व्यंग्य चुनाव आयोग का हास्यास्पद फैसला January 12, 2012 / January 12, 2012 by पवन कुमार अरविन्द | 1 Comment on चुनाव आयोग का हास्यास्पद फैसला पवन कुमार अरविंद बसपा सुप्रीमो कुमारी मायावती और हाथी की मूर्तियों को ढंकवाने के बाद चुनाव आयोग समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल का क्या करेगा? साइकिल आमजन की सवारी है, जो हर नगर, ग्राम, डगर-डगर दिख जायेगी। तो क्या चुनाव सम्पन्न होने तक लोग साइकिल की सवारी करना छोड़ दें? साइकिल के दुकानदारों को […] Read more » Election Commission of India mayawati and elephant चुनाव आयोग का हास्यास्पद फैसला मायावती और हाथी की मूर्तियों
व्यंग्य लोकपाल या लोक पा(ग)ल January 11, 2012 / January 12, 2012 by अविनाश वाचस्पति | 1 Comment on लोकपाल या लोक पा(ग)ल अविनाश वाचस्पति लोकपाल मतलब नेता। चौंकिए मत जो लोक को पाले वह नेता ही हो सकता है। अरे भाई इसमें इतनी हैरानी की क्या बात है, क्योंकि लोक हुआ आम आदमी और आम आदमी को पालता है नेता। चाहे यह नेताओं की गलतफहमी ही क्यों न हो, परंतु किसी हद तक तो ठीक बैठ रही […] Read more » Lokpal Bill reservation in lokpal bill लोकपाल
व्यंग्य आधार से निराधार तक January 10, 2012 / January 10, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार हर व्यक्ति के जीवन में छात्र जीवन का बड़ा महत्व है। इस समय एक दौर ऐसा भी आता है, जब लोग प्रायः कविहृदय हो जाते हैं। डायरी में गुलाब का फूल रखने से लेकर रोमांटिक शेर लिखना तक उन दिनों आम बात होती है। कविता और शेरो शायरी का रोग बढ़ जाए, तो […] Read more » aadhar card आधार
व्यंग्य सदाखुश बाबू January 10, 2012 / January 10, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार शर्मा जी में यों तो कई विशेषताएं हैं; पर सबसे बड़ी विशेषता है कि वे स्वयं भी खुश रहते हैं और बाकी लोगों को भी खुश रखते हैं। अतः लोग उन्हें सदाखुश बाबू भी कहते हैं। जिस दिन विश्व की जनसंख्या सात अरब हुई, उससे अगले दिन मिले, तो खुशी मानो गिलास से […] Read more » sadakhush babu story by vijay kumar सदाखुश बाबू
व्यंग्य बस, शांति पुरुष घोषित करवा दो यार !! January 9, 2012 / January 9, 2012 by अशोक गौतम | 1 Comment on बस, शांति पुरुष घोषित करवा दो यार !! अशोक गौतम कल बाजार में वे मिले। एक कांधे पर उन्होंने कबूतर बिठाया हुआ था तो दूसरे कांधे पर तोता। माथे पर बड़ा सा तिलक! हाथ में माला, तो शरीर जहां जहां भगवे से बाहर था वहां पर भूभत ही भभूत! अचानक वे मेरे सामने अल्लाह हो! अल्लाह हो! करते रूके तो उनपर बड़ा गुस्सा […] Read more » Satire अशोक गौतम शांति पुरुष घोषित करवा दो
व्यंग्य कुएं नेकी का डस्टबिन January 6, 2012 / January 6, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on कुएं नेकी का डस्टबिन पंडित सुरेश नीरव गर्मी चेहरे पर पसीने का स्प्रे कर रही थी। मैं लाल कुएं से चलकर धौला कुंआ तक भटकता-भटकाता पहुंच चुका था मगर मजाल है कि बीस किलोमीटर के इस कंकरीट कानन में कहीं भी एक अदद कुएं की झलक भी देखने को मिली हो। कई दिनों बाद मैंने एक नेकी की थी […] Read more » satire by pandit Suresh Neerav कुएं नेकी का डस्टबिन
व्यंग्य क्या राजनीतिज्ञों का नार्को और डी.एन.ए. परिक्षण अनिवार्य होना चाहिए……! January 4, 2012 / January 4, 2012 by विनायक शर्मा | 3 Comments on क्या राजनीतिज्ञों का नार्को और डी.एन.ए. परिक्षण अनिवार्य होना चाहिए……! विनायक शर्मा एक गंभीर राजनैतिक व्यंग डी.एन.ए. और नार्को -परिक्षण , गाहे-बगाहे कहीं न कहीं समाचारों में यह शब्द पढने-सुनने में आ ही जाते हैं. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल या डीएनए कहते हैं. इसमें अनुवांशिक कूट या जेनेटिक कोड निबद्ध रहता है. दूसरी ओर नार्को […] Read more » dna tests of politicians narco tests of politicians डी.एन.ए. नार्को -परिक्षण राजनीतिज्ञों का नार्को और डी.एन.ए. परिक्षण अनिवार्य
व्यंग्य ये गया कि वो गया!! January 3, 2012 / January 3, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment सारी रात रजाई में दुबक टमाटर की आरती गाते रहने के बाद ब्रह्म मुहूर्त में प्याज चालीसा पढ़ रहा था कि एकाएक दरवाजे पर ठक्- ठक् हुई। पड़ोसी ही होगा! आ गया होगा नए साल की मुबारकबाद देने के बहाने खाली कटोरी बजाता। इसे तो बस मांगने का कोई बहाना चाहिए। प्याज चालीसा पढ़ना बंद […] Read more » satire by Ashok Gautam व्यंग्य-ये गया कि वो गया
व्यंग्य व्यंग्य / लोकपाल विधेयक : पजामे से चड्डी तक December 28, 2011 / December 28, 2011 by विजय कुमार | 6 Comments on व्यंग्य / लोकपाल विधेयक : पजामे से चड्डी तक विजय कुमार पजामा एक वचन है या बहुवचन, स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग, उर्दू का शब्द है या हिन्दी का, इसका प्रचलन भारत में कब, कहां, कैसे और किसने किया; इस विषय की चर्चा फिर कभी करेंगे। आज तो शर्मा जी के पजामे की चर्चा करना ही ठीक रहेगा। बात उस समय की है, जब शर्मा […] Read more » lokpal लोकपाल
व्यंग्य व्यंग : किसानों को आत्महत्योपरांत सम्मानित किया जाए December 28, 2011 / December 28, 2011 by अविनाश वाचस्पति | 1 Comment on व्यंग : किसानों को आत्महत्योपरांत सम्मानित किया जाए अविनाश वाचस्पति किसान परेशान होकर आत्महत्या कर रहा है। नेता बेईमान काले धन से लिपट रहा है। मेरा देश महान फिर भी महान है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं, यह उनका दोष है। खेती करो, फिर खेती में नुकसान हो तो किसने कहा है कि आत्महत्या करो। जैसे खेती आपने किसी से पूछ कर नहीं […] Read more » faemer suicides आत्महत्या किसान
व्यंग्य महाअनादरणीयः माननीय December 23, 2011 / December 23, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव सिर्फ आदमी का ही मुकद्दर नहीं होता। आदमी की मुकद्दर की इबारत लिखनेलाले लफ्जों का भी मुकद्दर होता है। कल तक जो शब्द हमारी जिंदगी के अभयारण्य में शेर की तरकह दहाड़ा करते थे आज वक्त के म्यूजियम में मसाला भरे शेरों की तरह वह खड़े और पड़े हुए हैं। बड़े-तो-बड़े जिन्हें […] Read more » Satire suresh neerav महाअनादरणीय माननीय
व्यंग्य गरीब दर्शन December 19, 2011 / December 19, 2011 by विजय कुमार | 1 Comment on गरीब दर्शन विजय कुमार युवराज पिछले काफी समय से बोर हो रहे थे। महारानी जी बीमारी में व्यस्त थीं, तो राजकुमारी अपनी घर-गृहस्थी में मस्त। युवराज की बचकानी हरकतों से दुखी होकर बड़े सरदारों ने भी उन्हें पूछना बंद कर दिया था। युवराज की यह बेचैनी उनके चमचों से नहीं देखी जाती थी। एक बार वे उन्हें […] Read more »