आलोचना नागार्जुन जन्मशती पर विशेष-हिन्दी में कीर्त्ति फल के उपभोक्ता October 9, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on नागार्जुन जन्मशती पर विशेष-हिन्दी में कीर्त्ति फल के उपभोक्ता -जगदीश्वर चतुर्वेदी नागार्जुन पर जो लोग शताब्दी वर्ष में माला चढ़ा रहे हैं। व्याख्यान झाड़ रहे हैं। नागार्जुन के बारे में तरह-तरह का ज्ञान बांट रहे हैं ऐसे हिन्दी में 20 से ज्यादा लेखक नहीं हैं। ये लेखक कम साहित्य के कर्मकाण्डी ज्यादा लगते हैं। आप इनमें से किसी को भी फोन कीजिए ये लोग […] Read more » hindi नागार्जुन हिन्दी
आलोचना कवि चतुष्टयी जन्मशती पर- विभूतिनारायण राय का साम्राज्यवादी आख्यान October 7, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on कवि चतुष्टयी जन्मशती पर- विभूतिनारायण राय का साम्राज्यवादी आख्यान -जगदीश्वर चतुर्वेदी बाबा नागार्जुन,केदारनाथ अग्रवाल, अज्ञेय और शमशेर का यह जन्मशती वर्ष है। यह समारोह ऐसे समय में आरंभ हुआ है जब देश भयानक मंदी की मार और नव्य-उदार आर्थिक नीतियों की मार से गुजर रहा है। सवाल उठता है क्या इसे तिलांजलि देकर कवि चतुष्टयी की जन्मशती मनायी जा सकती है? लेकिन हिन्दी के […] Read more » Makhanlal Chaturvedi Patrakarita Vishwavidyalay महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
आलोचना कवि चतुष्टयी जन्मशती पर विशेष – कौन पा रहा है, कौन खो रहा है? October 7, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on कवि चतुष्टयी जन्मशती पर विशेष – कौन पा रहा है, कौन खो रहा है? -जगदीश्वर चतुर्वेदी वर्धा में महात्मा गांधी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कवि चतुष्टयी जन्मशती पर आलोचक नामवर सिंह ने जो कहा वह कमाल की बात है। अब हमारे गुरूवर बिना परिप्रेक्ष्य के सिर्फ विवरण की भाषा बोलने लगे हैं। परिप्रेक्ष्यरहित आख्यान और रिपोर्टिंग का नमूना देखें- “इस कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में नामवर जी ने बीसवी सदी […] Read more » University महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
आलोचना सैलीबरेटी नामवर सिंह September 20, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 8 Comments on सैलीबरेटी नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह लंबे समय से ‘गायब’ हैं। कोई नहीं बता रहा वे कहां चले गए। वैसे व्यक्ति नामवर सिंह साक्षात इस धराधाम में हैं और मजे में हैं। गड़बड़ी यह हुई है कि ‘आलोचक नामवर सिंह’ गायब हो गए हैं। उनका गायब होना एक बड़ी खबर होना चाहिए था। […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना कबीर के बहाने नामवरसिंह का पुंसवादी खेल September 20, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 4 Comments on कबीर के बहाने नामवरसिंह का पुंसवादी खेल -जगदीश्वर चतुर्वेदी अभी एक पुराने सहपाठी ने सवाल किया था कि आखिरकार तुम नामवरजी के बारे में इतना तीखा क्यों लिख रहे हो ? मैंने कहा मैं किसी व्यक्तिगत शिकायत के कारण नहीं लिख रहा। वे अहर्निश आलोचना नहीं विज्ञापन कर रहे हैं और आलोचना को नष्ट कर रहे हैं। आलोचना के सम-सामयिक वातावरण को […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना छिनाल के आगे की बहस August 8, 2010 / December 22, 2011 by डॉ. सुभाष राय | 9 Comments on छिनाल के आगे की बहस -डा. सुभाष राय उत्तर भारत के हिंदीभाषी ग्रामीण इलाकों का एक बहुप्रचलित शब्द है छिनाल। इस शब्द ने हाल ही में हिंदी जगत में बड़ा बवाल मचा दिया। इसका प्रयोग अमूमन उन महिलाओं के लिए किया जाता है, जो अपने पति के प्रति वफादार नहीं होती और उसकी जानकारी के बिना तमाम पुरुषों से देह […] Read more » Narayan Rai छिनाल विभूति नारायण राय
आलोचना चाक्षुषभाषा के रचनाकार उदयप्रकाश July 3, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on चाक्षुषभाषा के रचनाकार उदयप्रकाश -जगदीश्वर चतुर्वेदी उदयप्रकाश पर लिखना मुश्किल काम है। इसके कई कारण हैं पहला यह कि वह मेरे दोस्त हैं। दूसरा उनका जटिल रचना संसार है। उदयजी को मैं महज एक लेखक के रूप में नहीं देखता। बल्कि पैराडाइम शिफ्ट वाले लेखक के रूप में देखता हूँ। हिन्दी कहानी की परंपरा में पैराडाइम शिफ्ट वाले दो […] Read more » Udayprakash उदयप्रकाश
आलोचना उत्तर आधुनिकतावाद क्या है? July 1, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on उत्तर आधुनिकतावाद क्या है? -जगदीश्वर चतुर्वेदी उत्तर-आधुनिकतावाद को वृद्ध पूंजीवाद की सन्तान माना जाता है। पूंजीवाद के इजारेदाराना दौर में तकनीकी प्रोन्नति को इसका प्रमुख कारक माना जाता है। विश्व स्तर पर साम्राज्यवादी दखलंदाजी के बढने के बाद से आर्थिकतौर पर अमरीकी प्रशासन की दुनिया में दादागिरी बढी है। इसके अलावा जनमाध्यमों; संस्कृति; सूचना प्रौद्योगिकी, और विज्ञापन की दुनिया […] Read more » North Modernism उत्तर आधुनिकतावाद
आलोचना फिनोमिना नामवर सिंह June 14, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 13 Comments on फिनोमिना नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी वह साहित्य में जितना चर्चित है। नेट पाठकों में भी उतना ही चर्चित है। वह व्यक्ति नहीं फिनोमिना है। वह आलोचक है, शिक्षक है, श्रेष्ठतम वक्ता है, हिन्दी का प्रतीक पुरूष है, वह जितना जनप्रिय है उतना ही अलोकप्रिय भी है, वह सत्ता के साथ है तो प्रतिवादी ताकतों के भी साथ है। […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना श्रद्धालु आलोचना के प्रतिवाद में June 11, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment -जगदीश्वर चतुर्वेदी आधुनिक हिन्दी आलोचना इन दिनों ठहराव के दौर से गुजर रही है,आलोचना में यह गतिरोध क्यों आया? आलोचना में जब गतिरोध आता है तो उसे कैसे तोड़ा जाए? क्या गतिरोध से मुक्ति के काम में परंपरा हमारी मदद कर सकती है? क्या परंपरागत आलोचना के दायरे को तोड़ने की जरूरत है? ये कुछ […] Read more » Criticism आलोचना
आलोचना डिजिटल युग में लघुपत्रिकाओं की चुनौतियां June 10, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on डिजिटल युग में लघुपत्रिकाओं की चुनौतियां -जगदीश्वर चतुर्वेदी डिजिटल की दुनिया ने हमारे रचना संसार के सभी उपकरणों पर कब्जा जमा लिया है। लघुपत्रिका अथवा साहित्यिक पत्रकारिता जब शुरू हुई थी तो हमने यह सोचा ही नहीं था कि ये पत्रिकाएं क्या करने जा रही हैं। हमारी पत्रकारिता और पत्रकारिता के इतिहासकारों ने कभी गंभीरता से मीडिया तकनीक के चरित्र की […] Read more » Small Magazine लघु पत्रिका
आलोचना रामचरितमानस की काव्यभाषा में रस का विवेचन June 9, 2010 / December 23, 2011 by वंदना शर्मा | 5 Comments on रामचरितमानस की काव्यभाषा में रस का विवेचन -वंदना शर्मा कविता भाषा की एक विधा है और यह एक विशिष्ट संरचना अर्थात् शब्दार्थ का विशिष्ट प्रयोग है। यह (काव्यभाषा) सर्जनात्मक एक सार्थक व्यवस्था होती है जिसके माध्यम से रचनाकार की संवदेना, अनुभव तथा भाव साहित्यिक स्वरूप निर्मित करने में कथ्य व रूप का विषिष्ट योग रहता है। अत: इन दोनों तत्त्वों का महत्त्व […] Read more » Ramcharitmanas रामचरितमानस