व्यंग्य व्यंग/ रिश्तों का सुपरपावर देश भारत December 2, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव ये कितनी नाइंसाफी है कि बेचारा आदमी एक और उसकी जान को रिश्ते अनेक। बेचारा कहां जाए। और कितने रिश्ते निभाए। एक को पकड़ो तो दूसरा मेंढक की तरह उछलकर दूर खड़ा हो जाता है। हम यह तो फिजूल ही कहते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। असलियत में तो […] Read more » India भारत
व्यंग्य व्यंग/ परंपरा की परंपरा December 2, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव हमें गर्व है कि हम हिंदुस्तानी हैं। जहां आज भी परंपराओं को निभाने की परंपरा जिंदा है। भले ही आदमियत मर चुकी हो। पैदा होने से लेकर मरने तक यहां आदमी परंपराओं को निभाता है। सच तो यह है कि यहां आदमी परंपराओं को ही ओढ़ता है औऱ परंपराओं को ही बिछाता […] Read more » Tradition परंपरा
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की November 29, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की मैं नगर के सबसे पॉश इलाके में रहता हूं। चाय के उत्पादन से लिए जैसे दार्जिलिंग और बरसात के मामले में चेरापूंजी की प्रतिष्ठा है,ठीक वैसे ही कुत्तों के मामले में हमारी कॉलौनी का भी अखिल भारतीय रुतबा है। एक-से-एक उच्चवर्णी और कुलीन गोत्रों के कुत्ते इस कूकर कॉलौनी में निवास करते हैं। इसलिए ही […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए November 26, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए पंडित सुरेश नीरव हम बदनाम भी हुए तो कुछ गम नहीं…चलो इस बहाने नाम तो हुआ। नामचीन होने के तमाम बहाने आजमाने के बाद दुनियाभर के आम आदमी ने सर्वसम्मति से नामचीन होने के लिए बदनाम होने के फार्मूले को ही सबसे सुविधापूर्ण और सम्मानजनक नुस्खा पाया है। इसमें सबसे बड़ा लाभ तो उसे ये […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/विपक्ष का मुंह बंद कर दिया रे…… November 20, 2010 / December 19, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम ‘मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनाऊं….. मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनाऊं। किसका किस्सा सुनोगे? राष्ट्रमंडल खेलों में खिलाड़ियों से अधिक सोना बटोरने वाले दरबारियों का?’ ‘नहीं, सोने से अधिक प्यारा तो हमें भूखे सोना है। क्योंकि अपनी सरकार चुनने के बाद भी हमारी किस्मत में बस रोना है।’ […] Read more » mouth shut of opponent विपक्ष का मुंह बंद कर दिया
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल November 18, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल भारत देश ऋषि और कृषि प्रधान देश है। जब ऋषियों की फसल कृषि से भी अधिक होने लगी तो मजबूरी में ऋषियों ने भी कृषि कार्य शुरू कर दिया। इस खेती-बाड़ी के चक्कर में न जाने आजतक कितने ऋषि खेत रहे यह शोध का एक पक्ष है, हमारे ऋषियों का। मगर एक दूसरा पक्ष भी […] Read more » raw material in house building पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : इस खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण… November 18, 2010 / December 19, 2011 by गिरीश पंकज | 4 Comments on व्यंग्य : इस खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण… पुलिस विभाग की कुछ महान आत्माओं का अपना एक गीत है—”इस वर्दी में बड़े-बड़े गुण”. लाख सुखों का इक अड्डा है, आ भरती हो जा.. आ भरती हो जा”. उस दिन की बात है जब एक पुलिस वाला”देश भक्ति, जन सेवा”के लिये गंगाजल की कसम खा रहा था तो लोग चकरा गए. पुलिसवाला और गंगाजल […] Read more » importance of police dress खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : काल के गाल में अकाल November 17, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : काल के गाल में अकाल स्कूली दिनों में मास्साब ने घौंटा लगवा के याद करवाया था कि काल तीन तरह के होते हैं- भूतकाल,वर्तमानकाल और भविष्यकाल। सोचता हूं कि काल का कितना अकाल था उन दिनों। बस ले-देकर टिटरूंटू बस तीन ही काल। बस इनी के टेंटू लगाकर घूमो। प्रातःकाल,सांयकाल और रात्रिकाल बस सिर्फ और सिर्फ तीन ही काल। आज […] Read more » starvation काल के गाल में अकाल
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : शोकसभा का कुटीर उद्योग November 16, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment आज सुबह-सुबह शोकसभानंदजी का हमारे मोबाइल पर अचानक हमला हुआ। मैं-तो-मैं, मेरा मोबाइल भी आनेवाली आशंका के भय से कराह उठा। शोकसभानंदजी की हाबी है उत्साहपूर्वक शोकसभा आयोजित करना। हर क्षण वह तैयार बैठे रहते हैं कि इधर किसी की खबर आए और उधर वे तड़ से अपनी शोकसभा का कुटीर उद्योग शुरूं करें। वैसे […] Read more » Requiem of a cottage industry पंडित सुरेश नीरव शोकसभा का कुटीर उद्योग हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : जाले अच्छे हैं! November 16, 2010 / December 19, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य : जाले अच्छे हैं! मां बहुत कहती रही थी कि मरने के लिए मुझे गांव ले चल। पर मैं नहीं ले गया। सोचा कि गांव में तो मां रोज ही मरती रही। एक बार मां शहर में भी देख कर मर ले तो मेरा शहर आना सफल हो। वह आजतक किसीके आगे सीना चौड़ा कर कुछ कह तो नहीं […] Read more » Webs are good chuckle अशोक गौतम व्यंग्यजाले अच्छे हैं
व्यंग्य व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती November 15, 2010 / December 19, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 1 Comment on व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती एक बार किसी कारण वश मुझे नगर परिषद जाना पडा । वहां कुछ लोग बैठे थे तभी एक सज्जन आये ,और उन्होने पहले से बैठे अपने परिचित एवं स्वजातीय एक सज्जन से पूछा ’’आज यहां कैसे बैठे हो?’’पहले से बैठे सज्जन ने कहा कि ’’वे अपने मौहल्ले की सडक के निर्माण का प्रस्ताव लेकर आये […] Read more » golden roads in India व्यंग्य सड़के ही सोने की होती हैसियत नजरबट्टू की
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : नारी सशक्तीकरण वर्सेज पुरुष सशक्तीकरण November 15, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 4 Comments on हास्य-व्यंग्य : नारी सशक्तीकरण वर्सेज पुरुष सशक्तीकरण नारी सशक्तीकरण पर गोष्ठी करने का फैशन समकालीन हिंदी साहित्य की आज सबसे बड़ी उत्सवधर्मिता है। स्त्री-विमर्श के सैंकड़ों केन्द्र आज साहित्य में दिन-रात सक्रिय हैं। जगह-जगह काउंटर सजे हुए हैं। गौरतलब खासियत यह है कि इन जलसों में सबसे ज्यादा भागीदारी पुरुषों की होती है। जैसे मद्यनिषेद्य गोष्ठी में पीने के शौकीन लोग वहां […] Read more » men empowerment Women's empowerment नारी सशक्तीकरण पंडित सुरेश नीरव पुरुष सशक्तीकरण हास्य-व्यंग्य