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आर्थिकी राजनीति

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है

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दिनांक 31 जनवरी 2025 को भारत सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन द्वारा लोक सभा में देश का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया गया। स्वतंत्र भारत का पहिला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में बजट के साथ पेश किया गया था। 1960 के दशक में आर्थिक सर्वेक्षण को बजट से अलग कर दिया गया एवं इसे बजट के एक दिन पूर्व संसद में पेश किया जाने लगा। आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से देश की  अर्थव्यवस्था की समीक्षा की जाती है एवं अर्थव्यवस्था की सम्भावनाओं को देश के सामने लाने का प्रयास किया जाता है। इसे देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग की ओर से तैयार किया जाता है।    लोक सभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर कुछ देशों में चल रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत के आर्थिक विकास पर भी कुछ विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, परंतु, चूंकि भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है अतः वित्तीय वर्ष 2025-26 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच में रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। हाल ही के समय में ग्रामीण इलाकों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई दी है और कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि देश में अच्छे मानसून के चलते रबी की फसल के बहुत अच्छे स्तर पर रहने की सम्भावना है और इससे खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर भी कम होगी, जिससे नागरिकों के हाथ में अन्य उत्पादों को खरीदने के लिए धन की उपलब्धता बढ़ेगी। आज केवल खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर कुछ अधिक मात्रा में बनी हुई हुई है अन्यथा कोर महंगाई की दर तो पूर्व में ही नियंत्रण में आ चुकी है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के प्रथम अर्द्धवार्षिकी में समग्र महंगाई की दर भी नियंत्रण में आ जाएगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। भारत आज अपने कच्चे तेल की कुल मांग का 87 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। यदि कच्चे तेल की कीमतें कम होंगी तो भारत में महंगाई भी कम होगी।  विनिर्माण के क्षेत्र में जरूर कुछ चुनौतियां बनी हुई है एवं कई प्रयास करने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी बढ़ नहीं पा रही है। विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने की क्षमता है। अतः विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भूमि, श्रम एवं पूंजी की लागत को कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को गति देने की आवश्यकता है ताकि इन इकाईयों की उत्पादकता में सुधार हो सके एवं इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम हो सके। विनिर्माण क्षेत्र में कार्य कर रही इकाईयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए जाने की आज महती आवश्यकता है।  सेवा क्षेत्र लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है एवं इस क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अतुलनीय बनी हुई है। भारत में वर्तमान में महाकुम्भ मेला चालू है। आज प्रतिदिन एक करोड़ के आसपास श्रद्धालु गंगा स्नान करने के लिए प्रयागराज में पहुंच रहे हैं। रेल्वे द्वारा प्रतिदिन लगभग 3,000 विशेष रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए कुछ आंकड़ों के अनुसार, महाकुम्भ मेले से उत्तरप्रदेश में 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यवसाय एवं 25,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्तरप्रदेश सरकार को होने की सम्भावना है। रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। यह समस्त कार्य न केवल धार्मिक पर्यटन, होटल व्यवसाय, छोटे छोटे उत्पादों के निर्माण एवं बिक्री में अतुलनीय वृद्धि दर्ज करने में सहायक हो रहे हैं बल्कि इससे देश के सेवा क्षेत्र में भी विकास दर तेज हो रही है।        किसी भी देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी अधिक होगी उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर अधिक रहेगी क्योंकि विभिन्न उत्पादों को खरीदने के लिए अर्थव्यवस्था में मांग तो इसी वर्ग के माध्यम से उत्पन्न होती है। अतः देश में प्रयास किए जाने चाहिए कि मध्यमवर्गीय परिवारों के हाथ में अधिक राशि उपलब्ध रहे। भारत में हालांकि समावेशी विकास हुआ है क्योंकि गरीबों की संख्या में तेजी से एवं भारी मात्रा में कमी दर्ज हुई है। परंतु, गरीबी रेखा से हाल ही में ऊपर आकर मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी शामिल हुए परिवार कहीं फिर से गरीबी रेखा के नीचे नहीं चले जायें, इस सम्बंध में भरसक प्रयास किए जाने चाहिए।  वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में हो रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत निर्मित विभिन्न उत्पादों के निर्यात में उतनी वृद्धि दर्ज नहीं हो पा रही है जितनी आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत से ऊपर रखने के लिए होनी चाहिए। इससे विदेशी व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी दृष्टिगोचर हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत पर भी लगातार दबाव बना हुआ है। हालांकि विदेशी निवेश में आ रही कमी को अस्थायी समस्या बताया गया है और विभिन्न देशों में स्थितियों के सुधरने एवं अमेरिका में आर्थिक नीतियों के स्थिर होने के साथ ही, भारत में विदेशी निवेश पुनः बढ़ने लगेगा।    वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के 6.2 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। वृद्धि दर में गिरावट के मुख्य कारणों में शामिल हैं देश में लोक सभा एवं कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव होने के चलते आचार संहिता लागू की गई थी, इससे केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों को अपने पूंजीगत खर्चों को रोकना पड़ा था। नवम्बर 2024 तक केंद्र सरकार द्वारा केवल 5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चे किये जा सके हैं, जबकि औसतन 90,000 करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च प्रति माह होने चाहिए थे। क्योंकि, पूंजीगत खर्चों के लिए पूरे वर्ष भर का बजट 11.11 लाख करोड़ रुपए का निर्धारित हुआ था। अब सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में केवल 9 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च ही हो सकते हैं। विभिन्न कम्पनियों द्वारा अदा किए जाने वाले कर में भी कमी दिखाई दी है और कुछ कम्पनियों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। जिन जिन कम्पनियों की लाभप्रदता बहुत अच्छे स्तर पर बनी हुई है, इन कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि केंद्र सरकार के साथ साथ वे भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि देश में नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो और विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति बढ़े, रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हों और महंगाई पर नियंत्रण बना रहे। विशेष रूप से देश में आधारभूत ढांचे को और अधिक मजबूत करने में निजी कम्पनियों द्वारा अपनी भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कमी करने के सम्बंध में भी अब गम्भीरता से विचार करना चाहिए ताकि विनिर्माण इकाईयों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम की जा सके और वैसे भी अब मुद्रा स्फीति तो नियंत्रण में आ ही चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में मुद्रा बाजार में 1.5 लाख करोड़ रुपए की राशि से तरलता को बढ़ाया ही है, इससे बैकों द्वारा विभिन्न कम्पनियों, कृषकों एवं व्यापारियों को ऋण प्रदान करने में आसानी होगी।  आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 273 लाख करोड़ रुपए का रहा है जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 295 लाख करोड़ रुपए का हो गया, अब वित्तीय वर्ष 20224-25 में 324 लाख करोड़ रुपए एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 357 लाख करोड़ रुपए का रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार सम्भव है कि भारत आगामी 2/3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसी प्रकार बजट घाटा जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.4 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 5.6 प्रतिशत का रहा था वह अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 4.8 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 4.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार केंद्र सरकार द्वारा देश की वित्तीय स्थिति को लगातार मजबूत बनाए रखने के प्रयास सफल रहे हैं। केंद्र सरकार के बजट में कुल आय 34.3 लाख करोड़ रुपए एवं कुल व्यय 50.3 लाख करोड़ रुपए रहने की सम्भावना है, इससे बजट घाटा 16 लाख करोड़ रुपए का रह सकता है।   प्रहलाद सबनानी

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आर्थिकी राजनीति

क्या भारतवर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बन जाएगा

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आज भारत के संदर्भ में यह सपना देखा जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए विभिन्न सुधार कार्यक्रमों के बल पर वर्ष 2047 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बन जाएगा। परंतु, सकल घरेलू उत्पाद में औसतन लगभग 7 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ क्या भारत वास्तव में वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बन पाएगा अथवा भारत को अभी भी कई प्रकार के सुधार कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है। किसी भी देश को अपनी आर्थिक विकास दर को तेज करने के लिए कई प्रकार के सुधार कार्यक्रम लागू करने होते हैं। भारत ने वर्ष 1947 में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, एक लम्बे अंतराल के पश्चात देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को वर्ष 1991 में प्रारम्भ किया। जबकि इस समय तक अमेरिका एवं कई यूरोपीय देश विकसित राष्ट्र बन चुके थे एवं चीन ने तो आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को वर्ष 1980 में ही लागू कर दिया था तथा अपनी वार्षिक आर्थिक विकास दर को दहाई के आंकड़े के भी पार ले गया था। भारत इस मामले में बहुत पिछड़ चुका था।  श्री राजीव गांधी सरकार ने वर्ष 1985-86 में भारतीय संसद में एक सुधारवादी बजट पेश जरूर किया था परंतु वे इन कार्यक्रमों को बहुत आगे नहीं बढ़ा पाए। परंतु, वर्ष 1991 में श्री नरसिम्हा राव सरकार ने देश में लाइसेन्स राज को समाप्त कर सुधारवादी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया था। इसके पूर्व निजी क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था में उचित स्थान प्राप्त नहीं था और केवल पब्लिक सेक्टर के दम पर ही भारत विकास की राह पर आगे बढ़ रहा था। तात्कालीन केंद्र सरकार द्वारा समाजवादी नीतियों को अपनाए जाने के चलते भारत में सुधारवादी कार्यक्रमों को लागू करने में बहुत अधिक देर कर दी गई थी। वर्ष 1947 में भारत के राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात बड़े उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग पर उचित ध्यान नहीं दिया गया। पेट्रोलियम रिफाइनरी, मशीनरी एवं तकनीकी उद्योगों पर भी विशेष ध्यान नहीं दिया गया जबकि आज यह समस्त उद्योग देश में अत्यधिक सफल होकर देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं। वर्तमान में केंद्र सरकार 2047 में भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने के लिए अथक प्रयास कर रही है। हाल ही के वर्षों में लागू किए गए सुधार कार्यक्रमों में शामिल हैं – वस्तु एवं सेवा कर बिल, ऋणशोधनाक्षमता बिल, दिवालियापन बिल, आदि। श्रम कोड को भारतीय संसद ने पास कर दिया है परंतु देश में लागू किया जाना शेष है, कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र में जमीन अधिग्रहण बिल पर कार्य चालू है। ईज आफ डूइंग बिजनेस के क्षेत्र में काफी अच्छा काम हुआ है और आज विभिन्न प्राजेक्ट्स को समय पर स्वीकृती मिल जाती है। भारत में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित अवस्था में आ चुका है। भारत को विश्व की सबसे कमजोर 5 अर्थव्यवस्थाओं की सूची में से निकालकर विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की श्रेणी में ले आया गया है। फिर भी, भारत को एक विकसित राष्ट्र  बनाने के लिए केवल 7 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर काफी नहीं है। वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत की रही है और प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,300 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष है। किसी भी देश को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में तभी शामिल किया जाता है जब उस देश के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय 13,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के आस पास हो। इस दृष्टि से भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए भारतीय नागरिकों की औसत आय लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़नी चाहिए। इस प्रकार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद भी यदि 8 प्रतिशत के आसपास प्रतिवर्ष बढ़ता है तो वर्ष 2047 तक भारत एक विकसित राष्ट्र निश्चित ही बन सकता है। परंतु इसके लिए भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को और अधिक गति देनी होगी।  आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम लम्बे समय तक चलने वाली सतत प्रक्रिया है। कई बार तो सुधार कार्यक्रम सम्बंधी कानून बनाने के बाद उन्हें लागू करने में भी लम्बा समय लग जाता है। जैसे भारत में 4 श्रम कोड वर्ष 2019-2020 के बीच में संसद द्वारा पास किए गए थे परंतु इन कोड को अभी भी लागू नहीं किया जा सका है। हालांकि वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं परंतु अभी भी कई क्षेत्रों में काम किया जाना शेष है। जैसे, भारत में पूंजी आज भी बहुत अधिक ब्याज दर पर उपलब्ध हो पाती है, हालांकि ऋण प्रदान करने सम्बंधी नियमों को शिथिल बनाया गया है, परंतु पूंजी की लागत बहुत अधिक है। भारत में युवा जनसंख्या अच्छी तादाद में है, आज भारत के नागरिकों की औसत आयु केवल 29 वर्ष है जो विश्व की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है। यह भारत के लिए यह लाभदायक स्थिति है परंतु भारत आज भी इस स्थिति का लाभ नहीं उठा पा रहा है। इस प्रकार के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर भारत में अभी भी बहुत काम किए जाने की आवश्यकता है। भारत को अभी भी आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव की बहुत अधिक आवश्यकता है। हमारे देश की मजबूती किन क्षेत्रों में हैं इन क्षेत्रों को चिन्हित कर हमें उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे उत्पादकता के मामले में अन्य देशों, विशेष रूप से पश्चिमी देशों, की तुलना में हम अभी भी बहुत पिछड़े हुए हैं। उत्पादकता कम होने के चलते भारत में निर्मित उत्पादों की लागत अधिक रहती है। देश में करों की दर (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है, इसे कम करने के सम्बंध में गम्भीरता से विचार करने की आज महती आवश्यकता है। साथ ही, बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋण पर ब्याज की दर भी बहुत अधिक है, इससे भी उत्पादन लागत में वृद्धि होती है और भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक लागत के चलते टिक नहीं पाते हैं। अतः अब समय आ गया है कि ब्याज दरों को कम करने के बारे में भी गम्भीरता से विचार हो।  देश में हर समय कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं और कई बार तो देश के बहुत बड़े भू भाग पर चुनाव आचार संहिता के लागू होने के चलते केंद्र एवं राज्य सरकारों को अपने पूंजीगत खर्चे रोकने होते हैं, इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः देश में वन नेशन वन इलेक्शन को भी लागू करने की महती आवश्यकता है। साथ ही, आजकल कुछ राज्य सरकारों के बीच नागरिकों को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने की जैसे होड़ ही लग गई है। मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने से इन प्रदेशों के बजट पर अत्यधिक दबाव उत्पन्न होता है। अतः इस प्रकार के खर्चों पर रोक लगाए जाने की भी आज आवश्यकता है।   भारत की आर्थिक विकास दर को 10 प्रतिशत से भी ऊपर ले जाया जा सकता है यदि हिंदू सनातन संस्कृति की अर्थव्यवस्था को भारत में बढ़ावा दिया जाय। इसके लिए देश के ब्यूरोक्रेसी के सोच में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है। भारत में भव्य मंदिरों का निर्माण कर एवं इन स्थानों पर अधिकतम सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए धार्मिक पर्यटन को जबरदस्त बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे होटल उद्योग, परिवहन उद्योग, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को बहुत लाभ होगा एवं रोजगार के करोड़ों नए अवसर भी निर्मित होंगे। देश में शादियों के मौसम में लाखों करोड़ रुपए का खर्च होता है तथा विभिन्न त्यौहारों पर भी भारतीय नागरिकों के खर्च में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। इस सबका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रहता है, अतः शादियों के मौसम एवं विभिन्न त्यौहारों पर नागरिकों को सरकार द्वारा विशेष सुविधाएं प्रदान करने से विभिन्न उत्पादों की खपत में वृद्धि की जा सकती है। और, अंततः यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करने में सहायक होगा। अतः हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों को देश में लागू करने के संदर्भ में अब देश के ब्यूरोक्रेसी को गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। आज अतीत के बोझ को छोड़कर भविष्य की तरफ देखने की भी आवश्यकता है और देश के आर्थिक विकास के लिए नित नए क्षेत्रों की तलाश भी जारी रखनी होगी।   हाल ही के समय में देश में बचत एवं निवेश दर में कमी देखी जा रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी कमी दृष्टिगोचर हुई है और विदेशी व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ रहा है क्योंकि देश में स्वर्ण एवं कच्चे तेल का आयात अत्यधिक मात्रा में हो रहा है और विभिन्न उत्पादों का निर्यात उस गति से नहीं बढ़ पा रहा है। स्वर्ण के आयात को तो नियंत्रित करना आवश्यक है क्योंकि यह किसी भी प्रकार की उत्पादकता अथवा लाभ अर्जन में भागीदारी नहीं करता है बल्कि यह निवेश निष्क्रिय निवेश की श्रेणी में गिना जाता है। स्वर्ण में निवेश की जा रही विदेशी मुद्रा को यदि विनिर्माण इकाईयों की स्थापना पर खर्च किया जाय तो यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करने में सहायक होगा।  किसी भी विनिर्माण इकाई की स्थापना के लिए विशेष रूप से 6 घटकों की आवश्यकता होती है यथा – भूमि, पूंजी, श्रम, नई तकनीकी, संगठन एवं साहस। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार नौकरी को निकृष्ट कार्य की श्रेणी में गिना जाता रहा है एवं अपना उद्यम चलाना उच्च कार्य माना जाता है। अतः संगठन क्षमता एवं साहस भारत के मूल नागरिकों के डीएनए में है। नई तकनीकी को विकसित करने में भारत के युवा इंजीनीयरों ने पूरे विश्व को राह दिखाई है। अतः भारत में केवल भूमि, पूंजी एवं श्रम की लागत को कम करने में यदि सफलता हासिल की जा सके तो भारत की आर्थिक विकास दर को 10 प्रतिशत से भी ऊपर ले जाया जा सकता है। भूमि, पूंजी एवं श्रम जहां भी आसानी से एवं उचित दामों पर उपलब्ध होंगे वहां उद्योग धंधे आसानी से फलेंगे एवं फूलेंगे।   प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी राजनीति

वित्तीयवर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट से मिल सकती हैं कई सौगातें

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वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली छमाही (अप्रेल-सितम्बर 2024) में भारत की आर्थिक विकास दर कुछ कमजोर रही है। प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2024) में तो सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर गिरकर 5.2 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई थी। इसी प्रकार द्वितीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2024) में भी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। इससे वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह वृद्धि दर घटकर 6.6 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत की रही थी। वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम छमाही में आर्थिक विकास दर के कम होने के कारणों में मुख्य रूप से देश में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव है और आचार संहिता के लागू होने के चलते केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्चों एवं अन्य खर्चों में भारी भरकम कमी दृष्टिगोचर हुई है। साथ ही, देश में मानसून की स्थिति भी ठीक नहीं रही है।  केंद्र सरकार ने हालांकि मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाने में सफलता तो अर्जित कर ली है परंतु उच्च स्तर पर बनी रही मुद्रा स्फीति के कारण कुल मिलाकर आम नागरिकों, विशेष रूप से मध्यमवर्गीय परिवारों, की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभात जरूर पड़ा है और कुछ मध्यमवर्गीय परिवारों के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों की श्रेणी में जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। किसी भी देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की जितनी अधिक संख्या रहती है, उस देश की आर्थिक विकास दर ऊंचे स्तर पर बनी रहती है क्योंकि मध्यमवर्गीय परिवार ही विभिन्न प्रकार के उत्पादों (दोपहिया वाहन, चारपहिया वाहन, फ्रिज, एयर कंडीशनर  जैसे उत्पादों एवं नए फ्लेट्स एवं भवनों आदि) को खरीदने पर अपनी आय के अधिकतम भाग का उपयोग करता है। इससे आर्थिक चक्र में तीव्रता आती है और इन उत्पादों की बाजार में मांग के बढ़ने के चलते इनके उत्पादन को विभिन्न कम्पनियों द्वारा बढ़ाया जाता है, इससे इन कम्पनियों की आय एवं लाभप्रदता में वृद्धि होती है एवं देश में रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं।  भारत में पिछले कुछ समय से मध्यमवर्गीय परिवारों की व्यय करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है अतः दिनांक 1 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि वे वित्तीय वर्ष 2025-26 के केंद्र सरकार के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए विशेष रूप से आय कर में छूट की घोषणा करेंगी। देश के कई अर्थशास्त्रियों का तो यह भी कहना है कि न केवल आय कर में बल्कि कारपोरेट कर में भी कमी की घोषणा की जानी चाहिए। इनफोसिस के संस्थापक सदस्यों में शामिल श्री मोहनदास पई का तो कहना है कि 15 लाख से अधिक की आय पर लागू 30 प्रतिशत की आय कर की दर को अब 18 लाख से अधिक की आय पर लागू करना चाहिए। आय कर मुक्त आय की सीमा को वर्तमान में लागू 7.75 लाख रुपए की राशि से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर देना चाहिए। आयकर की धारा 80सी के अंतर्गत किए जाने निवेश की सीमा को भी 1.50 लाख रुपए की राशि से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर देना चाहिए। मकान निर्माण हेतु लिए गए ऋण पर अदा किए जाने वाले ब्याज पर प्रदान की जाने वाली आयकर छूट की सीमा को 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 3 लाख रुपए किया जाना चाहिए।  फरवरी 2025 माह में ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मोनेटरी पोलिसी की घोषणा भी होने जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि वे रेपो दर में कम से कम 25 अथवा 50 आधार बिंदुओं की कमी तो अवश्य करेंगे। क्योंकि, पिछले लगातार लगभग 24 माह तक रेपो दर में कोई भी परिवर्तन नहीं करने के चलते मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा मकान निर्माण एवं चार पहिया वाहन आदि खरीदने हेतु बैकों से लिए गए ऋण की किश्त की राशि का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया है। बैकों से लिए गए इस प्रकार के ऋणों एवं माइक्रो फाइनैन्स की किश्तों की अदायगी में चूक की घटनाएं भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। अब मुद्रा स्फीति की दर खाद्य पदार्थों (फलों एवं सब्जियों आदि) के कुछ महंगे होने के चलते ही उच्च स्तर पर आ जाती है जबकि कोर मुद्रा स्फीति की दर तो अब नियंत्रण में आ चुकी है। खाद्य पदार्थों की मंहगाई को ब्याज दरों को उच्च स्तर पर बनाए रखकर कम नहीं किया जा सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक को अब इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।       वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव के चलते देश में पूंजीगत खर्चों में कमी दिखाई दी है। इसीलिए अब लगातार यह मांग की जा रही है कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन कानून को शीघ्र ही लागू किया जाना चाहिए क्योंकि बार बार देश में चुनाव होने से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा आचार संहिता के लागू होने के चलते अपने बजटीय खर्चों को रोक दिया जाता है जिससे देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है। अतः वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए लोक सभा में पेश किए जाने वाले बजट में पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर गम्भीरता दिखाई जाएगी। हालांकि वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 7.50 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था, वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में 10 लाख करोड़ रुपए एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में 11.11 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था। अब वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए कम से कम 15 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किये जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे देश में धीमी पड़ रही आर्थिक गतिविधियों को तेज करने में सहायता मिलेगी और रोजगार के करोड़ों नए अवसर भी निर्मित होंगे, जिसकी वर्तमान समय में देश को अत्यधिक आवश्यकता भी है।  विभिन्न राज्यों द्वारा चलायी जा रही फ्रीबीज की योजनाओं पर भी अब अंकुश लगाए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए। इन योजनाओं से देश के आर्थिक विकास को लाभ कम और नुक्सान अधिक होता है। केरल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली की स्थिति हम सबके सामने है। इस प्रकार की योजनाओं को चलाने के कारण इन राज्यों के बजटीय घाटे की स्थिति दयनीय स्थिति में पहुंच गई है। पंजाब तो किसी समय पर देश के सबसे सम्पन्न राज्यों में शामिल हुआ करता था परंतु आज पंजाब में बजटीय घाटा भयावह स्थिति में पहुंच गया है। जिससे ये राज्य आज पूंजीगत खर्चों पर अधिक राशि व्यय नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि इन राज्यों की न तो आय बढ़ रही है और न ही बजटीय घाटे पर नियंत्रण स्थापित हो पा रहा है।     पिछले कुछ समय से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कम हो रहा है। यह सितम्बर 2020 तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 4.3 प्रतिशत था जो अब गिरकर सकल घरेलू उत्पाद का 0.8 प्रतिशत के स्तर तक नीचे आ गया है।  वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में इस विषय पर भी गम्भीरता से विचार किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2019 के बजट में कोरपोरेट कर की दरों में कमी की घोषणा की गई थी, जिसका बहुत अच्छा प्रभाव विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर पड़ा था और सितम्बर 2020 में तो यह बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 4.3 प्रतिशत तक पहुंच गया था। अब एक बार पुनः इस बजट में कोरपोरेट कर में कमी करने पर भी विचार किया जा सकता है।  वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित करने वाले उद्योगों को भी कुछ राहत प्रदान की जा सकती है क्योंकि आज देश में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने की महती आवश्यकता है। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को विशेष सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। हां, साथ में तकनीकी आधारित उद्योगों को भी बढ़ावा देना होगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर भी हमारे उद्योगों को हमें प्रतिस्पर्धी बनाना है। ग्रामीण इलाकों में आज भी भारत की लगभग 60 प्रतिशत आबादी निवास करती है अतः कृषि क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर एवं लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान इस बजट के माध्यम से दिया जाएगा, ताकि रोजगार के अवसर ग्रामीण इलाकों में ही निर्मित हों और नागरिकों के शहर की ओर हो रहे पलायन को रोका जा सके। 

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