ये पबिलक है–सब जानती है …..

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जग मोहन ठाकन

हमारे समय में जब छात्र पढ़ार्इ शुरु करते थे ,तो पहला पाठ अ-अनार और म-मछली का होता था। बाद में जब हम कालेज स्तर पर आये तो अ-अवसरवादिता तथा म-मनीतंत्र जैसे शब्दों से सामना हुआ । परन्तु आज बचपन में ही नवपीढ़ी को अ-अन्ना व म-मनमोहन के नारे लगाते बीच बाजार जुलूस का हिस्सा बनना पड़ रहा है । ” अन्ना हजारे -सबके प्यारे ” । मनमोहन सरकार -भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचार ।” खैर , बाल स्वरूप भगवान का रूप होता है । इन भोले -भाले , राजनीति के क.ख.ग. भी न जानने वाले बच्चों के मुख से मुखर विरोध को देखते हुए मनमोहन जी भी ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे । करना था इन्कार , इकरार तुम्हीं से कर बैठे । ” की तर्ज पर अन्ना जी को ना ना करते तीन वचन दे बैठे ं। हम भारतवासी प्राचीनतम स्ांस्कृति के धनी हैं । ”प्राण जार्इं पर वचन न जाहि । ” इसी प्रकार कभी राजा दशरथ ने अपनी रानी कैकयी को तीन वचन दिये थे , जिनका खामियाजा स्वयं भगवान राम ,सीता ,लक्ष्मण ,लंकाधिपति रावण व वानर सेनापति बजरंग बली हनुमान को

भुगतना पड़ा था । न दशरथ जी वचन भरते , न राम को वनवास होता । न सीता का अपहरण होता और न ही लंका नरेश

रावण का खात्मा होता ।परन्तु होनी को कौन टाल सकता है। मनमोहन जी के पास अमर-अकबर-एन्थनी का जुगाड़ तो है

,जो अनहोनी को होनी कर दे , होनी को अनहोनी , परन्तु सब पासे उल्टे पड़ रहे हैं।क्या करें , सब कर्मन को लेख । वचन तो उसी परम्परा के अनुकूल दिये गये हैं ,सो हमें आशा करनी चाहिए कि कुछ रामायण के पात्रों को दुविधा का सामना तो करना पड़ सकता है , परन्तु यदि इस बार भी रावण रूपी भ्रष्टाचार

का खात्मा हो जाये तो बल्ले-बल्ले हो जायेगी । साढ़ा मनमोहणा भी ऐतिहासिक कथा-वस्तु में एक अमर पात्र का स्थान पा जायेगा ।बाकी कौन- कौन किस-किस पात्र का साम्य पाते हैं ,यह तो सम्पूर्ण कथाचित्र लिखे जाने के बाद ही पता चल पायेगा । कौन रावण कहलायेगा ,कौन कैकेयी आदि आदि –।

मनमोहन जी व अन्ना जी में अन्य समानताओं के मध्य एक समानता मितभाषिता भी है ।दोनों ही नपे तुले शब्द बोलते हैं । कहा भी गया है -पहले तोलो फिर बोलो ।वाचालता के लिए मनमोहन जी की टोली में दिगिवजय जैसे दिग्गज ” विराजमान हैं। वे ज्यादा तोलने में विश्वास नहीं रखते । सीधे-साधे फक्कड़ की तरह जैसी आर्इ मन में , वैसी ही दी फैंक ।

अन्ना जी व मनमोहन जी अपने -अपने हाथ को जगन्नाथ मानते हैं। जहां अन्ना जी के साथ जनता का हाथ है ,वहीं मनमोहन जी के साथ एक बुद्धिमान अंग्रेज द्वारा स्थापित पूरे एक सौ पच्चीस वर्ष पुरानी कांग्रेस का ”हाथ है। अब यह तो हो नहीं सकता कि

मनमोहन जी ”हाथ खड़े कर दें । उन्हें तो ”हाथ को कहीं न कहीं किसी अन्य अवस्था में ही रखना पड़ेगा ना ।।

भला उसमें उनका क्या कसूर है। यदि वो ”हाथ को किसी के सिर पर रख देते हैं , तो वो ”राजा बन जाता है । पीठ पर रख कर थपथपा देते हैं तो ” दिग्गज बन जाता है। खेल-खेल में किसी की कलार्इ पर हाथ छू भर देते हैं तो कोर्इ ”कलमाड़ी बन बैठता है । अगर प्यार से भी हाथ को जनता की गाल पर सहला देते हैं तो विरोधी भार्इ इसे ”मूंह पर तमाचा बताने लगते हैं । अब आप ही बताइए कहां रखें अपने इस हाथ को । यहां तक कि यदि जाड़े में ठिठुरन की सी -सी को मिटाने के प्रयास में गलती से भी इस हाथ को जेब की तरफ कर लेते हैं तो लोग ”सिवस-सिवस करके कोर्इ और अर्थ

निकालने लग जाते हैं। एक भोली सी जान , सौ झमेले ।कोर्इ नोट फार वोट बोलता है,तो कोर्इ वोट फार कैश । किस किस की सुने , किस किस की न सुने ।मुझे तो अन्ना व मनमोहन जी दोनों शील और संत स्वभाव के लगते हैं ।जाकी रही भावना

जैसी , प्रभु मूरति देखी तिन तैसी । मुझे तो कर्इ बार दया आती है । क्यों लोग इन वृद्ध संतों को आपस में कुश्ती लड़वा रहे हैं । कोर्इ नये पठठे क्यों नहीं ढंूढते । पर किस- किस को बताउूं , किस-किस से छिपाउूं , अपनी प्रेम कहानियां ।

अपनी परेशानियां । हां , इतना जरूर है ,ये पबिलक है ,सब जानती है। अन्दर क्या है, बाहर क्या है ? ये पबिलक है…..

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