व्यंग्य जनगणना श्वानसंग्राम सेनानियों की April 21, 2012 / April 21, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on जनगणना श्वानसंग्राम सेनानियों की पंडित सुरेश नीरव आजकल हमारी सरकार अलग-अलग डिजायन की जनगणना कराने पर आमादा है। जातियों के आधार पर जनगणना,लिंग के आधार पर जनगणना,आर्थिक आधार पर जनगणना,भाषा के आधार पर जनगणना। लगे हाथ मैं सरकार से कहना चाहूंगा कि वो श्वान संग्राम सेनानियों की भी जनगणना करवाए। इससे सरकार को दो फायदे होंगे। एक तो फालतू […] Read more » जनगणना जनगणना श्वानसंग्राम सेनानियों श्वानसंग्राम सेनानि
व्यंग्य कल्याण हो! April 20, 2012 / April 20, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम सुबह सुबह बेड पर चारों खाने चित्त पसरी बीवी को बेड टी बना रात के झूठे बरतन धोने के बाद से टूटी हुई कमर को सीधा करने की कोशिश कर ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। सोचा, विलायती कुत्ते को लेकर घूमने जाने को कहने पड़ोसी आ गया होगा। जबसे रिटायर […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य सल्तनत-ए-मर्सिया के दुखड़ेआजम April 19, 2012 / April 19, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव मातमपुर्सी की जितनी मौलिक फुर्ती दुखीलाल को कुदरत ने बख्शी है उस जोड़ का दूसरा प्राणी इस पृथ्वी ग्रह पर तो क्या टोटल ब्रह्मांड के किसी ग्रह पर मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। परेशानी की चिर-परिचित लोकप्रियमुद्रा में आवाज से संवेदना का झुनझुना बजाते, गंभीर मटरगश्ती करते हुए वे हादसे […] Read more » दुखड़ेआजम सल्तनत-ए-मर्सिया
व्यंग्य कलयुग और लोकपाल April 16, 2012 / April 16, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव घोर कलयुग आ गया। घोर कलयुग। पंडितजी ने गांठ लगी चुटिया पर हाथ फेरते हुए जनहित में एक गोपनीय तथ्य का सार्वजनिक राष्ट्रीय प्रसारण किया। रेडियो,टीवी,अखबार मीडिया के इतने बड़े कुनबे के होते हुए भी आम जनता तक ये ब्रकिंग न्यूज अभी तक नहीं पहुंची है,पता नहीं पंडितजी को ये क्रूर मुगालता […] Read more » lokpal कलयुग लोकपाल
व्यंग्य धन्यवाद एनिमीग्राफ April 15, 2012 / April 15, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया अंततः एंटी-सोशल हो ही गए. रविशंकर श्रीवास्तव (रवि-रतलामी) अभी तक हम गर्व से अपने 5000 (भई, सीमा ही इतनी है, क्या करें!) फ़ेसबुक मित्रों की सूची सबको बताते फिरते थे. फ़ेसबुक दुश्मन (आप इनमें से चाहे जो भी कह लें – शत्रु, दुश्मन, वैरी, विरोधी, बैरी, मुद्दई, रिपु, अरि, प्रतिद्वंद्वी, प्रतिद्वन्द्वी, […] Read more » anti social enemygraph Facebook फ़ेसबुक
व्यंग्य थाने के बगल वाली भगतिन April 15, 2012 / April 15, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम कल सुबह पड़ोसी बालकनी मे हंसता हुआ दिखा तो मेरा दम घुटने को हुआ। लगा, किसीने मेरे गले पर अंगूठा रखा दिया हो। आखिर जब मेरे से उसका और हंसना बर्दाष्त नहीं हुआ तो मैं उसके पास जा पहुंचा। उसकी ओर निरीह भाव से देख पूछा-बंधु! आज इस तरह से हंस रहे हो, […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य आत्महत्या से पहले और आत्महत्या के बाद April 13, 2012 / April 13, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव आज का लेटेस्ट अपडेट- वतन की आबरू खतरे में है। तैयार हो जाओ। और ये भी बता दें कि खतरा बाहर के दुश्मन से नहीं अपने उन खूंखार खबरचियों से है जो कि खबर के रेपर में लपेटकर सनसनी बेचते हैं। इनके लिए बस एक अदद खबर महत्वपूर्ण है। क्योंकि ये खबरफरोश […] Read more » before and after suicide-satire आत्महत्या के बाद आत्महत्या से पहले
व्यंग्य सिक्के का दूसरा पहलू April 13, 2012 / April 13, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार यों तो शर्मा जी से हर दिन सुबह-शाम भेंट हो ही जाती है; पर दो दिन से मेरा स्वास्थ्य खराब था। अतः वे घर पर ही मिलने आ गये। कुछ देर तो बीमारी, डॉक्टर, दवा और परहेज की बात चली, फिर इधर-उधर की चर्चा होने लगी। – वर्मा जी, कहते हैं कि हर […] Read more »
व्यंग्य बेलगाम धनपशु का राजनीतिक उत्पात April 1, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव क्या करोड़पति होना भी हमारे देश में कोई गुनाह है। और अगर करोड़पति होना गुनाह है तो फिर कौन बनेगा करोड़पति की पवित्र भावना से ओत-प्रोत होकर हर क्षण-हर पल अपने अमिताभ भैया काहे को थोक में लोगों को करोड़पति बनाने पर आमादा रहते हैं। ऐसा इम्मोशनल अत्याचार कतई नहीं चलेगा। पहले […] Read more » millionaire and politics धनपशु
व्यंग्य सरकारी इकबाल कमाल है कमाल March 30, 2012 / March 30, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on सरकारी इकबाल कमाल है कमाल मनोहर पुरी ” अरे कनछेदी यह क्या हो रहा है, सरकारी इकबाल की तरह तुम्हारी तरकारी का इकबाल भी कहीं खो रहा है। कुछ अजब ही खिचड़ी पक रही है, कोर्इ नहीं जानता कि किसकी दाल कहां खप रही है। जिसका जब मन होता है वह देगची में कड़छी चलाता है,कोर्इ कोर्इ तो कच्चे पकवान […] Read more »
व्यंग्य बिन ममता सब सून March 26, 2012 / March 26, 2012 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन रहिमन ममता राखिये , बिन ममता सब सून । सभी प्राणी अपने बच्चों का तब तक पालन पोषण करते हैं जब तक वे स्वयं भोजन अर्जन एवं अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो जाते ।परन्तु बच्चा तो बच्चा होता है, वह बिना समर्थ हुए ही सोचने लगता है कि अब वह […] Read more »
व्यंग्य प्रेमचंद आउट !! March 5, 2012 / March 5, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम मेरे पास रहने को कमरा नहीं है। किराए के स्टोर के साथ लगते अपने गुसलखाने को मैंने लेखकीय प्रेम के चलते लेखक गृह बना रखा है ताकि कोर्इ भी भूला सूला लेखक यहां आकर रात बरात चैन से रह सके। मैं वैसे कोशिश करता हूं कि पुराने सुराने लेखक ही यहां आकर रहें […] Read more » satire by AshokGautam प्रेमचंद आउट