व्यंग्य नोबल पुरस्कार और गन्दगी March 9, 2010 / December 24, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment हम घर से निकले तो देखा कि कुडे करकट के ढेर के पास दडबे नुमा मकान में रहने वाला फटेहाल चितवन जो हमेशा ही मायूस और डरावनी सी खामोसी को चेहरे पर ओढे रखता था। आज अपनी बेगम को बडे ही उत्साह के साथ बता रहा था कि बेगम तुम्हे मालूम है कि समय सब […] Read more » Nobel Prize नोबल पुरस्कार
व्यंग्य व्यंग्य/ दाल बंद, मुर्गा शुरु March 5, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैं उनसे पहली दफा बाजार में मदिरालय की परछाई में मिला था तो उन्होंने राम-राम कहते मदिरालय की परछाई से किनारे होने को कहा था। उन दिनों मैं तो परिस्थितियों के चलते शुद्ध वैष्णव था ही पर वे सरकारी नौकरी में होने के बाद भी इतने वैष्णव! मन उनके दर्शन कर आह्लादित हो उठा था। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर February 20, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर पार्टी दफ्तर के बाहर बैठ नीम की कड़वी छांह। एक नेता भीगे नयनों से देख रहा है दल प्रवाह। सामने पार्टी दफ्तर रहा पर अपना वहां कोई नहीं। सबकुछ गया, गया सब कुछ पर आंख फिर भी रोई नहीं। कह रही थी मन की व्यथा छूटी हुई कहानी सी। पार्टी दफ्तर की दीवारें सुनती बन […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ एक सफल कार्यक्रम February 12, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment पहली बार हिमालय के हिमपात के मौसम और अपनी गुफा को अकेला छोड़ गौतम और भारद्वाज मुनि दिल्ली सरकार के राज्य अतिथि होकर राजभवन में हफ्ते भर से जमे हुए थे। पर ठंड थी कि उन्हें हिमालय से भी अधिक लग रही थी। सुबह के दस बजे होंगे कि भारद्वाज मुनि अपने वीवीआईपी कमरे से […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते February 5, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते हर क्लास के फादर को ईमानदारी के साथ यह मानकर चलना चाहिए कि जैसे कैसे उनका बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर भले ही बन जाए लेकिन उसके बाद भी उसके हाथ में रिश्वत लेने का हुनर नहीं तो वह आगे परिवार की तो छोड़िए अपने खर्चे भी पूरे नहीं कर सकता। और नतीजा…. सपने बंदे को खुदकुशी […] Read more » vyangya रिश्वत व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! January 28, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो ने एमबीए की […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ मोहे इंडिया न दीजौ January 19, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्यों से मुक्त हों। […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/हे नेता, नेता, नेतायणम्!! December 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment लोमश जी कहते हैं- जो सुजान नागरिक नेता के आंगन में अपनी चारपाई केनीचे के गंद की अनदेखी कर झाड़ू लगाता है वह निश्चय ही एक दिन संसद में पहुंच संपूर्ण देश के लिए वंदनीय हो जाता है। जो नेता के जलसों के लिए भीड़ इकट्ठी करता है वह आगे चलकर संसद में सबसे आगे […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा December 21, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा सुनो! सुनो !!सुनो!!! अंधेर नगरी के लोकतांत्रिक राजा का फरमान! जो भी आज से उनके राज्य में सच बोलेगा, उसका होगा चालान। झूठ बोलने वाला हर आम और खास को बराबर पुरस्कृत किया जाएगा। अंधेर नगरी में ईमानदारी बंद। सरकार के आदेश-कानून ईमानदारों के साथ कतई भी नरमी न बरते। जो भी कानून का हवलदार […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य धनंजय के तीर/ ……..और अब लेखक लैंड?? December 15, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on धनंजय के तीर/ ……..और अब लेखक लैंड?? महीने बाद सरकारी टूअर के बहाने मस्ती मारकर घर में कदम रखा भर ही था कि पत्नी ने सांस लेने से पहले ही खबर तमाचे की तरह गाल पर दे मारी, ‘सुनो जी!’ ‘क्या है??’ ये कम्बखत घर है ही ऐसी बला कि घर में कदम बाद में पड़ते हैं पत्नी समस्या उससे पहले तमाचे […] Read more » Dhananjay धनंजय
व्यंग्य व्यंग/ भ्रष्टाचार के बदलते रंग December 14, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment कलयुग में एक मुस्लिम फ़कीर अपनी दुआ बिना कैश और काइंड लिये हुए राहगीरों को अता फ़रमा रहा है-अल्लाह आपकी नाज़ायज़ तमन्नाओं को पूरा करे। अल्लाह आपको ज़कात और ख़ैरात देने के काबिल बनाये। अल्लाह आपको हाज़ी-नमाज़ी और पाज़ी बनाये। अल्लाह आपको कोड़ा की सोहबत में रखे। अल्लाह आपको अच्छी कंपनियों के खाते अता फ़रमाये। […] Read more » Corruption भ्रष्टाचार
व्यंग्य व्यंग्य/ एक डिर्स्टब्ड जिन्न November 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment रात के दस बज चुके तो मैंने चैन की सांस ली कि चलो भगवान की दया से आज कोई पड़ोसी कुछ लेने नहीं आया। भगवान का धन्यवाद कंप्लीट करने ही वाला था कि दरवाजे पर दस्तक हुई, एक बार, दो बार, तीन बार। लो भाई साहब, अपने गांव की कहावत है कि पड़ोसी को याद […] Read more » vyangya व्यंग्य