व्यंग्य थाने के बगल वाली भगतिन April 15, 2012 / April 15, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम कल सुबह पड़ोसी बालकनी मे हंसता हुआ दिखा तो मेरा दम घुटने को हुआ। लगा, किसीने मेरे गले पर अंगूठा रखा दिया हो। आखिर जब मेरे से उसका और हंसना बर्दाष्त नहीं हुआ तो मैं उसके पास जा पहुंचा। उसकी ओर निरीह भाव से देख पूछा-बंधु! आज इस तरह से हंस रहे हो, […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य आत्महत्या से पहले और आत्महत्या के बाद April 13, 2012 / April 13, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव आज का लेटेस्ट अपडेट- वतन की आबरू खतरे में है। तैयार हो जाओ। और ये भी बता दें कि खतरा बाहर के दुश्मन से नहीं अपने उन खूंखार खबरचियों से है जो कि खबर के रेपर में लपेटकर सनसनी बेचते हैं। इनके लिए बस एक अदद खबर महत्वपूर्ण है। क्योंकि ये खबरफरोश […] Read more » before and after suicide-satire आत्महत्या के बाद आत्महत्या से पहले
व्यंग्य सिक्के का दूसरा पहलू April 13, 2012 / April 13, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार यों तो शर्मा जी से हर दिन सुबह-शाम भेंट हो ही जाती है; पर दो दिन से मेरा स्वास्थ्य खराब था। अतः वे घर पर ही मिलने आ गये। कुछ देर तो बीमारी, डॉक्टर, दवा और परहेज की बात चली, फिर इधर-उधर की चर्चा होने लगी। – वर्मा जी, कहते हैं कि हर […] Read more »
व्यंग्य बेलगाम धनपशु का राजनीतिक उत्पात April 1, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव क्या करोड़पति होना भी हमारे देश में कोई गुनाह है। और अगर करोड़पति होना गुनाह है तो फिर कौन बनेगा करोड़पति की पवित्र भावना से ओत-प्रोत होकर हर क्षण-हर पल अपने अमिताभ भैया काहे को थोक में लोगों को करोड़पति बनाने पर आमादा रहते हैं। ऐसा इम्मोशनल अत्याचार कतई नहीं चलेगा। पहले […] Read more » millionaire and politics धनपशु
व्यंग्य सरकारी इकबाल कमाल है कमाल March 30, 2012 / March 30, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on सरकारी इकबाल कमाल है कमाल मनोहर पुरी ” अरे कनछेदी यह क्या हो रहा है, सरकारी इकबाल की तरह तुम्हारी तरकारी का इकबाल भी कहीं खो रहा है। कुछ अजब ही खिचड़ी पक रही है, कोर्इ नहीं जानता कि किसकी दाल कहां खप रही है। जिसका जब मन होता है वह देगची में कड़छी चलाता है,कोर्इ कोर्इ तो कच्चे पकवान […] Read more »
व्यंग्य बिन ममता सब सून March 26, 2012 / March 26, 2012 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन रहिमन ममता राखिये , बिन ममता सब सून । सभी प्राणी अपने बच्चों का तब तक पालन पोषण करते हैं जब तक वे स्वयं भोजन अर्जन एवं अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो जाते ।परन्तु बच्चा तो बच्चा होता है, वह बिना समर्थ हुए ही सोचने लगता है कि अब वह […] Read more »
व्यंग्य प्रेमचंद आउट !! March 5, 2012 / March 5, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम मेरे पास रहने को कमरा नहीं है। किराए के स्टोर के साथ लगते अपने गुसलखाने को मैंने लेखकीय प्रेम के चलते लेखक गृह बना रखा है ताकि कोर्इ भी भूला सूला लेखक यहां आकर रात बरात चैन से रह सके। मैं वैसे कोशिश करता हूं कि पुराने सुराने लेखक ही यहां आकर रहें […] Read more » satire by AshokGautam प्रेमचंद आउट
व्यंग्य व्यंग्य : शामिल बाजा March 2, 2012 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य : शामिल बाजा विजय कुमार आपका विवाह हो चुका है, तो अच्छी बात है। नहीं हुआ, तो और भी अच्छी बात है; पर आप दस-बीस शादियों में गये जरूर होंगे। नाच-गाने के बिना शादी और बैंड-बाजे के बिना नाच-गाना अधूरा रहता है। बैंड में कई तरह के वाद्य होते हैं, जो समय-समय पर अपने हिस्से का काम करते […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य:होली कंट्री और होलीवाटर March 1, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव वो कितने नासमझ हैं जो कहते हैं कि होली आ रही है। मैं उनसे पूछता हूं कि भैया मेरे होली गई कहां थी जो आ रही है। कौन समझाए इन्हें कि होली तो हमारे प्राणों में है और होली में ही हमारे प्राण हैं। हम सब इस महान होली कंट्री के मासूम […] Read more » satire on Holi होली कंट्री होलीवाटर
महत्वपूर्ण लेख व्यंग्य व्यंग्य/ क्या मैं तुम्हें सोनिया गांधी लगता हूं? February 28, 2012 / April 13, 2012 by अम्बा चरण वशिष्ठ | 1 Comment on व्यंग्य/ क्या मैं तुम्हें सोनिया गांधी लगता हूं? अम्बा चरण वशिष्ठ कल मेरी एक पत्रकार से भेंट हो गयी। मुझे कहने लगा कि मैं तुम्हारा साक्षात्कार लेना चाहता हूँ। मैंने कहा, तुझे कोई और नहीं मिला? मैं कौन सा इतना बड़ा नेता हूँ कि तू मेरा साक्षात्कार लेगा? पर वो न माना। कहने लगा देखो, बड़े-बड़े लोग मेरे पीछे पड़े रहते हैं कि […] Read more » सोनिया गांधी
व्यंग्य हमारे उंगल पर आपका अंगूठा February 28, 2012 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on हमारे उंगल पर आपका अंगूठा उंगलबाज.काम मुझे नहीं पता, आपने उंगलबाज का नाम पहले कभी सुना है या नहीं सुना। यह भारतीय मीडिया उद्योग का सबसे अविश्वनीय नाम है। इंडिया टीवी से भी अधिक अविश्वनीय। पंजाब केसरी से भी अधिक अविश्वनीय। डर्टी पिक्चर की सिल्क की तरह, जिसका नाम बदनाम होकर हुआ। हमारी विश्वसनीयता इतनी संदिग्ध है कि हमने दुनिया […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य-जनता बदलाव चाहती है February 13, 2012 / February 13, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव अब अपने भारत के दिन फिर बहुरेंगे। पहले सुनहरे कल में बेचारा घुसते-घुसते रह गया था। फिर शाइनिंग इंडिया होते-होते भी बाल-बाल बच गया। मगर अबकी बार कोई चूक नहीं हो सकती है। क्योंकि मंहगाई और घोटालों के साथ-साथ मतदान का ग्राफ भी लप-लपाता हुआ आगे बढ़ा है। मतदाताओं के सर मुंडाते […] Read more » satire by pandit Suresh Neerav जनता बदलाव चाहती है