कविता हरियाली तीज August 3, 2013 / August 3, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मेहंदी मंडित तेरी हथेली हाथों में चूड़ी अलबेली, लाल हरी और नीली-पीली झूलन सावन चली सहेली। तेरी कुन्दन सी है काया रूप कहूँ या कह दूँ माया नेह सभी का तूने पाया सुख की है बस तुझपर छाया । मेघा […] Read more » हरियाली तीज
कविता मृदु-मंगल उपहार हो August 3, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment डा.राज सक्सेना मधुमय-मधुर कमल पांखों का, परिपूरित आगार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो | कज्जलकूट केश, कोमलतम्, गहन-बरौनी, अविरलभंगिम | मृगछौने सम, नयन सलोने, नहीं ठहरते, चंचल अग्रिम | तीव्र नासिका, अधर अछूते, अमृत-मयी बहार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो […] Read more » मृदु-मंगल उपहार हो
कविता कविता : जीने का रहस्य July 30, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा न जाने कितनी रातें आखों में काटी हमने प्रेम में नहीं, मुफलिसी में रातें ऐसे काटी हमने खाते-खाते मर रहें हैं न जाने कितने बड़े लोग एक नहीं, हजारों को भूखों मरते देखा हमने दोस्त जो कहने को तो थे बिल्कुल अपने वक्त पर उन्हें मुंह फेर कर जाते देखा […] Read more » जीने का रहस्य
कविता भारत की व्यथा July 29, 2013 / July 29, 2013 by प्रवीण कुमार | Leave a Comment प्रवीण कुमार मै थी एक सोने की चिड़िया , मेरी थी हर बात निराली . सदाबहार नदी-तालों से ,खेतों में उगती हरियाली. घोर-परिश्रम और ज्ञान से , हर घर में थी खुसिहाली. तप-त्याग और सदाचार से , मेरे चेहरे पर थी लाली. सोने-चान्दी,हीरे-पन्नों से , घर- आँगन थे भरे-भरे . […] Read more » भारत की व्यथा
कविता हवा की नाराजगी July 29, 2013 / July 29, 2013 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment हैरान हू, कि, आज हवा भी मुझसे नाराज है, पेरशान हूँ कि, जमीन मेरे भावनओं पर टिकी है, बसंत के मौसम में, मुरझाया हुआ सा हूँ, कला साहित्य से प्रेम होने पर भी, सिर्फ , चंद किताबों को टटोलता रहा, सोचने के तरीकों में, अनायास परिवर्तन आ गया, रास्ते में खड़े होकर, बार बार, वक़्त […] Read more » हवा कि नाराजगी
कविता वह आदमी था July 29, 2013 by मोतीलाल | 1 Comment on वह आदमी था वह आदमी था इसलिए बोलता था वह आदमी था इसलिए खुशी में खुशी और दुख में दुख को समझता था वह आदमी था इसलिए नहीं देख सकता था टूटते हुए आदमी को वह आदमी था इसलिए नहीं भाग सकता था आदमियत के चाबुक से । हाँ वह आदमी था सिर्फ आदमी उसके पास नहीं […] Read more » वह आदमी था
कविता ‘पदमावत’चौपाई हो ? July 26, 2013 by डा.राज सक्सेना | 3 Comments on ‘पदमावत’चौपाई हो ? डा.राज सक्सेना ‘सतसईया’ का दोहा हो या, ‘पदमावत’चौपाई हो ? या बच्चन की ‘मधुशाला’की,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ? केश-कज्जली ,छवि कुन्दन सी, चन्दन जैसी गंध लिये | देवलोक से पोर-पोर में, भर लाई क्या छंद प्रिये | चातक चक्षु,चन्द्रमुख चंचल,चन्दनवन से आई हो ? या बच्चन की […] Read more » 'पदमावत'चौपाई हो ?
कविता कविता : रिश्तों की बुनियाद July 25, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा पहले खुद पर ऊँगली उठा सको तो जानें पहले गैर के आंसू पोंछ सको तो जानें . जानना समझना तो अभी बहुत कुछ है यहाँ कितने अज्ञानी है हम, पहले यही जान सको तो जानें . भाई – भाई में झगड़ा, बाप-बेटे में मतान्तर रिश्तों की बुनियाद अब क्या है […] Read more » रिश्तों की बुनियाद
कविता मनु-मोहम्मद-मसीह July 24, 2013 / July 24, 2013 by अशोक शर्मा | Leave a Comment अशोक शर्मा आज जब चारो ओर धर्मं के नाम पर मार काट मची है दुनिया इंसानों और देशो में कम और धर्मो में ज्यादा बंटी है तब धर्मो को बनाने वाले क्या ये सोचते होंगे कि हमें धर्मं बनाने की जरूरत की क्या पड़ी थी इससे तो दुनिया बिना धर्मो के ही भली थी!!!!!!!! […] Read more » मनु-मोहम्मद-मसीह
कविता मनमोहक है July 23, 2013 / July 23, 2013 by डा.राज सक्सेना | 4 Comments on मनमोहक है डा.राज सक्सेना अभिशाप बुढापा कभी न था,यह तो गरिमा का पोषक है | आनन्द इसी में जीने का,यह शिखर रूप का द्योतक है | क्यों रखें अपेक्षा औरों से, अब तक भी तो हम जीते थे | हम कुंआ खोदते […] Read more » मनमोहक है
कविता कुछ यूँ ही बीत रहा होता था जीवन July 22, 2013 / July 22, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment पीड़ा कैसे व्यक्त हो सकती थी? वह तो थी जैसे कोमल, अदृश्य से रोम रोम में गहरें कहीं धंसी हुई, भला वह कैसे बाहर आ सकती थी? चैतन्य दुनियादारी की आँखों के सामनें पीड़ा स्वयं एक रूपक ही तो थी जो नहीं चाहती थी कभी किसी को दिख जाने का प्रपंच. रूपंकरों […] Read more » कुछ यूँ ही बीत रहा होता था जीवन
कविता कविता : तारीखें माफ़ करती नहीं July 20, 2013 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on कविता : तारीखें माफ़ करती नहीं मिलन सिन्हा सोचनीय विषयों पर सोचते नहीं वादा जो करते हैं वह करते नहीं अच्छे लोगों को साथ रखते नहीं गलत करने वालों को रोकते नहीं बड़ी आबादी को खाना, कपडा तक नहीं गांववालों को शौचालय भी नहीं बच्चों को जरूरी शिक्षा व पोषण तक नहीं गरीब, शोषित के प्रति वाकई कोई संवेदना नहीं अपने […] Read more » कविता : तारीखें माफ़ करती नहीं