कविता कविता – महानगर के मायने August 12, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल यहाँ मुझे कोई नहीँ पहचानता आकाश की तरह शून्य यहाँ मुझे कोई नहीँ जानता हवाओँ की तरह मुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ दिखता फूलोँ की तरह सौम्य यहाँ मुझे कोई नहीँ सुनता नदी की तरह उनमुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ महसूसता आँच की तरह तपन कोई भी यहाँ नहीँ […] Read more » poem by motilal कविता - महानगर के मायने
कविता निर्दयी मेघ August 7, 2012 / August 7, 2012 by बलबीर राणा | Leave a Comment उत्तराखंड में भीषण मेघ वर्षा का मंजर देखकर मन उद्वेलित होता है, प्रकृति के इस क्रूर व्यवहार से अब किसको दोष दिया जाय नियति या………………….? ??????????????? बलबीर राणा “भैजी” निर्दयी मेघ ये क्या कर गया आना था धरती को सींचने विभित्सिका छोड़ गया हाहाकार मचा गया निर्दोष जीवन पर दोष लगाकर चल गया इतना भी […] Read more »
कविता कविता – राह August 4, 2012 / August 4, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल वह सड़क जिस पर मैँ चल रहा हूँ तुम्हारे भीतर जाकर खत्म हो जाती है वह सड़क जिस पर तुम चल रही हो किसी चौराहे पर जाकर नहीँ मेरे मन के भीतर खत्म होती है सही है कि सड़क की कोई मंजिल नहीँ होती एक दिशा तो होती ही है उसी दिशा […] Read more »
कविता कविता:काश मै खुदा होता August 4, 2012 / August 4, 2012 by पियूष द्विवेदी 'भारत' | Leave a Comment पियूष द्विवेदी बहुत जलन होती है, आकाश में इतराते हुए, अपनी पाँखे फैलाके, उड़ती चिड़िया को देखकर | नहीं सह पाता हूँ, उसके पाँखों को, उसके उड़ने को, और उसकी, इस निश्चिन्त स्वतंत्रता को | पर यही मन, दुखी भी होता है, उन्ही पाँखों को फड़फड़ाते हुवे, उड़ने का विफल प्रयास करते देखकर किसी शिकारी […] Read more » कविता:काश मै खुदा होता
कविता कविता – लड़ाई July 31, 2012 / July 30, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अधिक समय तक हम जिँदा रहने की जिजीविषा मेँ नहीँ देख पाते मुट्ठियोँ मेँ उगे पसीने को और यहीँ से फुटना शुरू होतेँ हैँ तमाम टकराहटोँ के काँटेँ यहीँ से शुरू होता है धरती और आकाश का अंतर चाहे आकाश कितना भी फैला हो और हो उसमेँ ताकत धरती को ढंक लेने की […] Read more » poem by motilal कविता - लड़ाई
कविता कविता:शांति की खोज July 30, 2012 / July 30, 2012 by बलबीर राणा | Leave a Comment बलबीर राणा शांति खोजता रहा धरती के ओर चोर भटकता रहा कहाँ है शांति कहीं तो मिलेगी इस चाह में जीवन कटता रहा समुद्र की गहराई में गोता लगाता रहा झील की शालीनता को निहारता रहा चट्टाने चडता रहा घाटियाँ उतरता रहा पगडंडियों में संभालता रहा रेगिस्तानी में धंसता रहा कीचड़ में फिसलता […] Read more » kavita by balbir rana कविता:शांति की खोज
कविता कविता:दीया अंतिम आस का July 29, 2012 / July 29, 2012 by दिनेश गुप्ता 'दिन' | 4 Comments on कविता:दीया अंतिम आस का दिनेश गुप्ता ‘दिन’ दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण […] Read more » कविता:दीया अंतिम आस का
कविता कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा July 26, 2012 / July 26, 2012 by बलबीर राणा | Leave a Comment किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ सुगम मार्ग कोई सूझता नहीं सरल राह कोई दिखता नहीं कौन है हमसफ़र आवाज कोई देता नहीं किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ इस पार और भीड़ भडाका उस पार सूनापन एक और शमशान डरावन एक और गर्त में जाने का दर डर लगता किधर जाऊं चोराहे पर […] Read more » :चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा poem by balbir rana कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा
कविता कविता:अमानुष बना कैसे July 25, 2012 / July 25, 2012 by बलबीर राणा | 1 Comment on कविता:अमानुष बना कैसे बलबीर राणा मा ने प्यार दिया पिता ने दुलार भाई ने साथ दिया बहन ने आभार अमानुष बना कैसे समाज ने एकतादी जाती ने अपनापन धर्म ने सतमार्ग दिया वेद पुराण कुरान बाईबल ने मानवता फिर अमानुष बना कैसे रीfत रिवाजों ने अनुसरण दिया इतिहास ने पुनरावृति गुरु ने ज्ञान दिया ग्रंथों […] Read more » poem by balbir rana कविता:अमानुष बना कैसे
कविता कविता:अडिग सैनिक July 24, 2012 / July 24, 2012 by बलबीर राणा | 1 Comment on कविता:अडिग सैनिक बलबीर राणा बर्फीले तूफान के आगे अघोरजंगलके बीच समुद्री लहरों के साथ , पर्वतकी चोटियों पर अडिग खड़ा हूँ मा की ममता से दूर पिता के छांव से सुदूर पत्नी के सानिंध्य के बिना पुत्र मोह से अलग अडिग खड़ा हूँ दुश्मन की तिरछी निगाहों के सामने देश विद्रोहियों के बीच दुनिया समाज […] Read more » कविता:अडिग सैनिक
कविता बीनू भटनागर की कविताएं July 21, 2012 / July 21, 2012 by बीनू भटनागर | 1 Comment on बीनू भटनागर की कविताएं कंचनचंघा प्रथम आरुषि सूर्य की, कंचनचंघा पर पड़ी तो, चाँदी के पर्वत को, सोने का कर गई। सूर्योदय का दृश्य देख, टाइगर हिल पर खड़े हम, ठंड व तेज़ हवा के प्रकोप को, सहज ही सह गये। विश्व की तृतीय ऊँची चोटी, पवित्र चोटी पर उदित सूर्य सुनहरी उजाला देखकर, मंत्रमुग्ध हम रह गये। एक […] Read more » poems by binu bhatnagar कवितायें दार्जिलंग और गैंगटौक से
कविता कविता: कविता या खबर-मोतीलाल July 21, 2012 / July 21, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment यह कविता कैसे हो सकती है उस खौफजदा पल का जब दस मजबूत हाथ दो कच्ची जांघोँ को चीर डाल रहे थे और छूटते खून की गंध तुम्हारे ड्राइंगरुम मेँ नहीँ पहुंच पा रही थी हाँ अखबार के पन्ने दूसरे दिन उस गंदे रक्त से जरुर सना दिखा आखरी पन्ने के आखरी काँलम मेँ […] Read more » poem by motilal कविता: कविता या खबर-मोतीलाल