मध्यप्रदेश को स्वर्णिम बनाने का अवसर इतिहास ने शिवराज को दिया है
-संजय द्विवेदी
किसी भी राष्ट्र-राज्य के जीवन में पांच साल की अवधि कुछ नहीं होती। किंतु जो कुछ करना चाहते हैं उनके एक- एक पल का महत्व होता है। मध्यप्रदेश में ऐसी ही जिजीविषा का धनी एक व्यक्ति एक इतिहास रचने जा रहा है। ऐसे में उसके संगठन का उत्साह बहुत स्वाभाविक है। बात मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हो रही है। वे राज्य के ऐसे पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं जो सत्ता में पांच साल पूरे कर एक इतिहास का सृजन कर चुके हैं। मध्यप्रदेश में गैरकांग्रेसी सरकारों का आना बहुत बड़ी बात नहीं रही है किंतु उसका दुखद पक्ष है या तो सरकारें गिर गयीं या मुख्यमंत्री बदल गए। 1967 की संविद सरकार हो, 1977 की जनता सरकार हो या 1990 की भाजपा की सरकार हो। सबके साथ यह हादसा हुआ ही। ऐसे में मध्य प्रदेश भाजपा के लिए प्रसन्नता के दो कारण हैं। एक तो लगातार उसे राज्य में दूसरी पारी खेलने का मौका मिला है तो दूसरी ओर उसके एक मुख्यमंत्री को पांच साल काम करने का मौका मिला। इसलिए यह क्षण उपलब्धि का भी है और संतोष का भी। शायद इसीलिए राज्य भाजपा के नए अध्यक्ष सांसद प्रभात झा ने ‘जनता वंदन-कार्यकर्ता अभिनंदन’ की रचना तैयार की। यह एक ऐसी कल्पना है जो लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करती है। होता यह है सत्ता में आने के बाद सरकारें जनता और कार्यकर्ता दोनों को भूल जाती हैं। ऐसे में यह आयोजन जनता और कार्यकर्ताओं को समर्पित कर भाजपा ने एक सही संदेश देने की कोशिश की है।
आप देखें तो राज्य भाजपा के लिए यह अवसर साधारण नहीं है। लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का मौका और पिछले पांच सालों में तीन मुख्यमंत्री के बनाने और बदलने की पीड़ा से मुक्ति। सही मायने में भाजपा के किसी मुख्यमंत्री को पहली बार मुस्कराने का मौका मिला है। यह भी माना जा रहा है सारा कुछ ठीक रहा तो शिवराज सिंह चौहान ही अगले चुनाव में भी भाजपा का नेतृत्व करेंगें और यह सारी कवायद उसी जनाधार को बचाए, बनाए और तीसरी बार सत्ता हासिल करने की है। इस स्थायित्व को भाजपा सेलीब्रेट करना चाहती है। इसमें दो राय नहीं कि शिवराज सिंह चौहान ने इन पांच सालों में जो प्रयास किए वे अब दिखने लगे हैं। विकास दिखने लगा है, लोग इसे महसूस करने लगे हैं। सबसे बड़ी बात है कि नेतृत्व की नीयत साफ है। शिवराज अपने देशज अंदाज से यह महसूस करवा देते हैं कि वे जो कह रहे हैं दिल से कह रहे हैं। राज्य के निर्माण और स्वर्णिम मध्यप्रदेश या आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश जैसे नारे जब उनकी जबान से निकलते हैं तो वे विश्वसनीय लगते हैं। उनकी आवाज रूह से निकलती हुयी लगती है,वह नकली आवाज नहीं लगती। जनता के सामने वे एक ऐसे संचारकर्ता की तरह नजर आते हैं, जिसने लोगों की नब्ज पकड़ ली है। वे सपने दिखाते ही नहीं, उसे पूरा करने में लोगों की मदद मांगते हैं। वे सब कुछ ठीक करने का दावा नहीं करते और जनता के सहयोग से आगे बढ़ने की बात कहते हैं। जनसहभागिता का यह सूत्र उन्हें उंचाई दे जाता है। वे इसीलिए वे जिस तरह सामाजिक सुरक्षा, स्त्री के प्रश्नों को संबोधित कर रहे हैं उनकी एक अलग और खास जगह खुद बन जाती है। जिस दौर में रक्त से जुड़े रिश्ते भी बिगड़ रहे हों ऐसे कठिन समय में एक राज्य के मुखिया का खुद को तमाम लड़कियों के मामा के रूप में खुद को स्थापित करना बहुत कुछ कह देता है।
शिवराज सिंह चौहान, राज्य भाजपा के पास एक आम कार्यकर्ता का प्रतीक भी हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है कि जब वे विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के नाते इस महापरिवार में आए और अपनी लगातार मेहनत, श्रेष्ठ संवादशैली और संगठन कौशल से मुख्यमंत्री का पद भी प्राप्त किया। अपनी भाव-भंगिमाओं,प्रस्तुति और वाणी से वे हमेशा यह अहसास कराते हैं कि वे आज भी दल के साधारण कार्यकर्ता ही हैं। कार्यकर्ता भाव जीवित रहने के कारण वे लोगों में भी लोकप्रिय हैं और जनता के बीच नागरिक भाव जगाने के प्रयासों में लगे हैं। वे जनमर्म को समझकर बोलते हैं और नागरिक को वोट की तरह संबोधित नहीं करते।
शिवराज सिंह जानते हैं वे एक ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं जो विकास के सवाल पर काफी पीछे है। किंतु इसका आकार-प्रकार और चुनौतियां बहुत विकराल हैं। इसलिए वे राज्य के सामाजिक प्रश्नों को संबोधित करते हैं। लाड़ली लक्ष्मी, जननी सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण ऐसे प्रतीकात्मक कदम है जिसका असर जरूर दिखने लगा है। इसी तरह राज्य में कार्यसंस्कृति विकसित करने के लिए लागू किए गए लोकसेवा गारंटी अधिनियम को एक नई नजर से देखा जाना चाहिए। शायद विश्ल के प्रशासनिक इतिहास में ऐसा प्रयोग देखा नहीं गया है। किंतु मध्यप्रदेश की अगर जनता जागरूक होकर इस कानून का लाभ ले सके तो, सरकारी काम की संस्कृति बदल जाएगी और लोगों को सीधे राहत मिलेगी। शिवराज विकास की हर घुरी पर फोकस करना चाहते हैं क्योंकि मप्र को हर मोर्चे पर अपने पिछड़ेपन का अहसास है। उन्हें अपनी कमियां और सीमाएं भी पता हैं। वे जानते हैं कि एक जागृत और सुप्त पड़े समाज का अंतर क्या है। इसलिए वे समाज की शक्ति को जगाना चाहते हैं। वे इसलिए मप्र के अपने नायकों की तलाश कर रहे हैं। वनवासी यात्रा के बहाने वे इस काम को कर पाए। टांटिया भील, चंद्रशेखर आजाद, भीमा नायक का स्मारक और उनकी याद इसी कड़ी के काम हैं। एक साझा संस्कृति को विकसित कर मध्यप्रदेश के अभिभावक के नाते उसकी चिंता करते हुए वे दिखना चाहते हैं। मुख्यमंत्री की यही जिजीविषा उन्हें एक सामान्य कार्यकर्ता से नायक में बदल देती है। शायद इसीलिए वे विकास के काम में सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। राज्य के स्थापना दिवस एक नवंबर को उन्होंने उत्सव में बदल दिया है। वे चाहते हैं कि विकासधारा में सब साथ हों, भले ही विचारधाराओं का अंतर क्यों न हो। यह सिर्फ संयोग ही नहीं है कि जब मप्र की विकास और गर्वनेंस की तरफ एक नई नजर से देख रहा है तो पूरे देश में भी तमाम राज्यों में विकासवादी नेतृत्व ही स्वीकारा जा रहा है। बड़बोलों और जबानी जमाखर्च से अपनी राजनीति को धार देने वाले नेता हाशिए लगाए जा रहे हैं। ऐसे में शिवराज सिंह का अपनी पहचान को निरंतर प्रखर बनाना साधारण नहीं है। मध्यप्रदेश की जंग लगी नौकरशाही और पस्त पड़े तंत्र को सक्रिय कर काम में लगाना भी साधारण नहीं है। राज्य के सामने कृषि विकास दर को बढ़ाना अब सबसे बडी जरूरत है। एक किसान परिवार से आने के नाते मुख्यमंत्री इसे समझते भी हैं। इसके साथ ही निवेश प्रस्तावों को आकर्षित करने के लिए लगातार समिट आयोजित कर सरकार बेहतर प्रयास कर रही है। जिस राज्य के 45.5 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, उस राज्य की चुनौतियां साधारण नहीं है, शुभ संकेत यह है कि ये सवाल राज्य के मुखिया के जेहन में भी हैं।
भाजपा और उसके नेता शिवराज सिंह चौहान पर राज्य की जनता ने लगातार भरोसा जताते हुए बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। विरासत में मिली तमाम चुनौतियों की तरफ देखना और उनके जायज समाधान खोजना किसी भी राजसत्ता की जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री को इतिहास की इस घड़ी में यह अवसर मिला है कि वे इस वृहतर भूगोल को उसकी तमाम समस्याओं के बीच एक नया आयाम दे सकें। सालों साल से न्याय और विकास की प्रतीक्षा में खड़े मप्र की सेवा के हर क्षण का रचनात्मक उपयोग करें। बहुत चुनौतीपूर्ण और कंटकाकीर्ण मार्ग होने के बावजूद उन्हें इन चुनौतियों को स्वीकार करना ही होगा, क्योंकि सपनों को सच करने की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के भूगोल और इतिहास दोनों ने उन्हें दी है। जाहिर है वे इन चुनौतियों से भागना भी नहीं चाहेंगे। मुख्यमंत्री के पद पर उनके पांच साल पूरे साल होने पर राज्य की जनता उन्हें अपनी शुभकामनाएं देते हुए शायद यही कह रही है ‘मत चूको चौहान!’
जिस दौर में रक्त से जुड़े रिश्ते भी बिगड़ रहे हों ऐसे कठिन समय में एक राज्य के मुखिया का खुद को तमाम लड़कियों के मामा के रूप में खुद को स्थापित करना बहुत कुछ कह देता है।
यह बात गौर से देखी जाये तो बहुत महत्व रखती है विकास बहुत जरूरी है लेकिन इस विकास ने समाज को क्या दिया है ये भी सोचना पड़ेगा समाज मैं विखंडन, नैतिकता का ह्रास, रिश्तों मैं कडवापन, भौतिक सुख सुविधाओं को जुटाने की चाहत मैं समाज का मानसिक और नैतिक पतन भी बहुत तेजी से हुआ है.
लोगों मैं सहनशक्ति ख़तम हो गयी है अगर सामाजिक शोधकर्ताओं के नतीजे देखें तो सामाजिक तानाबाना एक बहुत बड़ी त्रासदी से गुजर रहा है. एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या ने सभी पैमानों को पीछे छोड़ दिया है, एकल परिवार बढे हैं अपने ही लोगों से असुरक्षा चरम पर है.
अगले चरण मैं चौहान साब को इस पर काम करना चाहिए, और हमें विश्वास है वो बिलकुल नहीं चूकेंगे.
आकर्षक शीर्षक और बहुत ही बढ़िया सकारात्मक लेख. अपने पूर्ववर्ती दिग्विजय की तुलना में शिवराज कई गुना बेहतर विकल्प है. सीधे-सरल और कर्मठ शिवराज से लोगो को काफी आशाये है.