कविता परछाइयां March 16, 2012 / March 16, 2012 by नरेश भारतीय | Leave a Comment नरेश भारतीय कल के सच की परछाइयां आज के झूठ को जब सच मानने से इन्कार करतीं हैं तो बीते कल की अनुभूतियां जीवंत हो उठती हैं जीवन सत्य को जो रचती रहीं – मैं नहीं जानता आज के जीवन सत्य कितनी गहराइयों में पैठ कर घोषित किए गए हैं और यह भी कि क्या […] Read more » poem-parchhatetan परछाइयां
कविता साहित्य शब्द साहित्य एवं भावों का समागम है “कभी सोचा है” कविता संग्रह March 15, 2012 / March 15, 2012 by शिवानंद द्विवेदी | Leave a Comment शिवानन्द द्विवेदी “सहर” मन बड़ा प्रफुल्लित होता है जब किसी नए साहित्य को पढ़ने का अवसर प्राप्त होता है ! ६ मार्च की शाम जैसे ही दफ्तर से घर पहुंचा बंद लिफ़ाफ़े में एक पुस्तक प्राप्त हुई, जिज्ञासा वश बिना देर किये लिफाफा खोल कर देखा ! वैसे तो कोई भी साहित्यिक पुस्तक मेरे मन […] Read more » kabhi socha hai poem कभी सोचा है : कविता संग्रह भावों का समागम शब्द साहित्य
कविता कविता ; सिलवटों की सिहरन – विजय कुमार सप्पाती March 13, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on कविता ; सिलवटों की सिहरन – विजय कुमार सप्पाती अक्सर तेरा साया एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है ….. मेरे हाथ , मेरे दिल की तरह कांपते है , जब मैं उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ ….. तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है […] Read more » poem Poems कविता कविता - सिलवटों की सिहरन
कविता कविता ; छटपटाता आईना – श्यामल सुमन March 9, 2012 / March 12, 2012 by श्यामल सुमन | 1 Comment on कविता ; छटपटाता आईना – श्यामल सुमन सच यही कि हर किसी को सच दिखाता आईना ये भी सच कि सच किसी को कह न पाता आईना रू-ब-रू हो आईने से बात पूछे गर कोई कौन सुन पाता इसे बस बुदबुदाता आईना जाने अनजाने बुराई आ ही जाती सोच में आँख तब मिलते तो सचमुच मुँह चिढ़ाता आईना कौन […] Read more » poem poem by shyamal suman Poems कविता छटपटाता आईना
कविता कविता ; गीत नया तू गाना सीख – श्यामल सुमन March 9, 2012 / March 9, 2012 by श्यामल सुमन | 1 Comment on कविता ; गीत नया तू गाना सीख – श्यामल सुमन खुद से देखो उड़ के यार एहसासों से जुड़ के यार जैसे गूंगे स्वाद समझते, कह ना पाते गुड के यार कैसा है संयोग यहाँ सुन्दर दिखते लोग यहाँ जिसको पूछो वे कहते कि मेरे तन में रोग यहाँ मजबूरी का रोना क्या अपना आपा खोना क्या होना जो था हुआ आजतक, और […] Read more » poem Poems कविता गीत नया तू गाना सीख
कविता कविता ; प्रेम जहाँ बसते दिन-रात – श्यामल सुमन March 7, 2012 / March 8, 2012 by श्यामल सुमन | 2 Comments on कविता ; प्रेम जहाँ बसते दिन-रात – श्यामल सुमन मेहनत जो करते दिन-रात वो दुख में रहते दिन-रात सुख देते सबको निज-श्रम से तिल-तिल कर मरते दिन-रात मिले पथिक को छाया हरदम पेड़, धूप सहते दिन-रात बाहर से भी अधिक शोर क्यों भीतर में सुनते दिन-रात दूजे की चर्चा में अक्सर अपनी ही कहते दिन-रात हृदय वही परिभाषित होता […] Read more » poem poem by shyamal suman Poems कविता प्रेम जहाँ बसते दिन-रात
कविता कविता ; अश्क बनकर वही बरसता है – श्यामल सुमन March 7, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment नहीं जज्बात दिल में कम होंगे तेरे पीछे मेरे कदम होंगे तुम सलामत रहो कयामत तक ये है मुमकिन कि हम नहीं होंगे प्यार जिसको भी किया छूट गया बन के अपना ही कोई लूट गया दिलों को जोड़ने की कोशिश में दिल भी शीशे की तरह टूट गया यार मिलने को जब […] Read more » poem poem by shyamal suman Poems कविता ; अश्क बनकर वही बरसता है
कविता कविता ; उड़ा दिया है रंग – श्यामल सुमन March 7, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग रंग-बिरंगी होली ऐसी प्रायः सब रंगीन बने अबीर-गुलाल छोड़ कुछ हाथों में देखो संगीन तने खुशियाली संग कहीं कहीं पर शुरू भूख से जंग कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग मँहगाई ने हर […] Read more » poem poem by shyamal suman Poems उड़ा दिया है रंग कविता
कविता कविता:बोलो बोलो क्या क्या बदलें ?-प्रभुदयाल श्रीवास्तव March 2, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on कविता:बोलो बोलो क्या क्या बदलें ?-प्रभुदयाल श्रीवास्तव बोलो बोलो क्या क्या बदलें हवा और क्या पानी बदलें स्वच्छ चांदनी रातें बदलें या फिर धूप सुहानी बदलें? शीतल मंद पवन कॆ झोंके आंधी के पीछे पछियाते मीठा मीठा गप कर लेते कड़ुआ कड़ुआ थू कर जाते हवा आज बीमार हो गई पानी दवा नहीं बन पाया तूफानों ने हर मौसम को आंसू […] Read more »
कविता कविता:जांच आयोग-प्रभुदयाल श्रीवास्तव March 1, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बंद कमरे में वक्त भूख की आग में जलती अतड़ियों से जुर्म करवाता है अपराधी को थाने कठघरे वकील गवाह जज दलील सत्य उगलवाती गीता रोती हुई पत्नी सीता मुंशियों और बाबुओं के रास्ते फाँसी के फंदे तक पहुंचाता है धरती का इंसान आकाश में लटक जाता है सफेड पोश भगवान दिन दहाड़े लूटता […] Read more » poems by Prabhudayal Srivastav कविता कवितायें
कविता दोहे / क्षेत्रपाल शर्मा February 22, 2012 by क्षेत्रपाल शर्मा | 1 Comment on दोहे / क्षेत्रपाल शर्मा हाथ जेब भीतर रहे, कानों में है तेल नौ दिन ढाई कोस का वही पुराना खेल . छिपने की बातें सभी, छपने को तल्लीन सच मरियल सा हो गया झूट मंच आसीन. बचपन- पचपन सब हुए रद्दी और कबाड़, आध – अधूरे लोग हैं करते फ़िरें जुगाड़ . क्या नेता क्या यूनियन सबके तय हैं […] Read more » दोहे
कविता कांग्रेस- मनमोहन-सोनिया और अब राहुल-कुशल सचेती February 17, 2012 / February 18, 2012 by कुशल सचेती | Leave a Comment कुशल सचेती कांग्रेस- मनमोहन-सोनिया और अब राहुल देख तेरे भारत की हालत क्या कर दी हे राम….! कांग्रेसासुरों की करतूतों का है ये परिणाम देख तेरे भारत……. गांधी बाबा के ये बंदे, रचते रहे नित नए फंदे, कितने ये मक्कार औ अंधे, इन धूर्तो के जाली धंधे, गांधी-नेहरू-गांधियों की मुग़ल सल्तनत देखी है ? वंशवाद […] Read more » famous poems poem Poems कांग्रेस मनमोहन-सोनिया राहुल