महिला-जगत लेख बदलते युग का नया तमाशा: संस्कारों की सिसकियाँ May 26, 2025 / May 26, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment (समाज में बदलती नैतिकता, रिश्तों की उलझन और तकनीक के नए असर पर) समाज में अब बेटी की निगरानी नहीं, दादी और सास की होती है। तकनीक और आज़ादी के इस युग में रिश्तों की परिभाषा बदल गई है। जहाँ पहले लड़कियों की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता थी, अब वही महिलाएं अपनी आज़ादी के साथ […] Read more » संस्कारों की सिसकियाँ
लेख नरपुंगव छत्रसाल May 26, 2025 / June 25, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment भारत के महान क्रांति नायक छत्रसाल महाराज का जन्म गहरवार अर्थात गहड़वाल वंश की बुंदेला शाखा के राजपूतों में हुआ था। इनके पूर्वज काशी के गैरवार राजा वीरभद्र के पुत्र हेमकरण थे। जिनका एक नाम पंचम सिंह गहरवार भी था। बताया जाता है कि हेमकरण विंध्यवासिनी देवी के अनन्य भक्त थे। इसलिए उन्हें विंध्यवाला भी […] Read more » Narpungav Chhatrasal छत्रसाल
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उच्छृंखलता मंजूर नहीं May 26, 2025 / May 26, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment आज का युग सोशल नेटवर्किंग साइट्स का युग है। या यूं कहें कि आज विज्ञान और तकनीक का युग है।सच तो यह है कि हम एआइ चैटबाट के युग में सांस ले रहे हैं। हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी सबको प्रदान की गई है, लेकिन पिछले कुछ समय से देश और समाज के कुछेक […] Read more » anarchy is not acceptable in the name of freedom of expression In the name of freedom of expression
लेख महाराजा चंपतराय और रानी सारंधा May 25, 2025 / June 25, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment भारत की वीरांगनाओं में रानी सारंधा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। सारंधा बुंदेला राजा चंपतराय की सहधर्मिणी थी। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा उठाया और भारतीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर अपना अप्रतिम बलिदान दिया। उनके भीतर स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी थी। भारतीय धर्म और वीर परंपरा […] Read more » Maharaja Champatrai and Queen Sarandha महाराजा चंपतराय और रानी सारंधा
पर्यावरण लेख विलुप्त होती प्रजातियां: जीवन के अस्तित्व पर संकट की दस्तक May 22, 2025 / May 22, 2025 by अतुल गोयल | Leave a Comment अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष Read more » A threat to the existence of life Extinct species:
लेख समाज भारत में अल्टरनेट एसओजीआई समुदाय और मानसिक स्वास्थ्य May 22, 2025 / May 22, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा भारत में मानसिक स्वास्थ्य आज भी एक उपेक्षित और कलंकित विषय बना हुआ है। आम समाज में भी इसके बारे में खुलकर बात करना दुर्लभ है, लेकिन यह चुप्पी तब और भयावह रूप ले लेती है जब हम उन व्यक्तियों की बात करते हैं जो पारंपरिक यौन और लैंगिक पहचान से अलग हैं जैसे कि ट्रांसजेंडर, गे, लेस्बियन, बाइसेक्शुअल, क्वीर और नॉन-बाइनरी लोग। इन सभी को मिलाकर अल्टरनेट एसओजीआई (सेक्सुअल ओरिएंटेशन एंड जेंडर आइडेंटिटी) समुदाय कहा जाता है। यह समुदाय न केवल सामाजिक अस्वीकार्यता का शिकार है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित भी है। एसओजीआई समुदाय के सदस्य अक्सर बचपन से ही भेदभाव, तिरस्कार और हिंसा का सामना करते हैं. कभी स्कूलों में मजाक बनकर, कभी घर से निकाले जाने पर, तो कभी कार्यस्थलों पर अस्वीकार किए जाने के रूप में। यह बहिष्कार धीरे-धीरे मानसिक पीड़ा, अकेलेपन और आत्म-संदेह को जन्म देता है। कई अध्ययन बताते हैं कि एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लोग डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्महत्या की प्रवृत्ति के शिकार आम लोगों की तुलना में कई गुना अधिक होते हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय के भीतर आत्महत्या का जोखिम बेहद चिंताजनक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 31 प्रतिशत ट्रांसजेंडर लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है। इसके पीछे सामाजिक तिरस्कार, रोजगार का अभाव, हिंसा, और हेल्थकेयर सिस्टम द्वारा उपेक्षा प्रमुख कारण हैं। भारत का स्वास्थ्य ढांचा वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद कमज़ोर है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर औसतन 0.3 मनोचिकित्सक हैं। जब सामान्य नागरिकों तक ही सेवाएं नहीं पहुँच रही हैं, तो एसओजीआई समुदाय की स्थिति और भी बदतर हो जाती है। बहुत से डॉक्टर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एलजीबीटीआईक्यू+ पहचान को ‘बीमारी’ मानते हैं या इसे ‘सुधारने’ की कोशिश करते हैं। इससे व्यक्ति इलाज के बजाय और अधिक मानसिक उत्पीड़न का शिकार होता है। इसके अलावा, एसओजीआई समुदाय को स्वास्थ्य संस्थानों में भेदभाव, उपहास और असंवेदनशील व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग टॉयलेट या वार्ड की व्यवस्था तक नहीं है, जिससे वे स्वास्थ्य सेवाओं से दूर भागने को मजबूर होते हैं। भारत के शहरी इलाकों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में जहां कुछ गैर सरकारी संगठन और काउंसलिंग सेवाएं एलजीबीटीआईक्यू+ फ्रेंडली बन रही हैं, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में स्थिति काफी चिंताजनक है। यहाँ न तो संवेदनशील डॉक्टर हैं और न ही एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लिए कोई विशेष मानसिक स्वास्थ्य नीति या योजना। हाल के वर्षों में भारत में कुछ महत्वपूर्ण कानूनी धारा 377 की समाप्ति, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम आदि जैसे कदम उठाए हैं लेकिन एसओजीआई समुदाय के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सुधारों का अभाव है। एसओजीआई समुदाय के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि डॉक्टरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए ट्रेनिंग अनिवार्य होनी चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाले काउंसलिंग केंद्रों और टोल-फ्री हेल्पलाइनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।स्कूल स्तर से ही यौन विविधता और मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा ताकि अगली पीढ़ी में समावेशी दृष्टिकोण विकसित हो।एलजीबीटीआईक्यू+ संगठनों और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी हो, जिससे स्थानीय स्तर पर सहायता और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें। सरकार को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति पर राज्यवार आंकड़े एकत्र करने चाहिए ताकि नीतियाँ ज़मीनी जरूरतों पर आधारित बन सकें। भारत में एसओजीआई समुदाय का मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर, मगर अदृश्य संकट बना हुआ है। संगठनों का कहना है कि जब तक समाज इस चुप्पी को नहीं तोड़ेगा और सरकार अपने नीतिगत ढांचे में सुधार नहीं लाएगी, तब तक यह समुदाय अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई में अकेला पड़ता रहेगा। मानसिक स्वास्थ्य केवल इलाज की नहीं, बल्कि गरिमा, स्वीकृति और आत्मसम्मान की भी लड़ाई है। Read more » The Alternate SOGI Community and Mental Health in India अल्टरनेट एसओजीआई समुदाय
लेख आखिर क्यों घट रही है गंगा डॉल्फिन की आबादी ? May 22, 2025 / May 22, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। मनुष्य तो मनुष्य पशु-पक्षियों और जलीय जीवों को पर्यावरण प्रदूषण से बहुत नुक्सान पहुंच रहा है, लेकिन इनका कोई धणी-धोरी नजर नहीं आता। यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारे देश में पर्यावरण प्रदूषण से जीव-जंतुओं […] Read more » गंगा डॉल्फिन की आबादी
लेख भीषण गर्मी में स्वयं के साथ बेजुबानों का भी रखें ध्यान ! May 20, 2025 / May 20, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment हाल ही में मौसम विभाग ने 21 मई तक 24 मई तक पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में कुछ जगहों पर लू चलने की संभावना जताई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार 21 मई तक हरियाणा और राजस्थान में कुछ इलाकों में रात में भी लू चलने की संभावना है। इन दिनों राजस्थान और हरियाणा ही नहीं […] Read more » भीषण गर्मी में स्वयं के साथ बेजुबानों का भी रखें ध्यान
लेख जब ट्रेनें बन जाएँ डर की सवारी: राप्तीसागर एक्सप्रेस पर पथराव, व्यवस्था पर बड़ा तमाचा May 20, 2025 / May 20, 2025 by अशोक कुमार झा | Leave a Comment अशोक कुमार झा 18 मई 2025 की रात देश की प्रतिष्ठित लंबी दूरी की राप्तीसागर एक्सप्रेस पर जब सीवान-छपरा रेलखंड के बीच पत्थरों की बरसात हुई तो एक बार फिर देश की रेल सुरक्षा व्यवस्था, सामाजिक तंत्र और प्रशासनिक संवेदनशीलता कठघरे में खड़ी हो गई।मुजफ्फरपुर के युवा यात्री विशाल कुमार के सिर पर पत्थर लगने से बहता लहू केवल उनकी […] Read more » a big slap on the system When trains become rides of fear: Stone pelting on Rapti Sagar Express राप्तीसागर एक्सप्रेस पर पथराव
लेख दूरसंचार क्रांति : कबूतर से की-बोर्ड तक का “सफर” May 17, 2025 / May 17, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई पर विशेष… प्रदीप कुमार वर्मा प्राचीन काल में कोई संदेश या कोई चिट्ठी भेजने के लिए कबूतरों या फिर दूत और संदेशवाहक की परंपरा देखने को मिलती है। डाक सेवा के शुरू होने के बाद में पोस्टमैन से यह काम करते थे लेकिन समय के साथ बदलते दौर में अब सूचना और संदेश के भेजने की प्रकृति तथा जरिया भी बदल चुका है। आज इंटरनेट की वजह से संदेश पहुंचाना आसान हो गया है। आज का युग सूचना का युग है। इसी वजह है कि बदले जमाने में “दूरसंचार” ने पृथ्वी और आकाश की सम्पूर्ण दूरी को मिटा दिया है। दूरसंचार क्रांति के माध्यम से ना केवल देश,अपितु विश्व के कोने-कोने में सूचनाओं का आदान-प्रदान तीव्र गति से हो रहा है। यही वजह है कि आज फोन, मोबाइल और इंटरनेट लोगों की प्रथम आवश्यकता बन गये हैं। दूरसंचार क्रांति का ही असर है कि अब सूचना का सफर कबूतर से लेकर कीबोर्ड तक आ चुका है। दूरसंचार का उदेश्य था कि देश दुनिया के हर आदमी तक सूचना पंहुचे ओर संचार सुलभ हो। इसलिए विश्व दूरसंचार दिवस के दिन सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के फायदों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा की जाती है। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना और साल 1865 में पहले अंतर्राष्ट्रीय टेलीग्राफ समझौते पर हस्ताक्षर होने की याद में मनाया जाता है। मार्च 2006 में एक प्रस्ताव को अपनाया गया था, जिसमें कहा गया है कि हर साल 17 मई को विश्व सूचना समाज दिवस मनाया जाएगा। विश्व दूरसंचार दिवस मनाने की परंपरा 17 मई 1865 में शुरू हुई थी लेकिन आधुनिक समय में इसकी शुरुआत वर्ष 1969 में हुई। तभी से पूरे विश्व में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत में दूरसंचार क्रांति के अतीत के बारे में पता चलता है कि वर्ष 1880 में दो टेलीफोन कंपनियों ‘द ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड’ और ‘एंग्लो इंडियन टेलीफोन कंपनी लिमिटेड’ ने भारत में टेलीफोन एक्सचेंज की स्थापना करने के लिए भारत सरकार से संपर्क किया। इस अनुमति को इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया गया कि टेलीफोन की स्थापना करना सरकार का एकाधिकार था और सरकार खुद यह काम शुरू करेगी। इसके बाद वर्ष 1881 में सरकार ने अपने पहले के फैसले के ख़िलाफ़ जाकर इंग्लैंड की ‘ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड’ को कोलकाता, मुंबई, मद्रास (चेन्नई) और अहमदाबाद में टेलीफोन एक्सचेंज खोलने के लिए लाइसेंस दिया। इससे 1881 में देश में पहली औपचारिक टेलीफोन सेवा की स्थापना हुई। इसी क्रम में 28 जनवरी, 1882 भारत के टेलीफोन इतिहास में ‘रेड लेटर डे’ है। इस दिन भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल काउंसिल के सदस्य मेजर ई. बैरिंग ने कोलकाता, चेन्नई और मुंबई में टेलीफोन एक्सचेंज खोलने की घोषणा की। कोलकाता के एक्सचेंज का नाम ‘केंद्रीय एक्सचेंज’ था। केंद्रीय टेलीफोन एक्सचेंज के 93 ग्राहक थे। मुंबई में भी 1882 में ऐसे ही टेलीफोन एक्सचेंज का उद्घाटन किया गया था। इसके बाद में संचार क्रांति में बदलाव आया और 2जी के बाद 3जी, 4जी तथा 5 जी स्पेक्ट्रम के जरिए मोबाइल सेवा अस्तित्व में आई। दूरसंचार के क्षेत्र में इंटरनेट के जरिये हमें घर में मोबाइल , कंप्यूटर, लैपटॉप,या टीवी में देखने में मिलता है। वर्तमान समय में दूरसंचार का एक बहुत बड़ा हिस्सा इंटरनेट है। इसमें कोई शक नहीं है कि जिन लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है, उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। दूरसंचार की सहायता से हम ऑनलाइन मोबाइल के द्वारा बिजली एवं नल का बिल, डिस्क रिचार्ज, बैंकिंग, बीमा तथा अन्य काम अपने घर में बैठे-बैठे ही पूरा कर सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा महिला, बच्चे तथा बुजुर्गों को मिलता है। जिनके लिए यह सभी काम बहुत आसान और आरामदायक बन जाते है। इंटरनेट के जरिए हम असंख्य सूचनाओं को पलक झपकते ही मात्र कुछ चंद सेकेंड में प्राप्त कर लेते हैं। इंटरनेट सिर्फ सूचनाओं के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सोशल नेटवर्किग के लिए अब अहम बन चुका है। गूगल के ई-मेल, अन्य सोशल मीडिया के माध्यम जैसे फेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम, थ्रेड तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए से हजारों किलोमीटर की दूरियां सिमट कर अब चंद सेकेंड के फासले में बदल गयी हैं। पहले जहाँ किसी से संपर्क साधने के लिए लोगों को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी, वहीं आज मोबाइल और इंटरनेट ने इसे बहुत ही आसान बना दिया है। आज इंटरनेट ने हमारे जीवन को सरल बनाने में अहम योगदान दिया है, उसी तरह इसने कई ऐसी समस्याएँ भी उत्पन्न कर दी हैं, जिससे कहीं न कहीं हमारा समाज दूषित हो रहा है। देखें तो आज इंटरनेट पर काम कम और इसका दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। पोर्नोग्राफी जैसी समस्या इंटरनेट के हर हिस्से में पहुंच चुकी है। देखने में यह आया है कि नासमझ लोग अपने यार-दोस्तों की तस्वीरें इंटरनेट पर डाल देते हैं, लेकिन अश्लीलता परोसने वाली वेबसाइट्स उन्हें चुराकर उनका दुरुपयोग करना शुरू कर देती हैं। इसके सामने एक और बड़ी चुनौती साइबर अपराध भी है, जिसकी आड़ में लोग अफवाह फैला कर देश में साइबर युद्ध जैसे हालात पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं। इन सब नकारात्मक तथ्यों के बावजूद भी दूरसंचार तकनीक आज भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देशों में समृद्धि के लिए सहायक सिद्घ हो रही है। प्रदीप कुमार वर्मा Read more » Telecommunication Revolution Telecommunication Revolution: The "Journey" from Pigeon to Keyboard विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई
लेख चलती चिता बनती बसें: निजी परिवहन की अंधी दौड़ और बेबस यात्रियों की चीखें May 16, 2025 / May 16, 2025 by अशोक कुमार झा | Leave a Comment अशोक कुमार झा 15 मई 2025 की वह सुबह लखनऊ के लिए एक और मनहूस सुबह बनकर आई, जब बिहार के बेगूसराय से दिल्ली की ओर जा रही एक प्राइवेट स्लीपर बस (संख्या: UP17 AT 6372) लखनऊ के मोहनलालगंज क्षेत्र में किसान पथ पर आग का गोला बन गई। इस भीषण हादसे में पांच निर्दोष यात्रियों की ज़िंदा जलकर मौत हो […] Read more » Buses turning into moving pyres: The blind race of private transport and the cries of helpless passengers चलती चिता बनती बसें चलती चिता बनती बसें: निजी परिवहन की अंधी दौड़ और बेबस यात्रियों की चीखें
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल गणि राजेन्द्र विजयः दांडी पकडे़ गुजरात के उभरते हुए ‘गांधी’ May 16, 2025 / May 16, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment गणि राजेन्द्र विजयजी के 51वें जन्म दिवस: 19 मई 2025 -ललित गर्ग – प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक अनेकों संत-मनीषियों, धर्मगुरुओं, ऋषियों ने भी अपने मूल्यवान अवदानों से भारत की आध्यात्मिक परम्परा को समृद्ध किया है, इन महापुरुषों ने धर्म के क्षेत्र में अनेक क्रांतिकारी स्वर बुलंद किए। ऐसे ही विलक्षण एवं अलौकिक संतों में […] Read more » गणि राजेन्द्र विजय