व्यंग्य ये पबिलक है–सब जानती है ….. September 30, 2011 / December 6, 2011 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन हमारे समय में जब छात्र पढ़ार्इ शुरु करते थे ,तो पहला पाठ अ-अनार और म-मछली का होता था। बाद में जब हम कालेज स्तर पर आये तो अ-अवसरवादिता तथा म-मनीतंत्र जैसे शब्दों से सामना हुआ । परन्तु आज बचपन में ही नवपीढ़ी को अ-अन्ना व म-मनमोहन के नारे लगाते बीच बाजार जुलूस […] Read more »
व्यंग्य गरीबी के झटके September 30, 2011 / December 6, 2011 by राजकुमार साहू | 1 Comment on गरीबी के झटके राजकुमार साहू देखिए, गरीबों को गरीबी के झटके सहने की आदत होती है या कहें कि वे गरीबी को अपने जीवन में अपना लेते हैं। पेट नहीं भरा, तब भी अपने मन को मारकर नींद ले लेते हैं। गरीबों को ‘एसी की भी जरूरत नहीं होती, उसे पैर फैलाने के लिए कुछ फीट जमीन मिल […] Read more » poverty गरीबी के झटके
व्यंग्य वक्तव्य की तैयारी September 28, 2011 / December 6, 2011 by विजय कुमार | 1 Comment on वक्तव्य की तैयारी विजय कुमार भारत सरकार चाहती है कि देश में शांति रहे। देश में भले ही न रहे; पर दिल्ली में अवश्य रहे, चूंकि राजधानी होने के कारण यहां की राई को भी मीडिया वाले पहाड़ बनाकर पूरे देश और दुनिया में दिखा देते हैं। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन से हुई छीछालेदर के […] Read more »
व्यंग्य महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार September 28, 2011 / December 6, 2011 by राजकुमार साहू | 1 Comment on महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार राजकुमार साहू महंगाई पर हम बेकार की तोहमत लगाते रहते हैं। अभी जब बाजार में सामग्रियां सातवें आसमान में महंगाई की मार के कारण उछलने लगी, उसके बाद महंगाई एक बार फिर हमें ‘डायन’ लगने लगी। इस बार तंग आकर महंगाई ने भी अपनी भृकुटी तान दी और कहा कि उसने कौन सी गलती कर […] Read more » Inflation डायन महंगाई सरकार
व्यंग्य ‘मौनमोहन’ से मिन्नतें September 28, 2011 / December 6, 2011 by राजकुमार साहू | 1 Comment on ‘मौनमोहन’ से मिन्नतें राजकुमार साहू हे ‘मौनमोहन’, आपको सादर नमस्कार। आप इतने निरा मन से क्यों अपना राजनीतिक चक्र घुमा रहे हैं। जिस ताजगी के साथ आपने देश में नई बुलंदी को छू लिया और लोगों के दिल में भी समा गए, आखिर अब ऐसा क्या हो गया, जो आप एकदम से थकेथके से नजर आ रहे हैं। […] Read more » Manmohan Singh
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : टोपी बहादुर – पंडित सुरेश नीरव September 24, 2011 / December 6, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : टोपी बहादुर – पंडित सुरेश नीरव जिन्हें टोपी पहनने का शौक होता है वो टोपी नहीं पहना करते। टोपी पहनानेवाले ऐसे सूरमा अच्छे-अच्छों को टोपी पहना दिया करते हैं। देखिए न अपने गांधीजी ने कभी भूल से भी टोपी नहीं पहनी मगर एक-दो को नहीं पूरे देश को उन्होंने टोपी पहना दी। और उस पर भी जलवा ये कि टोपी कहलाई […] Read more » Hat Man Pandit Suresh Nirav Satire टोपी बहादुर पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य चोरों की आउट सोर्सिंग September 17, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव नेताजी के यहां चोरी हो गई। शहरभर में तहलका मच गया। कोई पुलिस व्यस्था को कोस रहा था तो कोई चोर की दिलेरी की दाद दे रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि ये मुमकिन हुआ तो हुआ कैसे। कुछ लोग आंख दबाकर इस वाकये पर अपने मुहावरेबाजी के गुप्तज्ञान का […] Read more » चोरों की आउट सोर्सिंग
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मजबूरी का नाम ईमानदारी September 7, 2011 / December 6, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव पता नहीं इस देश से भ्रष्टाचार कब जाएगा। बाबा रामदेव से लेकर अन्ना हजारे ही नहीं अब तो हमारे मुसद्दी लाल तक इस समस्या से परेशान हैं। और सरकार है कि जो भी इस मुद्दे के खिलाफ आवाज उठाता है वह उसे ही भ्रष्टाचारी बताने में लग जाती है। बाबा-तो-बाबा] दूध के […] Read more » ईमानदारी
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ शक के शौकीन September 7, 2011 / December 6, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव मुझे शक है कि मैं दिन-ब-दिन शक का शौकीन होता जा रहा हूं। पहले शायद ऐसा नहीं था मगर फिर सोचता हूं तो शक होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं था कि शक का शौक मुझे बचपन से ही हो और मैंने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया हो। अब तो […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य/ कांग्रेस और गांधी जी की बकरी September 4, 2011 / December 6, 2011 by जगमोहन ठाकन | 1 Comment on व्यंग्य/ कांग्रेस और गांधी जी की बकरी जग मोहन ठाकन महात्मा गांधी ने जो भी आंदोलन किये , अहिंसा व शांति के बलबुते पर कामयाबी पाई । गांधी जी की नीतियों व सिद्धान्तों पर चलने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी गांधीवादी रास्ते से पाई हुई स्वसता का रसास्वादन मजे से बैठ कर करती रही है। कांग्रेस ने ऐसा पाठ पढ़ लिया है […] Read more »
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/भ्रष्टाचार से लड़ने में कमजोरी बहुत आ जाती है August 28, 2011 / December 7, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/भ्रष्टाचार से लड़ने में कमजोरी बहुत आ जाती है पंडित सुरेश नीरव भ्रष्टाचार से लड़ने में कमजोरी बहुत आ जाती है। इसीलिए तो हमारे राजनेता भ्रष्टाचार से बच निकलने में ही भलाई समझते हैं और पिछले 64 साल से इससे बचते ही नहीं चले आ रहे हैं बल्कि उससे दोस्ती का रिश्ता बनाकर उसे फलने और खुद के फूलने का मौका निकालते रहे हैं। […] Read more » भ्रष्टाचार
व्यंग्य व्यंग्य/ प्रॉडक्शन ऑन प्रोग्रेस! August 26, 2011 / December 7, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम ब्रह्मलोक में सदियों से मानव बनाने का काम लार्ज स्केल पर चला हुआ था, चौबीसों घंटे, शिफ्टों पर शिफ्टों में! पर फिर भी ब्रह्मा अपने इकलौते मांगी को मानवों की डिमांड को पूरी नहीं कर पा रहे थे। देश में मानवों की मांग आपूर्ति से अधिक देखते हुए बीच बीच में ब्रह्मा चोरी […] Read more »