व्यंग्य अस्सी वाले स्वतंत्र बाबा कहीन “लोकतंत्र की फ्रीस्टाईल नूराकुश्ती” March 1, 2014 / March 1, 2014 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment – सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”- राजनीति एक बार दोबारा अपने चिर-परिचित स्वरूप की ओर बढ़ चली है। वही स्वरूप जिसमें पद पिपासा और अवसरवाद सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्धांत है। इस बात को देखकर मेरे बाबा का एक पुराना शेर याद आ गया जो वे अक्सर ही कहा करते थे, सियासत नाम है जिसका वो कोठे की […] Read more » satire on democracy अस्सी वाले स्वतंत्र बाबा कहीन "लोकलंत्र की फ्रीस्टाईल नूराकुश्ती"
कविता जय हो पण्डित लेखराम February 27, 2014 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on जय हो पण्डित लेखराम -विमलेश बंसल ‘आर्या’- जन्म लिया था रावलपिंडी, पाढीवार के कुहुटा ग्राम-2। तारा का अनमोल सितारा, जय हो पंडित लेखराम-2॥ 1. थे पंडित, विद्वान, साहसी, सच्चे देशभक्त प्यारे। तारा सिंह के पुत्र प्यारे, मां की आँखों के तारे। संस्कृत, हिंदी में पारंगत, फ़ारसी, उर्दू बनी हमांम॥ तारा का अनमोल सितारा… 2 एक दिवस पढ़ रहे मदरसे, घटना […] Read more » poem on Pandit Lekhram जय हो पण्डित लेखराम
व्यंग्य जैसे कैसे हो गया बस ! February 27, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- बरसों से महसूस होने का सारा सिस्टम खटारा होने के बाद भी कई दिनों से मैं महसूस कर रहा था कि जब-जब पत्नी की चिल्ल-पों बंद होती और अपने कानों को जरा चैन देने की कोशिश में होता तो उनके घर के भीतर से किसी चीज को ठोकने-बजाने की आवाजें आने […] Read more » satire on political system जैसे कैसे हो गया बस !
कविता सरफरोशी की तमन्ना अब बड़़ी मुश्किल में है February 27, 2014 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment – सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”- सरफरोशी की तमन्ना को बिस्मिल जी ने किस मनोभाव में लिखा होगा… कभी गौर से पढ़िये तो एक एक शब्द एक शहादत की कहानी कहता मिलेगा, लेकिन आज कहां लुप्त है हमारा सरफरोशी का ये भाव… एक बार सोचिये… आज हालात कुछ यूं है- सरफरोशी की तमन्ना अब बड़़ी मुश्किल […] Read more » poem on national integrity सरफरोशी की तमन्ना अब बड़़ी मुश्किल में है
राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : कुर्सी की दौड़ में February 26, 2014 by विजय कुमार | 3 Comments on व्यंग्य बाण : कुर्सी की दौड़ में वैसे तो सभी बच्चे शरारती होते हैं, और जो शरारती न हो, वह बच्चा ही क्या ? पर शर्मा जी के मोहल्ले बच्चे, तौबा-तौबा। वे कब, क्या कर डालेंगे, भगवान को भी नहीं मालूम। शर्मा जी के घर के बरामदे में एक अति प्राचीन ऐतिहासिक कुर्सी रखी है। हम लोग हंसी में उसे महाभारतकालीन कहते […] Read more » व्यंग्य बाण : कुर्सी की दौड़ में
कविता जय हो देव दयानंद की February 22, 2014 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment महर्षि दयानंद सरस्वती के जन्म दिवस व बोध दिवस पर विशेष -विमलेश बंसल ‘आर्या’- जय हो देव दयानंद की, आनंद की करुणानंद की। कर्षन जी घर निकला सूरज, धन्य हो गई टंकारा रज। नाम था उसका शंकर मूल, शारीरिक शौष्ठव ज्यों फ़ूल। शिव रात्रि का पर्व था आया, पिता ने व्रत उपवास कराया। बालक मूल […] Read more » maharshi dayanand saraswati जय हो देव दयानंद की
कविता मोदी के मतवाले, राहुल के रखवाले, अरविंद के अराजक February 21, 2014 by बीनू भटनागर | 6 Comments on मोदी के मतवाले, राहुल के रखवाले, अरविंद के अराजक मोदी के मतवाले मोदी के मतवाले गुजरात विकास दिखाते हैं, गुजरात विकास के नारे मे, गांवों को बिसराते हैं। अंबानी और अदानी के बल पर, चाय चौपाल लगाते हैं। भाषण तो बहुत देते हैं, इतिहास भूगोल भुलाते हैं, नालंदा को तक्षशिला , तक्षशिला को नांलंदा , पंहुचाते हैं। इतिहास की किताबों मे, बापू की पुण्य […] Read more » political poem अरविंद के अराजक मोदी के मतवाले राहुल के रखवाले
कविता “आह्वान” February 15, 2014 by प्रवीण कुमार | Leave a Comment -प्रवीण कुमार- सत्य को देखा कारागार में, न्याय विवश हो विलख पड़ा। भड़ी सभा में नग्न पुण्य भी, पाप के आगे विवश खड़ा। चना अकेला भाड़ क्या फोड़े, निर्बल दुःख को मौन सहा। क्रूर छली का पाकर सम्बल, ढोंग यथार्थ को दबा गया । प्रश्न नहीं तिल -तिल मरने का, चाह नहीं इस जीवन का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। पापी -जन का ह्रदय हिला दे, हो महाकाल का गर्जन घोर। कब सुनु मैं क्रूर का क्रंदन ,जिससे नाचे मन का मोर? अनिवार्य धरती का शोधन, कोई नहीं अब अन्य सहारा। मक्कारो की मक्कारी से ,विवश है शायद प्रभु हमारा। मोह नहीं अब जीवन -सुख का, चाह नहीं कुछ पाने का। राह देखता व्यथित बिबस मन ,महाप्रलय के आने का। मायापति भी देख चकित है, कलुषित बल की काली सत्ता। गम पीकर भी बेजुबान जन, भय से बल की गाए महत्ता। जब देवतत्व उपकार के बदले, क्रूर प्रपंच का प्रतिफल पाया। कैसे किस पर दया दिखाएं, दयानिधि को समझ न आया। जब छल -प्रपंच से दुखी प्रभु का, हुआ राह बंद फिर आने का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। आदर्श भरी बातों के भ्रम से, है भ्रम फैला उजियाले का। भयभीत मन में झांख के देखो, है व्यकुलता अंधियारे का। जीवन जीने के खातिर बेबस, हो बेजुबान गम छिपा लिया। नकली जीवन जी-जीकर, नकलीपन में जीवन बिता दिया। मोह नहीं बेबस जीवन का, मुझे चाह नहीं नकलीपन का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। न्याय,दया के माया जाल से ,पूरे जग को भ्रमित किया । अत्याचार के तांडव पर भी , गूंगा रहने पर विवश किया। मौन दर्द पी सकता निर्बल, पर दर्द समझता खेवनहार । जीवन मोह से बिबस है जन पर, […] Read more » "आह्वान" poem on truth
व्यंग्य पधारो म्हारी चौपाल! February 15, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment हे चाय चौपाल के बहाने वोट की जुगाड़ करने वालो! बड़े फन्ने खां बने फिरते हो न! पर अब आपको यह जानकर जितना आप सहन कर सकते हो उससे भी कहीं अधिक दुख होगा कि हमने आपका पहले वाले दाव का तोड़ निकाला हो या न पर आपकी चाय चौपाल का तोड़ निकाल लिया है। […] Read more » satire on politics पधारो म्हारी चौपाल!
कविता प्रेम और केवल प्रेम … February 15, 2014 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment आज कुछ बात मन को हिलाकर रख दिया बीते लम्हों को उमंगित कर मजबूर कर दिया सोचा नहीं था मुलाकात होगी तुमसे आज ” गांवली ” पास जाकर यकीन हुआ … मेरा तुमसे मुलाक़ात होना प्यार भरा वो पल केवल प्रेम और केवल प्रेम था Read more » poem प्रेम और केवल प्रेम ...
लेख राष्ट्र पर्व बनाम प्रेम पर्व February 15, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment -राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’- फरवरी महीने का दूसरा सप्ताह प्रेमियों के लिए होली, दीपावली और ईद से भी कहीं बढ़कर होता है। तरह-तरह के पक्षियों का दाने की तलाश में उड़ान भरते नजर आना मामूली बात है। कोयलिया भी बिना मौसम छत पर बैठकर तान छेड़ती नजर आती है और साथ ही शिकारी भी शिकार […] Read more » valentine day special राष्ट्र पर्व बनाम प्रेम पर्व
व्यंग्य राजनैतिक दोहे February 13, 2014 by बीनू भटनागर | 11 Comments on राजनैतिक दोहे -बीनू भटनागर- दोहों के सारे नियमों को ताक पर रखकर ये 7 दोहे लिखे हैं, दोहे इसलिये हैं कि दो लाइन के हैं। छंदशास्त्र के विद्वानों की निगाह पड़ जाये तो कृपया आंख बन्द कर लें। कोई बॉलीवुड का प्राणी देख ले तो ध्यान दें, क्योंकि फिल्मों में जैसी तुकबन्दी होती है, वैसी हम […] Read more » satire on political party satire on politics राजनैतिक दोहे