कविता कविता-टिमकी बजी मदारी की-प्रभुदयाल श्रीवास्तव May 8, 2012 / May 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment वाहन पंचर हुआ,लिये मैं सड़क सड़क घूमा टिमकी बजी मदारी की मैं बंदर सा झूमा कहीं दूर तक पंचरवाला नहीं दिखाई दिया हर दुकान पर अतिक्रमण का ताला मिला जड़ा जीवन के हर लम्हें में कितने पंचर होते अपने कटे फटेपन को पल पल कंधे ढोते सूजे पैर फूल गये जैसे फूल गया तूमा […] Read more » poem by Prabhudayal Srivastav कविता-टिमकी बजी मदारी की-प्रभुदयाल श्रीवास्तव
कविता कविता ; बस दिल्ली का समाचार है – श्यामल सुमन April 29, 2012 / April 30, 2012 by श्यामल सुमन | 1 Comment on कविता ; बस दिल्ली का समाचार है – श्यामल सुमन श्यामल सुमन सबसे पहले हम पहुँचे। हो करके बेदम पहुँचे। हर चैनल में होड़ मची है, दिखलाने को गम पहुँचे। सब कहने का अधिकार है। चौथा-खम्भा क्यूँ बीमार है। गाँव में बेबस लोग तड़पते, बस दिल्ली का समाचार है। समाचार हालात बताते। लोगों के जज्बात बताते। अंधकार में चकाचौंध है, दिन को भी […] Read more » poem Poems कविता बस दिल्ली का समाचार है कविता
कविता कविता ; खबरों की अब यही खबर है – श्यामल सुमन April 29, 2012 / April 30, 2012 by श्यामल सुमन | 1 Comment on कविता ; खबरों की अब यही खबर है – श्यामल सुमन श्यामल सुमन देश की हालत बुरी अगर है संसद की भी कहाँ नजर है सूर्खी में प्रायोजित घटना खबरों की अब यही खबर है खुली आँख से सपना देखो कौन जगत में अपना देखो पहले तोप मुक़ाबिल था, अब अखबारों का छपना देखो चौबीस घंटे समाचार क्यों सुनते उसको बार बार क्यों इस […] Read more » poem Poems कविता खबरों की अब यही खबर है कविता
कविता गीत ; आई नदी घर्रात जाये – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 29, 2012 / April 30, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव आई नदी घर्रात जाये मझधारे में हाथी डुब्बन कूलों कूलों पुक्खन पुक्खन कीट जमा सीढ़ी पर ऐसा जैसे हो मटमैला मक्खन डूबे घाट घटोई बाबा मन मंदिर के भीतर धावा हुई क्रोध में पानी पानी उगले धुँआं सा लावा उसनींदी बर्रात जाये आई नदी घर्रात जाये| बजरे और शिकारे खोये चप्पू पाल डांड़ […] Read more » geet आई नदी घर्रात जाये गीत गीत
कविता गीत ; सड़ी डुकरियां ले गये चोर – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 29, 2012 / April 30, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 7 Comments on गीत ; सड़ी डुकरियां ले गये चोर – प्रभुदयाल श्रीवास्तव प्रभुदयाल श्रीवास्तव इसी बात का का होता शोर सड़ी डुकरियां ले गये चोर| रजत पटल पर रंग सुनहरे करें आंकड़े बाजी बजा बजा डुगडुगी मदारी चिल्लाये आजादी भरी दुपहरिया जैसे ही वह रात रात चिल्लाया सभी जमूरों ने सहमति में ऊंचा हाथ उठाया उसी तरफ सबने ली करवट बैठा ऊंट जहां जिस ओर| सड़ी […] Read more » geet गीत सड़ी डुकरियां ले गये चोर गीत
कविता साहित्य कविता ; अखबारों का छपना देखा – श्यामल सुमन April 28, 2012 / April 28, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment श्यामल सुमन मुस्कानों में बात कहो चाहे दिन या रात कहो चाल चलो शतरंजी ऐसी शह दे कर के मात कहो जो कहते हैं राम नहीं उनको समझो काम नहीं याद कहाँ भूखे लोगों को उनका कोई नाम नहीं अखबारों का छपना देखा लगा भयानक सपना देखा कितना खोजा भीड़ में जाकर मगर […] Read more » poem Poems कविता कविता अखबारों का छपना देखा
कविता साहित्य कविता ; सुमन अंत में सो जाए – श्यामल सुमन April 28, 2012 / April 28, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment श्यामल सुमन कैसा उनका प्यार देख ले आँगन में दीवार देख ले दे बेहतर तकरीर प्यार पर घर में फिर तकरार देख ले दीप जलाते आँगन में मगर अंधेरा है मन में है आसान उन्हीं का जीवन प्यार खोज ले सौतन में अब के बच्चे आगे हैं रीति-रिवाज से भागे हैं संस्कार ही […] Read more » poem Poems कविता कविता सुमन अंत में सो जाए
कविता साहित्य कविता ; भाई से प्रतिघात करो – श्यामल सुमन April 28, 2012 / April 28, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment श्यामल सुमन मजबूरी का नाम न लो मजबूरों से काम न लो वक्त का पहिया घूम रहा है व्यर्थ कोई इल्जाम न लो धर्म, जगत – श्रृंगार है पर कुछ का व्यापार है धर्म सामने पर पीछे में मचा हुआ व्यभिचार है क्या जीना आसान है नीति नियम भगवान है न्याय कहाँ नैसर्गिक […] Read more » poem Poems कविता कविता भाई से प्रतिघात करो
कविता महत्वपूर्ण लेख रघुनाथ सिंह की दो कविताएं April 27, 2012 / June 6, 2012 by रघुनाथ सिंह | Leave a Comment सत्यमेव जयते सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते मच रहा है शोर घोर और चारों ओर हमारे सेक्यूलरवादियों में हमारे अंगरेजी मीडिया में और हमारी अफसरशाही में दण्डित करो करो दण्डित बच न पावे भाग न जाये धूर्त है यह बड़ा भारी बोल कर सच कलुषित कर दिया है इसने हमारा सुन्दर प्यारा नारा सत्यमेव जयते, सत्यमेव […] Read more » धर्मनिरपेक्षता सत्यमेव जयते हिंदू
कविता साहित्य कविता ; चिंता या चेतना – मोतीलाल April 27, 2012 / April 27, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अपना कोई भी कदम नए रुपों के सामने कर्म और विचार के अंतराल में अनुभव से उपजी हुई कोई मौलिक विवेचना नहीं बन पाता है और विचार करने की फुर्सत में ज्यादा बुनियादी इलाज उपभोक्ताओं की सक्रियता के बीच पुरानी चिंता बनकर रह जाती है शून्य जैसी हालत मेँ स्वीकृति के विस्तार को […] Read more » poem Poems कविता चिँता या चेतना कविता
कविता साहित्य कविता ; मंत्र – श्यामल सुमन April 27, 2012 / April 27, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment श्यामल सुमन लोकतंत्र! जिसकी आत्मा में पहले “लोक”, बाद में “तंत्र”। मगर अब नित्य पाठ हो रहा- “तंत्र” का नया मंत्र। परिणाम! नीयत, नैतिकता बेलगाम मानव बना यंत्र और तंत्र – स्वतंत्र, लोक – परतंत्र। Read more » poem Poems कविता श्यामल सुमन कविता
कविता कविता – चिँता या चेतना-मोतीलाल April 26, 2012 / April 26, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अपना कोई भी कदम नए रुपोँ के सामने कर्म और विचार के अंतराल मेँ अनुभव से उपजी हुई कोई मौलिक विवेचना नहीँ बन पाता है और विचार करने की फुर्सत मेँ ज्यादा बुनियादी ईलाज उपभोक्ताओँ की सक्रियता के बीच पुरानी चिँता बनकर रह जाती है शून्य जैसी हालात मेँ स्वीकृति के विस्तार को […] Read more » poem by motilal कविता- चिँता या चेतना-मोतीलाल