कविता नशा:राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’ November 22, 2012 / November 22, 2012 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment सड़क किनारे पड़ी थी एक लाश उसके पास कुछ लोग बैठे थे बदहवाश | उनमे चार छोटे बच्चे और उनकी माँ थी , बूढ़े माँ – बाप थे कुँवारी बहन थी | सभी का रो – रो कर बुराहाल था , खाल से लिपटे ढांचे बता रहे थे , वो….. परिवार कितना बेहाल था […] Read more » poem by raghvenfra नशा:राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’
कविता तुम, मेरी देवी-विजय निकोर November 22, 2012 / November 22, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on तुम, मेरी देवी-विजय निकोर भोर की अप्रतिम ओस में धुली निर्मल, निष्पाप प्रभात की हँसी-सी खिलखिला उठती, कभी दुपहर की उष्मा ओढ़े फिर पीली शाम-सी सरकती तुम्हारी याद रात के अन्धेरे में घुल जाती है । निद्राविहीन पहरों का प्रतिसारण करती अपने सारे रंग मुझमें निचोड़ जाती है, और एक और भोर के आते ही कुंकुम किरणों का घूँघट […] Read more » poem by vijay nior तुम तुम मेरी देवी-विजय निकोर मेरी देवी-विजय निकोर
कविता वंदना November 19, 2012 / November 19, 2012 by विजय निकोर | 1 Comment on वंदना विजय निकोर सरलता का प्रवाह जो ह्रदय में बहकर उसके केन्द्र-बिन्दु में चाहे एक, केवल एक कोंपल को स्नेह से स्फुटित कर दे, और मैं अनुभव करूँ उस सरल स्नेह को बहते हर किसी के प्रति मेरे अंतरतम में, प्रभु, यही, बस यही वरदान दो मुझे । सरलता का आभास जो पी ले मेरा […] Read more » poem by vijay nikor वंदना
कविता ख़याल November 12, 2012 / November 12, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on ख़याल विजय निकोर तारों से सुसज्जित रात में आज कोई मधुर छुवन ख़यालों की ख़यालों से बिन छुए मुझे आत्म-विभोर कर दे, मेरे उद्विग्न मन को सहलाती, हिलोरती, कहाँ से कहाँ उड़ा ले जाए, कि जैसे जा कर किसी इनसान की छाती से उसकी अंतिम साँस वापस लौट आए, और मुंदी-मुंदी पलकों के पीछे मुस्कराते वह […] Read more » poem by vijay nikor ख़याल
कविता इक दिवाली ये भी है November 12, 2012 / November 12, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment बिजलियों से जगमगाई, इक दिवाली ये भी है रोशनी घर तक न आई, इक दिवाली ये भी है दीप अब दिखते हैं कम ही, मर रही कारीगरी मँहगी है दियासलाई, इक दिवाली ये भी है थी भले कम रोशनी पर, दिल बहुत रौशन तभी रीत उल्टी क्यों बनाई, इक दिवाली ये भी है […] Read more » इक दिवाली ये भी है
कविता मेरा वतन वही है …………. November 8, 2012 / November 7, 2012 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on मेरा वतन वही है …………. राकेश कुमार आर्य शौर्य और साहस जिसका अद्वितीय है । विज्ञान ज्ञान जिसका विश्व में अवर्णनीय है ॥ ताप त्याग साधना भी जिसकी अकथनीय है । संदेश सत्य का जिसकी पठनीय है ॥ मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है …॥ १ ॥ मनु सा संविधानज्ञ जिसकी अमर है ख्याति । गौतम कणाद […] Read more »
कविता असंगतिओं का जलप्रलय November 5, 2012 / November 5, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on असंगतिओं का जलप्रलय गतिमय प्रिय स्मृतिओं की बढ़ती बाढ़ की गति ढूँढती है नए मैदानों के फैलावों को मेरे भीतर, पर यहाँ तो कोई निरंक स्थान नहीं है छोटा-सा कुछ भी और लिखने को…स्मृतिओं की नदी को मेरे मृदु अंतरतम में तुम अब और कहीं बहने दो । स्मृतिओं की नदी के तल प्रतिपल हैं ऊँचे चढ़ते, […] Read more »
कविता कविता – अवशेष November 3, 2012 / November 3, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल आग जब सबकुछ जला देगी कुछ तिलिस्म जिंदगी भर के वास्ते धुंधला जाने के लिए उम्मीद को छोड़ कर कहीं से भी चलकर निरर्थक परिक्रमा नहीं करेगी । तय शुदा सुरक्षा के अर्थ जब बंद हो जाएंगें सूरज के साथ-साथ हम मध्यांतर के उल्लास सा अर्थपूर्ण यात्रा की दुआ लेते हुए मोक्ष की […] Read more » कविता - अवशेष
कविता मानव हो मानव बने रहो November 3, 2012 / November 3, 2012 by बीनू भटनागर | 1 Comment on मानव हो मानव बने रहो हर जड़ चेतन का उद्गम प्रकृति, हमने उसको भगवान कहा, तुमने उसको इस्लाम कहा या केश बांध ग्रंथ साब कहा, या फिर प्रभु यशु महान कहा। पशु पक्षी हों या भँवरे तितली, वट विराट वृक्ष हो चांहे हो तृण, या हों सुमन सौरभ और कलियाँ, हाथी विशाल हो या सिंह प्रबल या हों जल […] Read more » मानव हो मानव बने रहो
कविता चौराहा October 31, 2012 / October 31, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on चौराहा विजय निकोर अनचाहे कैसे अचानक लौट आते हैं पैर उसी चौराहे पर जिस चौराहे पर समय की आँधी में हमारे रास्ते अलग हुए थे, तुम्हारी डबडबाई आँखों में व्यथाएँ उभरी थीं, और मेरी ज़िन्दगी भी उसी दिन ही बेतरतीब हो गई थी । जो लगती है स्पष्ट पर रहती है अस्पष्ट शायद कुछ ऐसी […] Read more »
कविता मैने फूलदान सजाया October 30, 2012 / October 30, 2012 by बीनू भटनागर | 2 Comments on मैने फूलदान सजाया उपवन मे जो पुष्प खिले थे, पवन सुगंधित कर देते थे, सुमन सुन्दर अति मनोहारी, कुसुम यही शोभा बगिया के। इन्हें तोड़ डाली से काँटे काटे, फिर एक प्यारा सा गुलदस्ता रत्न जटित एक फूलदान मे, उन्हें संवारा और सजाया। मैने अपना कक्ष सजाया, तन मन मेरा अति भरमाया , दो दिन तक […] Read more » मैने फूलदान सजाया
कविता यंत्रणा October 24, 2012 / October 25, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on यंत्रणा तुम्हारा मेरा साथ एक आत्मिक यात्रा, तुम्हारा संतृप्त स्नेह दिव्य उड़ान और अब तुम्हारा अभाव भी एक आध्यात्मिक साधना है जो मेरे अन्तर में प्रच्छ्न्न, मंदिर में दीप-सी और मंदिर के बाहर सूर्य की किरणों-सी मेरे पथ को सदैव दीप्तिमान किए रहती है । हमारे इस अभौतिक पथ पर कोई पगडंडी पथरीली, कोई कँटीली, […] Read more » poem by vijay nikor