लेख समाज फेसबुक या फूहड़बुक?: डिजिटल अश्लीलता का बढ़ता आतंक और समाज की गिरती संवेदनशीलता May 27, 2025 / May 27, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment लेखिका: प्रियंका सौरभ जब सोशल मीडिया हमारे जीवन में आया, तो उम्मीद थी कि यह विचारों को जोड़ने, संवाद को मज़बूत करने और जन-जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा। लेकिन आज, 2025 में, विशेषकर फेसबुक जैसे मंच पर जिस तरह से अश्लीलता और फूहड़ता का आतंक फैलता जा रहा है, वह न केवल चिंताजनक […] Read more » Facebook or Fuchbook? The growing terror of digital pornography and the falling sensitivity of society फेसबुक या फूहड़बुक
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उच्छृंखलता मंजूर नहीं May 26, 2025 / May 26, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment आज का युग सोशल नेटवर्किंग साइट्स का युग है। या यूं कहें कि आज विज्ञान और तकनीक का युग है।सच तो यह है कि हम एआइ चैटबाट के युग में सांस ले रहे हैं। हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी सबको प्रदान की गई है, लेकिन पिछले कुछ समय से देश और समाज के कुछेक […] Read more » anarchy is not acceptable in the name of freedom of expression In the name of freedom of expression
शख्सियत समाज साक्षात्कार सुमित्रानंदन पंत : प्रकृति का सुकुमार कवि, छायावादी युग का स्तंभ May 22, 2025 / May 22, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment महान साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत की जयंती 20 मई पर विशेष… साहित्य सृजन से लेकर स्वाधीनता आंदोलन के सेनानी, मानवतावादी दृष्टिकोण लोगों के लिए है प्रेरणा पुंज -प्रदीप कुमार वर्मा सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के श्रेष्ठ कवि थे। सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के उपासक और प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करने वाले कवि के रूप में भी जाना जाता है। पंत को ऐसी कविताएँ लिखने की प्रेरणा उनकी अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड से ही मिली। जन्म के छह-सात घंटे बाद ही माँ से बिछुड़ जाने के दुख ने पंत को प्रकृति के करीब ला दिया था। पंत ने सात वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में प्रकृति का सौन्दर्य चित्रण के साथ-साथ नारी चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता हैं। यही वजह है कि सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में भी जाना जाता है। यही नहीं पंत जी का साहित्य सज्जन आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय माना जाता है। सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड राज्य बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। सुमित्रानंदन पंत के पिता कानाम गंगादत्त पंत और माता का नाम सरस्वती देवी था। यह विधाता की करनी ही थी कि पंत के जन्म के कुछ घंटो बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनका लालन-पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम गुसाईं दत्त था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही शुरू की। लेकिन हाई स्कूल के समय रामकथा के किरदार लक्ष्मण के व्यक्तित्व एवं लक्ष्मण के चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। हाई स्कूल के बाद वह वाराणसी आ गए और वहां के जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सुमित्रानंदन पंत वर्ष 1918 में इलाहबाद चले गए और ‘म्योर कॉलेज’ में बाहवीं कक्षा में दाखिला लिया। उस समय पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। इलाहाबाद में पंत गांधी जी के संपर्क में आए। वर्ष 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने म्योर कॉलेज को छोड़ दिया और आंदोलन में सक्रिय हो गए। इसके बाद वह घर पर रहकर स्वयंपाठी के रूप में हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने लगे। इसके साथ ही सुमित्रानंदन पंत अपने जीवन में कई दार्शनिकों-चिंतकों के संपर्क में आए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और श्रीअरविंद के प्रति उनकी अगाध आस्था थी। वह अपने समकालीन कवियों सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और हरिवंशराय बच्चन से भी प्रभावित हुए। पंत जी के साहित्य में प्रकृति का प्रमुखता से चित्रण मिलता है। इस संदर्भ में पता चलता है कि उनकी मां के स्वर्गवास के बाद प्रकृति की रमणीयता ने पंत जी के जीवन में माँ की कमी को न केवल पूरा किया, बल्कि अपनी ममता भरी छाँह में पंत जी के व्यक्तित्व का विकास किया। इसी कारण सुमित्रानंदन पंत जीवन-भर प्रकृति के विविध रूपों को प्रकृति के अनेक आयामों को अपनी कविताओं में उतारते रहे। यहां यह भी बताना उचित रहेगा की सत्य, शांति, अहिंसा, दया, क्षमा और करुणा जैसे मानवीय गुणों की चर्चा बौद्ध धर्म-दर्शन में प्रमुख रूप से होती है। इन मानवीय गुणों को पंत जी की कविताओं में भी देखा जा सकता है। प्रकृति के प्रति प्रेम और मानवीय गुणों के प्रति झुकाव के चलते उनका लेखन इतना शशक्त और प्रभावशाली हो गया था कि वर्ष 1918 में महज 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी। उनका रचनाकाल वर्ष 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों तक रहा। इस दौरान उनकी काव्य यात्रा के तीन प्रमुख चरण देखने को मिलते हैं। इसमें प्रथम छायावाद, दूसरा प्रगतिवाद और तीसरा श्रीअरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवाद रहा हैं। सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। इस दौरान सुमित्रानंदन पंत द्वारा अनेक कालजयी रचनाओं का सृजन किया गया। इनमें ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि शामिल हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। हिंदी साहित्य की समग्र एवं समर्पित सेवा के लिए उन्हें वर्ष 1961 में पद्मभूषण,वर्ष 1968 में ज्ञानपीठ पुरष्कार के साथ-साथ साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से सम्मानित किया गया। पंत जी के हिंदी साहित्य सृजन की इस लंबी यात्रा में 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत हो गया। छायावादी कवि एवं साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके साहित्य सृजन के दीप संपूर्ण मानवता के पथ को आलोकित कर रहे हैं। जीवन की नश्वरता पर लिखी गई उनकी कविता लहरों का गीत ” चिर जन्म-मरण को हँस हँस कर हम आलिंगन करती पल पल, फिर फिर असीम से उठ उठ कर फिर फिर उसमें हो हो ओझल” आज भी जीवन की नश्वरता और संघर्षों के बाद फिर उठ खड़े होने के जज्बे को मानवता के लिए एक प्रेरणा पुंज के रूप में दिखाई पड़ती है। Read more » sumitranandan pant is the pillar of the shadowy era Sumitranandan Pant: The graceful poet of nature सुमित्रानंदन पंत
लेख समाज भारत में अल्टरनेट एसओजीआई समुदाय और मानसिक स्वास्थ्य May 22, 2025 / May 22, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा भारत में मानसिक स्वास्थ्य आज भी एक उपेक्षित और कलंकित विषय बना हुआ है। आम समाज में भी इसके बारे में खुलकर बात करना दुर्लभ है, लेकिन यह चुप्पी तब और भयावह रूप ले लेती है जब हम उन व्यक्तियों की बात करते हैं जो पारंपरिक यौन और लैंगिक पहचान से अलग हैं जैसे कि ट्रांसजेंडर, गे, लेस्बियन, बाइसेक्शुअल, क्वीर और नॉन-बाइनरी लोग। इन सभी को मिलाकर अल्टरनेट एसओजीआई (सेक्सुअल ओरिएंटेशन एंड जेंडर आइडेंटिटी) समुदाय कहा जाता है। यह समुदाय न केवल सामाजिक अस्वीकार्यता का शिकार है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित भी है। एसओजीआई समुदाय के सदस्य अक्सर बचपन से ही भेदभाव, तिरस्कार और हिंसा का सामना करते हैं. कभी स्कूलों में मजाक बनकर, कभी घर से निकाले जाने पर, तो कभी कार्यस्थलों पर अस्वीकार किए जाने के रूप में। यह बहिष्कार धीरे-धीरे मानसिक पीड़ा, अकेलेपन और आत्म-संदेह को जन्म देता है। कई अध्ययन बताते हैं कि एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लोग डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्महत्या की प्रवृत्ति के शिकार आम लोगों की तुलना में कई गुना अधिक होते हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय के भीतर आत्महत्या का जोखिम बेहद चिंताजनक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 31 प्रतिशत ट्रांसजेंडर लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है। इसके पीछे सामाजिक तिरस्कार, रोजगार का अभाव, हिंसा, और हेल्थकेयर सिस्टम द्वारा उपेक्षा प्रमुख कारण हैं। भारत का स्वास्थ्य ढांचा वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद कमज़ोर है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर औसतन 0.3 मनोचिकित्सक हैं। जब सामान्य नागरिकों तक ही सेवाएं नहीं पहुँच रही हैं, तो एसओजीआई समुदाय की स्थिति और भी बदतर हो जाती है। बहुत से डॉक्टर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एलजीबीटीआईक्यू+ पहचान को ‘बीमारी’ मानते हैं या इसे ‘सुधारने’ की कोशिश करते हैं। इससे व्यक्ति इलाज के बजाय और अधिक मानसिक उत्पीड़न का शिकार होता है। इसके अलावा, एसओजीआई समुदाय को स्वास्थ्य संस्थानों में भेदभाव, उपहास और असंवेदनशील व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग टॉयलेट या वार्ड की व्यवस्था तक नहीं है, जिससे वे स्वास्थ्य सेवाओं से दूर भागने को मजबूर होते हैं। भारत के शहरी इलाकों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में जहां कुछ गैर सरकारी संगठन और काउंसलिंग सेवाएं एलजीबीटीआईक्यू+ फ्रेंडली बन रही हैं, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में स्थिति काफी चिंताजनक है। यहाँ न तो संवेदनशील डॉक्टर हैं और न ही एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लिए कोई विशेष मानसिक स्वास्थ्य नीति या योजना। हाल के वर्षों में भारत में कुछ महत्वपूर्ण कानूनी धारा 377 की समाप्ति, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम आदि जैसे कदम उठाए हैं लेकिन एसओजीआई समुदाय के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सुधारों का अभाव है। एसओजीआई समुदाय के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि डॉक्टरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए ट्रेनिंग अनिवार्य होनी चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाले काउंसलिंग केंद्रों और टोल-फ्री हेल्पलाइनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।स्कूल स्तर से ही यौन विविधता और मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा ताकि अगली पीढ़ी में समावेशी दृष्टिकोण विकसित हो।एलजीबीटीआईक्यू+ संगठनों और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी हो, जिससे स्थानीय स्तर पर सहायता और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें। सरकार को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति पर राज्यवार आंकड़े एकत्र करने चाहिए ताकि नीतियाँ ज़मीनी जरूरतों पर आधारित बन सकें। भारत में एसओजीआई समुदाय का मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर, मगर अदृश्य संकट बना हुआ है। संगठनों का कहना है कि जब तक समाज इस चुप्पी को नहीं तोड़ेगा और सरकार अपने नीतिगत ढांचे में सुधार नहीं लाएगी, तब तक यह समुदाय अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई में अकेला पड़ता रहेगा। मानसिक स्वास्थ्य केवल इलाज की नहीं, बल्कि गरिमा, स्वीकृति और आत्मसम्मान की भी लड़ाई है। Read more » The Alternate SOGI Community and Mental Health in India अल्टरनेट एसओजीआई समुदाय
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म शख्सियत समाज साक्षात्कार तमस से ज्योति की ओर एक सुधारवादी यात्रा May 20, 2025 / May 20, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment राजा राममोहन राय जन्म जयन्ती- 22 मई, 2025– ललित गर्ग यह वह समय था जब हिन्दुस्तान एक तरफ विदेशी दासता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था वहीं दूसरी तरफ रूढ़िवाद, धार्मिक संकीर्णता, सामाजिक कुरीतियों और दमघोंटू प्रथाओं के बोझ तले दबा हुआ था। तभी एक मसीहा, समाज-सुधारक एवं क्रांतिकारी महामानव अवतरित हुआ जिसने तमाम बुराइयों […] Read more » राजा राममोहन राय जन्म जयन्ती
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल गणि राजेन्द्र विजयः दांडी पकडे़ गुजरात के उभरते हुए ‘गांधी’ May 16, 2025 / May 16, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment गणि राजेन्द्र विजयजी के 51वें जन्म दिवस: 19 मई 2025 -ललित गर्ग – प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक अनेकों संत-मनीषियों, धर्मगुरुओं, ऋषियों ने भी अपने मूल्यवान अवदानों से भारत की आध्यात्मिक परम्परा को समृद्ध किया है, इन महापुरुषों ने धर्म के क्षेत्र में अनेक क्रांतिकारी स्वर बुलंद किए। ऐसे ही विलक्षण एवं अलौकिक संतों में […] Read more » गणि राजेन्द्र विजय
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर May 6, 2025 / May 6, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल ‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता और भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है जो विरले ही […] Read more » Timeless creator Rabindranath Tagore कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार रवीन्द्रनाथ टैगोर: रोशनी जिनके साथ चलती थी May 6, 2025 / May 6, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती – 7 मई, 2025 – ललित गर्ग – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांङ्ला’ के रचयिता एवं भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की जन्म जयंती हर साल 7 मई को मनाई जाती है। वे एक महान एवं विश्वविख्यात कवि, लेखक, साहित्यकार, दार्शनिक, […] Read more » रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती - 7 मई
बच्चों का पन्ना समाज बाल विवाह: बचपन के सपनों पर सामाजिक पहरा April 30, 2025 / April 30, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा भारत में बाल विवाह आज भी एक बड़ी सामाजिक चुनौती बनी हुई है। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि लैंगिक असमानता, गरीबी, सामाजिक दबाव और असुरक्षा से जुड़ी एक गहरी समस्या भी है। विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाहों पर पूर्णतया अंकुश नहीं लग सका […] Read more » बाल विवाह
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल हरियाणा के एक गांव ने बेटियों-बहुओं को घूंघट से दी आज़ादी April 28, 2025 / April 28, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment ढाणी बीरन की चौपाल से उठी नई सुबह: “परंपरा तब तक सुंदर है, जब तक वह पंख न काटे। घूंघट हटा, तो सपनों ने उड़ान भरी।” “जहां घूंघट गिरा, वहां सिर ऊंचे हुए। ढाणी बीरन से उठी हौसलों की एक नई फसल।” हरियाणा के ढाणी बीरन गांव ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए बहू-बेटियों को […] Read more » ढाणी बीरन
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल ‘अक्षय’ संकल्प लें बाल विवाह के खिलाफ April 26, 2025 / April 26, 2025 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमारसमय बदल रहा है लेकिन हमारी सोच आज भी वही पुरातन है. आधुनिक बनने का भले ही ढोंग करें लेकिन भीतर से हम रूढि़वादी हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो भारतीय समाज से बाल विवाह जैसी कुप्रथा कब की खत्म हो चुकी होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. अनेक प्रयासों के बाद भी हर […] Read more » Take 'Akshay' pledge against child marriage
लेख समाज नैतिक पतन की ओर बढ़ रही लिव इन की बुराई को रोकना होगा April 23, 2025 / April 23, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment लिव इन में रह रही युवती के अपहरण का प्रयास , महिला पर चढ़ाई गाड़ी ।यह खबर आज के समाचार पत्रों में प्रकाशित है । शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जिस दिन एक या एक से अधिक समाचार इस तरह की घटनाओं को लेकर प्रकाशित न होते हों । भारतीय समाज में इस […] Read more » defects of live in relation The evil of live-in relationship which is leading towards moral degradation must be stopped नैतिक पतन की ओर बढ़ रही लिव इन की बुराई को रोकना होगा