व्यंग्य साहित्य किस्सा-ए-लिखास रोग December 5, 2015 / December 5, 2015 by शिवेन्दु राय | Leave a Comment शिवेन्दु राय कॉमरेड, ये रोग मुझे बहुत साल पहले नहीं लगा था | जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में मीडिया फर्स्ट ईयर का छात्र था, स्वर्गीय राजेन्द्र जी को पहली बार ‘हंस’ में पढ़ा | उसी दौरान इस रोग के कीटाणुओं का प्रवेश मेरे अन्दर हो गया | मेरे दोस्त लव कांत अक्सर कहने लगे कि […] Read more » किस्सा-ए-लिखास रोग लिखास रोग
व्यंग्य साहित्य किस्सा-ए-ईमानदारी December 2, 2015 by शिवेन्दु राय | 3 Comments on किस्सा-ए-ईमानदारी शिवेन्दु राय प्रधानमंत्री मोदी अगर ईमानदार हैं तो उनसे कैसे निबटा जाए, यह आजकल की सबसे ज्वलंत समस्या है | तथाकथित राजनीति विज्ञान के विद्वान इस दिशा में पोथियाँ तैयार करने में लगे हैं | सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि मोदी की ईमानदारी अब विकराल रूप ले चुकी है […] Read more » किस्सा-ए-ईमानदारी
व्यंग्य साहित्य सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं December 2, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र घर पहुंचते ही मैंने अपने कपड़े उतारे और पैंट की जेब से मोबाइल निकालकर चारपाई पर पटक दिया। मोबाइल देखते ही घरैतिन की आंखों में चमक आ गई। दूसरे कमरे से बच्चे भी सिमट आए थे। घरैतिन ने मोबाइल फोन झपटकर उठा लिया और उसमें कुछ देखने लगीं। मोबाइल को इस तरह झपटता […] Read more » सेल्फी वाला पत्रकार सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं
व्यंग्य साहित्य जब – जबरा बोले …!! November 29, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 2 Comments on जब – जबरा बोले …!! तारकेश कुमार ओझा बचपन में पढ़ी उस कहानी का शीर्षक तो अब मुझे याद नहीं, लेकिन सारांश कुछ हद तक याद है। जिसमें सब्जी बेचने वाली एक गरीब महिला का बेटा किसी हादसे में गुजर जाता है। लेकिन परिवार की माली हालत और गरीबी की मारी बेचारी उसकी मां को दो दिन बाद ही फुटपाथ […] Read more » Featured जब – जबरा बोले
व्यंग्य साहित्य राहू केतू का मारा सर्वहारा November 28, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment कई दिनों से अपने खास यार दोस्तों से बहुत परेशान चल रहा था। जिस दोस्त पर भी विश्वास करता वही धोखा दे मुस्कराता आगे हो लेता। जब उनसे बचने के सारे जत्न कर हार गया तो पंडित भीरू बीवी ने सलाह दी, ‘लगता है आप पर किसी बुरे ग्रह की दशा चल रही है। तभी […] Read more » राहू केतू का मारा सर्वहारा
व्यंग्य साहित्य किस्सा-ए-अवैध रिश्ता November 28, 2015 / November 28, 2015 by शिवेन्दु राय | Leave a Comment लेखक-शिवेन्दु राय कॉमरेड, डेढ़ साल से देश की तरह मेरे गाँव में भी बड़ी चकचक मची हुई है, शोर हुआ है और लोग यहां-वहां गाँव के लिए तथाकथित सार्थक बहस करते पाए गए हैं | जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं मेरे गाँव के सभी गेटकीपर वैज्ञानिक विधि से बातचीत करने लगे हैं | परन्तु […] Read more » Featured किस्सा-ए-अवैध रिश्ता
राजनीति व्यंग्य साहित्य नंदू मैंने सपना देखा …. November 25, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment कल फिर बिन दाल के चपाती खा सोया तो एकदम नींद आ गई। नींद भी इतनी गहरी जितनी बहुधा नेताओं को चुनाव के बाद आती है, चाहे वे हारें हों या वे जीते। नींद आते ही मैंने पहली बार सपना देखा। सपने में देखा कि कभी बीवी से न जीतने वाला अपने देश में चुनाव […] Read more » नंदू मैंने सपना देखा ....
राजनीति व्यंग्य किस्सा-ए-कम्युनिस्ट November 25, 2015 / November 28, 2015 by शिवेन्दु राय | Leave a Comment लेखक:- शिवेन्दु राय कम्यूनिज्म तथा कम्यूनिस्टों के बारे में मुझे सबसे पहले अपने गाँव जमुआंव से ही पता चला था | उस दौर में भूमिहारों के घर कांग्रेसी या भाजपाई पैदा होते थे, डर के मारे कुछ लोग या यूँ कह सकते है कि ब्राह्मणों के चक्कर में भी राष्ट्रीय जनता दल यानि लालू जी […] Read more » Featured किस्सा-ए-कम्युनिस्ट
राजनीति व्यंग्य रूसी भाषा में शपथ लूं, तो चलेगा? November 23, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | 2 Comments on रूसी भाषा में शपथ लूं, तो चलेगा? -अशोक मिश्र बंगाल में बड़े भाई को कहा जाता है दादा। ऐसा मैंने सुना है। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में दादा पिताजी के बड़े भाई को कहते हैं। बड़े भाई के लिए शब्द ‘दद्दा’ प्रचलित है। समय, काल और परिस्थितियों के हिसाब से शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं। आज दादा का मतलब क्या […] Read more » Featured रूसी भाषा में शपथ
व्यंग्य उधार के सपने November 22, 2015 by मनोज कुमार | 1 Comment on उधार के सपने मनोज कुमार बैंक के भीतर जाना मेरे लिए आसान नहीं होता है। एक साहस का काम है और साहस जुटाकर जैसे ही मैंने बैेंक के दरवाजे पर पैर रखा, वहां कागज पर छपी इबारत सहसा मेरा ध्यान खींचकर ले गई। ‘सपने पूरे करें, किश्तों में मोबाइल लें।’ यानि दूसरे के महंगे मोबाइल की ओर ताकने […] Read more » उधार के सपने
व्यंग्य साहित्य भींगे सिर सरकारी तेल…!! November 22, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कॉमर्स का छात्र होने के बावजूद शेयर मार्केट का उतार – चढ़ाव कभी अपने पल्ले नहीं पड़ा। सेंसेक्स में एक उछाल से कैसे किसी कारोबारी को लाखों का फायदा हो सकता है, वहीं गिरावट से नुकसान , यह बात समझ में नहीं आती। अर्थ – व्यवस्था की यह पेचीदगी राजनीति में भी […] Read more » भींगे सिर सरकारी तेल...!!
व्यंग्य साहित्य सेल कुंआरी, सब पर भारी November 16, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment कई दिनों से बाजार में तरह- तरह की फेस्टिव आॅफरों के शोर शराबे ने जीना मुहाल कर रखा था। राम के आने और लक्ष्मी के जाने के बाद अभी भी रहा सहा दिन का चैन, रातों की नींद दोनों गायब है। कम्बखत बाजार ने दिन- रात दौड़ा- दौड़ा कर मार दिया, मैं थक गया पर […] Read more » Featured सब पर भारी सेल कुंआरी