व्यंग्य व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! January 28, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो ने एमबीए की […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ मोहे इंडिया न दीजौ January 19, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्यों से मुक्त हों। […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/हे नेता, नेता, नेतायणम्!! December 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment लोमश जी कहते हैं- जो सुजान नागरिक नेता के आंगन में अपनी चारपाई केनीचे के गंद की अनदेखी कर झाड़ू लगाता है वह निश्चय ही एक दिन संसद में पहुंच संपूर्ण देश के लिए वंदनीय हो जाता है। जो नेता के जलसों के लिए भीड़ इकट्ठी करता है वह आगे चलकर संसद में सबसे आगे […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा December 21, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा सुनो! सुनो !!सुनो!!! अंधेर नगरी के लोकतांत्रिक राजा का फरमान! जो भी आज से उनके राज्य में सच बोलेगा, उसका होगा चालान। झूठ बोलने वाला हर आम और खास को बराबर पुरस्कृत किया जाएगा। अंधेर नगरी में ईमानदारी बंद। सरकार के आदेश-कानून ईमानदारों के साथ कतई भी नरमी न बरते। जो भी कानून का हवलदार […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य धनंजय के तीर/ ……..और अब लेखक लैंड?? December 15, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on धनंजय के तीर/ ……..और अब लेखक लैंड?? महीने बाद सरकारी टूअर के बहाने मस्ती मारकर घर में कदम रखा भर ही था कि पत्नी ने सांस लेने से पहले ही खबर तमाचे की तरह गाल पर दे मारी, ‘सुनो जी!’ ‘क्या है??’ ये कम्बखत घर है ही ऐसी बला कि घर में कदम बाद में पड़ते हैं पत्नी समस्या उससे पहले तमाचे […] Read more » Dhananjay धनंजय
व्यंग्य व्यंग/ भ्रष्टाचार के बदलते रंग December 14, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment कलयुग में एक मुस्लिम फ़कीर अपनी दुआ बिना कैश और काइंड लिये हुए राहगीरों को अता फ़रमा रहा है-अल्लाह आपकी नाज़ायज़ तमन्नाओं को पूरा करे। अल्लाह आपको ज़कात और ख़ैरात देने के काबिल बनाये। अल्लाह आपको हाज़ी-नमाज़ी और पाज़ी बनाये। अल्लाह आपको कोड़ा की सोहबत में रखे। अल्लाह आपको अच्छी कंपनियों के खाते अता फ़रमाये। […] Read more » Corruption भ्रष्टाचार
व्यंग्य व्यंग्य/ एक डिर्स्टब्ड जिन्न November 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment रात के दस बज चुके तो मैंने चैन की सांस ली कि चलो भगवान की दया से आज कोई पड़ोसी कुछ लेने नहीं आया। भगवान का धन्यवाद कंप्लीट करने ही वाला था कि दरवाजे पर दस्तक हुई, एक बार, दो बार, तीन बार। लो भाई साहब, अपने गांव की कहावत है कि पड़ोसी को याद […] Read more » vyangya व्यंग्य
राजनीति व्यंग्य उल्टा-पुल्टा व्यंग्य / नेताजी का जनम दिन November 28, 2009 / December 25, 2011 by पंकज व्यास | Leave a Comment छुट भैयेजी मनाए जनम दिन। बांटें कंबल, मिठाई, फल-फूल बिस्किट। जनता मारे ताने, सुन मेरे भैये, जनम दिन पर याद नहीं आया होगा सगा बाप। पर, नेताजी का जनम दिन मनाएं धूमधाम। भैये जी क्या समझाए मुई जनता को मेरे यार। खुद का जनम दिन मत मनाओ, पर बड़े नेताजी का जनम दिन तो मनाना […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य अब आगे देखेंगे हम लोग : व्यंग्य – अशोक गौतम November 9, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment धुन के पक्के विक्रमार्क से जब रामदीन की पत्नी की दशा न देखी गई तो उसने महीना पहले घर से बाजार आटा दाल लेने गए रामदीन को ढूंढ घर वापस लाने की ठानी। रामदीन की पत्नी का विक्रमार्क से रोना नहीं देखा गया तो नहीं देखा गया। ये कैसी व्यवस्था है भाई साहब कि जो […] Read more » Ashok Gautam Satire अशोक गौतम व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: खट्टे सपने के सच – अशोक गौतम November 2, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment रात व्यवस्था की दीवारों से खुद को लहूलुहान करने के बाद थका हारा छाले पड़े पावों के तलवों में नकली सरसों के तेल की मालिश कर नकली दूध का गिलास पी फाइबर के गद्दों पर जैसे कैसे आधा सोया था कि अचानक जा पहुंचा गांव। देखा गांव वाले लावारिस छोड़ी अपनी गायों को ढूंढ ढूंढ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य बिल है कि मानता नहीं.. October 30, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on बिल है कि मानता नहीं.. बिल, टैक्स, सेक्स और सेंसेक्स… जीवन का अर्थशास्त्र इन सबके इर्द-गिर्द घूम रहा है। उधर दुनिया में बिलगेट्स छाए हुए हैं, इधर हम बिल-टैक्स से जूझ रहे हैं। कई बार लगता है कि मनुष्य का जन्म बिल और टैक्स भरने के लिए ही हुआ है। इन बिलों का भरते-भरते मनुष्य का दिल बैठा जाता है […] Read more » Bill Girish Pankaj गिरीश पंकज बिल है कि मानता नहीं व्यंग्य
व्यंग्य नानक दुखिया सब करोबार : व्यंग्य – अशोक गौतम October 26, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on नानक दुखिया सब करोबार : व्यंग्य – अशोक गौतम धुन के पक्के विक्रमार्क ने जन सभा में वर्करों द्वारा भेंट की तलवार कमर में लपेटी चुनरी में खोंस बेताल को ढूंढने महीनों से खराब स्ट्रीट लाइटों के साए में निकला ही था कि एक पेड़ की ओट से उसे किसीके सिसकने की मर्दाना आवाज सुनाई दी। विक्रमार्क ने कमर में ठूंसी तलवार निकाल हवा […] Read more » Ashok Gautam Nanak Dukhiya Karobar अशोक गौतम करोबार नानक नानक दुखिया सब करोबार व्यंग्य