कविता हिमपात – कैलिफ़ोर्निया में लेक टाहो पर December 27, 2018 / December 27, 2018 by शकुन्तला बहादुर | 2 Comments on हिमपात – कैलिफ़ोर्निया में लेक टाहो पर एक बालगीत Read more »
कविता सबसे लम्बी रात का सुपना December 26, 2018 / December 26, 2018 by अरुण तिवारी | Leave a Comment सबसे लम्बी रात का सुपना नया देह अनुपम बन उजाला कर गया। रम गया, रचता गया रमते-रमते रच गया वह कंडीलों को दूर ठिठकी दृष्टि थी जोे पता उसका लिख गया। सबसे लम्बी रात का सुपना नया.. रमता जोगी, बहता पानी रच गया कुछ पूर्णिमा सी कुछ हिमालय सा रचा औ हैं रची कुछ रजत […] Read more » सबसे लम्बी रात का सुपना
कविता आज का आदमी December 10, 2018 / December 10, 2018 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on आज का आदमी आज का आदमी,आदमी कहाँ रह गया है वह तो आज की,चकाचोंध में बह गया हैअगर आज, आदमी,आदमी होता तो वह आज की चकाचोंध में न बहता आज के आदमी में,आदमियत निकल चुकी है वह तो आज स्वार्थ के हाथो बिक चुकी है अगर आज आदमी में स्वार्थ न होता तो वह आज आदमियत से बंधा होता आज आदमी,आदमी से […] Read more » आज का आदमी इर्ष्या घर्णा स्वार्थ
कविता राम लला का मंदिर December 6, 2018 / December 6, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मन ही मन सब मांग रहे है राम लला के मंदिर को कोई भी पहल न कर रहा है अयोध्या में इस मंदिर को मोदी जी भी मौन हुए है जो मन की बात करते है वोटो के चक्कर में नेता कुछ मजहबियो से डरते है कब तक राम लला रहेगे बांसों के बने इस […] Read more » मोदी जी राम लला का मंदिर
कविता जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! November 30, 2018 / November 30, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! (मधुगीति १८११२८ ब) जब तक पूर्ण नहीं हो पाते, सृष्टि समझ कहाँ हम पाते; अपना बोध मात्र छितराते, उनका भाव कहाँ लख पाते ! हर कण सुन्दरता ना लखते, उनके गुण पर ग़ौर न करते; संग आनन्द लिए ना नचते, उनको उनका कहाँ समझते ! हैं गण शिव के गौण लखाते, शून्य हिये बिन ब्रह्म […] Read more » जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! दोष द्रष्टि शिव
कविता आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए ! November 28, 2018 / November 28, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८११२८ अ) आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए, अपने मन की बात औरों को बिना पूछे यों ही न बताइए; अपनी अधिक सलाह देकर और आत्माओं को कम मत आँकिए, स्वयं के ईशत्व में समा संसार को अपना स्वरूप समझ देखिए! अपनी सामाजिक संतति को बेबकूफ़ी करते हुए भी पकने दीजिए, आदर्श […] Read more » आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए !
कविता आग की लपटें November 28, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment मैं आज सुबह उठा और देखा रात की बूंदाबांदी से जम गई थी धूल वायुमंडल में व्याप्त रहने वाले धूलकण भी थे नदारद मन हुआ खुश देखकर यह सब कुछ देर बाद उठाकर देखा अख़बार तो जल रहा था वतन साम्प्रदायिकता व जातिवाद की आग में यह बरसात नहीं कर पाई कम इस आग को […] Read more » आग की लपटें जातिवाद वायुमंडल
कविता मग रहे कितने सुगम जगती में ! November 15, 2018 / November 15, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ मग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में ! काया हर क्या न क्या है कर चहती, माया में कहाँ कहाँ है भ्रमती; करती मृगया तो कभी मृग होती, कभी सब छोड़ कहीं चल देती ! सोचते ही है […] Read more » अभिव्यक्ति गहराइयाँ त्रिलोक मग रहे कितने सुगम जगती में !
कविता दीप का दिवाली पर सन्देश November 8, 2018 / November 8, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment खुद जल जाओ,न जलाओ किसी को तुम दीप का सन्देश है जरा इसको सुनो तुम मेरे नीचे अँधेरा है,सबको उजाला देता हूँ खुद जल कर मै,सबको प्रकाश देता हूँ बना हूँ मिट्टी का,कुम्हार मुझको बनाता है तपा कर अग्नि में मुझको तुम्हे पहुचाता है बेच कर मुझे ,अपनी रोटी रोजी चलाता है मेरे बिकने पर […] Read more » खुद जल जाओ दीप का दिवाली पर सन्देश न जलाओ किसी को तुम
कविता दिवाली की दौलत November 5, 2018 / November 5, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on दिवाली की दौलत तारकेश कुमार ओझा ———— चंद फुलझड़ियां , कुछ अनार जान पड़ते दौलत अपार … क्या जलाए , क्या बचाएं धुन यही दिवाली यादगार बनाएं दीपावली की खुशियां सब पर भारी लेकिन छठ, एकदशी के लिए पटाखे बचाना भी तो है जरूरी आई रोशनाई, छू मंतर हुई उदासी पूरी रात भागमभाग , लेकिन गायब उबासी जमीन […] Read more » क्या जलाए क्या बचाएं दिवाली की दौलत
कविता बेटी बचाओ -बेटी पढाओ November 2, 2018 / November 2, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment अभी अभी एक घटना घटी बात बिलकुल सच्ची है पर अटपटी अभी अभी एक व्यक्ति का फोन आया उसने मझे डॉक्टर कह कर बुलाया क्या आप डॉक्टर अनिता बोल रही है ? हाँ,मै डॉक्टर अनिता ही बोल रही हूँ कहिये,मै आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ ? क्या बीमारी है,क्या समझ सकती हूँ ? दूसरी […] Read more »
कविता कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी ! November 1, 2018 / November 1, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८१०३० अ) कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी, कहाँ आबादियाँ दर्श देंगी; कहाँ मिलने को कोई आएँगे, कहाँ हँस चीख़ चहक पाएँगे ! करेंगे इंतज़ार कौन वहाँ, टकटकी लगा कौन देखेंगे; आने वाले न वैसे सुर होंगे, तरंग और वे रहे होंगे ! भाव धाराएँ अलहदा होंगी, थकावट उड़ानों की मन होगी; तरावट हवाओं की […] Read more » आंखों उड़ानों कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी ! नेत्रों