बच्चों का पन्ना समाज बाल विवाह: बचपन के सपनों पर सामाजिक पहरा April 30, 2025 / April 30, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा भारत में बाल विवाह आज भी एक बड़ी सामाजिक चुनौती बनी हुई है। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि लैंगिक असमानता, गरीबी, सामाजिक दबाव और असुरक्षा से जुड़ी एक गहरी समस्या भी है। विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाहों पर पूर्णतया अंकुश नहीं लग सका […] Read more » बाल विवाह
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल हरियाणा के एक गांव ने बेटियों-बहुओं को घूंघट से दी आज़ादी April 28, 2025 / April 28, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment ढाणी बीरन की चौपाल से उठी नई सुबह: “परंपरा तब तक सुंदर है, जब तक वह पंख न काटे। घूंघट हटा, तो सपनों ने उड़ान भरी।” “जहां घूंघट गिरा, वहां सिर ऊंचे हुए। ढाणी बीरन से उठी हौसलों की एक नई फसल।” हरियाणा के ढाणी बीरन गांव ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए बहू-बेटियों को […] Read more » ढाणी बीरन
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल ‘अक्षय’ संकल्प लें बाल विवाह के खिलाफ April 26, 2025 / April 26, 2025 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमारसमय बदल रहा है लेकिन हमारी सोच आज भी वही पुरातन है. आधुनिक बनने का भले ही ढोंग करें लेकिन भीतर से हम रूढि़वादी हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो भारतीय समाज से बाल विवाह जैसी कुप्रथा कब की खत्म हो चुकी होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. अनेक प्रयासों के बाद भी हर […] Read more » Take 'Akshay' pledge against child marriage
लेख समाज नैतिक पतन की ओर बढ़ रही लिव इन की बुराई को रोकना होगा April 23, 2025 / April 23, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment लिव इन में रह रही युवती के अपहरण का प्रयास , महिला पर चढ़ाई गाड़ी ।यह खबर आज के समाचार पत्रों में प्रकाशित है । शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जिस दिन एक या एक से अधिक समाचार इस तरह की घटनाओं को लेकर प्रकाशित न होते हों । भारतीय समाज में इस […] Read more » defects of live in relation The evil of live-in relationship which is leading towards moral degradation must be stopped नैतिक पतन की ओर बढ़ रही लिव इन की बुराई को रोकना होगा
मीडिया लेख समाज अजमेर से इंस्टाग्राम तक: बेटियों की सुरक्षा पर सवाल April 22, 2025 / April 22, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment शिक्षा या शिकारी जाल? पढ़ी-लिखी लड़कियों को क्यों नहीं सिखा पाए हम सुरक्षित होना? अजमेर की छात्राएं पढ़ी-लिखी थीं, लेकिन वे सामाजिक चुप्पियों और डिजिटल खतरों से अनजान थीं। हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं, सुरक्षा भी सिखाए। और परवरिश सिर्फ आज्ञाकारी बनाने के लिए नहीं, संघर्षशील और सचेत नागरिक बनाने […] Read more » बेटियों की सुरक्षा पर सवाल
लेख समाज वफ़ा के लिए तड़पते मर्द और बेवफ़ाई पर चुप समाज, आखिर क्यों ? April 16, 2025 / April 16, 2025 by पारसमणि अग्रवाल | Leave a Comment वफ़ा के लिए तड़पते मर्द पारसमणि अग्रवाल जब भी कोई रिश्ता टूटता है, समाज बिना सुने, बिना समझे और बिना परखे सीधे लड़के को कठघरे में खड़ा कर देता है। लड़की रोती है, वो मासूम है। लड़का चुप है – वो गुनहगार है। लड़की रिश्ता तोड़े – स्वतंत्रता की मिसाल। लड़का रिश्ता छोड़े – बेवफा। […] Read more » Men yearn for loyalty and society remains silent on infidelity वफ़ा के लिए तड़पते मर्द
लेख समाज भारतीय जनमानस कहां जा रहा है April 10, 2025 / April 10, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा भारत जैसा देश जहां विभीषण और जामवंत जैसे नीतिज्ञ हुए जिनकी परंपरा का निर्वहन करते हुए विदुर से लेकर कौटिल्य तक हमारे आदर्श हुए,आज उन्हीं मनीषियों के देश का युवा निर्णयहीन सा दिखता है। पंचतंत्र और हितोपदेश पढ़ने वाले देश का युवा आज तर्कशीलता और वाक्पटुता का आचरण तक नहीं जानता। ध्रुव, प्रह्लाद, नचिकेता और आदिशङ्कर के देश में जन्मा युवा आज मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। जिस देश में ‘यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता’ पढ़ाया जाता हो,उस देश में महिला अपराध का वर्ष दर वर्ष बढ़ना एक खतरनाक संकेत है। जिस देश में स्त्री का उदाहरण सीता, सती और सावित्री हों, वहां की नारी दहेज और एल्युमनी का केस करती है । जिस देश में राम,शिव और कृष्ण जैसे पुरुष का उदाहरण हो जिन्होंने स्त्री को सदैव पुरुष के समतुल्य माना, उस देश में पुरुष का स्त्री को सिर्फ घर और भोग तक सीमित रखना अजीब लगता है । रामायण और गीता पढ़ने वाले देश में अवसादग्रस्त युवा, योद्धाओं के वाङ्मय पढ़कर जवान हुआ युवा अपने अंतर्द्वंद्व से हार जा रहा है। भारत में बीते दशकों में हुई संचार क्रांति ने भारत के संयुक्त परिवार को एकल परिवार और परिवार नियोजन से लेकर आईवीएफ तक पहुँचा दिया है। सभी के हाथ का फोन स्मार्ट हो गया और सब भोले बन गए। फोन पतला होकर स्लिम ट्रिम और फिट हो रहा है और युवा बेडौल होते जा रहे हैं। खुद के शरीर में जंक फूड डाल रहे हैं और हर हफ़्ते समय से फोन का जंक क्लियर करते हैं। फैमिली टाइम नगण्य या शून्य हो रहा है और स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है।आज सिर ऊपर करके बात किए घंटों बीत जाते हैं। गर्दन के दोनों किनारे की मसल्स पुश करना अच्छा लगता है क्योंकि युवा बेवज़ह के तनाव में हैं। चाय या सिगरेट पीते वक्त यहां तक कि अब लोग टायलेट में भी अपने फोन की स्क्रीन स्क्रॉल कर रहे हैं। यहां सब कुछ उपलब्ध है जो लोग देखना चाहते हैं, अश्लील साहित्य, पोर्न, क्राइम रिलेटेड, रिलेशनशिप, मोटिवेशनल हर तरह के वीडियोज और उनकी रील्स। एक डेटा के अनुसार औसत भारतीय दिन के पांच घंटे रील्स देख रहा है और पंद्रह सेकेंड में यह तय कर ले रहा है कि यह रील देखनी है या नहीं। फिर उसे स्क्रॉल करके आगे बढ़ जा रहा है। लेकिन यही भारतीय एक निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखता। वह कम से कम बीस लोगों से उसका अच्छा और बुरा पूछता है। आज हम आप या अन्य कोई भी हो, देर रात जागते हैं, कारण बढ़ती अनिद्रा जिसका कारण भी हाथ का फोन है। इस फोन ने लोगों मौन कर दिया है। हम घर आकर किसी से बात तक नहीं करते न कोई घरवाला बात करना चाहता है। किसी को यह चिंता नहीं कि कैसे हैं। आज ऑफिस में या कालेज या अन्य जहां भी हैं वहां क्या हुआ ? साथी आपके साथ कैसे हैं? किसी को इन सबसे कोई मतलब नहीं। सबको महीने की पगार या मार्कशीट से मतलब है। सभी अपने-अपने फोन में व्यस्त हैं। लोग इसी अकेलेपन से जूझते हुए अपने फोन को अपना साथी बना लेते हैं, मजबूरन। लेकिन लोग किन चिंताओं की चिता पे लेट रहे हैं, किसी को कोई परवाह नहीं। फिर अचानक हुई आत्महत्या के बाद लोग कहते हैं, सब कुछ अच्छा था। रोज हंसता हुआ आता-जाता था।ऐसा अचानक कैसे हुआ? कुछ भी अचानक से नहीं हुआ है। वह व्यक्ति अपने मन की बात कहना चाहता था जिसे सुनने वाला कोई नहीं था। अगर वो बात समय पर किसी से कह देता तो आज उसका पंचनामा न हो रहा होता। वह ऐसी बात थी जिसे सबसे कहना उचित नहीं समझता था और शायद सामाजिक बदनामी से भी डरता था। किसी को दिया उधार,कोई प्रेम प्रसंग, किसी विषय में फेल होने का अपराधबोध ऐसे तमाम कारण होते हैं जिसे हम सबसे साझा नहीं कर सकते और यही हमारी मानसिक अस्वस्थता का रुप लेते हैं। आज मानसिक तनाव से हर पांचवां भारतीय ग्रसित है। हर कोई पीड़ित होने के बाद आत्महत्या नहीं करता हैं। कुछ जगह संबंध-विच्छेद और अपराध के भी मामले देखे जाते हैं। विदेशों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्पेशल कोर्स,दवाएं और कुछ विशेष अस्पतालों का निर्माण किया गया है जहां पीड़ित व्यक्ति को परिवार जैसा देखभाल देने की तैयारी की गई है जबकि भारत में लोगों को मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना ऐसा लगता है कि पागलों की बात कर रहा है। कुछ बुद्धिमान मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दे देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य मनोचिकित्सकों के लिए ऐसा है,जैसे फल की दुकान में सब्जी बेची जाए। राजनीति, तंत्र और व्यापार से इतर एक सत्य यह है कि अगले कुछ वर्षों बाद भारत में मानसिक स्वास्थ्य का व्यापार हजारों करोड़ का होने वाला है। क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं ? शिवानंद मिश्रा Read more »
शख्सियत समाज साक्षात्कार समतावादी समाज के पक्षधर थे महात्मा ज्योतिबा फुले April 10, 2025 / April 10, 2025 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती (11 अप्रेल) पर विशेषडा. वीरेन्द्र भाटी मंगल महात्मा ज्योतिबा फुले भारत के महान व्यक्तित्वों में से एक थे। ये एक समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, विचारक, क्रान्तिकारी के साथ साथ विविध प्रतिभाओं के धनी थे। इनको महात्मा फुले एवं जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने महाराष्ट्र मे सितम्बर […] Read more » ज्योतिबा फुले महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती महात्मा ज्योतिबा फूले जयंती (11 अप्रेल)
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं? April 9, 2025 / April 9, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment “धोखे की खबरें बिकती हैं, लेकिन विश्वास की कहानियाँ दबा दी जाती हैं — क्या हम संतुलन भूल गए हैं?” मीडिया में स्त्रियों की छवि और उससे जुड़ी सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने आज गंभीर सवाल पैदा कर दिये है। कुछ घटनाओं में स्त्रियों द्वारा किए गए अपराधों को मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है, जिससे पूरे स्त्री वर्ग […] Read more » media women and sensationalism women and sensationalism: Are we doing justice? मीडिया स्त्री और सनसनी स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं
समाज सार्थक पहल बोहरा ..प्रगतिशील मुस्लिम समाज April 2, 2025 / April 2, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment विवेक रंजन श्रीवास्तव बोहरा मुस्लिम संस्कृति एक समृद्ध और अनूठी परंपरा है, जो इस्लाम के शिया समुदाय की एक उपशाखा, दाउदी बोहरा समुदाय से जुड़ी हुई है। यह समुदाय मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, यमन और पूर्वी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है, और इसकी उत्पत्ति 11वीं शताब्दी में मिस्र के फातिमिद खलीफा शासन से मानी जाती है। बोहरा समुदाय अपनी विशिष्ट धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक संगठन, व्यापारिक कुशलता और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। बोहरा मुस्लिम इस्लाम के इस्माइली शिया संप्रदाय का हिस्सा हैं जो इमामत अर्थात आध्यात्मिक उन्नयन की अवधारणा पर आधारित है। दाउदी बोहरा समुदाय अपने वर्तमान आध्यात्मिक नेता, दाई-अल-मुतलक जिन्हें सैयदना कहते हैं, को इमाम का प्रतिनिधि मानता है, जो समुदाय को धार्मिक और सामाजिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। उनकी धार्मिक प्रथाओं में नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात जैसे इस्लामी सिद्धांतों का पालन शामिल है लेकिन इनका तरीका और व्याख्या इस्माइली परंपरा से प्रभावित है।मोहर्रम का महीना बोहरा समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मातम और मजलिस मतलब सभाएँ आयोजित की जाती हैं। उनकी मस्जिदें, जिन्हें “जमातखाना” भी कहा जाता है, पूजा और सामुदायिक एकत्रीकरण के केंद्र हैं। बोहरा समुदाय की सामाजिक संरचना अत्यधिक संगठित और केंद्रीकृत है। दाई-अल-मुतलक के नेतृत्व में समुदाय के सभी धार्मिक और सामाजिक कार्य संचालित होते हैं। यह समुदाय अपनी एकता और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है। बोहरा लोग अपने समुदाय के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, जैसे कि विवाह, तलाक और अन्य सामाजिक रीति-रिवाजों में दाई की अनुमति लेना।शिक्षा और परोपकार पर भी विशेष जोर दिया जाता है। समुदाय के भीतर स्कूल, अस्पताल और कल्याणकारी योजनाएँ चलाई जाती हैं, जो सभी सदस्यों के लिए सुलभ होती हैं। बोहरा संस्कृति में भारतीय और इस्लामी प्रभावों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। उनके पारंपरिक परिधान इसकी एक प्रमुख पहचान हैं। पुरुष “सदरी” और “टोपी” पहनते हैं, जबकि महिलाएँ “रिदा” नामक एक रंगीन दो-टुकड़े वाला परिधान पहनती हैं, जो हिजाब के साथ स्टाइलिश और व्यावहारिक दोनों होता है।भोजन में भी बोहरा समुदाय की अपनी विशिष्टता है। “थाल” उनकी खानपान की परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें लोग एक साथ बड़े थाल में बैठकर खाना खाते हैं, जो समुदाय की एकता और भाईचारे को दर्शाता है। बोहरा व्यंजनों में गुजराती, मुगलई और अरबी स्वादों का सम्मिलित स्वाद होता है, जैसे कि दाल-चावल बिरयानी और मिठाइयाँ जैसे मालपुआ। बोहरा समुदाय ऐतिहासिक रूप से व्यापार और उद्यमशीलता के लिए प्रसिद्ध रहा है। गुजरात में उनकी जड़ों के कारण, वे मध्यकाल से ही व्यापारिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। आज भी बोहरा लोग कपड़ा, हार्डवेयर, गहने और अन्य व्यवसायों में प्रमुखता से कार्यरत हैं। उनकी ईमानदारी और मेहनत ने उन्हें वैश्विक व्यापारिक समुदाय में सम्मान दिलाया है। बोहरा समुदाय की अपनी एक मिश्रित भाषा है, जिसे “लिसान-उद-दावत” कहा जाता है। यह गुजराती, उर्दू और अरबी का संयोजन है, और इसमें धार्मिक ग्रंथों और प्रथाओं से जुड़े शब्द शामिल हैं। उनकी लिखित परंपरा में इस्माइली दर्शन और फातिमिद इतिहास से संबंधित कई ग्रंथ शामिल हैं, जो अरबी और लिसान-उद-दावत में लिखे गए हैं। आधुनिक युग में बोहरा समुदाय ने तकनीक और शिक्षा को अपनाया है, लेकिन अपनी परंपराओं को भी संरक्षित रखा है। दाई के मार्गदर्शन में समुदाय ने वैश्वीकरण के साथ कदम मिलाया है, और बोहरा लोग अब दुनिया भर में फैले हुए हैं, विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, यूके और मध्य पूर्व में। फिर भी, उनकी पहचान और धार्मिक निष्ठा में कोई कमी नहीं आई है। बोहरा मुस्लिम संस्कृति एक जीवंत और गतिशील परंपरा है, जो धार्मिक आस्था, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह समुदाय न केवल अपनी धार्मिक प्रथाओं के लिए, बल्कि अपनी व्यापारिक कुशलता, सामाजिक संगठन और जीवनशैली के लिए भी अद्वितीय है। यह एक ऐसा समुदाय है जो अतीत को संजोते हुए भविष्य की ओर अग्रसर है। दुनियां में लगभग मात्र दस लाख की संख्या में बोहरा समाज के मुस्लिम हैं पर वे सम्पन्न, प्रगतिशील तथा मिलनसार हैं। विवेक रंजन श्रीवास्तव Read more » Bohra..progressive Muslim society
लेख समाज स्वास्थ्य-योग ‘ऑटिज्म’ से बच्चों को बचाने की गंभीर चुनौती? April 2, 2025 / April 2, 2025 by रमेश ठाकुर | Leave a Comment डा0 रमेश ठाकुर ‘ऑटिज्म बीमारी’ को हल्के में लेने की भूल कतई न की जाए, ये नवजात बच्चों के संग जन्म से ही उत्पन्न होती है। ऑटिज्म से बचा कैसे जाए, जिसके संबंध में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रैल को पूरे संसार में ‘विश्व ऑटिज्म दिवस’ जागरूकता के मकसद से मनाया जाता है। मौजूदा वक्त में […] Read more » A serious challenge to save children from 'autism'?
राजनीति समाज छात्रों में आत्महत्याएं 4 फीसदी की खतरनाक वार्षिक दर से बढ़ीं April 2, 2025 / April 2, 2025 by पुनीत उपाध्याय | Leave a Comment सर्वोच्च न्यायालय ने जताई चिंता, राष्ट्रीय टास्क फोर्स के गठन का निर्देशपुनीत उपाध्याय पिछले दो दशकों में छात्र आत्महत्याएं 4 फीसदी की खतरनाक वार्षिक दर से बढ़ी हैं जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताई है। अमित कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय […] Read more » Student suicides rise at an alarming annual rate of 4%