राजनीति इण्डिया गठबंधन वैचारिक एकता पर आधारित हो अवसरवाद पर नहीं December 30, 2024 / December 30, 2024 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री लोकसभा चुनावों से पहले यानी जुलाई 23 में 15 दलों के साथ बने उसी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात यू पी ए ने इण्डिया गठबंधन नामक एक नया विपक्षी गठबंधन बनाने का प्रयास शुरू किया था। परन्तु इस बार इसमें 15 राजनैतिक दल नहीं बल्कि 26 पार्टियां शामिल हुई थीं। इण्डिया गठबंधन के अस्तित्व […] Read more » India alliance should be based on ideological unity and not on opportunism
राजनीति विश्ववार्ता बेहद खतरनाक है सीरिया की असद सरकार की पराजय को इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित करना December 30, 2024 / December 30, 2024 by गौतम चौधरी | Leave a Comment गौतम चौधरी अभी हाल ही में सीरिया के बशर अल असद सरकार को अपदस्थ कर एक नयी राजनीतिक व्यवस्था खड़ी की गयी है। सीरिया की इस हालिया घटनाक्रम को कट्टरपंथी सोंच वाले इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित कर रहे हैं। यह प्रचाार भ्रामक है और चिंताजनक भी है। सबसे चिंताजनक बात यह […] Read more » सीरिया की असद सरकार की पराजय
राजनीति शख्सियत उदारीकरण एवं आर्थिक सुधार के महासूर्य का अस्त होना! December 30, 2024 / December 30, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-भारत के धुरंधर अर्थशास्त्री, प्रशासक, कद्दावर नेता, दो बार प्रधानमंत्री रह चुके डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से आर्थिक सुधार का महासूर्य अस्त हो गया, भारतीय राजनीति में एक संभावनाओं भरा राजनीति सफर ठहर गया, जो राष्ट्र के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय […] Read more » Setting of the great sun of liberalization and economic reforms डॉ. मनमोहन सिंह
राजनीति नए रूप में साम्राज्यवादी शक्तियां December 27, 2024 / December 27, 2024 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment संसद के हालिया सत्र का एक बड़ा हिस्सा विवादित अमेरिकी उद्यमी जार्ज सोरोस को लेकर सत्तापक्ष एवं विपक्ष में तल्ख बयानबाजी की भेंट चढ़ गया। सोरोस उस अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी विचारधारा के प्रतीक हैं, जो अपने वैश्विक दृष्टिकोण और व्यापारिक-रणनीतिक हितों के लिए वैश्विक भूगोल, इतिहास और संस्कृति को बदलने पर आमादा हैं। याद रहे […] Read more » Imperialist powers in new form
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार अटल जी का सार्वजनिक जीवन बेदाग और साफ सुथरा रहा December 27, 2024 / December 27, 2024 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती 25 दिसम्बर 2024 पर विशेष आलेख) भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को वो सही मायने में भारत रत्न थे। इन सबसे भी बढ़कर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी एक अच्छे इंसान थे। जिन्होंने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के प्रधानमंत्री’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और जिसका उन्होंने अपने अंतिम समय तक निर्वहन किया। बेशक अटल बिहारी वाजपेयी जी कुंवारे थे लेकिन देश का हर युवा उनकी संतान की तरह था। देश के करोड़ों बच्चे और युवा उनकी संतान थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का बच्चों और युवाओं के प्रति खास लगाव था। इसी लगाव के कारण पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी बच्चों और युवाओं के दिल में खास जगह बनाते थे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। सब के चहेते और विरोधियों का भी दिल जीत लेने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा था इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा। तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता था। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी की बातें और विचार सदां तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में जवान सोच झलकती थी। यही झलक उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बनाती थी। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तब विपक्ष भी उनकी तर्कपूर्ण वाणी के आगे कुछ नहीं बोल पाता था। अपनी कविताओं के जरिए अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे। उनकी कविताएँ उनके प्रशंसकों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेगी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटल जी के पिता का नाम पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापक थे। कृष्ण बिहारी वाजपेयी साथ ही साथ हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के रहने वाले थे। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे ब्रज सहित आगरा से खास लगाव था। अटल बिहारी वाजपेयी जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाने वाले विक्टोरिया कालेज में हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डी. ए. वी. महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता और कवि थे। ये गुण उन्हें उनके पिता से वंशानुगत मिले। अटल बिहारी वाजपेयी जी को स्कूली समय से ही भाषण देने का शौक था और स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्य पाठ और भाषण जैसी प्रतियोगिताएं में हमेशा हिस्सा लेते थे। अटल बिहारी वाजपेयी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बनें और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लम्बे समय तक राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने लंबे समय तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम किया। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। अटल जी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ की और से संसदीय दल के नेता रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को प्रभावित किया। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के संसद में दिए ओजस्वी भाषण को सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनको भविष्य का प्रधानमंत्री तक बता दिया था। और आगे चलकर पंडित जवाहर लाल नेहरू की भविष्यवाणी सच भी साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा सम्बन्ध मधुर रहे। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में विजय श्री के साथ बांग्लादेश को आजाद कराकर पाक के 93 हजार सैनिकों को घुटनों के बल भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करवाने वाली देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी को अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दुर्गा की उपमा से सम्मानित किया था। और 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। आपातकाल की वजह से इंदिरा गाँधी को 1977 के लोकसभा चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी। और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी जिसके मुखिया स्वर्गीय मोरारजी देसाई थे। और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री रहते हुये पूरे विश्व में भारत की छवि बनायीं। और विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। अटल जी 1977 से 1979 तक देश के विदेश मंत्री रहे। 1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन अटल जी 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया। 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गयी। लेकिन इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा। अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की। लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गयी जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली। कारगिल युध्द की विजयश्री का पूरा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को दिया गया। कारगिल युध्द में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनायी। और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन पाँच वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। और राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू की। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। 2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा। लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। लेकिन वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनायी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ्य रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया। अटल जी को देश-विदेश में अब तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया। भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। अटल जी भारत देश के लोगों के जीवन में अपनी महान उपलब्धियों और अपने विचारों का ऐसा उजाला डाल कर गए हैं जो कि देश के नौजवानों को सदां राह दिखाते रहेंगे। अटल जी सदा मुस्कराहट का परिधान पहने रहते थे उनकी मुस्कुराहट उनकी आत्मा के गुणों को दर्शाती थी उनकी आत्मा सच में एक पवित्र आत्मा थी जिसे दैवीय शक्ति प्राप्त थी। अटल जी की ईमानदारी, शालीनता, सादगी और सौम्यता हर किसी का दिल जीत लेती थी। उनके जीवन दर्शन और कविताओ ने भारत के युवाओं को एक नई प्रेरणा दी। करोङो लोगों के वह रोल मॉडल हैं। भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में देश के आर्थिक विकास और गरीब वर्ग के सामाजिक कल्याण के लिए उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह को राष्ट्र हमेशा याद करेगा। उनकी अटल आवाज और उनके किये महान कार्य हमेशा राष्ट्र के बीच अमर रहेंगे। Read more » 100th birth anniversary of great man Atal Bihari Vajpayee अटल जी युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती
राजनीति विश्ववार्ता ड्रैगन के इरादों पर पैनी नजर जरूरी है। December 26, 2024 / December 26, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आज पूरी दुनिया रोबोटिक्स, ड्रोन और एआई के क्षेत्र में तेजी से प्रवेश कर रही है। यहां यदि हम ड्रोन्स के उपयोगों और प्रयोगों की बात करें तो इनमें क्रमशः जलवायु परिवर्तन की निगरानी, माल परिवहन, खोज और बचाव कार्यों में सहायता करना और कृषि आदि शामिल हैं। कोरोना काल में चिकित्सा […] Read more » It is important to keep a close eye on the dragon's intentions. ड्रैगन के इरादों पर पैनी नजर जरूरी है
राजनीति मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद वाले बयान पर संतों की नसीहत December 26, 2024 / December 26, 2024 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे ’’राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं का नेता बन सकते हैं. ये स्वीकार्य नहीं है।’’ ये बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने ऐसे समय […] Read more » मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद वाले बयान
राजनीति क्या कांग्रेस का ‘वामपंथीकरण’ ही राहुल गांधी की नई राजनीति होगी? December 26, 2024 / December 26, 2024 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि यदि उनकी सरकार आई तो सिर्फ जाति जनगणना ही नहीं बल्कि आर्थिक सर्वेक्षण भी होगा। दरअसल, इसके जरिए वह पता लगाएंगे कि किसके पास कितनी संपत्ति है। फिर नई राजनीति शुरू होगी। इससे साफ […] Read more » Will 'Leftisation' of Congress be Rahul Gandhi's new politics? कांग्रेस का 'वामपंथीकरण'
राजनीति विधि-कानून कर्मचारियों की कमी से जूझती शासन व्यवस्था December 26, 2024 / December 26, 2024 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment – प्रियंका सौरभ भारतीय शासन व्यवस्था को अक्सर ‘लोगों की कमी’ लेकिन ‘प्रक्रियाओं की कमी’ के रूप में वर्णित किया जाता है, जो कि प्रभावी शासन के लिए उपलब्ध बड़ी प्रशासनिक मशीनरी और सीमित मानव संसाधनों के बीच असंतुलन को दर्शाता है। जबकि नौकरशाही प्रक्रियाएँ अच्छी तरह से स्थापित हैं, कर्मियों की कमी कुशल कार्यान्वयन […] Read more » Government system facing shortage of employees कर्मचारियों की कमी से जूझती शासन व्यवस्था
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार अटलजी का सुशासन स्वराज और सुराज का प्रतीक December 24, 2024 / December 24, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में शासन करने पर नहीं, अपितु सुशासन पर अधिक से अधिक बल दिया। वे स्वराज के साथ-साथ सुराज में विश्वास रखते थे। वह कहते थे कि देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आंखों में एक महान भारत […] Read more » Atal Bihari Vajpayee अटलजी
राजनीति क्या मस्जिदों के नीचे मन्दिर ढूंढना गलत है December 24, 2024 / December 24, 2024 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी आजकल संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान चर्चा में बना हुआ है । जून, 2022 में संघ प्रमुख ने मंदिर-मस्जिद विवाद से बचने की नसीहत देते हुए कहा था कि हर दिन एक नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए । हम झगड़े क्यों बढ़ाएं, हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग क्यों ढूंढना चाहिए । उस समय वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का मुद्दा काफी गरमाया हुआ था और ताजमहल को मंदिर बताते हुए उसके भी सर्वे मांग हो रही थी । अब एक बार फिर मोहन भागवत ने इस मुद्दे पर अपना बयान दिया है जिसकी सब तरफ चर्चा हो रही है । पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान भागवत ने ‘विश्वगुरु भारत‘ विषय पर बोलते हुए कहा कि राम मंदिर बनने के बाद कुछ लोगों को लगता है कि बाकी जगहों पर भी इसी तरह का मुद्दा उठाकर वो हिन्दुओं के नेता बन जायेंगे । उन्होंने कहा कि राम मंदिर आस्था का विषय था और हिन्दुओं को लगता था कि इसका निर्माण होना चाहिए । उन्होंने कहा कि नफरत और दुश्मनी के कारण कुछ नए स्थलों के बारे में मुद्दे उठाना अस्वीकार्य है । उन्होंने कहा कि भारत को सभी धर्मों और विचारधाराओं के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए । उनका कहना है कि उग्रवाद, आक्रामकता और दूसरों के देवताओं का अपमान करना हमारी संस्कृति नहीं है । यहां कोई बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक नहीं है, हम सब एक है । इससे मिलता-जुलता उनका यह बयान भी है कि भारत में सभी का डीएनए एक है । रविवार को उन्होंने एक बयान और दिया है जिसमें कहा है कि धर्म को समझना कठिन है । धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म की समझ की कमी के कारण हुए है इसलिए धर्म की सही शिक्षा सभी को मिलनी चाहिए । भागवत को यह बयान इसलिए देने पड़ रहे हैं क्योंकि देश में अलग-अलग जगहों पर नए-नए मंदिर-मस्जिद विवाद सामने आ रहे हैं । उनके बयानों के पीछे उनकी यह अच्छी मंशा हो सकती है कि इन विवादों के कारण देश का माहौल खराब न हो । आपको याद होगा कि अयोध्या में जब राम-मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चल रहा था तब हिन्दूवादी नेताओं की यही मांग थी कि अयोध्या, काशी और मथुरा के विवादित धर्मस्थलों को अगर मुस्लिम पक्ष उन्हें सौंप देता है तो हिन्दू पक्ष अन्य जगहों पर मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिदों पर अपना दावा छोड़ देगा । तब मुस्लिम पक्ष जिद्द पर अड़ा रहा और एक कदम भी पीछे नहीं हटा । यह जानते हुए भी रामजन्मभूमि हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और उनकी गहरी आस्थी उससे जुड़ी हुई है, मुस्लिम इसको सौंपने को तैयार नहीं हुए । माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ है और काशी-मथुरा का मामला अदालत में लंबित है । मैंने इस सम्बन्ध में कई लेख लिखे थे और कई लोगों का भी मानना था कि अगर मुस्लिम पक्ष हिंदुओं की भावनाओं को देखते हुए रामजन्मभूमि छोड़ देता है तो ये हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के लिए बहुत अच्छा होगा । हिन्दुओं ने संविधान के अनुसार अदालत जाकर अपना हक हासिल किया है न कि मुस्लिमों ने हिन्दुओं की आस्था का सम्मान किया है । अब हिन्दुओं को अदालत का रास्ता दिख गया है और वो अपने मंदिरों को संविधान के अनुसार अदालत के द्वारा हासिल करना चाहते हैं । जब पूरा विपक्ष संविधान को सिर पर उठा कर घूम रहा है और संविधान की रक्षा की बात कर रहा है तो अदालत में जाकर अपना हक हासिल करना कैसे गलत कहा जा सकता है। संविधान के अनुसार हो रहे काम से भागवत क्यों परेशान हो रहे हैं । जब राम जन्मभूमि के लिए मुस्लिम अड़े हुए थे तब ही यह कहा गया था कि अगर मुस्लिम पक्ष बातचीत से मामला हल कर लेता है तो धार्मिक सौहार्द के लिए बहुत अच्छा होगा । जिसका डर था, आज वही हो रहा है, हिन्दू समाज अपने मंदिरों की मांग कर रहा है । इसके लिए हिन्दू समाज किसी हिंसा का सहारा नहीं ले रहा है, वो अपने संवैधानिक हक का इस्तेमाल कर रहा है । मोहन भागवत पहले भी ऐसे बयान दे चुके हैं जिसे भाजपा और संघ के खिलाफ माना जा सकता है, ये बयान तो हिंदुओं के खिलाफ दिखाई दे रहा है। आजकल जो मस्जिदों के नीचे हिन्दू मंदिर ढूंढे जा रहे हैं, उन्हें भाजपा, संघ या कोई हिन्दू संगठन नहीं ढूंढ रहा है बल्कि हिन्दू समाज ढूंढ रहा है । इस मुहिम का मजाक उड़ाया जा रहा है कि हिंदुओं को कोई और काम नहीं बचा है । वो सारे काम छोड़कर सिर्फ मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढ रहे हैं जबकि यह सच्चाई नहीं है । वास्तव में मस्जिदों के नीचे मंदिर कोई नहीं ढूंढ रहा है बल्कि मस्जिदों के नीचे मन्दिर निकल रहे हैं। जहां भी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाये जाने की बात की जा रही है, वो सभी जगहें प्राचीन मंदिरों के स्थल हैं और उनके बारे में हिन्दु धर्म की मान्यताएं भी हैं कि वहां प्राचीन मंदिर थे । इसके अलावा हिन्दू समाज मस्जिदों को तोड़कर मंदिर बनाने की बात नहीं कर रहा है बल्कि मस्जिदों के सर्वे के लिए अदालतों के दरवाजे पर खड़ा है । हिन्दू समाज किसी किस्म की जबरदस्ती नहीं कर रहा है बल्कि वो चाहता है कि संविधान के अनुसार अगर वहां मंदिर है तो वो उसे दिया जाए । केन्द्र की नरसिम्हा राव की सरकार ने 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पास किया था, जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 को किसी धर्मस्थल की जो स्थिति थी, वही स्थिति मान्य होगी । इस एक्ट के अनुसार इस मामले पर अदालत भी नहीं जाया जा सकता था । हिन्दू समाज यह कह रहा है कि 1947 को जो स्थिति थी, वो भी पता होनी चाहिए । अगर यह साबित हो जाता है कि उस जगह मस्जिद की जगह मंदिर है और जो मस्जिद है वो मंदिर की जगह बनाई गई है तो वो जगह हिन्दुओं को मिलनी चाहिए । इसी आधार पर अदालतें मस्जिदों के सर्वेक्षण के आदेश जारी कर रही हैं ताकि स्थिति का पता लगाया जा सके । ये एक्ट धार्मिक स्थल की वास्तविक स्थिति की जांच करने से नहीं रोकता है इसलिये अदालतें सर्वे के आदेश जारी कर रही हैं। आज हमारा देश आजादी के बाद की गई गलतियों की सजा भुगत रहा है । यह काम आजादी के बाद होना चाहिए था । मुस्लिम आक्रमणकारियों के पास जगह की कमी नहीं थी, वो चाहते तो किसी भी जगह मस्जिदों का निर्माण कर सकते थे लेकिन उन्होंने जानबूझकर मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से उसी स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करवाया । इन ढांचों को देखकर कोई भी कह सकता है कि यह पुराने मंदिरों को तोड़कर बनाए गए हैं । ऐसा इसलिए किया गया ताकि हिन्दू समाज इन्हें देखकर अपमानित हो और वो याद करे कि कैसे उसके आस्था स्थलों को तोड़कर अपने बाहुबल से इस्लामिक शासकों ने मस्जिदों का निर्माण किया होगा । इस्लाम कहता है कि किसी दूसरे के धार्मिक स्थल को तोड़कर उस पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती और अगर ऐसा किया जाता है तो उस मस्जिद में की गई नमाज अल्लाह को कबूल नहीं होगी । इस देश का मुस्लिम समाज कहीं और से नहीं आया है, इसी देश का है । आपसी भाईचारा एकतरफा नहीं हो सकता, इसके लिए दोनों समुदायों को कोशिश करनी होगी । उत्तर प्रदेश के संभल जिले में जो मंदिर मिल रहे हैं वो तो चालीस साल पहले ही कब्जा किये गये हैं । यह ठीक है कि दंगे के कारण हिन्दू समाज ने वहां से पलायन कर लिया लेकिन मंदिर तो सार्वजनिक संपत्ति होते हैं तो वहां कैसे कब्जा हो गया । जिन्होंने पलायन किया होगा, उनमें से कुछ लोगों ने वैसे ही घर छोड़ दिया होगा और कुछ ने बेच दिया होगा लेकिन मंदिर बेचा नहीं जा सकता तो इन मंदिरों और उनकी भूमि को कैसे अपने घरों में शामिल कर लिया गया । देश के हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के लिए जरूरी है कि जो गलतियां हुई, उन्हें स्वीकार किया जाये । जिन गलतियों को सुधारा जा सकता है, उन्हें सुधारा जाए । जहां कुछ नहीं हो सकता तो वहां कम से कम गलती को माना जाए । भागवत के कहने से कुछ होने वाला नहीं है । उन्हें राजनीतिक बयान देने का हक हासिल नहीं है । इसके लिए संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा है और उसके नेता प्रधानमंत्री मोदी हैं । ऐसे बयान देकर भागवत अपना मान-सम्मान को घटा रहे हैं । वैसे भी हिन्दू समाज अपनी लड़ाई लड़ रहा है, वो किसी दूसरे की सलाह पर चलने वाला नहीं है । मंदिरों की लड़ाई किसी राजनीतिक दल, संगठन और नेता की नहीं है, अब ये जनता की लड़ाई बन चुकी है । ये आपसी बातचीत से ही खत्म हो सकती है, किसी की सलाह पर खत्म नहीं होगी । राजेश कुमार पासी Read more » Is it wrong to locate temples beneath mosques\ मस्जिदों के नीचे मन्दिर
राजनीति स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या, सावरकर और गांधी December 24, 2024 / December 24, 2024 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment ( 23 दिसंबर को बलिदान दिवस पर विशेष ) सफल वक्ता वही होता है जो श्रोताओं को अपनी बात से सहमत और संतुष्ट तो कर ही ले साथ ही उसकी भाषण कला ऐसी हो जिससे लोग वही कुछ करने के लिए प्रेरित और आंदोलित भी हो उठें जिसे वह वक्ता उनसे कराना चाहता है। भाषण […] Read more » Murder of Swami Shraddhanand Ji Savarkar and Gandhi सावरकर और गांधी स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या