर रखा है। ये शब्द हमे हर रोज रोज कही न कही सुनने को जरूर मिलते है। पर कही ये सुनने को नही मिलता कि पूनम ने अपने पति और सास का जीना दुश्वार कर रखा है क्यो ? […] Read more »
आलोचना घोषणा-पत्र प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का खुला खत! March 17, 2011 / January 12, 2012 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 1 Comment on प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का खुला खत! पत्रांक : बास/राअ/1112/1 दिनांक : 11.03.2011 प्रेषक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्य्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास), राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय-7 तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान), फोन : 0141-2222225, मोबाइल : 098285-02666 प्रेषिति : माननीय श्री डॉ. मनमोहन सिंह जी, प्रधानमन्त्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली| विषय : राजस्थान के […] Read more » Manmohan Singh प्रधानमन्त्री
आलोचना असफल रैनेसां का प्रतीक हैं गालियां January 9, 2011 / December 16, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on असफल रैनेसां का प्रतीक हैं गालियां जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी में रैनेसां का शोर मचाने वाले नहीं जानते कि हिन्दी में रैनेसां असफल क्यों हुआ ? रैनेसां सफल रहता तो हिन्दी समाज गालियों का धडल्ले से प्रयोग नहीं करता। बांग्ला ,मराठी ,तमिल,गुजराती में रैनेसां हुआ था और वहां जीवन और साहित्य से गालियां गायब हो गयीं। लेकिन हिन्दी में गालियां फलफूल रही […] Read more » Abuse रैनेसां
आलोचना जनवादी अज्ञेय की तलाश में December 26, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी इस साल स.ही.वा.अज्ञेय का जन्मशती वर्ष मनाया जा रहा है और उनके नाम पर बड़े-बड़े जलसे हो रहे हैं और इन जलसों में सबसे विलक्षण बात है प्रगतिशील आलोचकों और लेखकों की उपस्थिति। उल्लेखनीय है प्रगतिशील आलोचकों ने अज्ञेय का कभी संतुलन के साथ मूल्यांकन नहीं किया और वे उन्हें लगातार आधुनिकतावादी और […] Read more » Search स.ही.वा.अज्ञेय
आलोचना हिन्दी साहित्यालोचना का नीरा राडिया पंथ December 14, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on हिन्दी साहित्यालोचना का नीरा राडिया पंथ जगदीश्वर चतुर्वेदी ‘आलोचना’पत्रिका ने हाल के बरसों में किसी गंभीर साहित्यिक बहस को जन्म नहीं दिया है। और न हिन्दी में किसी आलोचक को प्रतिष्ठित ही किया है सिवाय संपादक नामवर सिंह के। फिर भी हिन्दी में उसे आलोचना की महान पत्रिका कहते हैं। सोचने वाली बात यह है यह पत्रिका भी अब प्रायोजन और […] Read more » hindi हिन्दी
आलोचना साहित्य साहित्य में नव्य उदारतावादी ग्लोबल दबाव December 13, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी हमारे साहित्यकार यह मानकर चल रहे हैं अमरीकी नव्य उदार आर्थिक नीतियां बाजार,अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि को प्रभावित कर रही हैं लेकिन हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार उनसे अछूता है। असल में यह उनका भ्रम है। इन दिनों हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार पूरी तरह नव्य उदार नीतियों की चपेट में आ गया है। इन दिनों विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं,टीवी […] Read more » Sahitya साहित्य
आलोचना साहित्यिक मजमेबाजी के प्रतिवाद में December 6, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on साहित्यिक मजमेबाजी के प्रतिवाद में -जगदीश्वर चतुर्वेदी एक जमाना था हिन्दी साहित्य में य़थार्थ का चित्रण होता था। विचारधारात्मक बहसें होती थीं। नए मानकों पर आलोचना लिखी जाती थी। इन दिनों हिन्दी साहित्य को तमाशबीनों और मेले-ठेले की संस्कृति ने घेर लिया है। पहले साहित्य में उत्सव गौण हुआ करते थे अब प्रधान हो गए हैं। यह साहित्य में तमाशबीन […] Read more » Literary साहित्यिक
आलोचना अज्ञेय जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष- बलाओं की मां है साम्प्रदायिकता November 22, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on अज्ञेय जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष- बलाओं की मां है साम्प्रदायिकता -जगदीश्वर चतुर्वेदी स.ही.वा.अज्ञेय हिन्दी के बड़े साहित्यकार हैं। उनकी प्रतिष्ठा उनमें भी है जो उनके विचारों से सहमत नहीं हैं। अज्ञेय के बारे में प्रमुख समस्या है कि उन्हें किस रूप में याद करें ? क्या उन्हें धिक्कार और अस्वीकार के साथ देखें ? क्या वे सचमुच में ऐसा कुछ लिख गए हैं जिसके कारण […] Read more » communalism साम्प्रदायिकता
आलोचना उत्तर आधुनिकतावाद के विभ्रम और अस्मिता November 21, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment -जगदीश्वर चतुर्वेदी इन दिनों वास्तव और अवास्तव, व्यक्ति और अव्यक्ति, जीवन और मृत्यु, उपस्थित और अनुपस्थित आदि के बारे में सवाल नहीं किए जाते। जो कुछ भी कहा जाता है वह खास सीमा में रहकर ही कहा जाता है। इसी प्रसंग में देरिदा की प्रसिद्ध किताब ‘स्पेक्टेटर ऑफ मार्क्स’ का जिक्र करना समीचीन होगा। इस […] Read more » modernism उत्तर आधुनिकतावाद
आलोचना चेग्वेरा क्यों नहीं बने नामवर सिंह October 10, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on चेग्वेरा क्यों नहीं बने नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी सवाल टेढ़ा है लेकिन जरूरी है कि चेग्वेरा क्यों नहीं बन पाए नामवर सिंह। उन्होंने क्रांतिकारी की बजाय बुर्जुआमार्ग क्यों अपनाया ? क्रांति का मार्ग दूसरी परंपरा का मार्ग है। जीवन की प्रथम परंपरा है बुर्जुआजी की। नामवरजी को पहली परंपरा की बजाय दूसरी परंपरा पसंद है। सवाल यह है कि दूसरी परंपरा […] Read more » Namwar Singh चे ग्वारा नामवर सिंह
आलोचना नागार्जुन जन्मशती पर विशेष- मुस्लिम आर्थिक नाकेबंदी और हम October 9, 2010 / October 9, 2010 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on नागार्जुन जन्मशती पर विशेष- मुस्लिम आर्थिक नाकेबंदी और हम -जगदीश्वर चतुर्वेदी भगवान से भी भयावह है साम्प्रदायिकता। साम्प्रदायिकता के सामने भगवान बौना है। साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक दंगे दहशत का संदेश देते हैं। ऐसी दहशत जिससे भगवान भी भयभीत हो जाए। जैसाकि लोग मानते हैं कि भगवान के हाथों (यानी स्वाभाविक मौत) आदमी मरता है तो इतना भयभीत नहीं होता जितना उसे साम्प्रदायिक हिंसाचार से […] Read more » नागार्जुन