Category: राजनीति

राजनीति

अन्य देशों में रह रहे हिंदूओं के साथ खड़े रहने की आवश्यकता

/ | Leave a Comment

आज लगभग 4 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के नागरिक विश्व के अन्य देशों में शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं एवं इन देशों की आर्थिक प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। कई देशों में तो भारतीय मूल के नागरिक इन देशों के राजनैतिक पटल पर भी अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आदि विकसित देश इसके प्रमाण हैं। आस्ट्रेलिया में तो भारतीय मूल के नागरिकों को राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय करने के गम्भीर प्रयास स्थानीय स्तर पर किए जा रहे हैं, क्योंकि अन्य देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका सिद्ध हो चुकी है। राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त आर्थिक क्षेत्र में भी  भारतीय मूल के नागरिकों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है जैसे अमेरिका के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आज भारतीयों का ही बोलबाला है। अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग 85,000 एच वन-बी वीजा जारी किए जाते हैं, इसमें से लगभग 60,000 एच वन-बी वीजा भारतीय मूल के नागरिकों को जारी किए जाते हैं। इसी प्रकार अमेरिका की प्रमुख बहुराष्ट्रीय कम्पनियों  के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भारतीय मूल के नागरिक बन रहे हैं। आज अमेरिका एवं ब्रिटेन में प्रत्येक 7 चिकित्सकों में 1 भारतीय मूल का नागरिक हैं। न केवल उक्त वर्णित विकसित देशों बल्कि खाड़ी के देशों यथा, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में भी भारतीय मूल के नागरिक भारी संख्या में शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं एवं इन देशों के आर्थिक विकास में अपनी प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कई देशों यथा सिंगापुर, गुयाना, पुर्तगाल, सूरीनाम, मारीशस, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका आदि के राष्ट्राध्यक्ष (प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति) भारतीय मूल के नागरिक रहे हैं एवं कुछ देशों में तो अभी भी इन पदों पर आसीन हैं। साथ ही, 42 देशों की सरकार अथवा विपक्ष में कम से कम एक भारतवंशी रहा है।    दूसरी ओर, भारत के पड़ौसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में भारतीय मूल के नागरिकों, विशेष रूप से हिंदुओं की जनसंख्या लगातार कम हो रही है। बांग्लादेश में तो वर्ष 1951 में कुल आबादी में हिंदुओं की आबादी 22 प्रतिशत थी वह आज घटकर 8 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। लगभग यही हाल पाकिस्तान का भी है। बांग्लादेश में तो हाल ही के समय में सत्ता पलट के पश्चात हिंदुओं सहित वहां के अल्पसंख्यक समुदायों  पर कातिलाना हमले किए गए हैं। केवल बांग्लादेश ही क्यों बल्कि विश्व के किसी भी अन्य देश में हिंदुओं के साथ इस प्रकार की घटनाओं का कड़ा विरोध होना चाहिए। भारतीय मूल के नागरिक सनातन संस्कृति के संस्कारों के चलते बहुत ही शांतिपूर्वक तरीके से इन देशों के विकास में अपनी भागीदारी निभाते हैं। इसके बावजूद भी यदि भारतीयों पर इस प्रकार के आक्रमण किए जाते हैं तो इसकी निंदा तो की ही जानी चाहिए एवं विश्व समुदाय से इस संदर्भ में सहायता भी मांगी जानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। बांग्लादेश में हिंदूओं सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हुए घातक हमलों की अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प ने भी भर्त्सना की थी, इसी प्रकार के विचार अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी प्रकट किया थे। परंतु, आज आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय हिंदू समाज भी विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के साथ खड़ा हो। इसी संदर्भ में, दिनांक 21 मार्च से 23 मार्च 2025 को बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में बांग्लादेश के हिंदू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आह्वान किया गया है एवं इस संदर्भ में निम्नलिखित एक विशेष प्रस्ताव भी पास किया गया है।  “अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्प संख्यक समुदायों पर इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा लगातार हो रही सुनियोजित हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। यह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार हनन का गम्भीर विषय है।  बांग्लादेश में वर्तमान सत्ता पलट के समय मठ मंदिरों, दुर्गा पूजा पंडालों और शिक्षण संस्थानों पर आक्रमण, मूर्तियों का अनादर, नृशंस हत्याएं, सम्पत्ति की लूट, महिलाओं के अपहरण और अत्याचार, बलात मतांतरण जैसी अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं। इन घटनाओं को केवल राजनीतिक बताकर इनके मजहबी पक्ष को नकारना सत्य से मुंह मोड़ने जैसा होगा, क्योंकि अधिकतर पीड़ित, हिंदू और अन्य अल्प संख्यक समुदायों से ही हैं।  बांग्लादेश में हिंदू समाज, विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा जनजाति समाज का इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। बांग्लादेश में हिंदुओं की निरंतर घटती जनसंख्या (1951 में 22 प्रतिशत से वर्तमान में 7.95 प्रतिशत) दर्शाती है कि उनके सामने अस्तित्व का संकट है। विशेषकर, पिछले वर्ष की हिंसा और घृणा को जिस तरह सरकारी और संस्थागत समर्थन मिला, वह गम्भीर चिंता का विषय है। साथ ही, बांग्लादेश से लगातार हो रहे भारत विरोधी वक्तव्य दोनों देशों के सम्बन्धों को गहरी हानि पहुंचा सकते हैं।  कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां जान बूझकर भारत के पड़ौसी क्षेत्रों में अविश्वास और टकराव का वातावरण बनाते हुए एक देश को दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रही हैं। प्रतिनिधि सभा, चिन्तनशील वर्गों और अंतरराष्ट्रीय मामलों से जुड़े विशेषज्ञों से अनुरोध करती हैं कि वे भारत विरोधी वातावरण, पाकिस्तान तथा डीप स्टेट की सक्रियता पर दृष्टि रखें और इन्हें उजागर करें। प्रतिनिधि सभा इस तथ्य को रेखांकित करना चाहती है कि इस सारे क्षेत्र की एक सांझी संस्कृति, इतिहास एवं सामाजिक सम्बंध हैं जिसके चलते एक जगह हुई कोई भी उथल पुथल सारे क्षेत्र में अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं। प्रतिनिधि सभा का मानना है कि सभी जागरूक लोग भारत और पड़ौसी देशों की इस सांझी विरासत को दृढ़ता देने की दिशा में प्रयास करें।  यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के हिंदू समाज ने इन अत्याचारों का शांतिपूर्ण, संगठित और लोकतांत्रिक पद्धति से साहसपूर्वक विरोध किया है। यह भी प्रशंसनीय है कि भारत और विश्वभर के हिंदू समाज ने उन्हें नैतिक और भावनात्मक समर्थन दिया है। भारत सहित शेष विश्व के अनेक हिंदू संगठनों ने इस हिंसा के विरुद्ध आंदोलन एवं प्रदर्शन किए हैं और बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा व सम्मान की मांग की है। इसके साथ ही विश्व भर के अनेक नेताओं ने भी इस विषय को अपने स्तर उठाया है।  भारत सरकार ने बांग्लादेश के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ खड़े रहने और उनकी सुरक्षा की आवश्यकता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उसने यह विषय बांग्लादेश की आंतरिक सरकार के साथ साथ कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है। प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है कि वह बांग्लादेश के हिंदू समाज की सुरक्षा, गरिमा और सहज स्थिति सुनिश्चित करने के लिए वहां की सरकार से निरंतर संवाद बनाए रखने के साथ साथ हर सम्भव प्रयास जारी रखे।  प्रतिनिधि सभा का मत है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों व वैश्विक समुदाय को बांग्लादेश में हिंदू तथा अन्य अल्प संख्यक समुदायों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का गम्भीरता से संज्ञान लेना चाहिए और बांग्लादेश सरकार पर इन हिंसक गतिविधियों को रोकने का दबाव बनाना चाहिए। प्रतिनिधि सभा हिंदू समुदाय एवं अन्यान्य देशों के नेताओं से तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आह्वान करती है कि बांग्लादेशी हिंदू तथा अन्य अल्पसंख्यक समाज के समर्थन में एकजुट होकर अपनी आवाज उठाएं।” यह प्रथम बार नहीं है कि भारत के किसी सांस्कृतिक संगठन ने विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के हित में आवाज उठाई है। बल्कि, पूर्व में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बांग्लादेश में हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हो रहे अत्याचार की बात विभिन्न मंचों पर करता रहा है। क्योंकि, यह पूरे विश्व के हित में है कि हिंदू सनातन संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाया जाय ताकि पूरे विश्व में ही शांति स्थापित हो सके। इसके साथ ही, वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। इस प्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उक्त प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है।      प्रहलाद सबनानी 

Read more »

राजनीति

विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए हिंदुओं को एक करने का प्रयास करता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

/ | Leave a Comment

वैश्विक स्तर पर आज कुछ देशों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध चल रहा है (रूस – यूक्रेन के बीच एवं इजराईल – हम्मास के बीच) तो कुछ देशों की बीच शीत युद्ध की स्थिति निर्मित होती दिखाई दे रहे है (ईरान – इजराईल के बीच, रूस – यूरोपीयन देशों के बीच, अमेरिका – हूतियों के बीच, अमेरिका – कुछ अफ्रीकी देशों के बीच) तथा कुछ देशों के बीच व्यापार युद्ध छिड़ता हुआ दिखाई दे रहा है (अमेरिका – चीन, अमेरिका – मेक्सिको, अमेरिका – कनाडा, आदि के बीच)। कुल मिलाकर आज वैश्विक स्तर पर स्पष्टत: शांति का अभाव दिखाई दे रहा है। वैश्विक स्तर पर इन विपरीत परिस्थितियों के बीच सनातनी हिंदुओं द्वारा भारत के प्रयागराज में एक महाकुम्भ का आयोजन शांतिपूर्वक एवं अति सफलता से सम्पन्न किया जाता है। इस महाकुम्भ में पूरे विश्व से सनातनी हिंदू एवं अन्य धर्मों के अनुयायी 66 करोड़ से अधिक की संख्या में पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इन 66 करोड़ धर्मावलम्बियों के बीच किसी भी प्रकार का असहयोग एवं किसी भी स्तर पर असहमति नहीं दिखाई देती है। जाति, पंथ, मत, प्रांत, भाषा आदि के नाम पर किसी भी प्रकार का विरोध दिखाई नहीं दिया, बस सभी धर्मावलंबी अपने आप को केवल और केवल सनातनी हिंदू कहते हुए दिखाई दिए हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा इस संदर्भ में पिछले 100 वर्षों से किए जा रहे प्रयास अब सफल होते दिखाई दे रहे हैं।  अब लगभग पूरा विश्व ही यह मानने लगा है कि वैश्विक स्तर पर लगातार पनप रही अशांति का हल केवल भारतीय सनातन संस्कृति के संस्कारों के अनुपालन से ही सम्भव है। इसी संदर्भ में दिनांक 21 मार्च 2025 से 23 मार्च 2025 तक बंगलूरू में सम्पन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने “विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस और संगठित हिंदू समाज का निर्माण” विषय पर एक प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि “अनंत काल से ही हिंदू समाज एक प्रदीर्घ और अविस्मरणीय यात्रा में साधनारत रहा है, जिसका उद्देश्य मानव एकता और विश्व कल्याण है। तेजस्वी मातृशक्ति सहित संतो, धर्माचार्यों तथा महापुरुषों के आशीर्वाद एवं कर्तृत्व के कारण हमारा राष्ट्र कई प्रकार के उतार चढ़ावों के उपरांत भी निरंतर आगे बढ़ रहा है।” अर्थात सनातन संस्कृति के संस्कारों की आज के संदर्भ में परख करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह संस्कार हिंदू देवी देवताओं द्वारा समाज के भले के लिए ही लागू किये गए हैं और हजारों वर्षों से भारतीय हिंदू समाज इनका सफलतापूर्वक अनुसरण करता आया है। समय की कसौटी पर सदैव ही यह खरे उतरे हैं। अतः आज भी सनातन हिंदू संस्कारों की प्रासंगिकता बनी हुई हैं। इन्हीं संस्कारों के चलते भारत सदैव से ही “वसुधैव कुटुम्बकम” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की भावना को आत्मसात करता आया है। भारत के लिए तो पूरा विश्व ही अपना परिवार है, फिर क्यों एक दूसरे से झगड़ा करना। बल्कि, भारत में तो विश्व के कोने कोने से अन्य धर्मावलंबी भी आकर आसानी से रच बस गए हैं एवं सनातन संस्कृति में समा गए हैं। जैसे, कुषाण, शक, हूण, पारसी, आदि। पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां मुस्लिम अनुयायीयों के समस्त फिर्के पाए जाते हैं अन्यथा मुस्लिम देशों में भी समस्त फिर्के शायद ही पाए जाते हों। उक्त प्रस्ताव में इस संदर्भ में आगे कहा गया है कि “अपनी प्राचीन संस्कृति और समृद्ध परम्पराओं के चलते सौहार्दपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए भारत के पास अनुभव जनित ज्ञान उपलब्ध है। हमारा चिंतन विभेदनकारी और आत्मघाती प्रवृतियों से मनुष्य को सुरक्षित रखते हुए चराचर जगत में एकत्व की भावना तथा शांति सुनिश्चित करता है।”  चूंकि भारत में लगभग 1000 वर्षों तक अरब के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों का शासन चलता रहा अतः उस खंडकाल में भारतीय जनमानस को अपनी महान संस्कृति का विस्मृति लोप हो गया था। उक्त प्रस्ताव में इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है कि “काल के प्रवाह में राष्ट्र जीवन में आए अनेक दोषों को दूर कर एक संगठित, चारित्र्य सम्पन्न और सामर्थ्यवान राष्ट्र के रूप में भारत को परम वैभव तक ले जाने हेतु परम पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रारम्भ किया। संघकार्य का बीजारोपण करते हुए, डॉक्टर हेडगेवार ने दैनिक शाखा के रूप में व्यक्ति निर्माण की एक अनूठी कार्यपद्धति विकसित की, जो हमारी सनातन परम्पराओं व मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र निर्माण का निःस्वार्थ तप बन गया। उनके जीवनकाल में ही इस कार्य का एक राष्ट्रव्यापी स्वरूप विकसित हो गया। द्वितीय सर संघचालक पूजनीय श्री गुरूजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) के दूरदर्शी नेतृत्व में राष्ट्रीय जीवन के विविध क्षेत्रों में शाश्वत चिंतन के प्रकाश में कालसुसंगत युगानुकूल रचनाओं के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। 100 वर्ष की इस यात्रा में संघ ने दैनिक शाखा द्वारा अर्जित संस्कारों से समाज का अटूट विश्वास और स्नेह प्राप्त किया। इस काल खंड में संघ के स्वयंसेवकों ने प्रेम और आत्मीयता के बल पर मान अपमान और राग द्वेष से ऊपर उठ कर सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया।” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह भी मानना है कि धर्म के अधिष्ठान पर आत्मविश्वास से परिपूर्ण संगठित सामूहिक जीवन के आधार पर ही हिंदू समाज अपने वैश्विक दायित्व का निर्वाह प्रभावी रूप से कर सकेगा। अतः हम सभी भारतवासियों का कर्त्तव्य है कि सभी प्रकार के भेदों को नकारने वाला समरसता युक्त आचरण, पर्यावरण पूरक जीवन शैली पर आधारित मूल्याधिष्ठित परिवार, स्वबोध से ओतप्रोत और नागरिक कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध समाज का चित्र खड़ा करने के लिए हम समस्त भारतीय संकल्प लें। इसके आधार पर ही समाज के समस्त प्रश्नों का समाधान, चुनौतियों का उत्तर देते हुए भौतिक समृद्धि एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण समर्थ राष्ट्र जीवन खड़ा किया जा सकेगा। इसी कारण से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने सज्जन शक्ति के नेतृत्व में सम्पूर्ण समाज को साथ लेकर विश्व के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करने वाला समरस और संगठित भारत का निर्माण करने हेतु संकल्प लिया है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त हिंदू समाज को एक करने के प्रयास भारत में तो सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं और इसका स्पष्ट सकारात्मक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में पूरे देश में दिखाई भी दे रहा है। आर्थिक प्रगति की गति तेज हुई है, समस्त समाज के बीच सामाजिक समरसता का भाव जागृत हो रहा है, देश के नागरिकों विशेष रूप से युवाओं में पर्यावरण के प्रति सजगता बढ़ रही है, एक बार पुनः भारतीय समाज संयुक्त परिवार के प्रति आकर्षित हो रहा है – बल्कि, विश्व के अन्य कई देशों के नागरिकों में भी संयुक्त परिवार के विभिन्न प्रकार के लाभों की ओर ध्यान आकर्षित हो रहा है, स्वदेशी का भाव जागृत हो रहा है और नागरिकों में देश के प्रति अपने कर्तव्यों के भाव का जागरण हो रहा है। इन्हीं समस्त बिंदुओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पंच परिवर्तन (सामाजिक समरसता स्थापित करना, स्वबोध के भाव का जागरण, पर्यावरण पर ध्यान देना, नागरिक कर्तव्यों का बोध, कुटुंब प्रबोधन को बढ़ावा देना) के रूप में पिछले कुछ समय से समाज के बीच में ले जा रहा है। और, समाज को इन बिंदुओं पर जागृत करने का कार्य स्वयंसेवकों द्वारा सफलता पूर्वक किया जा रहा है। आगे आने वाले समय में इन बिंदुओं पर समाज के बीच कार्य को और भी गति दी जाएगी, ऐसी आशा की जा रही है।   प्रहलाद सबनानी

Read more »