व्यंग्य साहित्य अथ ‘श्री मच्छर कथायाम’ September 19, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment जिस किसी ने संस्कृत नीति कथा ‘पुनर्मूषको- भव:’ नहीं पढ़ी होगी ,उसे मेरी यह नव -उत्तरआधुनिक ‘मच्छरकथा’ शायद ही रुचिकर लगेगी ! किन्तु लोक कल्याण के लिए ‘स्वच्छ भारत’ एवं स्वश्थ भारत के निर्माण के लिए यह सद्यरचित स्वरचित मच्छरकथा -फेसबुक ,ट्विटर ,गूगल्र ,वॉट्सएप समर्पयामि :! ++++ ===++++==अथ मच्छर कथा प्रारम्भ ====+======+===++++ यद्द्पि मैं कोई […] Read more » मच्छर
व्यंग्य साहित्य सजा का मजा…!! September 16, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मैने कई बार महसूस किया है कि बेहद सामान्य व छोटा लगने वाला कार्य करने के बाद मुझे लगा जैसे आज मैने कोई अश्विसनीय कार्य कर डाला है। वैसे सुना है कि भीषण रक्तपात के बाद चक्रवर्ती सम्राट बनने वाले कई राजा – महाराजा इसकी उपलब्धि के बाद मायूस हो गए। यह […] Read more » सजा का मजा
राजनीति व्यंग्य मोर्चे पर मोर्चा …!! September 8, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन में मैने ऐसी कई फिल्में देखी है जिसकी शुरूआत से ही यह पता लगने लगता था कि अब आगे क्या होने वाला है। मसलन दो भाईयों का बिछुड़ना और मिलना, किसी पर पहले अत्याचार तो बाद में बदला , दो जोड़ों का प्रेम और विलेनों की फौज… लेकिन अंत […] Read more » Featured मोर्चा मोर्चे पर मोर्चा ...!!
विविधा व्यंग्य खास को यूं आम मत बन बनाओ …प्लीज…!! August 30, 2015 / August 30, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on खास को यूं आम मत बन बनाओ …प्लीज…!! बचपन में अपने हमउम्र बिगड़ैल रईसजादों को देख कर मुझे उनसे भारी ईष्या होती थी। क्योंकि मेरा ताल्लुक किसी प्रभावशाली नहीं बल्कि प्रभावहीन परिवार से था। मैं गहरी सांस लेते हुए सोचता रहता … काश मैं भी किसी बड़े बाप का बेटा होता , या एट लिस्ट किसी नामचीन मामा का भांजा अथवा किसी बड़े […] Read more » Featured
विविधा व्यंग्य प्याज का मारा इक दुखिया बेचारा August 24, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment जबसे मैंने अपने दोस्त का चेहरा देखा है, अपने सा बेरंग ही देखा है। हो सकता है कभी उनके चेहरे पर नूर रहा हो, जब वे अविवाहित रहे हों। असल में वे मेरे जिगरी दोस्त विवाह के बाद ही हुए हैं। जो मैं विवाहित न होता, वे विवाहित न होते शायद ही हम एक […] Read more »
पर्यावरण राजनीति व्यंग्य डिपेन्डेन्स वाया वल्र्ड वाटर लीग-2020 August 23, 2015 by अरुण तिवारी | 1 Comment on डिपेन्डेन्स वाया वल्र्ड वाटर लीग-2020 उल्लेखनीय है कि भारत के पानी के प्रति दुनिया के कर्जदाता देशों के नजरिये और नतीजे बता रहे हैं कि भारत का पानी उनके बिजनेस खेल का शिकार बन चुका है। इसे सहज ही समझाने की दृष्टि से सीधे संवाद शैली में लिखा एक व्यंग्य लेख डियर इंडि ! मैं, दुनिया के रेगुलेटर्स के प्रतिनिधि […] Read more »
विविधा व्यंग्य सर का शौर्य, साहब का शोक….!! August 20, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा आज का अखबार पढ़ा तो दो परस्पर विरोधाभासी खबरें मानों एक दूसरे को मुंह चिढ़ा रही थी। पहली खबर में एक बड़ा राजनेता अपनी बिरादरी का दुख – दर्द बयां कर रहा था। उसे दुख था कि जनता के लिए रात – दिन खटने वाले राजनेताओं को लोग धूर्त और बेईमान समझते […] Read more » सर का शौर्य साहब का शोक
विविधा व्यंग्य मान और अपमान August 7, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on मान और अपमान विद्वानों के अनुसार सृष्टि के जन्मकाल से ही मान और अपमान का अस्तित्व है। लक्ष्मण जी ने वनवास में शूर्पणखा की नाक काटी थी। उसने इस अपमान की रावण से शिकायत कर दी। अतः सीता का हरण हुआ और फिर रावण का कुलनाश। द्रौपदी के एक व्यंग्य ‘‘अंधे का पुत्र अंधा ही होता है’’ ने […] Read more » अपमान मान
विविधा व्यंग्य भावनाओं का ज्वार, रोए जार- जार… August 3, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on भावनाओं का ज्वार, रोए जार- जार… तारकेश कुमार ओझा मेरे मोहल्ले के एक बिगड़ैल युवक को अचानक जाने क्या सूझी कि उसने साधु बनने का फैसला कर लिया। विधिवत रूप से संन्यास लेकर वह मोहल्ले से निकल गया। बषों बाद लौटा तो उसके गले में कई चेन तो अंगलियों में सोने की एक से बढ़ कर अंगूठी देख लोग दंग रह […] Read more »
विविधा व्यंग्य व्यंग्य बाण : जय बोलो बेइमान की July 30, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य बाण : जय बोलो बेइमान की शर्मा जी ने तय कर लिया है कि चाहे जो भी हो और जैसे भी हो; पर अपने प्रिय देश भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करके ही रहेंगे। शर्मा जी छात्र जीवन में भी बड़े उग्र विचारों के थे। भाषण और निबन्ध प्रतियोगिताओं में वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध बहुत मुखर रहते थे। कई पुरस्कार भी […] Read more » बेइमान
खेल जगत विविधा व्यंग्य क्रिकेट का ‘ विकास’ …!! July 21, 2015 / July 21, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा नो डाउट अबाउट दिस … की तर्ज पर दावे के साथ कह सकता हूं कि अपना देश विडंबनाओं से घिरा है। हम भारतवंशी एक ओर तो विकास – विकास का राग अलाप कर राजनेता से लेकर अफसरशाही तक की नींद हराम करते हैं लेकिन जब सचमुच किसी क्षेत्र का विकास होने लगता […] Read more » क्रिकेट
राजनीति व्यंग्य व्यापक… व्यापमं….!! July 15, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा व्यापमं….। पहली बार जब यह शब्द सुना तो न मुझे इसका मतलब समझ में आया और न मैने इसकी कोई जरूरत ही समझी। लेकिन मुझे यह अंदाजा बखूबी लग गया कि इसका ताल्लुक जरूर किसी व्यापक दायरे वाली चीज से होगा। मौत पर मौतें होती रही, लेकिन तब भी मैं उदासीन बना […] Read more » व्यापमं