लेख शिक्षा का कोरियाई मॉडल और सरकारी स्कूलों की जमीनी हकीकत November 7, 2019 / November 7, 2019 by डॉ अजय खेमरिया | Leave a Comment *मप्र सरकार दक्षिण कोरिया के स्टीम एजुकेशन सिस्टम को लागू करना चाहती है मप्र मे डॉ अजय खेमरिया मप्र की कमलनाथ सरकार प्रदेश में शालेय शिक्षा को कौशल विकास के साथ जोड़ने के लिये दक्षिण कोरिया का मॉडल अपनाना चाहती है ।इसके लिये मप्र के चुनिंदा 35 अफसरों और शिक्षकों का एक दल इन दिनों […] Read more » शिक्षा का कोरियाई मॉडल सरकारी स्कूलों की जमीनी हकीकत
लेख कहीं दिल्ली न बन जाये उत्तराखंड! November 6, 2019 / November 6, 2019 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment बसंत पांडेय हल्द्वानी, उत्तराखंड दिल्ली की जानलेवा ज़हरीली हवाओं ने वातावरण को इस क़दर प्रदूषित कर दिया कि सरकार को स्वास्थ्य आपातकाल लगानी पड़ी। परिस्थिती की भयावता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया और लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई। सभी प्रकार […] Read more » जानलेवा धुंए और प्रदूषित जल स्वास्थ्य आपातकाल
लेख विविधा शहरीकरण है वायु प्रदूषण के खतरे का कारण November 6, 2019 / November 6, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर जिस तरह के इमरजेंसी से बुरे हालात बने हुए है, धरती-आसमान एक करते हुए किसानों के माथे पर इसका दोष मढ़ने के प्रयास हो रहे हैं, समस्या की जड़ को पकड़ने की बजाय इस तरह के अतिश्योक्तिपूर्ण आरोपों को किसी भी रूप में तर्कपूर्ण नहीं कहा […] Read more » वायु प्रदूषण
कविता रात रोता है मेरा,सवेरा रोता है मेरा November 5, 2019 / November 5, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment रात रोता है मेरा,सवेरा रोता है मेरा तेरे बगैर यूँ ही गुज़ारा होता है मेरा तुम थे तो ज़िंदगी कितनी आसाँ थी अब हर काम दो-बारा होता है मेरा किस- किस पल को हिदायत दूँ मैं हरेक पल ही आवारा होता है मेरा तुझे नहीं तेरा साया ही तो माँगा था फ़कीरी किन्हें गवारा होता […] Read more » रात रोता है मेरा सवेरा सवेरा रोता है मेरा
कविता हम राजा हैं November 5, 2019 / November 5, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment हम राजा हैं Read more » तुम घोड़ा बन जाओ भैया मैं बैठूंगी पीठ पर
कविता यह खेल खतरनाक है,खेल को समझिए जरा November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment यह खेल खतरनाक है,खेल को समझिए जरा कत्लों -गाह का ग़र तजुर्बा है तो उतरिए ज़रा बाकायदा खून की बू आपको पसंद आती हो तब ही इन सियासती गलियों से गुजरिए ज़रा कभी अपनों के लाश देखो और गौर से देखो फिर अपने किए झूठे वायदों से मुकरिए ज़रा ये चीख, ये चिल्लाहट ,ये झुंझलाहट, […] Read more » यह खेल खतरनाक है
कविता कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा ये आसमाँ ये सितारा भी बदल जाएगा कितना मोड़ पाओगे दरिया का रास्ता किसी दिन किनारा भी बदल जाएगा दूसरों के भरोसे ही ज़िंदगी गुज़ार दी वक़्त बदलते सहारा भी बदल जाएगा झूठ की उम्र लम्बी नहीं हुआ करती ये ढोल ये नगाड़ा भी बदल जाएगा गिनतियों […] Read more » कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा
कविता वो इस कदर बरसों से मुतमइन* है November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment वो इस कदर बरसों से मुतमइन* है जैसे बारिश से बेनूर कोई ज़मीन है साँसें आती हैं, दिल भी धड़कता है सीने में आग दबाए जैसे मशीन है आँखों में आखिरी सफर दिखता है पसीने से तरबतर उसकी ज़बीन* है अपने बदन का खुद किरायेदार है खुदा ही बताए वो कैसा मकीन* है ज़िंदगी मौत […] Read more »
कविता मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है November 3, 2019 / November 3, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है सिर्फ जिल्द देखकर सारांश तो नहीं लिखा जा सकता अध्याय दर अध्याय,पन्ने दर पन्ने किरदारों की कितनी ही गिरहें खुलनी अभी बाकी हैं उपसंहार से पहले प्रस्तावना और प्रस्तावना से पहले अनुक्रमिका सब कुछ जानना है मेरी नियति की रचना सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि […] Read more »
लेख विविधा देश में अन्नदाता किसानों को खुशहाल बनाने की धरातल पर पहल कब November 2, 2019 / November 2, 2019 by दीपक कुमार त्यागी | Leave a Comment दीपक कुमार त्यागी आजाद भारत में हम सबका पेट भरने वाले अन्नदाता को आयेदिन अपने अधिकारों और हक को हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है। लेकिन देश की सरकारें है कि वो अपनी चतुर चाणक्य नीति से हर बार इन किसानों को आश्वासन देकर समझा-बुझाकर सबका पेट भरने के उद्देश्य से अन्न […] Read more » अन्नदाता
लेख विविधा समाज नैतिकता का दीप बुझने न पाए November 2, 2019 / November 2, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में एक नयी चुस्त-दुरूस्त, पारदर्शी, जवाबदेह और भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति को जन्म दिया है, इस तथ्य से चाहकर भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। न खाऊंगा का प्रधानमंत्री का दावा अपनी जगह कायम है लेकिन न खाने दूंगा वाली हुंकार अभी अपना असर नहीं दिखा पा रही है। […] Read more »
दोहे पतझड़ में पत्ते जो देखे ! November 1, 2019 / November 1, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment पतझड़ में जो पत्ते देखे, कहाँ समझ जग जन थे पाए; रंग बिरंगे रूप देख के, कुछ सोचे वे थे हरषाये! क्या गुज़री थी उनके ऊपर, कहाँ किसी को वे कह पाए; विलग बृक्ष से होकर उनने, अनुभव अभिनव कितने पाए ! बदला वर्ण शाख़ के ऊपर, शिशिर झटोले कितने खाए; धूप ताप हिम की […] Read more » पतझड़ में पत्ते जो देखे