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राजनीति

अब भारत को विभिन्न क्षेत्रों में अपने सूचकांक तैयार करना चाहिए

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वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की भिन्न भिन्न क्षेत्रों में रेटिंग तय करने की दृष्टि से वित्तीय एवं विशिष्ट संस्थानों द्वारा सूचकांक तैयार किए जाते हैं। हाल ही के समय में इन विदेशी संस्थानों द्वारा जारी किए गए कई सूचकांकों में भारत की स्थिति को संभवत जान बूझकर गल्त दर्शाया गया है। इन सूचकांकों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं अफ्रीका के गरीब देशों की स्थिति को भारत से बेहतर बताया गया है। उदाहरण के लिए अभी हाल ही में पश्चिमी देशों द्वारा जारी किए गए तीन सूचकांकों की स्थिति देखिए। सबसे पहिले उदार (लिबरल) लोकतंत्र सूचकांक में भारत की रैकिंग को 104 बताया गया है और भारत के ऊपर निजेर देश को बताया गया है। इसी प्रकार, आनंद (हैपीनेस) सूचकांक में भी भारत का स्थान 126वां बताया गया है जबकि पाकिस्तान को 108वां स्थान मिला है, जहां अत्यधिक मुद्रा स्फीति के चलते वहां के नागरिक अत्यधिक त्रस्त हैं। एक अन्य, प्रेस की स्वतंत्रता नामक सूचकांक में भारत को 161वां स्थान मिला है जबकि इस सूचकांक में कुल मिलाकर 180 देशों को शामिल किया गया है और अफगानिस्तान को 152वां स्थान दिया गया है, अर्थात इस सर्वे के अनुसार, अफगानिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता भारत की तुलना में अच्छी पाई गई है। पश्चिमी देशों में स्थिति इन संस्थानों द्वारा इस प्रकार के सूचकांक तैयार किए जाकर पूरे विश्व को भ्रमित किए जाने का प्रयास हो रहा है।  इसी प्रकार, भारत में हाल ही में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनावों पर भी पश्चिमी देशों ने कई प्रकार के सवाल खड़े करने के प्रयास किए थे। जैसे, इस भीषण गर्मी के मौसम में चुनाव क्यों कराए गए हैं, जिससे सामान्यजन वोट डालने के लिए घरों से बाहर ही नहीं निकले, ईवीएम मशीन में कोई खराबी तो नहीं है, आदि। परंतु, भारतीय मतदाताओं ने इन लोक सभा चुनावों में भारी संख्या में भाग लेकर पश्चिमी देशों को करारा जवाब दिया है। न ही, ईवीएम मशीन में किसी प्रकार की गड़बड़ी पाई गई और न ही गर्मी का प्रभाव चुनावों पर पड़ा। हालांकि सत्ताधारी दल को पिछले चुनाव की तुलना में कुछ कम स्थान जरूर प्राप्त हुए हैं परंतु देश में किसी भी प्रकार की कोई घटना घटित नहीं हुई है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव सामान्यतः शांति के साथ सम्पन्न हो गए। साथ ही, विपक्षी दलों को पिछले चुनाव की तुलना में कुछ अधिक स्थान मिले हैं और उन्होंने भी चुनाव के परिणामों को स्वीकार कर लिया है। चुनाव की प्रक्रिया पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया है। इस सबके बावजूद पश्चिमी देशों ने पश्चिमी लोकतंत्र सूचकांक में वर्ष 2014 में भारत को 27वां स्थान दिया था और वर्ष 2023 में भारत की रैंकिंग नीचे गिराकर 41वें स्थान पर बताई गई है। जबकि वास्तव में तो इस बीच देश में लोकतंत्र अधिक मजबूत ही हुआ है, परंतु पश्चिमी देशों द्वारा भारतीय लोकतंत्र को ही जैसे खतरे में बताया जा रहा है और एक तरह से भारतीय लोकतंत्र पर ही सवाल खड़े कर दिए गए हैं। दरअसल पश्चिमी देशों में कुछ शक्तियां भारत के हितों के विरुद्ध कार्य कर रही हैं एवं ये ताकतें विभिन्न सूचकांक तैयार करने वाली संस्थाओं को प्रभावित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़तीं हैं।   कुछ समय पूर्व एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया था। इस सूचकांक में यह बताया गया था कि भारत की तुलना में श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, एथीयोपिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भुखमरी की स्थिति बेहतर है। अर्थात, सर्वे में शामिल किए गए 121 देशों की सूची में श्रीलंका का स्थान 64वां, म्यांमार का 71वां, बांग्लादेश का 84वां, पाकिस्तान का 99वां, एथीयोपिया का 104वां एवं भारत का 107वां स्थान बताया गया था। जबकि पूरा विश्व जानता है कि व श्रीलंका, पाकिस्तान एवं म्यांमार जैसे देशों में खाद्य पदार्थों की भारी कमी है जिसके चलते इन देशों के नागरिकों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। जबकि, भारत कई देशों को आज खाद्य सामग्री उपलब्ध करा रहा है। फिर किस प्रकार उक्त सूचकांक बनाकर वैश्विक स्तर पर जारी किए जा रहे हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि भारत की आर्थिक तरक्की को विश्व के कई देश अब सहन नहीं कर पा रहे हैं एवं भारत के बारे में इस प्रकार के सूचकांक जारी कर भारत की साख को वैश्विक स्तर पर प्रभावित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है।  युद्ध की विभीषिका झेल रहे एथीयोपिया में नागरिक अपनी भूख मिटाने के लिए घास जैसे भारी पदार्थों को खाकर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच जीवन यापन करने वाले नागरिकों को भुखमरी के मामले में भारत के नागरिकों से बेहतर स्थिति में बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत 80 करोड़ नागरिकों को केंद्र सरकार द्वारा प्रतिमाह 5 किलो मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि इन लोगों को खाने पीने सम्बंधी किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हो। फिर भी भारत के नागरिकों को भुखमरी सूचकांक में ईथीयोपिया के नागरिकों की तुलना में इतना नीचे बताया गया है। अब कौन इस प्रकार के सूचकांकों पर विश्वास करेगा। यह भी बताया जा रहा है कि इस सूचकांक को आंकने के लिए भारत के 140 करोड़ नागरिकों में से केवल 3000 नागरिकों को ही इस सर्वे में शामिल किया गया था। इस प्रकार सर्वे का सैम्पल बनाते समय भारत जैसे विशाल देश के लिए अपर्याप्त संख्या का उपयोग किया गया है। वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग पर कार्य कर रही संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था का आंकलन करते हुए भारत के सम्बंध में अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक किया है एवं कहा है कि वह भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के उद्देश्य से भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी विभिन्न पैमानों का, आधारभूत ढांचे को विकसित करने एवं भारत के राजकोषीय घाटे को कम करने से सम्बंधित आंकड़ों एवं प्रयासों का गम्भीरता से लगातार अध्ययन एवं विश्लेषण कर रहा है। आगे आने वाले दो वर्षों के दौरान यदि उक्त तीनों क्षेत्रों में लगातार सुधार दिखाई देता है तो भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड किया जा सकता है। वर्तमान में भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग BBB- है, जो निवेश के लिए सबसे कम रेटिंग की श्रेणी में गिनी जाती है। किसी भी देश की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को यदि अपग्रेड किया जाता है तो इससे उस देश में विदेशी निवेश बढ़ने लगते हैं क्योंकि निवेशकों का इन देशों में पूंजी निवेश तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना जाता है। साथ ही, अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग प्राप्त देशों की कम्पनियों को अन्य देशों में पूंजी उगाहना न केवल आसान होता है बल्कि इस प्रकार लिए जाने वाले ऋण पर ब्याज की राशि भी कम देनी होती है। किसी भी देश की जितनी अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग होती है उस देश की कम्पनियों को कम से कम ब्याज दरों पर ऋण उगाहने में आसानी होती है। परंतु, भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के लिए स्टैंडर्ड एंड पूअर को दो वर्षों का समय क्यों चाहिए? जब इन समस्त क्षेत्रों में लगातार सुधार होते साफ दिख रहा है।  साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई विदेशी संस्थान (विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि) आगे आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर बहुत उत्साहित हैं एवं आर्थिक प्रगति के साथ साथ राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु भारत सरकार द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों की भी सराहना करते रहते हैं। फिर भी, स्टैंडर्ड एंड पूअर को भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के लिय दो वर्षों का अतिरिक्त समय चाहिए।  वैश्विक पटल पर पश्चिमी देशों के विभिन्न संस्थानों द्वारा भारत के प्रति ईर्ष्या का भाव रखने के चलते, अब समय आ गया है कि भारत विभिन्न पैमानों पर अपनी रेटिंग तय करने के लिए अपने सूचकांक विकसित करने पर विचार करे क्योंकि वैश्विक स्तर पर पश्चिमी देशों द्वारा जितने भी सूचकांक तैयार किए जा रहे हैं उसमें भारत के संदर्भ में वस्तुस्थिति का सही वर्णन नहीं किया जा रहा है। प्रहलाद सबनानी

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कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राजनीति

सनातन हिंदू संस्कृति का पूरे विश्व में फैलना आज विश्व शांति के लिए आवश्यक है

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यूरोप में हाल ही में सम्पन्न हुए चुनावों में दक्षिणपंथी कहे जाने वाले दलों की राजनैतिक ताकत बढ़ी है। हालांकि सत्ता अभी भी वामपंथी एवं मध्यमार्गीय नीतियों का पालन करने वाले दलों की ही बने रहने की सम्भावना है परंतु विशेष रूप से फ्रान्स एवं जर्मनी में इन दलों को भारी नुक्सान हुआ है। इटली की देशप्रेम से ओतप्रोत दल की मुखिया जोरजीया मेलोनी को अच्छी सफलता हासिल हुई है। कुल मिलाकर यूरोपीय देशों के नागरिकों में देशप्रेम का भाव धीमे धीमे लौट रहा है एवं वे अब अपने अपने देश में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों का विरोध करने लगे हैं। विशेष रूप से यूरोप के आस पास के मुस्लिम बहुल देशों से भारी संख्या में मुस्लिम नागरिक अवैध रूप से इन देशों में शरण लिए हुए हैं एवं अब वे इन देशों की कानून व्यवस्थ के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं। जर्मनी एवं फ्रान्स ने मुस्लिम नागरिकों को मानवीय आधार पर अपने देश में बसाने में शिथिल नीतियों का पालन किया था और अब ये दोनों देश इस संदर्भ में विभिन्न समस्याओं का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं।  आज जब कई मुस्लिम देश शिया एवं सुन्नी सम्प्रदाय के नाम पर आपस में ही लड़ रहे हैं तो उनका ईसाई पंथ को मानने वाले नागरिकों के साथ सामंजस्य किस प्रकार रह सकता है, अतः यूरोपीयन देशों के नागरिकों को अब अपने किए पर पश्तावा होने लगा है। ब्रिटेन में भी आज मुस्लिम समाज की आबादी बहुत बढ़ गई है एवं यहां का ईसाई समाज अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगा है क्योंकि मुस्लिम समाज द्वारा ईसाई समाज पर कई प्रकार के आक्रमण किया जाना आम बात हो गई है। ब्रिटेन के कई शहरों में तो मेयर आदि जैसे उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के पदों पर भी मुस्लिम समाज के नागरिक ही चुने गए है अतः इन नगरों में सत्ता की चाबी ही अब मुस्लिम समाज के नागरिकों के हाथों में है, जिसे ईसाई समाज के नागरिक बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसी प्रकार, इजराईल (यहूदी समुदाय) एवं हम्मास (मुस्लिम समुदाय) के बीच युद्ध लम्बे समय से चल रहा है। ईरान (शिया समुदाय) – सऊदी अरब (सुन्नी समुदाय) के आपस में रिश्ते अच्छे नहीं है। पाकिस्तान में तो अहमदिया समुदाय एवं बोहरा समुदाय को मुस्लिम ही नहीं माना जाता है एवं इनको गैर मुस्लिम मानकर इन पर सुन्नी समुदाय द्वारा खुलकर अत्याचार किए जाते हैं। कुल मिलाकर, मुस्लिम समाज न केवल अन्य समाज के नागरिकों (यहूदी, ईसाई, हिंदू आदि) के साथ लड़ता आया है बल्कि इस्लाम के विभिन्न फिर्कों के बीच भी इनकी आपसी लड़ाई होती रही है।     इसके ठीक विपरीत, सनातन हिंदू संस्कृति का अनुपालन करते हुए कई भारतीय मूल के नागरिक भी अन्य देशों में रह रहे हैं एवं लम्बे समय से स्थानीय स्तर पर ईसाई समाज एवं अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ मिल जुलकर रहते आए हैं। इन देशों में भारतीय मूल के नागरिकों एवं स्थानीय स्तर पर अन्य धर्मों के अनुयायियों के बीच कभी भी बड़े स्तर पर आक्रोश उत्पन्न होता दिखाई नहीं दिया है, क्योंकि सनातन हिंदू संस्कृति में “वसुधैव कुटुम्बकम” एवं “सर्वे भवंतु सुखिन:” का भाव हिंदू नागरिकों में बचपन से ही भरा जाता है।  इसी प्रकार के भाव का संचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी पिछले 99 वर्षों से अपने स्वयंसेवकों में जगाता आया है। संघ चाहता है कि संसार में सद्गुणों का बोलबाला हो। 27 सितम्बर 1933 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, शस्त्र पूजा समारोह में अपने उदबोधन में कहते हैं कि “संघ एक हिंदू संगठन है। संसार के सभी धर्मों में हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसका मुख्य गुण सद्गुण है और जो ‘आत्मवत् भूतेषु’ (सभी प्राणियों में अपने को देखना) की भावना से सभी जीवों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना सिखाता है। यह धर्म संसार में व्याप्त हिंसा और अन्याय को स्वीकार नहीं करता। इसलिए स्वाभाविक है कि प्रत्येक हिंदू ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना चाहता है। लेकिन केवल उपदेश देने से संसार का स्वभाव नहीं बदलेगा। जब संसार को लगेगा कि हिंदू समाज सुसंगठित और सशक्त हो गया है, तो हमारे प्रति जो अनादर का भाव सर्वत्र दिखाई देता है, वह समाप्त हो जाएगा और संसार हमारी बात सुनेगा। हिंदू धर्म अनादि काल से यही करता आ रहा है और ऐसे पवित्र धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए ही संघ की शुरुआत हुई है।” “आजकल हिंदू समाज बहुत अव्यवस्थित हो गया है। संघ का एकमात्र उद्देश्य हिंदू समाज को इस तरह संगठित करना है कि हिंदू, हिंदुस्तान में गर्वित हिंदू के रूप में खड़े हो सकें और दुनिया को यह विश्वास दिला सकें कि हिंदू कोई ऐसी जाति नहीं है जो मरणासन्न अवस्था में हो। संघ चाहता है कि संसार में सद्गुणों का बोलबाला हो। संघ का लक्ष्य मानव जाति में व्याप्त राक्षसी प्रवृत्ति को दूर करना और उसे मानवता सिखाना है। संघ का गठन किसी से घृणा करने या उसे नष्ट करने के लिए नहीं हुआ है।” हाल ही में जारी की गई प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण’ नामक विषय के माध्यम से बताया गया है कि बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी 1950 और 2015 के बीच 7.82% घट गई है। जबकि मुस्लिमों की आबादी में 43.15% की वृद्धि हुई है। मुस्लिमों की 1950 में 9.84% रही आबादी 14.09% पर पहुंच गई है। ईसाई धर्म के लोगों की आबादी की हिस्सेदारी 2.24% से बढ़कर 2.36% हुई है। ठीक ऐसे ही सिख समुदाय की आबादी 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गई है। भारत में सद्गुणों से ओतप्रोत हिंदू नागरिकों की जनसंख्या यदि इस प्रकार घटती रही तो यह भारत के साथ पूरे विश्व के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम आबादी (जो कि अपने धर्म के प्रति एक कट्टर कौम मानी जाती है तथा अन्य धर्मों के लोगों के प्रति बिलकुल सहशुण नहीं है और वक्त आने पर अन्य समाज के नागरिकों का कत्लेआम करने में भी हिचकिचाते नहीं है)  में बेतहाशा वृद्धि होना, पूरे विश्व के लिए एक अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है।  यह बात ध्यान रखने वाली है कि ईरान कभी आर्यों का अर्थात पारसियों का देश था। इराक, सऊदी अरब ,पश्चिम एशिया के समस्त मुस्लिम देश 1400 वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता को मानने वाले देश थे। तलवार के बल पर 57 देश इस्लाम को स्वीकार कर चुके हैं इनमें से कोई भी ऐसा देश नहीं है जो 1400 वर्ष पहले से अर्थात सनातन की भांति सृष्टि के प्रारंभ से मुस्लिम देश था। 1398 ईसवी में ईरान भारत से अलग हुआ, 1739 में नादिरशाह ने अफगानिस्तान को अपने लिए एक अलग रियासत के रूप में प्राप्त कर लिया, बाद में 1876 में यह एक स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आ गया,1937 में म्यांमार बर्मा अलग हुआ, 1911 में श्रीलंका अलग हुआ और 1904 में नेपाल अलग हुआ। सांप्रदायिक आधार पर देश विभाजन का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके पश्चात 1947 में पश्चिमी एवं पूर्वी पाकिस्तान देश बना। पूर्वी पाकिस्तान आज बांग्लादेश के रूप में मानचित्र पर उपलब्ध है। आज एक बार पुनः भारत के भीतर जहां-जहां इस्लाम को मानने वाले लोगों की संख्या बहुलता को प्राप्त हो गई है, वहां वहां पर अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियां, दमन और शोषण के नए-नए स्वरूप देखे जा रहे हैं। केरल, कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत, बंगाल जहां जहां उनकी संख्या बहुलता में है, वहां -वहां दूसरे धर्म और जाति के लोग परेशान हैं। उपस्थित तथ्यों से सत्य को समझना चाहिए। इन आंकड़ों के आलोक में हमें समझना चाहिए कि हमारी बहू, बेटियां, महिलाओं की इज्जत कब तक सुरक्षित रह सकती है? निश्चित रूप से तब तक जब तक कि भारतवर्ष सनातनी हिंदुओं के हाथ में है। हमें इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए कि अब हम सांप्रदायिक आधार पर देश का पुनः विभाजन नहीं होने दें। नोवाखाली जैसे नरसंहारों की पुनरावृत्ति अब हमारे देश में नहीं होनी चाहिए। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय जिस प्रकार लाखों करोड़ों लोगों को घर से बेघर होना पड़ा था, उस इतिहास को अब दोहराया नहीं जाना चाहिए। भारत में आंतरिक स्थिति ठीक नजर नहीं आती है परंतु विश्व के कई अन्य देशों में सनातन संस्कृति को तेजी से अपनाया जा रहा है, तभी तो कहा जा रहा है कि विश्व में आज कई समस्याओं का हल केवल हिंदू सनातन संस्कृति को अपना कर ही निकाला जा सकता है।   प्रहलाद सबनानी

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आर्थिकी राजनीति

भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने पर हो रहा है विचार

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वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग पर कार्य कर रही संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था का आंकलन करते हुए भारत के सम्बंध में अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक किया है एवं कहा है कि वह भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के उद्देश्य से भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी विभिन्न पैमानों का एवं भारत के राजकोषीय घाटे से सम्बंधित आंकड़ों का लगातार अध्ययन एवं विश्लेषण कर रहा है। यदि उक्त दोनों क्षेत्रों में लगातार सुधार दिखाई देता है तो भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड किया जा सकता है। वर्तमान में भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग BBB- है, जो निवेश के लिए सबसे कम रेटिंग की श्रेणी में गिनी जाती है।  किसी भी देश की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को यदि अपग्रेड किया जाता है तो इससे उस देश में विदेशी निवेश बढ़ने लगते हैं क्योंकि निवेशकों का इन देशों में पूंजी निवेश तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना जाता है। साथ ही, अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग प्राप्त देशों की कम्पनियों को अन्य देशों में पूंजी उगाहना न केवल आसान होता है बल्कि इस प्रकार लिए जाने वाले ऋण पर ब्याज की राशि भी कम देनी होती है। किसी भी देश की जितनी अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग होती है उस देश की कम्पनियों को कम से कम ब्याज दरों पर ऋण उगाहने में आसानी होती है।  भारत में हाल ही में केंद्र में नई सरकार के गठन सम्बंधी प्रक्रिया सम्पन्न हो चुकी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी सहित केंद्रीय मंत्रीमंडल के समस्त सदस्यों को विभागों का आबंटन भी किया जा चुका है। केंद्र सरकार द्वारा पिछले दस वर्षों के दौरान लिए गए आर्थिक निर्णयों का भरपूर लाभ देश को मिला है। इससे देश के आर्थिक विकास को गति मिली है एवं आज भारत,  विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में अपार कमी दृष्टिगोचर है। देश में बहुत बड़े स्तर पर वित्तीय समावेशन हुआ है, जनधन योजना के अंतर्गत 50 करोड़ से अधिक बैंक बचत खाते खोले जा चुके हैं एवं इन बचत खातों में आज लगभग 2.50 लाख करोड़ रुपए की राशि जमा है, इस राशि का उपयोग देश के आर्थिक विकास के लिए किया जा रहा है। रोजगार के नए अवसर भारी संख्या में निर्मित हुए हैं। देश में प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर लगभग 2200 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुंच गई है। देश के कुछ राज्यों में तो किसानों की आय दुगने से भी अधिक हो गई है। भारत में विदेशी निवेश भारी मात्रा में होने लगा है एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में ही करने लगी हैं। इससे देश में विनिर्माण इकाईयों (उद्योग क्षेत्र) की विकास दर 8-9 प्रतिशत के पास पहुंच गई है। मंदिर की अर्थव्यवस्था एवं लगातार तेज गति से आगे बढ़ रहे धार्मिक पर्यटन के चलते भारत में आर्थिक विकास की दर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8 प्रतिशत से भी अधिक रही है।  भारत, अपने आर्थिक विकास की गति को और अधिक तेज करने के उद्देश्य से आधारभूत ढांचें को विकसित करने के लगातार प्रयास कर रहा है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 7.5 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान देश के आधारभूत ढांचे को विकसित करने हेतु किया गया था, जिसे वित्तीय वर्ष 2023-24 में 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया था एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए इसे और अधिक बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपए का कर दिया गया है। आधारभूत ढांचे को विकसित करने से देश में उत्पादकता में सुधार हुआ है एवं विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत में कमी आई है। जिससे, कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां  अपनी विनिर्माण इकाईयों को भारत में स्थापित करने हेतु आकर्षित हुई हैं। स्टैंडर्ड एंड पूअर का तो यह भी कहना है कि भारत जिस प्रकार की आर्थिक नीतियों को लागू करते हुए आगे बढ़ रहा है और केंद्र में नई सरकार के आने के बाद से अब सम्भावनाएं बढ़ गई हैं कि भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रम बहुत तेजी के साथ किए जाएंगे इससे कुल मिलाकर भारत की आर्थिक विकास दर को लम्बे समय तक 8 प्रतिशत से ऊपर बनाए रखा जा सकता है।    भारत ने अपने आर्थिक विकास की गति को तेज रखते हुए अपने राजकोषीय घाटे पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का राजकोषीय घाटा 17 लाख 74 हजार करोड़ रुपए का रहा था जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में घटकर 16 लाख 54 हजार करोड़ रुपए का रह गया है। यह राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 5.8 प्रतिशत था जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में घटकर 5.6 प्रतिशत रह गया है। भारत के राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष 2024-25 में 5.1 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 4.5 प्रतिशत तक नीचे लाने के प्रयास केंद्र सरकार द्वारा सफलता पूर्वक किए जा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रान्स, जर्मनी जैसे विकसित देश भी अपने राजकोषीय घाटे को कम नहीं कर पा रहे हैं परंतु भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान यह बहुत बड़ी सफलता हासिल की है। सरकार का खर्च उसकी आय से अधिक होने पर इसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है। केंद्र सरकार ने खर्च पर नियंत्रण किया है एवं अपनी आय के साधनों में अधिक वृद्धि की है। यह लम्बे समय में देश के आर्थिक स्वास्थ्य की दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आया है। भारत के कुछ राज्यों (पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल, आदि) में राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, परंतु केंद्र सरकार एवं कुछ अन्य राज्य (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु आदि) जरूर अपने राजकोषीय घाटे को सफलता पूर्वक नियंत्रित कर पा रहे हैं। राजकोषीय घाटा मलेशिया, फिलिपीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम जैसे देशों में 4 प्रतिशत से कम है जबकि भारत में केंद्र सरकार एवं समस्त राज्यों का कुल मिलाकर राजकोषीय घाटा 7.9 प्रतिशत है। उक्त वर्णित समस्त देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग BBB है जबकि भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग BBB- है। अतः भारत के कुछ राज्यों को तो अपने राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है।    राजकोषीय घाटे को कम करने में भारत को सफलता इसलिए भी मिली है कि देश 20 से अधिक करों को मिलाकर केवल एक कर प्रणाली, वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली, को सफलता पूर्वक लागू किया गया है। आज वस्तु एवं सेवा कर के रूप में भारत को औसत 1.75 लाख करोड़ रुपए की राशि प्रतिमाह अप्रत्यक्ष कर के रूप में प्राप्त हो रही है। साथ ही, प्रत्यक्ष कर के संग्रहण में भी 20 प्रतिशत की भारी भरकम वृद्धि परिलक्षित हुई है। भारत में बैकिंग व्यवस्थाओं के डिजिटलीकरण को ग्रामीण इलाकों तक में लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण बहुत तेज गति से हुआ है, जिससे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर संग्रहण में भारी भरकम वृद्धि हुई है। जबकि केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों ने अपने गैर योजना खर्च की मदों पर किए जाने वाले व्यय पर नियंत्रण करने में सफलता भी पाई है। इसके कारण राजकोषीय घाटे को लगातार प्रति वर्ष कम करने में सफलता मिलती दिखाई दे रही है।  कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग का आंकलन करने वाले विभिन्न संस्थान भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर बहुत उत्साहित हैं एवं आर्थिक प्रगति के साथ साथ राजकोषीय घाटे को कम करते हुए भारत द्वारा जिस प्रकार अपनी वित्त व्यवस्था को नियंत्रण में रखने का काम सफलता पूर्वक किया जा रहा है, इससे यह संस्थान भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने हेतु गम्भीरता से विचार करते हुए दिखाई दे रहे हैं।  स्टैंडर्ड एंड पूअर ने तो घोषणा भी कर दी है कि आगे आने वाले दो वर्षों तक वह भारत की आर्थिक प्रगति, आधारभूत ढांचे को विकसित करने एवं राजकोषीय घाटे को कम करने सम्बंधी प्रयासों का गम्भीरता से विवेचन कर रहा है और बहुत सम्भव है कि वह आगामी दो वर्षों में भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड कर सकने की स्थिति में आ जाए।   

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